लार्ड माउंटबेटन का जीवन परिचय (Lord Mountbatten Biography in Hindi)
ब्रिटिश स्टेट्समैन और नेवल ऑफिसर लुईस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन का जन्म एक सम्मानीय शाही परिवार में हुआ था. उन्हें जीवन में राईट ऑनरेबल दी विस्काउंट माउंटबेटन ऑफ़ बर्मा और दी अर्ल माउंटबेटन ऑफ़ बर्मा के टाइटल्स भी मिले थे, लेकिन अनौपचारिक रूप से उन्हें लार्ड माउंटबेटन के नाम से जाना जाता हैं.
म.(s.No.) | परिचय बिंदु (Introduction Points) | परिचय (Introduction) |
1. | पूरा नाम ((Full Name) | लुईस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन
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2. | जन्म (Birth Date) | 25 जून 1900 |
3. | जन्म स्थान (Birth Place) | विंडसर,बर्कशायर इंग्लैंड |
4. | मृत्यु (Death) | 27 अगस्त 1979 |
5. | पेशा (Profession) | ब्रिटिश शासित भारत के आखिरी वायसराय और स्वतंत्र भारत के गवर्नर जनरल
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6. | राष्ट्रीयता (Nationality) | ब्रिटिश |
7. | उम्र (Age) | 79 वर्ष |
8. | गृहनगर (Hometown) | विंडसर,बर्कशायर इंग्लैंड |
9. | धर्म (Religion) | क्रिश्चियन |
10. | वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
11. | राशि (Zodiac Sign) | कैंसर |
माउंबेटन का बचपन एवं प्राम्भिक जीवन (Lord Mountbatten’s Childhood & Early Life)
- लुईस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन अपने माता-पिता की चौथी संतान थे. अपने जन्म के समय से ही उनकी पहचान बेटनबर्ग के हाइनेस प्रिंस के तौर पर थी. उनकी परवरिश विंडसर में एक बहुत बड़े परिवार में हुयी थी, उनके जन्म के समय क्वीन विक्टोरिया का शासन था और वो सेंट पीटर्सबर्ग में रशिया के इम्पीरियल कोर्ट जाती रहती थी, इस कारण वो एवं उनका परिवार रशिया इम्पिरीयल परिवार के करीबी था.
- माउंटबेटन ने अपने जीवन के पहले 10 वर्षों की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही ली थी,उसके बाद उन्हें हेर्टफोर्डशायर के लाकर्स पार्क स्कूल भेजा गया(Lockers Park School in Hertfordshire) इसके बाद 1913 में उन्होंने रॉयल नेवी कॉलेज, ओस्बोर्न (Royal Naval College, Osborne) से आगे की पढ़ाई की.
माउंट बेटन का परिवार और निजी जानकारी (Lord Mountbatten’s Family and Personal information)
18 जुलाई 1922 को माउंटबेटन ने एडविन से विवाह किया,2 वर्ष बाद उनके पहली बेटी पेट्रीसिया(Patricia) का जन्म हुआ जबकि 7 वर्षों बाद पामेला का जन्म हुआ. क्वीन एलिजाबेथ के बायोग्राफी लिखने वाले ने अपनी किताब “दी रॉयल सिस्टर्स” में लिखा था कि माउंटबेटन को बच्चों का बेहद शौक था. वो एक समर्पित पिता थे और साथ ही अपनी बहिन के बच्चे फिलीप का भी ध्यान रखते थे. फिलीप ने रानी एलिजाबेथ द्वितीय से विवाह किया था.
पिता (Father) | प्रिंस लुईस ऑफ़ बेटनबर्ग |
माता (Mother) | प्रिंसेज विक्टोरिया ऑफ़ हेस्से (Princess Victoria of Hesse) |
बहिन (Sister) | प्रिंसेस एंड्रू ऑफ़ ग्रीस और डेनमार्क,क्वीन लुईस ऑफ़ स्वीडन |
भाई (Brother) | जॉर्ज माउंटबेटन |
ग्रेट ग्रैंडसन (Great grandson) | क्वीन विक्टोरिया और प्रिंस एल्बर्ट
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पत्नी (Wife) | एडविन सैंथिया एन्नेट एश्ले (Edwina Cynthia Annette Ashley) |
ससुर (Father-in-law) | विल्फरड विलियम एश्ले (Wilfred William Ashley) |
पुत्री (Daughter) | लेडी पेट्रीशिया माउंटबेटन,लेडी पामेला कारमेन लुईस |
ग्रांड नेफ्यू (grand-nephew) | प्रिंस चार्ल्स और प्रिंस वेल्स |
लार्ड माउंटबेटन का करियर (Lord Mountbatten’s carrier)
- अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद माउंटबेटन ने 1916 में रॉयल नेवी जॉइन किया,उन्होंने एचएमएस-लायन (HMS Lion) और एचएमएस एलिजाबेथ (HMS Elizabeth) नाम के बोर्ड पर सेवाएं दी. उस समय ही बेटनबर्ग की अपने कजिन डेविड से दोस्ती हुयी,जो कि कि भविष्य में किंग एडवर्ड VIII बने.
