लार्ड डलहौजी का जीवन परिचय (Lord Dalhousie ,Biography in Hindi)
सोने की चिड़िया कहे जाने वाले पुराने भारत से आधुनिक भारत के निर्माण की नीव गवर्नर जर्नल लार्ड डलहौजी ने रखी थी. उनका कार्यकाल 1848 से 1856 था. उनसे पहले लार्ड ऑकलैंड (Lord Auckland) गवर्नर जनरल थे,जबकि उनके बाद लार्ड कैनिंग (Lord Canning ) गवर्नर जनरल बने,जिन्हें भारत का पहला वायसराय भी घोषित किया था.
इतिहास (Brief History)
लार्ड डलहौजी ने अपने शासनकाल के दौरान भारत में 2 मुख्य सफलताएं हासिल की थी,पहला तो उन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों का राजनैतिक एकीकरण किया और दूसरा उन्होंने रेलवे की शुरुआत,टेलीग्राफ और आधुनिक पोस्ट सेवा जैसी सुविधाओं के साथ देश में कई आर्थिक-सामजिक परिवर्तन किये.
जन्म,शिक्षा और परिवार (Birth and family details)
1812 में लार्ड डलहौजी का जन्म स्कॉटलैंड के किले में हुआ था, उनका वास्तविक नाम जेम्स एंड्रू ब्राउन रामसे था. लार्ड डलहौजी ने क्राइस्ट चर्च एंड हेरो और ऑक्सफ़ोर्ड से शिक्षा ली थी. 25 की उम्र में उन्हें ब्रिटिश पार्लियामेंट के लिए चुना गया था,लार्ड डलहौजी व्यू काउंसलर और बोर्ड ऑफ़ ट्रेड के प्रेजिडेंट थे. 12 जनवरी 1848 में उन्हें भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया.
लार्ड डलहौजी और डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स (Lord Dalhousie and doctrine of lapse)
लॉर्ड डलहौज़ी जब भारत तो उन्होंने देखा कि, यहाँ के नेटिव रुलर्स की अपेक्षा अंग्रेज ज्यादा आछे शसक हैं,वास्तव में डलहौजी की नियत ब्रिटिश साम्राज्य को बढाना था. इसलिए उसने ये नीति बनाई थी,जिसके अनुसार किसी राज्य में आनुवांशिक पुरुष उतराधिकारी ना होने की स्थिति में वहां के राजा की मृत्यु होने पर उस राज्य में अंग्रेजों का शासन शुरू हो जाएगा. इस नीति से डलहौजी ने अवध,कानपुर, नागपुर, झांसी जैसे कई राज्यों को अंग्रेजों के अधीन कर लिया था. इस नीति को केडोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स (Doctrine of Lapse) नाम से जाना जाता है।
लार्ड डलहौजी के सुधार–कार्य (Lord Dalhousie Reforms)
प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms)
- डलहौजी का मुख्य उद्देश्य भारत में अंग्रेजों के शासन का एकीकरण करना था,इसलिए उसें केन्द्रीकरण की नीति अपनाई. नयी हडपी गयी जगह को उसने “नॉन-रेग्युलेटरी सिस्टम” (Non Regularity) में रखा, जहां पर प्रशासनिक समस्याओं को सुलझाने के लिए कमिश्नर नियुक्त किये गये,और उन्हें काउंसिल में जिम्मेदार गवर्नर जनरल बनाया गया.
- उसने न्याय, पुलिस और जमीन समबन्धित मामलों की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को सौप दी थी.
- डलहौजी ने बंगाल में लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति के लिए भी प्रोविजन बनाया. 1853 के पार्लियामेंट्री एक्ट (Parliamentary Act) के अनुसार गवर्नर जनरल को बंगाल के गवर्नर जनरल के कार्य से मुक्त कर दिया.
सेना सुधार (Military Reforms)
- पंजाब,सिंध और अवध की जीत के बाद कम्पनी शासित राज्यों का क्षेत्र बढ़ गया था और भारत में मिलिट्री की प्रभाविता उत्तर भारत में ज्यादा हो गयी थी. इस कारण डलहौजी ने बंगाल के तोपखाना केंद्र को कलकता से मेरठ शिफ्ट कर दिया.
- आर्मी हेड क्वार्टर (Army Head quarter) भी शिमला में लगा दिया गया जिससे कि शिमला में रहने वाले गवर्नर जनरल के सम्पर्क में आर्मी रह सके.
- डलहौजी ने फौजों को कलकता से पश्चिम की तरफ मूव (Move) करने का भी आदेश दे दीया था. डलहौजी ये बात साफ देख सकता था कि भारत में अंग्रेजों का भविष्य सशक्त आर्मी से ही सम्भव हैं,जिसमें भी भारतीय और अंग्रेज सैनिकों के बीच में संतुलन हो,इस तरह कुछ भारतीय सैनिकों को हटाने के बाद 1856 में आर्मी में 2,23,000 भारतीय और 45,000 यूरोपियन बचे थे.
