महर्षि अरबिंदो घोष का जीवन परिचय (Maharshi Aurobindo Ghose Biography in Hindi)

भारत की स्वतंत्रता में योगदान देने वाले क्रांतिकारियों में कई नाम ऐसे हैं जिनकी प्रसिद्ध अन्य प्रबुद्ध नेताओं जितनी नहीं हैं, ऐसे ही नामों में से एक अरबिंद घोष का नाम भी है. अरबिंदो घोष ने भारत की स्वतंत्रता में कम समय के लिए दिया गया किन्तु महत्वपूर्ण योगदान दिया था, लेकिन बाद में उनकी पहचान एक आध्यात्मिक गुरु की बन गयी थी.

अरबिन्दो घोष: निजी जीवन और पारिवारिक जानकारी (Aurbindo Ghose  Family details and Personal Life)

1901 में अरबिंदो का विवाह सीनियर सरकारी अफसर की बेटी से हुआ था, लेकिन  इन्फ्लुएंजा पेंडेमिक के कारण उनकी पत्नी का देहांत दिसम्बर 1918 में हो गया.

अरबिंदो का भारत लौटना (Aurbindo returned to India)

  • इंग्लॅण्ड में यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए ही उनमें देशभक्ति की भावना जागृत होने लगी थी,सिविल सर्विस में उनकी रूचि इसीलिए नही थी क्योंकि वो किसी भी तरह से ब्रिटिश सरकार की सेवा नहीं करना चाहते थे. स्नातक होने पर अरबिंदो ने तय किया कि वो भारत लौटकर शिक्षक बनेंगे, अरबिंदो ने बाद में ये बात मानी भी कि भारत लौटना ही उनके आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत थी और भारत की माटी में उन्हें वो सुकून मिला था जिसकी उन्हें तलाश थी. घोष 1893 में भारत लौटे थे और यहाँ बड़ोदा के शाही परिवार में उनकी नौकरी लग गयी. वो बहुत सी विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे,लेकिन तब भारतीय संस्कृति के बारे में उन्हें बहुत कम पता था.
  • उन्होंने अगले 12 वर्षों तक बड़ोदा में एक शिक्षण कार्य किया, महाराजा ऑफ़ गायकवाड के सेक्रेटरी और बड़ोदा कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल के तौर पर काम किया. इस दौरान ही उन्हें भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को समझने का मौका मिला,और धीरे धीरे उनमें राजनीति में रूचि जागृत हुयी. बडौदा में रहते हुए उन्होंने इंदु-प्रकाश नाम आर्टिकल लिखा.

 भारत की स्वतंत्रता में अरबिंद घोष का योगदान (Aurbindo’s Role in the Indian freedom Struggle)

