कृषि करने योग्य भूमि की उपलब्धता
कृषि भूमि में वास्तविक बोया गया क्षेत्र, परती भूमि और बागानी भूमि सम्मिलित है। कृषि भूमि का कुल क्षेत्रफल देश की कुल भूमि का 51 प्रतिशत है। भारत में प्रति व्यक्ति कृषि भूमि-मानव अनुपात में दूसरे देशों जैसे आस्ट्रेलिया, कनाडा, अर्जेन्टाइना, संयुक्त राज्य अमेरिका, चिली, डेन्मार्क एवं मैक्सिको की तुलना में कम है, जापान, नीदरलैंड, मिस्र, यूनाइटेड किंगडम, इजराइल तथा चीन की तुलना में अधिक है।
यहाँ के पर्वत, पहाड़, पठार और मैदानों में मानव की अनुक्रियायें अलग-अलग हैं। इसीलिये इन भौतिक विभागों में भूमि के उपयोग भी अलग-अलग है। भारत के 30 प्रतिशत धरातलीय क्षेत्रफल पर पर्वत और पहाड़ हैं। ये तीव्र ढलान अथवा अत्यधिक ठंडे होने के कारण कृषि के लिये अनुपयुक्त हैं। इस पहाड़ी भूमि का लगभग 25 प्रतिशत भाग खेती करने के योग्य है। इसका वितरण देश के विभिन्न भागों में है। पठारी भाग देश के 28 प्रतिशत धरातलीय क्षेत्रफल को घेरे हुये हैं, लेकिन इसका भी केवल एक चौथाई भाग खेती करने योग्य है।
भूमि संसाधन का उपयोग
भूमि-उपयोग के विशिष्ट लक्षण हैं –
- भूमि का अधिक प्रतिशत भाग कृषि योग्य है।
- कृषि क्षेत्र को बढ़ाने की सीमित गुंजाइश है।
- पशुओं की अत्यधिक संख्या होते हुये भी चारागाहों के अन्तर्गत बहुत कम भूमि है।
वर्तमान समय में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि कृषि के लिए अनुपलब्ध है।
भूमि संसाधन की समस्यायें
भूमि क्षरण का मुख्य कारण मृदा अपरदन है। भूमि में जलाक्रान्ति होने और उसकी लवणता बढ़ने से भी भूमि का क्षरण होता है। वनों की अंधाधुन्ध कटाई के कारण मृदा का बड़े पैमाने पर अपरदन हो रहा है। मानसून की अवधि में भारी वर्षा भी मृदा अपरदन का कारण बनती है। हिमालय के दक्षिणी और पश्चिमी घाट के पश्चिमी तीव्र ढलानों पर विशेषतया जल के तेज बहाव के कारण मृदा अपरदन होता है।