सत्याग्रह आंदोलन (नमक सत्याग्रहचंपारण सत्याग्रहखेड़ा सत्याग्रहरॉलेट सत्याग्रहबारडोली सत्याग्रह, Satyagraha Movement in Hindi)

सत्याग्रह अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले मोहनदास करमचंद्र गांधी जी द्वारा शुरू किया गया अहिंसात्मक तरीके से किया गया विरोध है. इसलिए जब भी सत्याग्रह का नाम आता है तो सबसे पहले महात्मा गांधी जी याद आते हैं. क्योंकि ये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इसके माध्यम से देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन बहुत ही प्रचलित हैं. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपने शुरूआती संघर्ष के दौरान सत्याग्रह की शुरुआत की थी. इसके बाद भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए गांधी जी ने अलग – अलग तरह के सत्याग्रह कर देश को आजाद कराया. सत्याग्रह आंदोलन क्या है एवं यह भारत में कब – कब किया गया है इसके बारे में जानने के लिए हमारे इस लेख को अंत तक पढ़ें.

 

सत्याग्रह आंदोलन क्या है ? (What is Satyagraha Movement ?)

सत्याग्रह यानि सत्य के लिए आग्रह करना. और सत्याग्रह आंदोलन का मतलब है सभी प्रकार के त्याग और कष्टों को झेलते हुए अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ना. सत्याग्रह वह विरोध है जो बिना किसी से घृणा करे या बिना किसी से प्रतिशोध लिए किया जाता है. अर्थात इसमें सामने वाले को चोट पहुंचाएं बिना उसके मन में न्याय की भावना जागृत करना, और उनका दिल जीतना, यही सत्याग्रह का मूल उद्देश्य होता है. और ऐसे सत्याग्रह करने वालों को सत्याग्रही कहा जाता है. गांधी के अनुसार यह सत्य और अहिंसा से पैदा हुआ एक नैतिक बल है. उनका कहना था कि सत्य, अहिंसा और प्रेम के बल से कोई भी लड़ाई जीती जा सकती हैं. इस सत्याग्रह के माध्यम से गांधी जी ने लोगों के साथ मिलकर ब्रिटिश राज के खिलाफ कई आंदोलन किये. और इसमें उनकी अहिंसात्मक विचारधारा ही उनकी असली ताकत बनी.

सत्याग्रह का विचार (Gandhian Thought on Satyagraha)

सत्याग्रह का विचार पहली बार गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में उनके साथ हुई एक घटना के दौरान आया था. दरअसल जब वे बैरिस्टर बनने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए, वहां के डरबन से प्रेटोरिया के लिए उन्होंने यात्रा की. उनके पास फर्स्ट क्लास का टिकिट था. और वे उसी जगह जा कर बैठ गए. किन्तु उस कम्पार्टमेंट में और लोगों को यह पसंद नहीं आया कि काले वर्ण वाला कोई व्यक्ति उनके साथ बैठे. उन्होंने पुलिस कांस्टेबल को कहा कि वे उन्हें थर्ड क्लास के डिब्बे में भेज दें, तब उस पुलिस कांस्टेबल ने गांधी जो को थर्ड क्लास के डिब्बे में जाने को कहा, किन्तु इस पर गांधी जी का कहना था कि उनके पास फर्स्ट क्लास का टिकिट हैं तो वे वहां नहीं जाएंगे. इस तरह से गाँधी जी के माना करने पर उस पुलिस कांस्टेबल ने उन्हें ट्रेन से नीचे उतार दिया. इसी तरह की घटना उनके साथ चार्लेस्टोन से जोहान्सबर्ग की यात्रा के दौरान एक स्टेजकोच में भी हुई थी. उन्होंने कोच में अंदर बैठने के लिए टिकट खरीदा था, तब उसमें सवार एक व्यक्ति ने उन्हें उनकी सीट से उठने के लिए कहा. जब वे मना करने लगे तो उन्हें इसके लिए पीटा गया. इससे वे बहुत दुखी हुए. उनके दिमाग में केवल एक ही बात चल रही थी कि भारतीयों को इस तरह के अन्याय से बचाना है.  