  • उनके शुरूआती राजनीतिक क्रियाविधियों में ब्रिटिश सरकार से भारत की स्वतंत्रता की मांग थी.बंगाल के विभाजन की घोषणा के बाद 1906 में वो कोलकाता शिफ्ट हो गये थे. अरबिन्दो ने असहयोग आंदोलन में खुलकर सहयोग दिया और इसका समर्थन किया जबकि परोक्षत: वो कई क्रांतिकारी गतिविधयों में भी शामिल थे, और देश में क्रांतिकारी माहौल तैयार कर रहे थे.
  • बंगाल में उन्होंने क्रांतिकारियों से सम्पर्क किया और युवा क्रांतिकारियों को इस मार्ग पर चलने को प्रेरित किया, बघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेन्द्र नाथ टैगोर जैसे कई क्रांतिकारी तैयार किये, उन्होंने युवाओं के संगठन भी बनाये जिनमें अनुशीलन समिति का नाम प्रमुख हैं. .
  • 1906 में अरबिंदो ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के वार्षिक सेशन में भाग लिया,जिसे दादभाई नैरोजी संचालित कर रहे थे, उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए 4 आधारभूत उद्देश्य दिये, पहला था स्वराज दूसरा स्वदेश तीसरा बहिष्कार और चौथा राष्ट्रवाद की शिक्षा, इसी दिशा में कार्य करते हुए उन्होंने 1907 में बन्दे मातरम नाम का न्यूज पेपर भी शुरू किया.
  • 1907 में कांग्रेस में विभाजन हो गया और गर्म दल एवं नर्म दल बन गये अरबिंदो ने गर्म दल का पक्ष लेते हुए बाल गंगाधर तिलक को समर्थन दिया, इसके बाद उन्होंने पुणे,बडौदा और बोम्बे की यात्रा की और लोगों में राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए जन-जागृति का कार्य किया.
  • 1908 में अरविंदो को ब्रिटिश पुलिस ने अलीपुर बम केस गिरफ्तार कर लिया और लगभग 1 साल के बाद उन्हें छोड़ा गया, जेल से छूटने के बाद उन्होंने कर्मयोगी नाम का अंग्रेजी में और धर्म नाम की पत्रिका का बंगाली में प्रकाशन शुरू किया. अलीपुर जेल में ही उन्हें ये समझ आने लगा था कि वो स्वतंत्रता संग्राम के लिए नहीं हैं और उन्होंने अपना पथ दार्शनिक और आध्यत्मिक जीवन की तरफ मोड़ लिया. 1910 में अरबिंदो घोष ने पोंडिचेरी जाकर नया जीवन शुरू किया.
  • पोंडीचेरी में अरबिंदो घोष ने आध्यात्मिक पथ पर प्रगति की और लगातार 4 वर्षों तक योग सीखा जिसका नाम उन्होंने इंटीग्रल योग रखा. उन्होंने बताया कि आध्यात्म की महत्ता इसलिए भी हैं क्योंकि ये मनुष्य के जीवन को पूरी तरह से बदल सकता हैं.

अरविन्द घोष राजनीति और आध्यात्म (Aurbindo Ghose: Politics और Spiritualism)

  • 1908 में अलीपुर में हुए बम ब्लास्ट में 2 व्यक्ति मारे गये जिसके कारण उन्हें जेल की गयी. अलीपुर बम केस के आरोप में जब वो जेल में बंद थे तब उन्होंने काफी आध्यात्मिक अनुभव किये, उन्होंने बताया भी था कि वो लगातार विवेकानंद जीकी आवाज़ सुन रहे थे जो उन्हें आध्यात्म में की यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित कर रहे थे.
  • आध्यत्मिक परिवर्तन के दौरान ही श्री अरबिंदो को आंतरिक शक्ति मिलने लगी और उन्होंने राजनीती छोड़ने का निर्णय किया, क्योंकि उन्हें सत्य की अनुभूति हो चुकी थी. चितरंजन दास के लगातार प्रयत्नों से अरबिंदो जेल से छूट गये, हालांकि ब्रिटिश सरकार को इसके बाद भी उन पर शक रहता था इसलिए ही उन्होंने फ्रेंच प्रोविंस पोंडीचेरी जाकर ध्यान और आध्यात्म मार्ग को जारी रखने का निर्णय किया.
  • पोंडिचेरी आने के बाद अरबिंदो आम-जन के लिए बहुत कम कोई घोषणा करते थे, हालांकि कुछ बड़े मुद्दों एवं कार्यक्रमों में वो अपनी चुप्पी तोड़ते थे, उस समय की आवश्यकता को देखते हुए ये बात क्रांतिकारियों से लेकर आम लोगों के लिए आश्चर्य और निराशाजनक विषय था. लेकिन 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिटलर के नाजी जर्मनी के विरुद्ध ब्रिटिश सरकार के युद्ध का सहयोग देने का बयान दिया, ये भुत आश्चर्यजनक था क्योंकि अरबिंदो से ब्रिटिश सरकार के विरोध की उम्मीद की जा रही थी लेकिन वो जर्मनी के हिटलर के खतरे के प्रति लगातार आगाह करते रहे.
  • 17 मई 1940 को उन्होंने कहा हिटलर दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं, यदि हिटलर जीतता हैं तो क्या लगता हैं भारत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकेगा?? ये सर्व-विदित तथ्य हैं कि हिटलर की नजर भारत पर हैं,वो खुलकर दुनिया में शासन की बात करता हैं.
  • 1942 में जब ब्रिटिश ने युद्ध में सपोर्ट करने पर भारत को डोमिनियन स्टेट बनाने का प्रस्ताव रखा तो अरबिंदो नेमहात्मा गांधी को लिखा कि वो ये प्रस्ताव स्वीकार कर ले, लेकिन गांधी और कांग्रेस ने इसे ख़ारिज कर दिया. अरबिंदो ने सर स्टाफोर्ड क्रिप्स को एक सकारात्मक पत्र भी लिखा. जबकि भारतीय नेताओं में अरबिंदो वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने घोषित रूप से भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की जबकि इंडियन कांग्रेस पार्शियल स्वतंत्रता ही चाहती थी.
  • पोंडिचेरी में धीरे-धीरे अरबिंदो के अनुयायियों की संख्या बढने लगी,जिसके कारण 1926 में अरबिंदो आश्रम बनाना पड़ा.

