लॉर्ड इरविन जीवन परिचय (Lord Irwin Biography in hindi)
वैसे तो स्वतंत्रता के पूर्व ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में नियुक्त गवर्नर जनरल और वायसराय के कार्यकाल में बहुत से महत्वपूर्ण कार्य और घटनाएँ हुयी, लेकिन कुछ वायसराय के समय में देश में बड़े परिवर्तन की नीव रखी गयी, ऐसे ही वायसराय के नामों की सूची में एक नाम लार्ड इरविन का भी हैं.
लार्ड इरविन का बचपन और प्रारम्भिक जीवन (Lord Irwin’s Childhood and Early life)
इरविन अपने पिता की चौथी सन्तान थे. उनके पिता योर्कशायर में एंग्लो-कैथोलिक आंदोलन में नेता थे. लॉर्ड इरविन का जन्म से बाया हाथ नहीं था.
पूरा नाम (Full name) | एडवर्ड फ्रेडेरिक लिंडले वुड ,विस्काउंट हेलिफेक्स |
जन्म दिन (Birth date) | 16 अप्रैल 1881 |
जन्म स्थान (Birth place) | पाउडरहेम कैसल,डिवोनशायर,इंग्लैंड (Powderham Castle,devonshire |
मृत्यु (Death) | 23 दिसम्बर 1959 |
पेशा (Occupation) | भारत में ब्रिटिश वायसराय(1925-31),विदेश सेक्रेटरी (1938-44),यूनाइटेड स्टेट्स में एम्बेसडर (1941-46) |
धर्म (Religion) | एंग्लो-कैथोलिक |
लार्ड इरविन का परिवार और निजी जीवन (Lord Irwin’s Family and personal life)
लार्ड इरविन का विवाह 21 सितम्बर 1909 को हुआ था.
पिता (Father) | द्वितीय विस्काउंट हालीफैक्स |
पत्नी (Mother) | लेडी डोरोथी इवेलिन ऑगस्टा ऑनस्लो
(Lady Dorothy Evelyn Augusta Onslow)
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दादा (Grand Father) | पहले वाइसकाउंट हलिफेक्स |
ससुर (Father-in-law) | विलियम ऑनस्लो (William Onslow) |
बच्चे (Childrens) | रिचर्ड वुड (Richard Wood), बेरोन होल्डरनेस( Baron Holderness), चार्ल्स वुड (Charles Wood, 2nd Earl of Halifax) |
लॉर्ड इरविन का करियर (Lord Irwin’s Carrier)
- लॉर्ड इरविन की शिक्षा एटन कॉलेज और क्राइस्ट चर्च, ऑक्सफ़ोर्ड में हुयी थी. 1903 में सोल कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड में उनका चयन हुआ था. वुड ने 1910 में यॉर्कशायर से कंजर्वेटिव सदस्य के तौर पर विधानसभा में शामिल होते हुए अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था जो कि अगले 30 वर्षों तक चला .
- प्रथम विश्व युद्ध के समय फ्रांस के यॉर्कशायर द्रगून से लॉर्ड इरविन अपनी सेवायें दे रहे थे. वो 1917-18 में मिनिस्ट्री ऑफ़ नेशनल सर्विस में असिस्टेंट सेक्रेटरी भी थे. युद्ध के बाद 1921-22 में लॉर्ड इरविन को उपनिवेशों के अंडर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट बनाया गया.
- 1922-24 में लॉर्ड इरविन को बोर्ड ऑफ़ एज्युकेशन का प्रेसिडेंट बनाया गया जबकि 1924-25 में उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया.
लार्ड इरविन का भारत में कार्यकाल (Lord Irwin in India)
- 1925 में लॉर्ड इरविन को भारत का वायसराय नियुक्त किया और यहाँ उन्हें बेरोन इरविन का नाम मिला. 1925-29 तक भारत में उन्होंने धार्मिक द्वंदों का सामना किया जबकि वो खुद एक धार्मिक व्यक्ति थे.
- इरविन का भारत से आनुवंशिक कनेक्शन कहा जा सकता हैं क्योंकि उनके दादा ने भारत में सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इण्डिया के तौर पर काम किया था. इरविन एक धार्मिक व्यक्ति थे और ऐसा कहा जाता हैं कि शायद इस कारण ही उन्हें भारत में नियुक्त किया गया था जिससे कि वो धार्मिक प्रवृति के महात्मा गांधी को सम्भाल सके. लेकिन उम्मीद से विपरीत 19 महीनों तक इरविन ने महात्मा गांधी को नजर-अंदाज किया था.
- 31 अक्टूबर 1929 को लार्ड इरविन ने ब्रिटिश सरकार की तरफ से भारत में एक महत्वपूर्ण घोषणा की जिसे इरविन डिक्लेरेशन भी कहा जाता हैं. इस घोषणा में कहा गया कि ब्रिटिश सरकार भारत को स्वतंत्र-उपनिवेश बनाने के लिए तैयार हैं. पांच पंक्ति की इस घोषणा ने ब्रिटेन और भारत दोनों जगह हलचल कर दी. ब्रिटेन में जहां इसका विरोध हुआ वही भारत में राष्ट्रवादी नेताओं ने इसका स्वागत किया,लेकिन बाद मेंपूर्ण स्वराज की मांग की गयी.