इस तरह के अपमानों के चलते उनके अंदर सत्याग्रह के विचार ने जन्म लिया. और यहीं से उन्होंने सत्याग्रह की शुरुआत की. उनका कहना था कि अधिकतर संघर्ष में लक्ष्य दुश्मन को हराना होता है, लेकिन सत्याग्रह का लक्ष्य गलत करने वाले के दिमाग में बदलाव लाना है. और उन्हें अच्छा करने के लिए मजबूर करना है ताकि उनका दिमाग हमेशा सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चले. महात्मा गांधी ने अहिंसा को सत्याग्रह आंदोलन में एक वास्तविक और सक्रिय हथियार के रूप में अपनाया. उनका मानना था कि सत्याग्रह संघर्ष का एक विशेष रूप हैं, जहाँ जीत और हार का कोई सवाल नहीं है. हिन्दू परम्परा के उनके अध्ययन और दक्षिण अफ्रीका में उनके साथ किये गये भेदभाव के अनुभव ने उनके सत्याग्रह के विचार को विकसित किया और उसे समझने में उनकी बहुत मदद की.

भारत में सत्याग्रह आंदोलन (Satyagraha Movements in India)

भारत में कई सत्याग्रह आंदोलन गांधी जी ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर किये. ये सत्याग्रह आंदोलन ब्रिटिशों को भारत से बाहर करने के लिए किये गये थे. भारत में किये गये सत्याग्रह आंदोलन के बारे में जानकारी नीचे प्रदर्शित की गई है –

चंपारण सत्याग्रह 1917 (Champaran Satyagraha 1917) :-

गाँधी जी के भारत वापस लौटने के 2 साल बाद यानि सन 1917 में भारत में सत्याग्रह की शुरुआत की गई, और इस पहल को सबसे पहले बिहार के चंपारण जिले में किसानों के हक के लिए शुरू किया गया था. यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक बहुत बड़े विरोध के रूप में उभरा था, जिसे चंपारण सत्याग्रह कहा जाता है यह सत्याग्रह ब्रिटिशों द्वारा किसानों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ किया गया था. ब्रिटिश शासन के समय चीन, ब्रिटेन एवं यूरोप में निर्यात करने के लिए अफीम एवं नील यानि इंडिगो को व्यवसायिक रूप से उगाने के लिए किसानों को मजबूर किया जाता था. इस तरह की फसल में ज्यादा पानी की आवश्यकता होती थी और फसलों के साथ – साथ मिट्टी भी ख़राब हो जाती थी. जिसके कारण किसान अपनी जमीन पर चांवल एवं दालें जैसी जरुरत की खाद्य फसलें नहीं उगा पा रहे थे. किसानों ने इसका विरोध किया, किन्तु ब्रिटिशों को अफीम के व्यवसाय से अधिक लाभ हो रहा था इसलिए उन्होंने किसानों की मांग न मानते हुए उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया.

दरअसल जब गांधी जी भारत लौटे और उन्होंने किसानों की स्थिति को देखा, तो उन्होंने किसानों की इस तकलीफ को खत्म करने के लिए वही तरीकें का उपयोग करने की कोशिश की जोकि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उपयोग किया था. यानि सत्याग्रह आंदोलन. ताकि इससे लोगों द्वारा अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए सामूहिक रूप से विद्रोह किया जा सके. गांधी जी ने चंपारण गाँव में लोगों को इस समस्या से निपटने के लिए सबसे पहले शिक्षित होने के लिए कहा, और इसके लिए उन्होंने वहां कुछ स्कूल खुलवाएं, उनमे आत्मविश्वास पैदा किया और गाँव की स्वच्छता के लिए लोगों को जागरूक किया. इस अभियान में उनका साथ राजेन्द्र प्रसाद एवं उनके अन्य साथियों ने दिया. इस तरह से उन्होंने किसानों के हित के लिए कार्य किया, जिससे किसान उनसे बहुत प्रसन्न हुए. किन्तु ब्रिटिशों को यह पसंद नहीं आया उन्होंने गांधी जी को लोगों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया, जिससे वहां के लोगों उन्हें काफी विरोध प्रदर्शन किया जिससे ब्रिटिशों को गांधी जी की ताकत पता चल गई. और उन्होंने चंपारण कृषि बिल पारित कर किसानों के पक्ष में कुछ फैसले लिए. किसानों को इससे काफी राहत मिली और उसी समय से वहां के लोगों द्वारा उन्हें बापू नाम दिया गया.