 श्री अरबिंदो आश्रम (Sri Aurobindo Ashram)

  • पोंडीचेरी में अरबिंदो ने कुछ अनुयायियों के साथ ही आध्यात्मिक यात्रा शुरू की थी लेकिन समय के साथ जब उन्हें आश्रम स्थापित करना पड़ा तब उनके नाम के आगे श्री का उपयोग होने लगा. आश्रम की स्थापना मिरर रिचर्ड ने की थी जो कि फ्रेंच मूल की थी एवं अरबिंदो के आध्यात्मिक सहयोगी थी.
  • शुरू में अरबिंदो ने मिरर रिचर्ड में सिर्फ दयालुता और करुणा देखी थी इसलिए उनको आश्रम का दायित्व दिया, लेकिन बाद में वो खुद कहने लगे कि वो एवं मिरर 2 शरीर लेकिन एक आत्मा हैं, मतलब अरबिंदो ने भी रिचर्ड को अपने समकक्ष माना था.
  • रिचर्ड ने ही आश्रम का मेनेजमेंट सम्भाला था, थोड़े समय बाद उन्हें “मदर” माँ कहकर सम्बोधित किया जाने लगा और ये माना गया कि आध्यात्मिक बुद्धिमता और ज्ञान में वो अरबिंदो के समकक्ष ही थी. मदर को पूरा आश्रम सौपने के बाद अरबिंदो ने अपना ज्यादा से ज्यादा समय ध्यान और आध्यात्म को देना शुरू कर दिया.

अरबिंदो का लेखन

  • श्री अरबिंदो ने आध्यात्मिक ज्ञान पर विस्तार में लिखा था ,उन्होंने कहा कि उनकी अंतरात्मा से उन्हें लिखने की प्रेरणा मिलती हैं. अरबिंदो ने धैर्य के साथ कई सवालों के जबाब खोजे थे और उन्हें लिपिबद्ध किया था. उनके अनुयायी उनसे जो भी सवाल पूछते थे वो उनका धैर्य के साथ जवाब देते थे, छोटे से छोटे सवाल का जवाब अरबिंदो बहुत ही रूचि और धैर्य के साथ देते थे. अरबिंदो ने बहुत से बड़े न्यूजपेपर और जर्नल्स के लिए लिखने से मना कर दिया था, उन्हें समय-समय पर स्वतंत्रता संग्राम में नेतृत्व करने के लिए भी कहा जाता था लेकिन मार्गदर्शन के अतिरिक्त किसी भी तरह के सक्रिय भूमिका के लिए वो हमेशा मना कर देते थे.
  • योग और अध्यात्म के अतिरिक्त अरबिंदो भारतीय संस्कृति,वेद और समाज,भारतीय सभ्यता के फाउंडेशन, वेड के रहस्य,मानव चक्र इत्यादि के बारे में भी लिखते थे. अरबिंदो एक कवि भी थे, जब वो इंग्लैंड में थे तब भी कविताएँ लिखते थे. उनकी कविताओं का संग्रह 1930 में प्रकाशित हुआ था जो कि साहित्य में महत्वपूर्ण माना जाता हैं. उनकी 24000 पंक्तियों की कविता सावित्री बहुत ही आध्यात्मिक और प्रेरक कविता हैं.
  • उनके द्वारा लिखी गयी सावित्री उनके आध्यात्मिक साधना की यात्रा की व्याख्या करती हैं. उन्होंने लगभग 20 वर्षों तक इसे लिखा था और सुधारा था, इस कारण ये उनके आध्यात्मिक शक्तियों को दिखाने वाली सबसे ज्यादा चर्चित किताब बनी.