- डलहौजी को भारतीयों पर विशवास नहीं था इसलिए उसने गोरखा रेजिमेंट बनाई. पंजाब में एक अनियमित फ़ोर्स भी बनाई, इस रेजिमेंट ने 1857-58 में अंग्रेजो का काफी साथ दिया था.
रेलवे के जनक (Railway Formation)
- डलहौजी ने भारत में एक नए परिवहन की शुरुआत की थी. वो भारतीय रेलवे के जनक भी कहलाते हैं. डलहौजी के 1853 में घरेलू प्रशासन को रेलवे की जरुरतों के बारे समझाया था और मेन लाइन के निर्माण की शुरुआत की थी.
- उन्होंने पोर्ट और देश के मुख्य शहरों को जोड़ने वाली रेलवे लाइन की रूपरेखा तैयार की. इस तरह पहले रेलवे लाइन 1853 में बोम्बे से ठाणे तक की चली,जो कि 26 मील की दूरी तय करती थी.
- अगले साल कलकता से रानीगंज तक कोयला संचालित ट्रेन चली, धीरे-धीरे सभी महत्वपूर्ण शहरों और कस्बों को रेलवे लाइन से जोड़ दिया गया. रेलवे लाइन का निर्माण भारत के राजकोष से नहीं हो रहा था बल्कि इसे गवर्मेंट गारंटी के अंतर्गत इंग्लिश कम्पनी सम्भाल रही थी. व्यपार और आर्थिक प्रगति के साथ ही रेलवे ने पूरे देश को जोड़ने का काम किया था.
टेलीग्राफ सिस्टम (Telegraph System)
- 1852 में डलहौजी ने भारत में इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ सिस्टम (Electronic Telegraph System) शुरू किया. 1854 में पहली टेलीग्राफ लाइन 800 मील की दूरी तय करती कलकता से सागर के बीच में स्थापित की गयी थी.
- 1857 तक इसे लाहौर से पेशावर तक विस्तारित किया गया और बर्मा में यह रंगून से मांडले तक बनाई गयी. अब भारत में लोग टेलीग्राफ की मदद से एक जगह से दूसरी जगह संदेश भेज सकते थे.
पोस्टल सुधार (Postal Reform)
- भारत में पोस्टल डिपार्टमेंट को स्थापित करने का श्रेय भी लार्ड डलहौजी को ही जाता हैं. पूरे देश में विभिन्न शहरों में पोस्टल डिपार्टमेंट (Postal Department )को स्थापित किया गया, इस तरह के पोस्ट ऑफिस से सरकार को राजस्व मिलने लगा, और आम-जन को भी आधुनिक पोस्टल सिस्टम का फायदा होने लगा.
पब्लिक के लिए किये गये कार्य (Public Work)
- लार्ड डलहौजी से पहले मिलिट्री बोर्ड ही पब्लिक वर्क(Public Work) के कन्स्ट्रक्शन(Construction) का भी इंचार्ज(In-Charge) था,इसलिए सिविलियन वर्क (Civilian Work) को मिलिट्री बोर्ड द्वारा नजर अंदाज किया जाता था.लार्ड डलहौजी ने एक अलग से पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट को स्थापित किया. डिपार्टमेंट का मुख्य काम रोड, ब्रिज और सरकारी बिल्डिंग बनाना था. कंस्ट्रक्शन का काम देखने के लिए चीफ इंजिनयर और अन्य प्रशिक्षित इंजीनियरों को इंग्लॅण्ड से बुलाया जाता था.
- 8 अप्रैल 1854 को गंगा कैनाल बनकर पूरी हुयी और इसका उद्घाटन किया गया. बहुत से ब्रिज और कैनाल और ग्रांड ट्रंक रोड भी बनाई गयी.
- डलहौजी का रूडकी और अन्य प्रेजिडेंसी में इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने में विशेष योगदान था. इसलिए उनहे भारत में प्रोफेशनल और टेक्निकल एजुकेशन (Professional and Technical Education ) का फादर भी कहा गया था.
सामाजिक सुधार (Social Reforms)
डलहौजी ने राजपूतो में प्रचलित भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कानून बनाये. उसने उड़ीसा के खोंड,मद्रास और सेन्ट्रल प्रोविनेंस में होने वाले इंसानों के बलिदान को भी रोका, जो इस मान्यता से किया जाता था कि मानव का बिलदान देने से मिट्टी की उर्वकता बढ़ेगी.
