- पूर्व पुरापाषाण काल
- मध्यपाषाण काल
- उत्तर पाषाण काल।
इन्होंने यह विभाजन उपकरणों की विधि में परिवर्तन तथा उस काल की जलवायु में आए परिवर्तनों के आधार पर किया। 1961 में कॉमसन तथा ब्रैडवुड ने नवपाषाण काल तक के काल को तीन भागों में बाँटा। प्रथम काल भोजन संग्रहण तथा द्वितीय मध्य पाषाण काल को उन्होनें भोजन इकट्ठा करने वाला तथा तीसरे नवपाषाण काल को उन्होंने भोजन उत्पादन का काल कहा है।
दूसरे शब्दों में पुरापाषाण काल शिकारी अवस्था, मध्य पाषाण काल को शिकारी एवम् भोजन संग्रहित करने वाला तथा नवपाषाण काल का भोजन उत्पादित का काल कहा गया है। परन्तु प्रागैतिहासिक संस्कृतियों के कालनिर्धारण एवम् नामकरण में लारटेट का वर्गीकरण सर्वाधिक मान्य है।
प्रागैतिहासिक मानव का इतिहास जानने का स्रोत मात्रा उस काल के मानव द्वारा बनाए पाषाण के औजार है, जो मानव ने स्वयं अपनी आवश्यकतानुसार बनाए थे। लिखित साक्ष्यों के अभाव में मात्रा यहीं स्त्रोत है जो इस काल के मानव के तकनीकी विकास को दर्शाता है। आज से करीब पाँच लाख वर्ष पूर्व मध्य प्लीस्टोसीन काल से हमे यह मिलने शुरू होते है। जिन्हें पुरापाषाण कहा जाता है। परन्तु कुछ विद्वान इनसे पूर्व भी मानव को किसी प्रकार के , स्वयं बनाए या प्राकृतिक रूप से निर्मित, हथियारों का प्रयोग करते बताया है, जिन्हें इयोलिथ कहते है।
1867 में दक्षिणी ओरलियन से उपकरण प्राप्त हुए। 1877 में इस प्रकार के औजार फ्रांस से भी प्राप्त हुए, लेकिन आजकल के विद्वान इन एक तरफ फलक उतरे (One sided flaking) हथियारों को प्राकृतिक तौर से उतरे फलक मानते है, जिन्हें इस काल के मानव ने उपयोग किया होगा इसके अतिरिक्त इन उपकरणों से मानव को स्वयं औजार बनाने का संकेत भी मिला होगा।
पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं
मानव ने अपनी आवश्यकता के अनुरूप औजार बनाने की प्रक्रिया संभवत: लकड़ी तथा अन्य कार्बनयुक्त पदार्थ के औजार बनाने से शुरू की जो आज उपलब्ध नहीं है। परन्तु जब उसने पाषाण उपकरण बनाने शुरू किए तब से हमें पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध होने लगे। ये उपकरण मानव ने अपनी जरूरतों के अनुसार तथा उनके कार्य के अनुरूप निर्मित किए थे। जैसे मांस काटने तथा छीलने के लिए चॉपर (Chapper) तथा खुरचंनी (Scrapers) का निर्माण किया पुरापाषाण काल को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया गया है:-
- निम्न पुरा पाषाण काल
- मध्य पुरापाषाण काल
- मध्यपाषाण काल
निम्न पुरा पाषाण काल
मानव द्वारा निर्मित प्राचीनतम उपकरण हमें इस काल में प्राप्त होते हैं, जब मानव ने सर्वप्रथम पत्थर का स्वयं फलकीकरण कर अपनी आवश्यकतानुसार औजार बनाए। प्राचीनतम औजार वे हैं जिनमें पैबुॅल (Pebble) के एकतरफ फलक उतार कर चापर औजार बनाए गए। ये प्राचीन उपकरण हमें सर्वप्रथम मोरोक्को तथा मध्य अफ्रीका में ओल्डुवई गर्ज के सबसे प्रथम तह से प्राप्त होते है। प्रथम स्थान पर इनके साथ विल्लफ्रैन्चिय (Villafranchian) प्रकार के पशुओं की हड्डियाँ भी मिलती है, जो नूतनकाल (Plestocene) से पहले काल के जानवर थे जो अभी भी बचे रह गए थे। इनमें बडे़-बडे़ दांतो वाले हाथी (Tusks), बडे़ -बडे़ नुकीले दांतो वाले चीते, लकड़बग्घा इत्यादि शामिल थे। इस काल में मानव भोजन के लिए शिकार करता था। मानव ने मध्य और अभिनूतन काल में चापर और चापिंग औजारों का निर्माण किया, इसमें चॉपर में एक तरफ से फलकीकरण करके औजार बनाए गए। इन्हीं औजारों से बाद में प्राग् हस्त कुठारों का निर्माण किया गया और कालान्तर में इन्हीं से सुन्दर हस्त कुल्हाडियां निर्मित हुई।
