गांधीजी की भारत वापसी
गांधीजी, जनवरी 1915 में भारत लौटे। दक्षिण अफ्रीका में उनके संघर्ष और उनकी सफलताओं ने उन्हें भारत में अत्यन्त लोकप्रिय बना दिया था। न केवल शिक्षित भारतीय अपितु जनसामान्य भी गांधीजी के बारे में भली-भांति परिचित हो चुका था। भारत की तत्कालीन सभी राजनीतिक विचारधाराओं से गांधीजी असहमत थे। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में राष्ट्रवादी लक्ष्यों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग है- अहिंसक सत्याग्रह। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में घोषित किया कि जब तक कोई राजनीतिक संगठन सत्याग्रह के मार्ग की नहीं अपनायेगा तब तक वे ऐसे किसी भी संगठन से सम्बद्ध नहीं हो सकते।
रौलेट सत्याग्रह प्रारम्भ करने के पहले, 1917 और 1918 के आरम्भ में गांधीजी ने तीन संघर्षों- चम्पारण आंदोलन (बिहार) तथा अहमदाबाद और खेड़ा (दोनों गुजरात) सत्याग्रह में हिस्सा लिया। ये तीनों ही आंदोलन स्थानीय आर्थिक मांगों से सम्बद्ध थे। अहमदाबाद का आंदोलन, औद्योगिक मजदूरों का आंदोलन था तथा चम्पारण और खेड़ा किसान आंदोलन थे।
चम्पारण सत्याग्रह 1917
- प्रथमसविनय अवज्ञा: चम्पारण की समस्या काफी पुरानी थी। 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में गोरे बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबंध कर लिया, जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी भूमि के 3/20वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था। यह व्यवस्था ‘तिनकाठिया पद्धति’ के नाम से जानी जाती थी।
- 19वीं सदी के अंत में जर्मनी में रासायनिक रंगों (डाई) का विकास हो गया, जिसने नील की बाजार से बाहर खदेड़ दिया। इसके कारण चम्पारण के बागान मालिक नील की खेती बंद करने की विवश हो गये। किसान भी मजबूरन नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। किन्तु परिस्थितियों को देखकर गोरे बागान मालिक किसानों की विवशता का फायदा उठाना चाहते थे। उन्होंने दूसरी फसलों की खेती करने के लिये किसानों को अनुबंध से मुक्त करने की एवज में लगान व अन्य करों की दरों में अत्याधिक वृद्धि कर दी। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने द्वारा तय की गयी दरों पर किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिये बाध्य किया। चम्पारण से जुड़े एक प्रमुख आंदोलनकारीराजकुमार शुक्ल ने गांधीजी को चम्पारण बुलाने का फैसला किया।
- गांधीजी, राजेन्द्र प्रसाद, ब्रीज किशोर, मजहर उल-हक़, महादेव देसाई, नरहरि पारिख तथा जे.बी. कृपलानीकेसहयोग से मामले की जांच करने चम्पारण पहुंचे। गांधीजी चंपारण के गॉंव में घूमते व किसानों की समस्या को सुनते |
- इस बीच सरकार ने सारे मामले की जांच करने के लिये एक आयोग का गठन किया तथा गांधीजी को भी इसका सदस्य बनाया गया। गांधीजी, आयोग को यह समझाने में सफल रहे कि तिनकाठिया पद्धति समाप्त होनी चाहिये। उन्होंने आयोग को यह भी समझाया कि किसानों से पैसा अवैध रूप से वसूला गया है, उसके लिये किसानों को हरजाना दिया जाये।
- बाद में एक और समझौते के पश्चात् गोरे बागान मालिकअवैध वसूली का 25 प्रतिशत हिस्सा किसानों को लौटाने पर राजी हो गये। इसके एक दशक के भीतर ही बागान मालिकों ने चम्पारण छोड़ दिया। इस प्रकार गांधीजी ने भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रथम युद्ध सफलतापूर्वक जीत लिया।