- 1919 में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने पर माउंट’बेटन को सब-लेफ्टिनेंट बना दिया गया, और उन्होंने कैंब्रिज के क्राइस्ट कॉलेज से इंजीनियरिंग का कोर्स किया.
- 1920 में उनके कठोर परिश्रम और योग्यता को दखते हुए उन्हें प्रमोट करके लेफ्टिनेंट बना दिया गया, और एएचएमएस रीनाउन के युद्ध में भेजा गया, इसके अगले वर्ष उनका ट्रांसफर एएचएमएस रिपल्स में किया गया और प्रिंस एडवर्ड के साथ भारत एवं जापान की यात्रा पर भेजा गया.
- नेवी में अपने करियर के बावजूद भी माउंट’बेटन ने अपनी पढाई में कोई समझौता नहीं किया. उन्होंने 1924 में पोर्ट्समाउथ सिग्नल स्कूल(Portsmouth Signals School) में टेक्नोलोजीकल डेवेलपमेंट और गैजेट की शिक्षा ली. उसके बाद उन्होंने रॉयल नेवी कॉलेज,ग्रीनविच (Royal Naval College, Greenwich) इसके अलावा माउंटबेटन ने इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इलेक्ट्रिकल इंजिनियर्स की सदस्यता भी ले ली.
- माउंटबेटन ने 1926 में एचएमएस सेंच्युरियोन (‘HMS Centurion’) के युद्ध के लिए असिस्टेंट फ्लीट वायरलेस एंड सिग्नल ऑफिसर ऑफ़ दी मेडीटेरेनियन फ्लीट(Assistant Fleet Wireless and Signals Officer of the Mediterranean Fleet) का काम भी किया. 2 वर्षों बाद उन्हें लेफ्टिनेंट-कमान्डर की पोस्ट पर प्रोमोशन मिल गया.
- दिसम्बर1932 में उन्हें कमांडर बनाया गया और एचएमएस रिजोल्यूशन(‘HMS Resolution’) के बेटलशिप में भी पोस्ट किया गया. 1934 में माउंटबेटन की पहली कमांडर की पोस्टिंग एचएमएस डेयरिंग (HMS Daring) को खत्म करने के लिए हुयी थी. 1937 में उन्हें कैप्टेन के पद पर प्रोमोशन मिल गया.
द्वितीय विश्व युद्ध में लार्ड माउंटबेटन की भूमिका (Lord Mountbatten’s Role in the Second World War)
- जून 1939 में माउंटबेटन को केली नाम के रणपोत (battleship Kelly) की कमांड दी गयी थी. दुसरे विश्व युद्ध के दौरान एचएमएस केली के कमांडर रहते हुए उन्होंने कई साहसी और सफल ओपरेशन किये. वो नॉर्वेजियन कैंपेन (the Norwegian campaign) का हिस्सा भी थे, युद्ध में केली ने काफी हमले सहे और 23 मई 1941 को क्रेट के कोस्ट पर जर्मन बमबारी में पूरी तरह से पानी में डूब गया.
- 1941 में माउंटबेटन को एयरक्राफ्ट करियर “एचएमएस इल्यूस्ट्रियस (‘HMS Illustrious’) का केप्टन नियुक्त किया गया. वो विंस्टन चर्चिल के पसंदीदा व्यक्ति थे इसलिए उन्हें जीवन में जल्दी सफलता मिली और कई महत्वपूर्ण पोस्ट एवं रैंक पर मियुक्ति भी मिली.
- अक्टूबर 1941 में माउंटबेटन ने कम्बाइनड ऑपरेशनस के चीफ रोगेर केएस (Roger Keyes) को रिप्लेस कर दिया,और उन्हें कमान्डर के पद पर प्रोमोशन मिल गया. उनकी करियर प्रोफाइल में इंग्लिश चैनल में कमांडो के छापे की प्लानिंग एवं लैंडिंग के विरोध में नये तकनीकों के उपयोग भी शामिल हैं.
