मूल संविधान (1950) में सात मौलिक अधिकार थे। लेकिन 44वें संशोधन के बाद 1978 में इन्हें छ: कर दिया गया। इस संशोधन ने सातवें मौलिक अधिकार ‘‘सम्पति’’ के अधिकार को समाप्त कर दिया था।
मौलिक अधिकार
यह अधिकार अनुच्छेद 31 के अंतर्गत था। भारतीय नागरिकों को 6 मूल अधिकार प्राप्त हैं:
  1. समानता का अधिकार –
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरूद्ध अधिकार –
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार –
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार –
  6.  संवैधानिक उपचारों का अधिकार –

भारतीय संविधान में दिए गये मौलिक अधिकार की विशेषताएं

 

सभी नागरिक कानून के अंतर्गत समान है। उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता है, संगठन बनाने का अधिकार है तथा आंदोलन करने का समान अधिकार है। किसी भी व्यक्ति को उनके जीवन, स्वतंत्रता या संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता यदि ये कानून के मुताबिक हो अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा, संस्कृति एवं लिपि को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने की अनुमति है। मौलिक अधिकार वास्तव में व्यक्तियों को सुरक्षित रखते हैं तथा अल्पसंख्यक समुदाय को भेदभाव, राज्य कार्यवाही एवं पक्षपात से सुरक्षित रखा जाता है। संविधान में तीन अनुच्छेद व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान करने के लिए बनाये गये हैं।

संविधान के अनुच्छेद 17 के अंतर्गत अस्पृश्यता यानी छूआछूत को समाप्त कर दिया गया है, अनुच्छेद 15 (2) के अंतर्गत किसी भी नागरिक को उनकी जाति, धर्म, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर सार्वजनिक स्थानों, दुकानों रेस्टोरेंट, कुँए, सड़क इत्यादि के प्रयोग करने पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, तथा अनुच्छेद 23 के संविधान सभा और संविधान अंतर्गत, बाल शोषण और बंधुआ मजदूरी पर रोक है।
दो प्रकार के उपाय किये गये हैं जिनके द्वारा मौलिक अधिकारों को लागू करवाया जा सकता है। पहला न्यायिक समीक्षा (न्यायिक पुनरावलोकन) तथा दूसरा याचिकाओं द्वारा। यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन होता है तो याचिकाऐं दाखिल की जा सकती है। ये दोनों उपचार अनुच्छेद 32 के अंतर्गत दिये गये हैं।
भारतीय संविधान में दिए गये मौलिक अधिकार की विशेषताएं इस प्रकार हैं-

 

 