अहमदाबाद सत्याग्रह 1918 (Ahmedabad Satyagraha 1918) :-

अहमदाबाद बॉम्बे प्रेसीडेंसी का दूसरा सबसे बड़ा शहर था, और लंबे समय से स्थापित कमर्शियल सेंटर था. अंग्रेजों के शासन में इस शहर में कपास उद्योग का विकास हुआ और 20 वीं शताब्दी में यह एक उस समय का आधुनिक औद्योगिक शहर बन गया. यह सत्याग्रह अहमदाबाद की एक रुई बनाने वाली मिल में वहां के कर्मचारियों द्वारा किया गया था, जिसके लिए उन्हें गांधी जी ने प्रेरित किया था. दरअसल सन 1917 में गुजरात में प्लेग की महामारी थी, जिसके चलते कई मिल के मालिकों द्वारा प्लेग बोनस देने का निश्चय किया गया था. किन्तु फिर मिल के मालिकों ने कर्मचारियों को बोनस देने से मना कर दिया था. पूरे कर्मचारियों ने 50 % वेतन वृद्धि की मांग की. लेकिन मिल के मालिक केवल 20 % वेतन वृद्धि देने को तैयार थे. मार्च 1918 में इसके लिए मिल के कर्मचारियों ने अपनी मजदूरी के लिए विरोध किया. गांधी जी ने उन्हें इसके लिए हिंसा का सहारा न लेने की सलाह दी और उनसे इसके लिए हडताल करने के लिए कहा. इस दौरान गांधी जी ने अनशन भी किया था. यह विद्रोह 21 दिन तक चला था. इसके बाद मिल के मालिकों द्वारा उनकी मांग पूरी कर दी गई और कर्मचारियों की मजदूरी में 35 % वृद्धि कर उन्हें राहत दी गई. इस तरह से यह सत्याग्रह चला.

खेड़ा सत्याग्रह 1918 (Kheda Satyagraha 1918) :-

चंपारण विद्रोह ख़त्म होने के एक साल बाद ही किसानों की तकलीफों को कम करने के लिए एक और महत्वपूर्ण सत्याग्रह किया गया. यह सत्याग्रह खेड़ा सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है, जोकि गुजरात के खेड़ा जिले में शुरू किया गया था. यहाँ के किसानों को समर्थन देने के लिए यह सत्याग्रह गांधी जी का तीसरा महत्वपूर्ण सत्याग्रह था. दरअसल खेड़ा जिले के लोग फसल खराब होने और प्लेग की बीमारी फैलने के कारण काफी परेशान थे और अंग्रेजों द्वारा उनसे उच्च कर वसूला जा रहा था जिसे किसान देने में असमर्थ थे. साथ ही ब्रिटिशों ने किसानों को चेतावनी दी थी कि यदि वे कर का भुगतान नहीं करेंगे तो उनसे उनकी भूमि छीन ली जाएगी. तब गांधी जी एवं सरदार वल्लभभाई पटेल सहित उनके कुछ सहयोगियों ने एक बड़ा कर विद्रोह किया. और खेड़ा सत्याग्रह की शुरुआत की.

