नाज़ीवाद फासीवाद का ही एक उग्र रूप है जिसको हिटलर ने जर्मनी में विकसित किया। नाज़ीवाद के अंतर्गत राष्ट्रवाद को सर्वोचता प्रदान की गई है, रजनी पाम दत्त के अनुसार इटली में फासीवाद आने तक उदारवादी’ लोकतंत्रवादी और सामाजिक लोकतंत्रवादी हलकों में आमतौर पर यह माना जाता था कि फासीवाद और यहाँ का औद्योगिक सर्वहारा वर्ग मजबूत नहीं है, लेकिन जर्मनी यूरोप का सबसे उन्नत और औद्योगिक रूप से विकसित देश था और पूरे पूंजीवादी जगत में इससे संगठित और राजनैतिक रूप से सचेत औद्योगिक सर्वहारा और कही का नहीं था।
1923 ई. के म्यूनिख विद्रोह को असफल कर दिया जाता है और हिटलर को जेल भेज दिया जाता है, परन्तु वह अपने तेरह महीने के कारावास का उपयोग अपनी जीवनी ‘मीन कैम्फ़’ लिखने में व्यतीत करता है। जेल से बाहर आने के बाद उसने स्वयं को पेंटर (रंगसाज) के स्थान पर लेखक कहना शुरू कर दिया। समकालीन लोग और कुछ इतिहासकारों ने इस जीवनी को ‘दिवास्वाप्न’ मानकर महत्व नहीं दिया इसका कारण शब्दों का आडम्बरपूर्ण होना, बनावटी शैली, बार-बार दोहराने की परवतÊ और सम्भ्रांतियों और मौलिक विचारों का पूर्ण आभाव । ए. जी. पी. टेलर के शब्दों में यह ऑस्ट्रिया के किसी भी कॉफ़ी हाउस या जर्मनी के किसी मधुशाला के वार्तालापों में गुजानेवाली अभिव्यक्ति है, कुछ हद तक यह एक भ्रामक जीवनी है, तो यह एक राजनितिक कार्यक्रम और कार्यवाही की पुस्तिका भी है, उत्तरजÊविका के लिए संघर्ष का विचारहै। हिटलर लोकतंत्र का विरोधी था, उसने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ‘लोकतान्त्रिक सिद्धांत सदैव जनता की बर्बादी का कारण बने थे, नाजियों का एक मात्र उद्देश्य यह था की पूंजी तथा श्रम का उपयोग राष्ट्र के हित में होना चाहिए और राष्ट्र की सामूहिक आवश्यकताओं के हित में ही उत्पादन तथा वितरण की व्यवस्था होनी चाहिये।
जर्मनी में नाज़ीवाद के उदय के कारण
वर्साय की संधि जहाँ जर्मनी के लिए एक सबसे शर्मनाक घटना थी जिसने वहां नाज़ीवाद को पनपने में काफी योगदान दिया ,वहीं उस समय जर्मनी में कुछ ऐसी घटनायें हो रही थीं जिसने इसे और मजबूत स्थिति प्रदान की। इसके पीछे आर्थिक मंदी, वाइमर गणतंत्र की असफलता, साम्यवाद का डर, यहूदी विरोधी नीति, जर्मनी के संविधान की कमियाँ और हिटलर का व्यक्तित्व जर्मनी में नाज़ीवाद के विकास के मुख्य कारण थे।
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति वर्साय की संधि के साथ हुई, लेकिन यही वर्साय की संधि बाद में द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण भी बनी, वर्साय की संधि का सबसे ज्यादा विरोध जर्मनी की जनता ने किया, क्यूंकि इस संधि के तहत जर्मनी का निशस्त्रिकरण तो हुआ ही साथ ही जर्मनी को और कई कठोर शर्तों को मानना पड़ा। इस संधि के अनुसार उसे मित्र राष्ट्रों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए एक बड़ी रकम देनी थी। मित्र राष्ट्रों द्वारा राइन प्रदेश, तथा उसके उपनिवेशों को छीना जाना तथा फ्रांस द्वारा उसके खदानों पर कब्ज़ा करना आदि से जर्मनी की जनता बहुत नाखुश थी, हिटलर तथा उसकी नाज़ी पार्टी इसका विरोध करती थी, जिसके कारण उसकी पार्टी को जर्मनी में काफी समर्थन मिला।