  1. विस्तृत अधिकार-पत्र – अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है तथा इसके 6 भाग ऐसे हैं जिनमें नागरिकों की 6 विभिन्न स्वतन्त्रताओं और उनके अपवादों आदि का विस्तृत वर्णन है। ऐसा ही विस्तृत वर्णन अन्य अनुच्छेदों में किया गया है।
  2. संविधान द्वारा दिये गये अधिकारों के अतिरिक्त नागरिकों का कोई अधिकार नहीं – भारतीय संविधान में ऐसे सिद्वान्त का स्पष्ट रूप में खण्डन किया गया है। यह स्पष्ट कहा गया है कि नागरिकों को केवल वे ही अधिकार प्राप्त हैं जोकि संविधान में लिखे हैं। उनके अतिरिक्त किसी भी अधिकार को मान्यता नहीं दी गई है।
  3. सभी नागरिकों को समान अधिकार – मौलिक अधिकार जाति, धर्म, नस्ल, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना सभी नागरिकों को प्राप्त हैं। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों में कोई भेद नहीं। यह सभी पर समान रूप से लागू होते हैं और कानूनी दृष्टि से सभी नागरिकों के लिए हैं।
  4. अधिकार पूर्ण और असीमित नहीं हैं – हमारे संविधान में सरकार को राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, सार्वजनिक नैतिकता तथा लोक-कल्याण की दृष्टि से मौलिक अधिकारों पर समय की आवश्यकता अनुसार उचित प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार दिया गया है।
  5. अधिकार नकारात्मक अधिकार – इन अधिकारों द्वारा राज्य पर प्रतिबन्ध तथा सीमाएँ लगाई गई हैं। उदाहरणत: राज्य पर यह सीमा लगाई गई है कि राज्य जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करेगा तथा न ही सरकारी पद पर नियुक्ति करते समय ऐसा कोई भेद-भाव करेगा।
  6. अधिकार संघ, राज्यों तथा अन्य सरकारी संस्थाओं पर समान रूप से लागू हैं – मौलिक अधिकारों के भाग में ही संविधान द्वारा राज्य शब्द की व्याख्या की गई है तथा यह कहा गया है कि राज्य शब्द के अर्थ हैं-संघ, प्रान्त एवं स्थानीय संस्थाएँ। इस तरह अधिकार-पत्र द्वारा लगाई गई सीमाएँ संघ, राज्यों एवं स्थानीय संस्थाओं-नगरपालिकाएं तथा पंचायतों-पर भी लागू हैं। इन सभी संस्थाओं को मौलिक अधिकारों द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्दर कार्य करना होता है।
  7. भारतीय नागरिकों और विदेशियों में अन्तर – भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में भारतीय नागरिकों तथा विदेशियों में भेद किया गया है। कुछ मौलिक अधिकार ऐसे हैं, जो भारतीय नागरिकों को तो प्राप्त हैं परन्तु विदेशियों को नहीं, जैसे- भाषण देने और विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता, घूमने-पिफरने और देश के किसी भी भाग में रहने की स्वतन्त्रता।
  8. अधिकार निलम्बित किये जा सकते हैं – हमारे संविधान में अधिकारों को संकटकाल में निलम्बित किये जाने की व्यवस्था की गई है। नोट्स बाहरी आक्रमण अथवा बाहरी आक्रमण की सम्भावना से उत्पन्न होने वाले संकट का सामना करने के लिये राष्ट्रपति सम्पूर्ण भाग अथवा भारत के किसी भाग में संकटकालीन घोषणा कर सकता है तथा ऐसी व्यवस्था में नागरिक के अधिकारों विशेषत: स्वतन्त्रता के अधिकार (Art. 19) तथा संवैधानिक उपचारों के अधिकार को निलम्बित कर सकता है। संविधान की इस व्यवस्था की कई आलोचकों द्वारा कड़ी निन्दा की गई है परन्तु हमारे विचार में आलोचना बुद्वि संगत नहीं है। देश का हित सर्वोपरि है। अत: देश के हित में अधिकारों को निलम्बित किया जाना उचित ही है।
  9. मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं – मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा लागू किए जाते हैं। मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए संविधान में विशेष व्यवस्थाएँ की गई हैं। संवैधानिक उपचारों का अधिकार मौलिक अधिकारों में विशेष रूप से शामिल है। इसका अर्थ यह है कि कोई भी नागरिक जिसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो, हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपील कर सकता है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रकार के लेख जारी करते हैं। यदि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन सिद्व हो जाए तो वे किसी व्यक्ति, संस्था अथवा सरकार द्वारा की गई गलत कार्यवाही को अवैध घोषित कर सकते हैं।
  10. संसद अधिकारों को कम कर सकती है – संविधान के द्वारा संसद मौलिक अधिकार वाले अध्याय सहित समूचे संविधान में संशोधन कर सकती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संसद साधारण कानूनों द्वारा मौलिक अधिकारों में किसी प्रकार का संशोधन नहीं कर सकती। यदि संसद कोई ऐसा कानून बनाती है तो वह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया जाएगा।
  11. अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार – भारतीय अधिकार-पत्र में अल्पसंख्यकों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया है। विशेषकर दो अधिकार-धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) तथा सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights) तो अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये ही लिखे गये हैं। एक आदर्श लोकतन्त्र में बहुमत अल्पमत पर शासन कर उन्हें कुचलता नहीं अपितु अल्पमत को पनपने का अवसर दिया जाता है। भारतीय अधिकार-पत्र द्वारा ऐसी व्यवस्था को अल्पसंख्यकों के अधिकारों के रूप में लिखा गया है।
  12. सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों का अभाव -भारतीय अधिकार-पत्र में सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों, उदाहरणतया काम करने का अधिकार (Right to Work), आराम का अधिकार (Right of Rest and Leisure), सामाजिक सुरक्षा का अधिकार (Right to Social Security), आदि शामिल नहीं किये गये हैं। हाँ, इन अधिकारों को निर्देशक सिद्वान्तों के अधीन लिखा गया है।
  13. शस्त्रधारी सेनाओं के अधिकार सीमित किए जा सकते हैं – संविधान की धारा 33 के अनुसार संसद सेनाओं में अनुशासन को बनाए रखने के लिए मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है। संसद पुलिस, सीमा सुरक्षा आदि के विषय में उचित व्यवस्था कर सकती है।
  14. मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था – भारतीय संविधान की धारा 226 के अन्तर्गत हमारे छीने गए अधिकार को लागू करवाने के लिए उचित विधि द्वारा प्रान्त में उच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं तथा धारा 32 के अन्तर्गत उचित विधि द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं। इस सम्बन्ध में हम उचित याचिका (Writ) कर सकते हैं।

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