खेड़ा में वल्लभभाई एवं उनके साथियों ने इस परेशानी के मद्देनजर किसानों से एक याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए आग्रह किया, जिसमें लिखा था कि ‘उनकी फसल अच्छी न होने के कारण वे इस कर को देने में असमर्थ है, किन्तु सरकार इसके लिए जो कार्यवाही करना चाहती है बेशक कर सकती है और हम सभी परेशानी और दुःख को सहने के लिए तैयार है.’ सभी किसानों ने इसका समर्थन कर याचिका में हस्ताक्षर कर दिए. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योकि वे हिंसा नहीं चाहते थे. दूसरी तरफ ब्रिटिशों ने किसानों की संपत्ति, भूमि और आजीविका जब्त कर ली थी और साथ ही पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. किन्तु फिर भी किसान पीछे नहीं हठे और उन्होंने वल्लभभाई पटेल एवं गांधी जी का ही साथ दिया.

किसान गिरफ्तारी के लिए तैयार हो गए और इसके लिए हिंसा भी नहीं की. गुजरात के अन्य हिस्सों से लोग इन किसानों की मदद करने के लिए भी आगे आ गये थे. आखिरकार सरकार को उनकी मांगों को मानना पड़ा और उन्होंने कर की दर में कमी की, साथ ही जब्त की हुई संपत्ति को वापस कर दिया गया. इसके साथ ही जिन लोगों ने जब्त की हुई जमीन खरीदी थी उन्हें भी वापस करने के लिए प्रभावित किया गया. और इस तरह से यह सत्याग्रह एकता का एक आश्चर्यजनक प्रतीक बना.

रॉलेट सत्याग्रह 1919 (Rowlatt Satyagraha 1919) :-

सन 1919 में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट अधिनियम पास किया था, जिसमें लोगों को ब्रिटिशों के खिलाफ आतंकवाद करने के सिर्फ संदेह के आधार पर जेल में डाल दिया जाता था. इस अधिनियम ने लोगों की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और पुलिस की शक्तियों को मजबूत कर दिया था. तब गांधी जी और मोहम्मद अली जिन्ना के साथ अन्य लोगों ने मिलकर इसका विरोध किया. 6 अप्रैल 1919 को इस अधिनियम का अहिंसात्मक तरीके से विरोध करना शुरू हुआ. यहाँ से ही इस तरह के अन्याय के खिलाफ रॉलेट सत्याग्रह की शुरुआत की गई थी. इसके बाद इस अधिनियम के खिलाफ पूरे भारत में सत्याग्रह सभाएं की गईं. इस सत्याग्रह में पूरे भारत के लोगों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ने का मन बना लिया था. किन्तु ब्रिटिशों ने इस सत्याग्रह को दबाने के लिए बहुत क्रूर तरीके का इस्तेमाल किया.

13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में इस अधिनियम का विरोध करने पर लोगों के समूह पर ब्रिटिश सैनिकों द्वारा सीधे गोलियां चलाई गई. जिसके कारण जलियांवाला बाग हत्याकांड ने पूरे देश को आश्चर्य में डाल दिया. इसी दौरान लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई और भारतीय नेताओं द्वारा इस घटना पर कड़ी निंदा की गई. किन्तु इस सत्याग्रह ने भारतियों को एकजुट करने में सफलता हासिल की थी. इस सत्याग्रह के दौरान इसमें शामिल होने वाले लोगों ने यह सुनिश्चित करने का भी निश्चय किया कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ इस लड़ाई में हिन्दू और मुस्लिम एकजुट हैं.  

बारडोली सत्याग्रह 1928 (Bardoli Satyagraha 1928) :-

भारत के गुजरात राज्य में बारडोली सत्याग्रह भी किसानों के लिए ब्रिटिश अधिकारीयों के खिलाफ किया गया था. इस आंदोलन में सरदार वल्लभभाई पटेल जी ने मुख्य भूमिका निभाते हुए किसानों को उनका हक दिलवाने में मदद की थी. यह आंदोलन किसानों से 30 प्रतिशत तक का कर वसूलने के खिलाफ किया गया था. दरअसल बारडोली में किसानों से 30 प्रतिशत तक का कर लेने का प्रावधान कर दिया गया था. उस समय बाढ़ और अकाल से पूरा गुजरात राज्य पीढित था. ऐसे में कर बढ़ने से महंगाई भी बढ़ी. इसलिए किसानों ने वल्लाभभाई पटेल के साथ मिलकर इसका जमकर विरोध किया था. इस सत्याग्रह ने किसानों से बातचीत की और उन्हें इस सत्याग्रह के परिणामों के बारे में बताया कि इसमें उनकी जमीनें जब्त कर ली जाएँगी और जेल जाना पड़ सकता है. जैसा कि खेड़ा सत्याग्रह में हुआ था. सभी किसानों ने मिलकर वल्लभभाई पटेल का साथ दिया. वहाँ के लोगों ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि भी दी.