- 1942 में माउंटबेटन की डीएपी के छापे (Dieppe Raid) में महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसके कारण बहुत जनहानि हुयी थी और इस घटना ने माउंटबेटन को विवादो में फंसा दिया था. इस हार के अलावा माउंटबेटन ने कई तकनीकी सफलतायें हासिल की थी, जिसमें इंग्लिश कोस्ट से लेकर नोर्मंडी (Normandy ) तक अंडरवाटर आयल पाईपलाइन का निर्माण,कंक्रीट,बारूद पेटी और डूबे हुए जहाजों से कृत्रिम बंदरगाह बनाया, एम्फीबियस टैंक-लैंडिंग शिप का विकास भी किया.
- 1943 में चर्चिल और रूजवेल्ट ने माउंटबेटन के नाम का प्रस्ताव सुप्रीम एलायड कमांडर फॉर साउथ एशिया के लिए दिया और उन्हें सुप्रीम एलायड कमांडर साउथ ईस्ट एशिया कमांड (Supreme Allied Commander South East Asia Command (SEAC) नियुक्त किया गया. जनरल विलियम स्लिम के साथ काम करते हुए माउंटबेटन ने बर्मा ऑर सिंगापुर को जापानीयों से वापिस लेने की कोशिश की. 1945 में माउंटबेटन ने सिंगापुर में जापानियों का आत्म-समपर्ण स्वीकार किया. 1946 में एसइएसी की सेना को भंग कर दिया गया जिसके बाद माउंटबेटन रियर एडमायरल रैंक के साथ घर लौट आये.
माउंटबेटन द्वारा भारत में किये गये कार्य ( Lord Mountbatten’s work in India)
- ब्रिटिश सरकार ने माउंटबेटन को भारत में अंग्रेजों की छवि को कम नुकसान के साथ सत्ता हस्तांतरित करने के लिए भेजा था. माउंटबेटन ने शुरू में ये कोशिश की थी किभारत-पाकिस्तान का विभाजन न हो लेकिन जिन्ना के इरादे अटल थे,इसलिए बाद में माउंटबेटन इस दिशा में ज्यादा कुछ कर नहीं सके.
- माउंटबेटन के लिए दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस के सम्मेलन में शामिल होना जरुरी था इसलिए उसने पाकिस्तान और भारत के लिए क्रमश: 14 और 15 अगस्त की तिथियाँ स्वतंत्रता दिवस के लिए निश्चित की जबकि दोनों देशों को स्वतंत्रता मध्य रात्रि में मिली थी. जहां बहुत से ब्रिटिश ऑफिसर्स भारत छोड़कर चले गए वही माउंटबेटन यही नई दिल्ली में रुके रहे, जो उस समय भारत की राजधानी घोषित की गयी थी, इसके बाद माउंटबेटन ने अगले 10 महीनों तक जून 1948 तक भारत के गवर्नर जनरल का पद संभाला.
भारत की स्वतंत्रता के बाद माउंटबेटन का जीवन (Lord Mountbatten’s life after independence of india)
- 1949 में माउंटबेटन ने वापिस नेवी की सर्विस जॉइन कर ली,उन्होंने मेडीटेरेनियन फ्लीट (Mediterranean Fleet) में कमांडर ऑफ़ दी फर्स्ट क्रूजर स्क्वेड्रन के तौर पर सेवाएं दी, इसके बाद अप्रैल 1950 में ही मेडीटेरेनियन फ्लीट में वो सेकंड-इन-कमांड पर प्रोमोट हो गये. 1952 में उन्हें मेडीटेरेनियन फ्लीट का कमांडर इन-चीफ बनाया गया और बाद में उन्हें एडमाईरल के पद पर प्रोमोट किया गया. 1955 से 1959 तक माउंटबेटन ने प्रथम सी लार्ड और एदमाईरेलिटी के नेवल स्टाफ के चीफ के तौर पर काम किया.
- लार्ड माउंटबेटन ने 1959 से 1965 तक यूनाइटेड किंगडम डिफेन्स स्टाफ के चीफ और स्टाफ कमिटी के सभी चीफ के चेयरमेन का कार्य किया, माउंटबेटन मिलिट्री के तीन ब्रांच को एक ही रक्षा विभाग से सम्भालने के लिए सक्षम थे.
- 1965 में माउंटबेटन इज्ले ऑफ़ वाईट (isle of Wight) के गवर्नर जनरल बने और 1974 में लार्ड लेफ्टिनेंट पद पर रहे. इसके अलावा 1967 से 1978 तक माउंटबेटन ने यूनाइटेड वर्ल्ड कॉलेज आर्गेनाईजेशन के प्रेजीडेंट के तौर पर भी काम किया.