अहमदाबाद मिल हड़ताल 1918- प्रथम भूख हड़ताल
- चम्पारण के पश्चात् गांधीजी ने अहमदाबाद मिल हड़ताल के मुद्दे पर हस्तक्षेप किया। यहां मिल मालिकों और मजदूरों मेंप्लेग बोनस को लेकर विवाद छिड़ा था। गांधीजी ने मजदूरों को हड़ताल पर जाने तथा 35 प्रतिशत बोनस की मांग करने को कहा। जबकि मिल मालिक, मजदूरों को केवल 20 प्रतिशत बोनस देने के लिये राजी थे।
- गांधीजी ने मजदूरों को सलाह दी कि वे शांतिपूर्ण एवं अहिंसक ढंग से अपनी हड़ताल जारी रखें। गांधीजी ने मजदूरों के समर्थन में भूख हड़ताल प्रारम्भ करने का फैसला किया ।
- अंबालाल साराभाई की बहन अनुसुइया बेनने इस संघर्ष में गांधीजी को सक्रिय योगदान प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने एक दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी प्रारम्भ किया। गांधीजी के अनशन पर बैठने के फैसले से मजदूरों के उत्साह में वृद्धि हुई तथा उनका संघर्ष तेज हो गया।
- मजबूर होकर मिल मालिक समझौता करने को तैयार हो गये तथा सारे मामले को एक ट्रिब्यूनल को सौंप दिया गया। जिस मुद्दे को लेकर हड़ताल प्रारम्भ हुई थी, ट्रिब्यूनल के फैसले से वह समाप्त हो गया। ट्रिब्यूनल ने मजदूरों के पक्ष में निर्णय देते हुये मिल मालिकों को 35 प्रतिशत बोनस मजदूरों को भुगतान करने का फैसला सुनाया। गांधीजी की यह दूसरी प्रमुख विजय थी।
खेड़ा सत्याग्रह 1918- प्रथम असहयोग
- वर्ष 1918 के भीषण दुर्भिक्ष के कारण गुजरात के खेड़ा जिले में पूरी फसल बरबाद हो गयी, फिर भी सरकार ने किसानों से मालगुजारी वसूल करने की प्रक्रिया जारी रखी।
- ‘राजस्व संहिता’के अनुसार, यदि फसल का उत्पादन, कुल उत्पाद के एक-चौथाई से भी कम हो तो किसानों का राजस्व पूरी तरह माफ कर दिया जाना चाहिए, किन्तु सरकार ने किसानों का राजस्व माफ करने से इन्कार कर दिया।
- खेड़ा जिले के युवा अधिवक्तावल्लभभाई पटेल, इंदुलाल याज्ञिक तथा कई अन्य युवाओं ने गांधीजी के साथ खेड़ा के गांवों का दौरा प्रारम्भ किया। इन्होंने किसानों को लगान न अदा करने की शपथ दिलायी।
- गांधीजी ने घोषणा की कि यदि सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दे तो लगान देने में सक्षम किसान स्वेच्छा से अपना लगान अदा कर देंगे। दूसरी ओर सरकार ने लगान वसूलने के लिये दमन का सहारा लिया। कई स्थानों पर किसानों की संपत्ति कुर्क कर ली गयी तथा उनके मवेशियों को जब्त कर लिया गया।
- इसी बीच सरकार ने अधिकारियों को गुप्त निर्देश दिया कि लगान उन्हीं से वसूला जाये जो लगान दे सकते हैं। इस आदेश से गांधीजी का उद्देश्य पूरा हो गया तथा आंदोलन समाप्त हो गया।
चम्पारण, अहमदाबाद तथा खेड़ा में गांधीजी की उपलब्धियां
- चम्पारण, अहमदाबाद तथा खेड़ा आन्दोलन ने गांधीजी को संघर्ष के गांधीवादी तरीके ‘सत्याग्रह’ की आजमाने का अवसर दिया।
- गांधीजी की देश की जनता के करीब आने तथा उसकी समस्यायें समझाने का अवसर मिला।
- गांधीजी जनता की ताकत तथा कमजोरियों से परिचित हुये तथा उन्हें अपनी रणीनति का मूल्यांकन करने का अवसर मिला।
- इन आन्दोलनों में गांधीजी को समाज के विभिन्न वर्गों विशेषतया युवा पीढ़ी का भरपूर समर्थन मिला तथा भारतीयों के मध्य उनकी विशिष्ट पहचान कायम हो गयी।