- 1930 के अप्रैल मेंगांधीजी के नेतृत्व में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की. मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा ना करने पर असहयोग आंदोलन की चेतावनी दी. लार्ड इरविन इन सभी राजनीतिक समस्याओं को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की कोशिश कर रहे थे,लेकिन परिस्थितियाँ जटिल होती जा रही थी.
- अंतत: 5 मार्च 1931 को इरविन और गाँधी के बीच एक संधि हुयी जिसे गांधी इरविन पैक्ट कहा जाता हैं.
- इस संधि के मुख्य बिंदु थे-
- कांग्रेस को राउंड टेबल कांफ्रेंस में भाग लेना होगा और कांग्रेस असहयोग आंदोलन समाप्त करेगी.
- सरकार कांग्रेस नेताओं पर चलाए सभी मुकदमे और अभियोग समाप्त करेगी और उन्हें जेल से मुक्त करेगी.
- कांग्रेस ने पहले गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार किया और गाँधी-इरविन पैक्ट के एक महीने बाद ही इरविन सेवानिवृत हो गये. इरविन महात्मा गांधी का सम्मान करते थे और देश छोड़ने से पहले कई औपचारिक जगहों पर उन्होंने गांधीजी के प्रति सम्मान जताया था.
भारत से लौटने पर इरविन का जीवन
- भारत से लौटकर 1932-35 में लॉर्ड इरविन वापिस बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन के प्रेसिडेंट बन गये. इसके बाद उन्होंने अपने पिता के विसकाउंटीसी को संभाला. 1935 से 1937 तक वो लार्ड प्रिवी सील (lord privy seal) थे, साथ ही 1938 तक हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स और लार्ड प्रेसिडेंट ऑफ़ दी काउन्सिल (lord president of the council) का कार्यभार भी सम्भाल रहे थे. 25 फरवरी 1938 को एंथोनी एडं के इस्तीफे के बाद उन्हें विदेश सचिव नियुक्त किया गया.
- लॉर्ड इरविन का विदेश सचिव का कार्यकाल काफी विवादित कार्यकाल था, क्योंकि उन्होंने चैम्बरलेन (Chamberlain) द्वारा एडोल्फ हिटलर की नीतियों के तुष्टिकरण का समर्थन किया था. नवम्बर 1937 में लार्ड प्राइवल सिल (privy seal) के तौर पर उन्होंने हिटलर और हरमन गोरिंग(Hermann Goring) और हिटलर से मिले थे. जनवरी 1939 में वो चेम्बरलेन के साथ बेनिटो मुस्सोलीनी से मिलने रोम भी गये थे
- हलिफेक्स जब विदेश सचिव थे तब चम्बेर्लैन के निकट थे, जब मई 1940 में चेम्बरलेन ने इस्तीफा दिया तो उन्हें उम्मीद थी कि वो प्राइममिनिस्टर बनेंगे, इस मुद्दे पर हलिफेक, विंस्टन चर्चिल और चेम्बरलेन में मीटिंग भी हुयी. हल्फिक्स चर्चिल के मंत्रालय में पहले 7 महीनों तक विदेश सचिव बने रहे, लेकिन दिसम्बर 1940 को उन्हें यूनाइटेड स्टेट्स में ब्रिटिश एम्बेसडर बनाकर भेजा गया. उस पद पर रहते हुए उन्होंने विश्व–युद्ध द्वितीय में गठबंधन को अपनी सेवाए दी.
- लॉर्ड इरविन ने `1944 में अर्ल ऑफ़ हेलिफक्स भी बनाया, मार्च 1945 में उन्हें सेन फ्रांसिस्को में ब्रिटिश डेलिगेट बनने का मौका मिला. लॉर्ड इरविन ने यूनाइटेड नेशन के पहले सेशन में भी उपस्थिति दी थी.
- 1 मई 1946 से लॉर्ड इरविन का इस्तीफा प्रभावी हुआ, 1958 में उन्होंने फुलनेस ऑफ़ डेज का वोल्यूम प्रकाशित किया. इरविन को राजनी से ज्यादा एकेडमिक्स से लगाव था. 1933 में वो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के चांसलर बने थे और 23 दिसम्बर 1959 को मृत्यु तक वो इस पद पर बने रहे.
भारत में लार्ड इरविन के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुयी.
- 1926 में धनबाद में स्कूल ऑफ़ माइंस की शुरुआत हुयी, अगले वर्ष कृषि में रॉयल कमिशन बना.
- 1928 मेंसाइमन कमिशन बोम्बे पहुंचा.
- 1929 में इंपीरियल काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च बना, औरभगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम फैंका.
- 1930 में साइमन रिपोर्ट प्रकाशित हुयी तो अगले वर्ष पहला गोलमेज सम्मेलन हुआ.
इस तरह ये वो समय था जब देश की स्वतंत्रता के लिए सभी आवश्यक कार्य सम्पन्न हो रहे थे, इसमें इरविन ने भी योगदान दिया था.