व्यावासायिक सुधार (Commercial Reforms)
डलहौजी ने फ्री ट्रेड की नीति अपनाई. डलहौजी ने भारत को अंगेजो का आर्थिक शोषण केंद्र बना दिया था. भारत में सभी पोर्ट को फ्री कर दिया,कराची, बोम्बे और कलकता में लाईट हाउस बनाये गये. उसकी इन नीतियों के कारण पूरे समुंद्री व्यापार पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया,क्योंकि उनके पास शक्ति और संसाधन थे. इससे भारत को काफी आर्थिक नुकसान हुआ.
शैक्षिक सुधार (Educational Reforms)
- लार्ड डलहौजी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई परिवर्तन किये. 1854 मे सर चार्लस वुड (बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल के प्रेजिडेंट) ने भारत में शिक्षा प्रणाली को पुन:व्यवस्थित करने के लिए एक प्रस्तावना भेजी थी, जिसे वुड का “डिसपेच ऑफ़ 1854”(Dispatch of 1854) भी कहा जाता हैं,इसके अनुसार हर जिले में एंग्लो देशी भाषा का स्कूल, महत्वपूर्ण शहरों और कस्बो में सरकारी कॉलेज और प्रेजिडेंसी ऑफ़ इंडिया में युनिवर्सिटी की स्थापना होनी चाहिए. डलहौजी ने वुड के सुझाव पर भारत में शिक्षा के आधार और जरूरत को अच्छे से समझ लिया था और उसने इन सभी कामों को अंजाम दिया.
- हर प्रोविडेंस(Province) में जनरल पब्लिक इंस्ट्रक्शन (General Public Instruction)के अंतर्गत एक अलग से शिक्षा विभाग स्थापित किया गया.
- सरकार ने निजी शिक्षा संस्थाओं को भी आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित किया, 1857 में कलकता,मद्रास और बोम्बे में यूनिवर्सिटी की स्थापना की गयी यूनिवर्सिटी का काम एग्जाम करवाना और डिग्री देना था. निम्न वर्ग के लिए क्षेत्रीय भाषा में स्कूल खोली गयी.
- डलहौजी का रूडकी और अन्य प्रेजिडेंसी में इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने में विशेष योगदान था. इसलिए उनहे भारत में प्रोफेशनल और टेक्निकल एजुकेशन (Professional and Technical Education ) का फादर भी कहा गया था.
डलहौजी के द्वारा बनाये गये महत्वपूर्ण एक्ट (Important Acts by Lord Dalhousie)
- डलहौजी के आने से पूर्व तक ये नियम था कि यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर लेता हैं तो उसके पिता की सम्पति में उसका अधिकार नहीं रहता हैं, इस कारण भारत में कन्वर्जन की दर कम थी,लेकिन डलहौजी ने 1850 में एक रिलीजियस डिसेबिलिटी एक्ट पास किया जिसके अनुसार हिन्दू के कन्वर्ट होने पर भी उसकी पुश्तैनी सम्पति पर उसका अधिकार रहेगा.
- उसने 1855 में विधवा पुन:विवाह अधिनियम भी पास किया जिसके कारण हिन्दुओं में विधवा का पुन:विवाह होना कानूनन शुरू हुआ, हालांकि इन सभी सामाजिक परिवर्तनों ने आम-जन में अंग्रेजों के खिलाफ रोष भर दिया
- 1854 में एक नया पोस्ट ऑफिस एक्ट पास हुआ था, इस सिस्टम के अंतर्गत एक डायरेक्टर जनरल को नियुक्त किया गया था, जो सभी प्रेजिडेंसी में के पोस्ट ऑफिस में सुपरवाइजर का काम देखता था, एक समान दर अट्ठनी में लेटर और पोस्टेज स्टाम्प भी लांच किये गए.
डलहौजी की महत्वपूर्ण जीत ( Important victory by him)
सेकंड एंग्लो सिख युद्ध
लार्ड डलहौजी के कार्यकाल में पहला युद्ध 1848-49 में लडा गया था जिसमें उन्होंने पंजाब में सिख साम्राज्य को समाप्त किया था. लाहौर की संधि के बाद सर हेनरी लावरेंसे को लाहौर दरबार में नीतियों पर नियन्त्रण के लिए नियुक्त किया. जो बाद में किसी बीमारी के कारण इंग्लॅण्ड चले गये, और उनकी जगह वकील फ्रेडरिक कर्री को लाहौर के दरबार में नियुक्ति मिली.
