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लिव-इन रिलेशनशिप्स इन इंडिया: बदलता हुआ कानूनी परिदृश्य

GS-2 मुख्य परीक्षा 

संक्षिप्त नोट्स

 

हालिया फैसला:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक मुस्लिम व्यक्ति किसी अन्य जीवित जीवनसाथी के रहते हुए लिव-इन रिलेशनशिप में अधिकारों का दावा नहीं कर सकता। यह फैसला लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी व्याख्याओं पर धार्मिक सिद्धांतों के प्रभाव को उजागर करता है।

कुल मिलाकर स्थिति:

भारत में लिव-इन पार्टनरशिप को नियंत्रित करने वाले कोई विशिष्ट कानून नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को “जीने के अधिकार” के हिस्से के रूप में मान्यता दी है और इसे अपराध नहीं माना है। आधारभूत फैसलों (2010 और 2022) ने स्थापित किया है:

  • घरेलू हिंसा कानूनों के तहत लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं के लिए सुरक्षा।
  • ऐसे रिश्तों से पैदा हुए बच्चों के लिए वंशानुक्रम अधिकार।
  • अदालत यह मानती है कि बच्चों के साथ रहने वाला एक दीर्घकालिक युगल विवाहित है, जिससे उन्हें समान कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं।

असुलझे मुद्दे:

  • लिव-इन रिलेशनशिप पर धार्मिक मान्यताओं का प्रभाव अभी भी अस्पष्ट है।
  • लिव-इन रिलेशनशिप में भागीदारों के संपत्ति अधिकारों को अभी तक स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया है।

समर्थन में तर्क:

  • बदलते सामाजिक मानदंड: साझेदारी में व्यक्तिगत पसंद की ओर रुझान को दर्शाता है।
  • अनुकूलता जांच: शादी से पहले कपल्स को अनुकूलता का आकलन करने की अनुमति देता है।
  • वित्तीय स्वतंत्रता: खर्चों को साझा करने और वित्तीय स्वतंत्रता को सक्षम बनाता है।
  • कम होता कलंक: धीरे-धीरे स्वीकार किया जा रहा है, खासकर शहरी क्षेत्रों में।
  • कानूनी मान्यता: सुप्रीम कोर्ट के फैसले कुछ अधिकार और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता: प्यार और रिश्तों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है।

विरोध में तर्क:

  • सामाजिक कलंक: परिवार और समुदाय से अस्वीकृति और आलोचना।
  • सांस्कृतिक/धार्मिक मान्यताएं: विवाह और परिवार पर पारंपरिक मूल्यों के साथ विरोधाभासी माना जाता है।
  • पारिवारिक दबाव: माता-पिता के असहमत होने पर संभावित संघर्ष।
  • कानूनी अस्पष्टता: जोड़ों के लिए अधिकारों और सुरक्षा उपायों में अस्पष्टता।
  • वित्तीय सुरक्षा की कमी: महिलाओं को स्थिरता के लिए शादी करने का दबाव महसूस हो सकता है।
  • बच्चों पर प्रभाव: बच्चों को सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है।
  • सामाजिक समर्थन की कमी: जोड़ों को उतना ही सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती है।
  • मीडिया का प्रभाव: पश्चिमीकरण से पारंपरिक मूल्यों के क्षरण को लेकर चिंता।
  • दुरुपयोग की संभावना: कानूनी सुरक्षा के अभाव में शोषण और दबाव का शिकार होने की संभावना।

आगे का रास्ता:

  • सकारात्मक मीडिया चित्रण: लिव-इन रिलेशनशिप को सामान्य बनाना और कलंक को कम करना।
  • पारिवारिक स्वीकृति: परिवारों के भीतर खुले संवाद और समझ को प्रोत्साहित करना।
  • व्यक्तिगत पसंद को बनाए रखना: अपने रिश्ते की गतिशीलता चुनने के व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करना।

https://www.thehindu.com/news/national/what-is-the-legal-position-on-live-in-relationships-explained/article68172438.ece#:~:text=India%20does%20not%20have%20any,is%20no%20longer%20an%20offence.

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