घोष की लिखी किताबे (Books wriiten by Aurbindo Ghose)

वर्ष किताब का नाम
1921 दी योगा एंड इट्स ओबेज्क्ट्स और लव एंड डेथ
1949 दी लाइफ डिवाइन
1950 एसेज ऑन दी गीता
1953 दी मेसेज एंड मिशन ऑफ़ इंडियन कल्चर, दी माइंड ऑफ़ लाईट

1909 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने अंग्रेजी में कर्मयोगिनी और बंगाली में धर्मा प्रकाशित करने शुरू किये. 1914 में अरबिंदो ने प्रतिमाह दार्शनिक पत्रिका आर्य शुरू की.

अरबिंदो से जुडी रोचक जानकारी (Interesting facts about Aurbindo Ghose)

  • इंग्लैंड में अरबिंदो का जीवन भारत जितना आसन और सुविधा सम्पन्न नही था, उन्होंने वहां पूरा एक साल रोज सुबह केवल 2 ब्रेड बटर और चाय से निकाला था.
  • मात्र 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने बोम्बे से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक इंदु प्रकाश लिखना शुरू किया और एडिटर ने उनसे कहा कि वो सांस्कृतिक मुद्दों को बन्द करके राजनीति पर लिखे. इस कारण उनकी इसमें रूचि खत्म हो गयी और उन्होंने लिखना बंद कर दिया.
  • वो क्रांतिकारी गतिविधियों में जब सक्रिय थे तब उन्होंने एक गुप्त समूह में शामिल हुए थे जिसका नाम लोटस एंड डैगर था, जहां सदस्य गुप्तता की शपथ लेते थे. ब्रिटिशर्स उनसे तब खौफ खाते थे, लार्ड मिन्टो ने कहा था कि वो इस समय सबसे खतरनाक व्यक्ति हैं जिससे हमे निबटना हैं.
  • एक बार वो महाराजा हरीसिंह के साथ कश्मीर यात्रा में थे तबी उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति हुयी,और ये समझ आया कि आध्यात्म दुनिया अनंत हैं. अरबिंदो को लास्ट वर्जन मेरी का अवतार माना जाता था.

अरबिंदो को मिले सम्मान (Aurbindo:Awards and Achievments)

  • 1943 में उन्हें साहित्य के नोबल पुरूस्कार के लिए नामांकित किया गया,जबकि 1950 में उनके कविताओं में दिए योगदान, आध्यात्मिक और दार्शनिक साहित्य के लिए नामांकित किया गया. उन्हें साहित्य में बटरवर्थ पुरूस्कार और इतिहास में दिए योगदान के लिए बेडफोर्ड पुरूस्कार भी दिया गया था.

अरबिंद घोष की मृत्यु(Death of Aurbindo)

  • 5 दिसम्बर 1950 को 78 वर्ष की उम्र में श्री अरबिंदो ने अपनी देह त्याग दी, उन्होंने काहा था कि वो अपने आध्यात्मिक कार्य दूसरी दुनिया से भी जारी रखेंगे. उनके पार्थिव देह को 4 दिन के लिए दर्शन हेतु रखा गया और 9 दिसम्बर को उनकी समाधि बनाई गयी, जिन लोगों ने उन्हें देखा था उनका कहना था कि उनका शव बिलकुल भी खराब नहीं हुआ था.

अरबिंदो का मानना था कि योग का मुख्य उद्देश्य अंतर-विकास करना हैं, जिससे कि व्यक्ति स्वयं को जान सकता हैं और मानसिक से ज्यादा आत्म-विकास कर सकता हैं, जिससे आध्यात्मिक शक्ति बढती हैं. श्री अरबिंदो ने एक बार लिखा था कि किसी आध्यत्मिक गुरु की बायोग्राफी लिखना मुश्किल है, क्योंकि उनके जीवन में ज्यादा परिवर्तन बाह्य नहीं बल्कि आंतरिक होते हैं,जिन्हें समझना आसान नहीं होता.

 

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