सर फ्रेडरिक कर्री ने मुल्तान के गवर्नर दीवान मूलराज को बकाया आय भरने का आदेश दिया गया था. जब ब्रिटिश ऑफिसर को मूलराज के दरबार में भेजा गया,तो उन्होंने उस पर आक्रमण कर अधिकाररी को घायल कर दिया. घायल अधिकारी को कुछ लोगों ने बचाया लेकिन भीड़ ने उन्हें मार गिराया. इसके बाद मूल राज की छोटी सी सेना को अंग्रेजों ने हरा दिया,लेकिन क्रांतिकारी शान्त्न्ही हुए और उन्हों ने फिर से अंग्रेजो पर हमला कर दिया. इस तरह युद्ध कुछ महीनो तक चला जिसके आखिर में सिख हार गए,इस तरह 29 मार्च 1849 के दिन अंग्रेजों ने पूरे पंजाब को अपने अधीन कर लिया. रानी जिन्द्कौर को जेल में डाल दिया और 11 वर्षीय माहराज दलीप सिंह को पेंशन पर लन्दन भेज दिया.
सेकंड एंग्लो–बर्मन युद्ध 1852-53
एंग्लो बर्मन युद्ध के बाद बर्मा और ईस्ट इंडिया कम्पनी के मध्य में 24 फरवरी 1826 को यांदाबू की संधि हुयी थी. 20 साल बाद वहां के राजा ने उन अंग्रेज व्यापारियों को तंग करना शुरू कर दिया जो वहाँ सेटल होने लगे थे.
1851 में इन व्यापारीयों ने बर्मा उत्पीडन के बारे में कलकता में बैठे अधिकारियों से शिकायत की,जिस पर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने एक्शन लेते हुए लार्ड डलहौजी ने बर्मा को खती-पूर्ति की राशि देने को कहा, लेकिन वहाँ से कोई जवाब नहीं मिलने पर एक तनाव-पूर्ण युद्ध की स्थिति बन गयी,और आखिर में 5 अप्रैल 1852 को वहाँ युद्ध छिड गया,12 अप्रैल को रंगून पर और जून में पेगू पर कब्ज़ा कर लिया गया. जनवरी 1853 को बिना किसी संधि के साथ युद्ध समाप्त हुआ,पेगु को लोअर बर्मा नाम मिला,
डलहौजी से जुड़े रोचक तथ्य (Unknown Facts )
- 1849 के द्वितीय सिख युद्ध में पंजाब को जीतने के बाद वहाँ के आखिरी राजा दलीप सिंह को लार्ड डलहौजी ने ये आदेश दिया कि वो ब्रिटिश की महारानी को 793 केरेट का कोहिनूर हीरा सौंप दे. इस तरह भारत से कोहिनूर को बाहर ले जाने का जिम्मेदार भी लार्ड डलहौजी ही था.
- लार्ड डलहौजी के भारत में प्रगतिशील परिवर्तन करने और कई राज्यों में ब्रिटिश शासन लागु करवाने के बाद भी उसे भारतीयों और अंग्रेजों की आलोचना का सामना करना पड़ा. वास्तव में ये दोनों ही पक्ष उन्हें 1857 की क्रान्ति के लिए जिम्मेदार मानते थे. जहां अंग्रेजों के अनुसार लार्ड डलहौजी ने ही इस क्रान्ति के बीज डाले थे वही भारतीय डलहौजी के नीतियों,पंजाब में मासुब बच्चों की हत्या और भारत की परम्पराओं को क्षति पहुचाने वाला विदेशी आक्रान्ता मानते थे.
लार्ड डलहौजी की मृत्यु (Lord Dalhousie death)
6 मार्च 1856 को लार्ड डलहौजी भारत से इंग्लॅण्ड लौट गए,कम्पनी ने उन्हें 5000 यूरो की पेंशन दी. उनके भारत छोड़ने के तुरंत बाद हुयी 1857 की क्रान्ति हो गई. जिससे जुड़े आरोपों और निंदा से जूझते हुए 1860 में डलहौजी की मृत्यु हो गयी.
भारत में लार्ड डलहौजी के नाम पर धरोहर
- लार्ड डलहौजी के नाम पर हिमाचल प्रदेश में डलहौजी नाम का एक हिल स्टेशन हैं,जो समुन्द्र तल से 7000 फीट उंचाई पर स्थित हैं. 1854 में बसा यह छोटा सा कस्बा आजकल सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं.
- कलकता में डलहौजी स्क्वेयर नाम का महत्वपूर्ण एडमिनिस्ट्रेटिव एरिया था,जो कि लार्ड डलहौजी के नाम पर ही रखा गया था. इसका नाम बाद में बिनॉय-बादल-दिनेश बाघ कर दिया गया,ये तीनों नाम 1857 में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों के थे.
हालाँकि लार्ड डलहौजी और उसकी नीतियों को अन्य अंग्रेज शासकों से अलग नहीं माना जा सकता लेकिन इस बात को भी अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता कि उसके कारण ही भारत में पोस्ट ऑफिस से लेकर रेलवे लाइन तक का विकास हुआ था, शिक्षा और समाज में कई सकारात्मक परिवर्तन आए थे.