यह सत्याग्रह महात्मा गांधी जी ने पूरी तरह से पटेल जी एवं बारडोली के किसान पर छोड़ दिया था. अप्रैल और मई की गर्मी में यह आंदोलन बहुत गर्म हो रहा था. सरदार जी ने इससे जुड़ा एक पत्र सरकार को लिखा कि वे कर में कमी करें. लेकिन बॉम्बे के राज्यपाल द्वारा इसे ख़ारिज कर दिया गया. किसानों की जमीन को जब्त कर उसकी नीलामी भी की गई. किन्तु उनकी जब्त की गई जमीन को ज्यादा लोगों द्वारा नहीं ख़रीदा गया. और कुछ समय बाद सरकार को किसानों की मांग को पूरा करना ही पड़ा. और उन्होंने कर की दर में कमी कर दी. और इस तरह से यह सत्याग्रह सफल हो गया था.

नमक सत्याग्रह 1930 (Salt Satyagraha 1930) :-

नमक सत्याग्रह को दांडी मार्च और दांडी सत्याग्रह के रूप में जाना जाता है. यह महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में सन 1930 के मार्च महीने में भारत में अहिंसक रूप से शुरू किया गया बहुत बड़ा सत्याग्रह था. यह गुजरात के तटीय गाँव दांडी में समुद्री जल से नमक का उत्पादन कर नमक कानून तोड़ने के लिए था. इस सत्याग्रह के लिए गांधी जी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से 386 किमी पैदल चलते हुए दांडी यात्रा शुरू की. इस यात्रा की शुरुआत में उनके साथ उनकी पत्नी एवं कुछ ही सहयोगी थे, किन्तु इसके रास्ते में पहले सैकड़ों फिर हजारों लोग इस यात्रा में शामिल हुए. दांडी में पहुंच कर गांधी जी ने समुद्र से नमक का उत्पादन कर नमक कानून तोड़ दिया. 

दरअसल नमक निर्माण और बिक्री पर ब्रिटिश सरकार ने एकाधिकार जमा लिया था. नमक पर अंग्रेजों ने मन चाहा कर लगाया था. जिसके कारण भारतीय बहुत परेशान हुए. क्योकि नमक किसी के भी जीवन के लिए बहुत आवश्यक होता है. और ऐसे में उसके कर में वृद्धि कर देने पर लोग इसे खरीदने में असमर्थ होने लगे थे. इसके विरोध में ही यह सत्याग्रह किया गया था. गांधी जी का यह कहना था कि अंग्रेजों से नमक की खरीद पर भारी करों का भुगतान करने के बजाय महासागर से नमक को मुफ्त में बनाया जा सकता था. इसलिए महात्मा गांधी जी ने ब्रिटिश नमक नीतियों के विरोध में लोगों को एकीकृत कर नमक कानून तोड़ते हेतु दांडी सत्याग्रह किया था. हालाँकि ब्रिटिश अधिकारीयों ने नमक के ऐसे उत्पादन को अवैध माना और लोगों को महंगी दरों पर इसे खरीदने के लिए मजबूर किया. साथ ही इस कानून को तोड़ने के लिए गांधी जी को जेल भी जाना पड़ा था. लेकिन फिर भी यह सत्याग्रह सफल रहा था. 

इस तरह से गांधी जी ने विभिन्न सत्याग्रह के माध्यम से देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. और यह सब गांधी जी ने केवल अहिंसा एवं सत्य को अपना महत्वपूर्ण हथियार बना कर किया था.

 

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