प्रथम महायुद्ध के बाद यूरोप में एक भयानक आथिक संकट 1929 ई. में आया। इस आर्थिक मंदी ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ के रख दिया, रुर पर फ्रांसिसी कब्ज़े के कारण उसके उद्योग धंधे ठप हो गए तथा इस संकट के कारण जर्मनी की मुद्रा का अवमूल्यन हो गया और जर्मन मुद्रा मार्क का मूल्य घट गया। इसके कारण व्यापार और रोजगार का पतन हुआ, बेरोजगारो की संख्या वर्ष 1930 ई. तक आते आते जर्मनी में पचास लाख से अधिक पहुँच गई थी और यह वही समय था जब नाज़ी दल के सदस्यों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई। 1931 ई. में जर्मन कृषकों पर तीन अरब डॉलर का कर्ज था । हिटलर ने कृषकों को इन कर्ज से मुक्ति का अष्वासन दिया, वहीं दूसरी ओर छोटे-छोटे दुकानदारों को बड़े-बड़े दुकानदारों से मिल रही प्रतिस्पर्धा से हानि पहुँचती थी। हिटलर ने कहा कि बड़े-बड़े दुकानों का समाजीकरण कर दिया जायेगा, जिसके कारण नाज़ी दल के समर्थकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई।
प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद वहाँ पर एक गणतंत्र की स्थापना की गई जिसे वाइमर गणतंत्र के नाम से जाना जाता है, वर्साय की संधि पर वाइमर गणतंत्र की सरकार ने ही हस्ताक्षर किया था, इस कारण से जर्मन लोगों ने इस सरकार को अंतरात्मा से नहीं स्वीकार किया, वहीं दूसरी ओर नाजियों द्वारा बिखराव और फूट पैदा करने से वाइमर गणतंत्र कमजोर हो रहा था, परिणाम यह हुआ की पूंजीवादी वर्ग और सामंती समाज का मुख्य हिस्सा नाजियों में जा मिला, हिटलर वर्साय की संधि और वाइमर गणतंत्र का विरोध करता था जिससे उसकी पार्टी को सत्ता में आने में लोगो का समर्थन मिला।
1917 ई. के रुसी क्रांति के बाद वहाँ साम्यवादी सरकार स्थापित होती है जिसके बाद पूरे यूरोप में समाजवाद लाने के लिए लगभग सभी यूरोपीय देशों में कमिन्टर्न की स्थापना की गई, जर्मनी में भी समाजवादी क्रांति लाने के लिये कमिन्टर्न की स्थापना हुई जिससे वहां के पूंजीपति एवं सामंती समाज पर खतरा मडराने लगा। इस बात की पुष्टि 1932 ई. के प्रथम लोकसभा निर्वाचन से होती है जिसमें साम्यवादियों को 89 (सीट) तथा इसी वर्ष दुसरे निर्वाचन में 100(सीट) स्थान प्राप्त हुए थे। इस कारण वहां के पूंजीपति वर्ग में समाजवाद का डर बढ़ जाता है। इसी दरम्यान हिटलर कमिन्टर्न विरोध का नारा देता है, साथ ही वह अपने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर कमिन्टर्न कार्यालयों पर आक्रमण करना शुरू कर देता है, अब साम्यवादी आन्दोलन और प्रतिरोध को दबाने के लिए नाजियों को पुलिस और अदालत से संरक्षण मिलने लगता है, इसके बाद हम देखतें हैं कि हिटलर को जो पहले पूंजीपतियों द्वारा आंशिक मदद मिल रही थी वह अब जर्मन पूंजीपति के साथ साथ विदेशी बुर्जवा से भी मदद तथा धन प्राप्त होने लगता है।