- (Block -on-Anvil Technique):इस विधि द्वारा जिस पत्थर द्वारा औजार का निर्माण करना होता था उसे किसी चट्टान पर प्रहार करके उसका फलक उतारकर औजार बनाये जाते थे। इस विधि द्वारा बडे़ आकार के तथा अनघड़ औजारों का ही निर्माण संभव था।
- Stone Hammer Technique or Block-on-Block Technique: पूर्वपाषाण काल में मानव द्वारा औजार बनाने की सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाने वाली विधि थी। इसमें जिस पत्थर का औजार बनाना होता था उसे एक स्थान पर रखकर दूसरे हाथ से एक अन्य पत्थर द्वारा चोट करके फलक उतार कर औजार बनाया जाता था। इस विधि द्वारा मानव bi-ficial (द्धिधारी) औजार भी बना सकता था।
- Step Flacking Techinique: इस तकनीक द्वारा जिस पत्थर का औजार बनाना होता था उस पर दूसरा पत्थर मारते समय जिस प्रकार का औजार बनाना था, उसे ध्यान में रखकर सर्वप्रथम मध्य भाग मे चोट कर उस पत्थर पर एक निशान बना लिया जाता था। बाद में उसी की मदद से Steps (पट्टियों) में फलक उतार कर औजार बनाए जाते थे। इस विधि द्वारा हस्त कुल्हाडियों का निर्माण किया जा सकता था।
- Cylinderical Hammer Technique: इस विधि द्वारा पत्थर का औजार बनाने के लिए एक सिलैंडरनुमा हथौडे का प्रयोग किया जाता था जिससे कि छोटे-छोटे फलक भी उतारे जा सकते थे। इनसे सुन्दर एशुलियन प्रकार की हस्त कुल्हाड़ियां बनाई जाती थी।
निम्न पुरा पाषाण काल में औजार – इस काल का मानव कोर (Core) निर्मित औजारों का प्रयोग करता था यानि जिस पत्थर का औजार बनता था उसके फलक (Flake) उतार कर फैंक दिए जाते थे तथा बीच के हिस्से का ही औजार बनता था। इस काल के बने उपकरणों में chapper/ chapping tools (चॉपर/चौंपिग औजार), Hand-axes (हस्त कुल्हाड़ियो), Cleavers (विदारणी), Scrappers (खुरचमियां) इत्यादि प्रमुख थे। इनसे मानव काटने, खाल साफ करने इत्यादि कार्यो के लिए तथा मिट्टी से जड़ें और कन्दमूल आदि निकालने के काम में लाता था।
मध्य पुरापाषाण काल
(Medium Paleolithic Period) इस काल में मियडरस्थल मानव के अवशेष मिलने शुरू हुए और इन्होंने अपनी संस्कृति का विकास किया। पूर्व पुरापाषाणकाल के औजार कोर निर्मित थे, जिसमें फलकों का प्रयोग औजारों में नही किया गया था। लेकिन इस काल के मियंडर स्थल मानव ने अपने उपकरणों को फलक पर बनाना प्रांरभ किया, जो अपेक्षाकृत आकार में छोटे थे जो अच्छे बने हुए थे। निर्मित औजारों में बोरर (Borers) स्क्रेपर (Scrapper) औजार प्रचुर मात्रा में प्रयुक्त हुए थे। इनके अलावा फलक निर्मित औजारों में हस्तकुठार, बेधक, कुल्हाड़ियाँ और विदारणी प्रमुख थे।
मध्य पुरापाषाण काल में औजार बनाने की तकनीक – इस काल के फलक उपकरण दो तकनीकों द्वारा बनाए जाते थे। प्रथम विधि के उपकरण सर्वप्रथम इंग्लैड के कलैक्टोन-आन-सी Clacton-on-sea) नामक स्थान से सर्वप्रथम प्राप्त हुए थे। इस विधि में सर्वप्रथम पत्थर से फलक उतारी जाती थी, फिर उस फलक को दोबारा तीखा कर (retouching) आवश्यकतानुसार आकार का उपकरण बना लिया जाता था। दूसरी विधि को लवलॅवा विधि (Lowallosi-on-technique) का नाम दिया गया। इस विधि द्वारा निर्मि औजार सर्वप्रथम फ्रांस के तावलवा नामक स्थान से प्राप्त हुए इसलिए इसे लवलॅवा तकनीक का नाम दिया गया। इस विधी द्वारा पत्थर से जो फलक अलग किया जाता उसे ऐसे ही प्रयोग किया जा सकता था। इस विधि में जिस पत्थर का फलकीकरण किया जाता था उस पर किसी तीखे उपकरण से जिस प्रकार का औजार बनाना होता था उसकी रूपरेखा दी जाती थी। दूसरे चरण में उसके भीतरी हिस्से को ऊपर से छील दिया जाता था इसे Tortoise Ore कहा जाता था। तृतीय चरण में एक छोटा प्लेट फार्म तैयार किया जाता था। जहाँ तीखी चीज रखकर उस पर हथौडे से आघात किया जाता था। इस प्रकार मनचाहे आकार का उपकरण बनाया जा सकता था।