लार्ड माउंटबेटन को मिले सम्मान और उपलब्धियां (Lord Mountbatten’sAwards & Achievements)
लार्ड माउंटबेटन ने अपने जीवन में कई उपलब्धियां और मैडल हासिल किये जिसमे ब्रिटिश वॉर मेडल,विक्ट्री मैडल,अटलांटिक स्टार,अफ्रीका स्टार,बर्मा स्टार,इटली स्टार,डिफेन्स मैडल,वॉर मैडल,नेवल जनरल सर्विस मैडल,किंग एडवर्ड vii,कोरोनेशन मैडल (Coronation Medal), किंग जॉर्ज V सिल्वर जुबली मैडल,किंग जॉर्ज VI कोरोनेशन मैडल,क्वीन एलिज़ाबेथ II सिल्वर जुबली मैडल और इंडियन इंडिपेंडेस मेडल प्रमुख हैं.
विश्व के विभिन्न देशों ने लार्ड माउंटबेटन के कार्यों को सम्मान दिया, और उन्हें बहुत सी उपाधियाँ दी.
देश का नाम | सम्मान |
स्पेन | नाइट ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी आर्डर ऑफ़ इसाबेला दी कैथोलिक |
रोमानिया | ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ दी क्राउन और ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी रदर ऑफ़ दी स्टार ऑफ़ रोमानिया |
अमेरिका | चीफ कमांडर ऑफ़ दी लीजन ऑफ़ मेरिट और सर्विस मैडल एशियाटिक-पेसिफिक कैंपेन मैडल और ब्रोंज स्टार मेडल |
चाइना | स्पेशल ग्रांड कार्डों ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ क्लाउड एंड बैनर (Special Grand Cordon of the Order of the Cloud and Banner ) |
फ्रांस | ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी लीजन ऑफ़ ऑनर एंड वॉर क्रॉस टाइटल (Grand Cross of the Legion of Honour and War Cross title ) |
नेपाल | ग्रांड कमांडर ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ दी स्टार ऑफ़ नेपाल |
नीदरलैंड | नाइट ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ दी नीदरलैंड लायन( Knight Grand Cross of the Order of the Netherlands Lion) |
थाईलैंड | नाइट ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ दी वाइट एलीफैंट (Knight Grand Cross of the Order of the White Elephant) |
पुर्तगाल ने | नाइट ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ एवीज (Knight Grand Cross of the Order of Aviz |
स्वीडन | नाइट ऑफ़ दी रॉयल ऑर्डर ऑफ़ दी सेराफिम( Knight of the Royal Order of the Seraphim) |
बर्मा | ग्रांड कमांडर ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ थीरी थूधाम्मा (Grand Commander of the Order of Thiri Thudhamma) |
डेनमार्क | ग्रांड कमांडर ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ दी दानेब्रोग (Grand Commander of the Order of the Dannebrog) |
इथोपियन | ग्रांड क्रॉस ऑफ़ दी ऑर्डर ऑफ़ दी सील ऑफ़ सोलोमन और पोलैंड ने ऑर्डर ऑफ़ पोलोनिया रेसटीटयूटा (Order of Polonia Restituta) |
लार्ड माउंटबेटन की मृत्यु (Lord Mountbatte’s death)
- 1979 में माउंटबेटन जब स्लीगो देश के मुल्लागमोर में गर्मियों की छुट्टियां मना रहे थे. 27 अगस्त की पहली रात को आयरलैंड के नार्थवेस्ट कोस्ट पर उनके फिशिंग बोट में रेडियो कंट्रोल्ड बम लगा दिया गया, जिससे जब माउंटबेटन, उनकी बेटी, बेटी का पति एवं उसकी माँ और जुड़वाँ दोहिते जब बोट पर बैठे तो बोट को उड़ा दिया गया, जिससे माउंटबेटन और उनके दोहिते की तुरंत मृत्यु हो गयी. वो पहले से आइरीश रिपब्लिकन अआर्मी (IRA) के निशाने पर थे, और साउथ आयरलैंड नार्थ आयरलैंड से मात्र 12 मील दूर था जहाँ से आईआरए के सदस्य अपनी क्रियाविधियों को अंजाम देते थे, इस काम में आईआरए के प्रोविजनल विंग के एक सदस्य ने ही किया था.