हिटलर की यहूदी विरोधी नीतियों ने भी नाजियों को सता में आने में एक हद तक योगदान दिया, प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय के समय ही जर्मन जनता में यह भावना व्याप्त हो गई की जर्मनी की पराजय यहूदियों के कारण हुई थी, जर्मनी में यहूदियों की संख्या बहुत कम थी पर ये राजनैतिक रूप से काफी सचेत थे। व्यापार, व्यवसाय, शिक्षा और कला में काफी आगे थे, बड़े उद्योंगों पर इनका स्वामित्व होने से जनता इन्हें अपना शोषक मानती थी, हिटलर भी यहूदियों को उपर्युक्त कारणों के लिए जिम्मेदार मानता था और कहता था कि ये संकर जातियां है तथा ये राष्ट्रीय पतन का घोतक है, इसके साथ ही वह यहूदियों को उदारवाद तथा लोकतंत्र का पोषक मानता था इसलिए वो इनको जर्मनी से बाहर निकाल फेंकने की बात करता था, हिटलर यहूदियों की नागरिकता रद्द कर देता है, तथा सरकारी नौकरियों से हटा देता है, स्कूल और कॉलेजों में पढ़ रहे यहूदी छात्रों का नामांकन रद्द कर देता है, हिटलर की इस नीति के कारण वहाँ की जनता नाज़ी पार्टी की समर्थन करने लगती है।
हिटलर द्वारा जर्मनी में नाज़ीवाद का विकास
हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 ई. में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के समीप एक गाँव में हुआ था,इसके पिता कस्टम अधिकारी थे और सख्त अनुशासन में विÜवास रखते थे, हिटलर अपने पिता के प्रति कभी विरोधी भावनाएं रखता था, स्कूल के समय से ही उसके अन्दर जर्मन राष्ट्रवादी भावनाएं प्रबल हो रही थी, शुरुवाती दिनों में वह पेशे से पेंटर था, हिटलर का व्यक्तित्व और भाषण का जादुई असर था क्यूंकि उसके पार्टी की जनता पर पकड़ ना होते हुए भी सरकार पर प्रभाव डाले हुए थी। हिटलर एक कुशल नेतृत्व कर्ता और जन नेता था।
प्रथम विश्वयुद्ध में वह जर्मन सेना में बतौर सैनिक शामिल हुआ और पुरष्कृत भी किया गया, 1920 ई. में म्यूनिख में फेडरर के साथ मिलकर उसने ‘नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी’ का गठन किया। उसकी आत्मकथा ‘मीन कैम्फ’ नाज़ी पार्टी के लिए एक प्रेरणा श्रोत पुस्तक बन गई। उसके द्वारा आर्यों के पवित्रता के सूचक स्वास्तिक को प्रतीक रूप से ग्रहण कर सैनिक ढंग से पार्टी संगठित की गई थी।
जर्मनी में नाजीवाद के आने के लिए हिटलर के आकर्षक कार्यक्रम ने सबसे ज्यादा योगदान दिया, उसने अपने कार्यक्रम में, वर्साय की संधि से जर्मनी पर लगा अपमान समाप्त करना, जर्मन भाषी सभी राज्यों को मिला कर एक सु–ढ़ राज्य की स्थापना करना, प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत जर्मनी के छीने गये उपनिवेश पुन: प्राप्त करना, यहूदियों को जर्मन राष्ट्र से निकलना, जर्मन क्षेत्रों का विस्तार करना, साम्यवादी प्रक्रिया को रोकना, देश में शांति की स्थापना करना, बेरोजगारी को दूर करना, श्रमिकों को शोषितों से मुक्ति दिलाना, मुनाफाखोरी को रोकना तथा पुराने गौरव की स्थापना करना आदि शामिल था। इस तरह नाज़ी कार्यक्रम के कारण हिटलर को जनता का समर्थन प्राप्त होने लगता है और इस तरह 1933 ई. में हिटलर सत्ता में आकर जर्मनी में तानाशाही की स्थापना करता है।