मध्यपाषाण काल
लगभग 10000 वर्ष पूर्व अभिनूतन काल का अंत हो गया और जलवायु भी आजकल के समान हो गई। हिमयुग के दौरान जमी बर्फ की पर्त पिघलने लगी तथा अधिकतर निचले इलाकों में पानी भर गया। पानी के जमाव के साथ जमी मिट्टी की तहों की गिनती से स्कन्डेनेनिया में इस काल की शुरूआत 7900 ई0पू0 रखी जा सकती है जबकि रेडियों कार्बन तिथि से हिम युग काल का अंत 8300 ई0 पू0 निर्धारित किया जा सकता है। बर्फ पिघलने से समुद्र के जलस्तर में बढोतरी हुई जिस कार उतरी समुद्र में अधिक पानी फैल गया। जलवायु में हुए परिवर्तन का असर वनस्पति तथा पशु-पक्षियों पर भी हुआ। यूरोप में चौड़ी पत्ती वाले पेड़-पौधे होने लगे और साथ ही रेडियर, घोड़े, बिसन आदि के स्थान पर हिरण, जंगली सूअर, बारहसींगा इत्यादि पशु अधिक पाए जाने लगे। पश्चिमी एशिया के क्षेत्रों में इस प्रकार की वनस्पति के पौधे पाए गए जो आजकल के गेंहू और जौ के जंगली प्रकार थे। इस प्रकार की वनस्पति को प्रयोग में लाने तथा शिकार में जानवरों को मारने के लिए उस काल के मानव को अपने औजारों में भी परिवर्तन करना पड़ा।
इस काल में अत्यंत सूक्ष्म पाषाण औजारों का निर्माण किया गया। ये औजार इतने सूक्ष्म थे कि इन्हें अकेले प्रयोग में नहीं लाया जा सकता था बल्कि किसी अन्य चीज के साथ जोड़कर ही वन औजारों को प्रयोग किया जा सकता था। इन उपकरणों में प्वांइट, तीर का अग्र भाग, सूक्ष्म ब्यूरिन, खुरचनियां, हस्त कुल्हाडियां, ित्राकोण, ट्रॉपे, चन्द्राकार और अर्द्धचन्द्रकार इत्यादि प्रमुख है। ये उपकरण दो भागों में बांटे जा सकते है। दोनों प्रकार के औजारों को प्रकार के आधार पर बांटा गया है।
इस काल के मानव ने जंगली पौधों से दाने निकालकर उन्हें खाने में प्रयोग करना शुरू कर दिया था। इसकी पुष्टि कई क्षेत्रों से प्राप्त सिल-बट्टे करते हैं। इनमें el-wad स्थल प्रमुख है। सीरिया के मुरेयबिट क्षेत्र में जंगली गेंहू और जौ खाते थे। यूरोप में यह संस्कृति एजिलियन संस्कृति के नाम से जानी जाती है। जो कि फ्रांस, बेल्जियम, स्विटजर लैंड से प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त कहीं-कहीं इससे विकसित मध्यपाषाण संस्कृति को Asturian तथा Maglamosean संस्कृति भी कहा जाता है। जो लोग लाल हिरण, से हिरण, जंगली सूअर इत्यादि का शिकार करते थे। मछलियां पकड़ते थे, कुता रखते थे तथा फल-फूल इत्यादि इक्कठा करके खाते थे। इनके अन्य उपकरणों में हड्डी की सूइयां, मछली के कांटे और चमड़े का कार्य करने वाले अन्य उपकरण थे। और पश्चिमी यूरोप में इस प्रकार की संस्कृति का प्रस्तार काल बाल्टिक तथा उतरी समुद्र के आसपास इस संस्कृति को Kitchen-Midden कहा जाता था। जिसमें सामान्यत: कुल्हाडियों की प्राप्ती होती है। कभी-कभी इनके उपकरणों में तीराग्र, बसौले तथ ट्रॉपेज इत्यादि अधिक थे। इस काल में बेल्जियम में इस काल का मानव (Pit dwelling) गड्डे खोदकर निवास करता था। इनकी संस्कृति को Campignian का नाम दिया जाता है।
भारत में इस संस्कृति के प्रमाण लगभग समस्त क्षेत्रों से प्राप्त होते है। लेकिन मुख्यत: तमिलनाडु में टेरी स्थल, गुजरात में लेघनाज, पूर्वी भारत में बीस्मानपुर, मध्य भारत में आजादगढ़ तथा भीममेका की गुफांए, राजस्थान में बागोर, उतरप्रदेश में लेखाडियां, सराय नाहर इत्यादि प्रमुख थे।