- माउंटबेटन का अंतिम-संस्कार बहुत ही सम्मानीय तरीके से हुआ था और ऐसा कहा जाता है कि 1852 में ड्यूक ऑफ़ वेलिंगटन (Duke of Wellington) के बाद ये सबसे ज्यादा चर्चित एवं सम्मानीय अंतिम-संस्कार था. उनके ग्रेट ग्रांड-नेफ्यू प्रिंस चार्ल्स ने भी अंतिम-संस्कार में शामिल होकर श्रद्धांजली दी थी. माउंटबेटन को हेम्पशायर के घर के नजदीक रोमसे के मठ (एबे-abbey) में दफनाया गया था. 50 वर्षों तक रॉयल नेवी की सेवायें देने वाले माउंटबेटन को अंतिम विदाई उन्हें समुन्द्र की तरफ मुंह करते हुए दी गयी थी, और समुन्द्र की तरफ सर रखकर दफनाया गया.
- 1984 में लार्ड माउंटबेटन के बेटी ने उनकी याद में माउंटबेटन इंटर्नशिप प्रोग्राम शुरू किया हैं. ये प्रोग्राम युवाओं को विदेशों में संस्कृति के साथ ही पढ़ाई की अन्य सम्भावनाओं के मौके भी देता हैं.
लार्ड-माउंटबेटन से जुडी अन्य रोचक जानकारियाँ ( Some interesting facts about Lord Mountbatten)
- बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन को शाही परिवार के अन्य सदस्यों के जैसे पोलो खेलने का बहुत शौक था, उन्हें 1931 में पोलो-स्टिक के लिए यू.एस पेटेंट भी मिला था. उन्होंने इस गेम को ना केवल रॉयल नेवी में शामिल किया बल्कि इस खेल पर एक किताब भी लिखी.
- दूसरे विश्व युद्ध के दौरान माउंटबेटन और उनकी पत्नी ने घायलों की सेवा की और युद्ध के बाद बहुत से कैदियों को भी शामिल किया. मिडिया ने इन दोनों को “फेब्यूलस माउंटबेटन” की संज्ञा दी थी.
- रिटायरमेंट के बाद भी वो क्वीन एलिजाबेथ और उनके भतीजे के विश्वसनीय व्यक्ति थे. उन्होंने प्रिंस चार्ल्स को भी रॉयल नेवी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया.
- प्रथम विश्व युद्ध के समय जन्मे एंटी-जर्मन भावनाओं की वजह से शाही परिवार ने जर्मन नामों की जगह ब्रिटिश नाम और टाईटल काम में लेना शुरू किया,इस कारण ही लुईस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस को माउंटबेटन नाम मिला.
- 1954 से 1959 तक वो पहले सीलार्ड बनकर रहे,ये वो पद था जिस पर उनके पिता प्रिंस लुईस ऑफ़ बेटनबर्गने 40 वर्ष पूर्व थे और पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने इकलौती ऐसी जोड़ी बनाई जो इतने ऊँचे पद पर रहे.
- भारत की स्वतंत्रता दिनांक का निर्धारण भी माउंटबेटन ने अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए किया था, उस दिन जापान के सरेंडर की दूसरी एनिवर्सरी थी. 1969 में लार्ड माउंटबेटन ने 12 हिस्सों में अपने जीवनी का टेलीविजन सीरिज निकाला जिसका नाम लार्ड माउंटबेटन :अ मेन फॉर सेंच्युरी था.
माउंटबेटन ने जीवन में कई उपलब्धियां हासिल की थी, हालांकि रॉयल नेवी में उन्होंने ऑफिसर कैडेट से शुरुआत की थी लेकिन अपने लगातार कठोर परिश्रम, समर्पण एवं कमिटमेंट से माउंटबेटन ने ब्रिटिश रॉयल नेवी में अपनी अच्छी जगह बना ली. नेवी में सर्विस के अलावा लार्ड माउंटबेटन ने भारत में ब्रिटेन के सत्ता समाप्ति और यहाँ स्वतंत्र एवं स्वायत शासन के लिए भी योगदान दिया.
इस तरह उन्होंने अपने करियर में नेवी में काम करने के अलावा भारत-पाकिस्तान विभाजन और भारत की स्वतंत्रता के निर्णय के अलावा सबसे बड़ी मिलिट्री डिफेन्स की लीडरशिप सम्भाली. लार्ड माउंटबेटन को ब्रिटिश भारत का अंतिम वायसराय बनाया गया था, और बाद में उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल का पदभार भी सम्भाला. लार्ड माउंटबेटन के रॉयल नेवी में दिए गये अतुलनीय योगदान के कारण उन्हें ब्रिटिश और विश्व के अन्य कई देशों द्वारा सम्मान दिया गया.