मेसोपोटामिया की सभ्यता (Mesopotamian Civilization )

‘मेसोपोटामिया’ विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता वाला स्थान है। इसे कांस्ययुगीन सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। इराक़, उत्तर-पूर्वी सीरिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की तथा ईरान का क़ुज़ेस्तान प्रांत सम्मिलित क्षेत्र है।

 

मेसोपोटामिया की सभ्यता के अंतर्गत – सुमेरियन ,बेबीलोन तथा असीरियन की सभ्यताओं का विकास हुआ। मेसोपोटामिया एकनगरीय सभ्यता थी। प्रारम्भ में यहाँ नगर राज्य थे परन्तु बाद में सारगन प्रथम , हेम्मूराबी, सारगन द्वितीय, सेनाक्रीब तथा असुर बनीपाल जैसे सम्राटों के काल में विशाल साम्राज्यों की भी स्थापना हुई।

मेसोपोटामिया के लोग अपने भोजन में गेहूँ तथा जौ की रोटी , दूध , दही, मक्खन ,फल आदि का प्रयोग करते थे। वे खजूर से आटा, चीनी, तथा पीने के लिए शराब तैयार करते थे। वे लोग माँस-मछली का भी सेवन करते थे।

वे सूती , ऊनी तथा भेड़ की खाल से बने वस्त्र पहनते थे। पुरुषों के वस्त्रों में लुंगी प्रमुख थी। उच्च वर्ग की स्त्रियां विलासिता का जीवन व्यतीत करती थी।आभूषणों में सोने- चाँदी के बने हार,कंगन तथा बालियां आदि का प्रयोग स्त्रियां पर्याप्त मात्रा में करती थीं।

यहाँ के लोग रहने के लिए पक्की ईटों के मकान का प्रयोग करते थे। ईंटें चिकनी मिट्टी की बनी होती थी। मकानों का गन्दा पानी निकालने के लिए बनी नालियां मोहंजोदडो और हड़प्पा के नगरों के सामान थीं। मकान की दीवारों पर उभरे हुए चित्र भी बनाये जाते थे। कुम्हार के चाक का प्रयोग सर्वप्रथम इसी सभ्यता में हुआ।

पर्दा प्रथा राज-परिवारों तक ही सीमित थी। दहेज़ का प्रचलन था परन्तु विवाह में पिता से प्राप्त दहेज़ पर वधू का ही अधिकार होता था। विधवा को पति की सम्पति बेचने का अधिकार था।। वेश्यावृत्ति और बहुविवाह ( केवल उच्च वर्ग के लिए) भी प्रचलित था।

भूमि उपजाऊ होने की वजह से यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि था। गेंहू ,जौ और मक्का की खेती अधिक की जाती थी। फल और सब्जी की भी खेती होती थी। सिचाई नदियों तथा नहरों द्वारा होती थी। यहाँ के लोगो का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। रथ खीचने के लिए बैल पाले जाते थे।

मेसोपोटामिया के लोगो का भारत और चीन के साथ घनिष्ट व्यापारिक सम्बन्ध थे। सिक्को का प्रचलन न होने की वजह से चाँदी या सोने के टुकड़े का प्रयोग विनिमय के लिए होता था। जल तथा थल लोगो माध्यम से व्यापार होता था। बेबीलोन , पश्चिमी देशो का प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था। बाद में यहाँ के लोगो ने लेन देन व व्यापार के लिए सिक्के बनाये और नाप तौल के लिए अनेक प्रकार के बांटो का आविष्कार किया।

नगर के संरक्षक देवता के लिए नगर के पवित्र क्षेत्र में किसी पहाड़ी या ईटो के बने चबूतरे पर मंदिर का निर्माण किया जाता था। जिसे ‘ जिग्गूरात ‘ कहते थे| इस सभ्यता के लोग नैतिकपूर्ण जीवन जीते थे। झूठ बोलना, घमण्ड करना, तथा दूसरो के अप्रसन्न करना इत्यादि दुर्गुणों से वे लोग दूर रहते थे।

मेसोपोटामिया की सभ्यता द्वारा संसार को दिया गया सबसे बड़ा देन कीलाक्षर ( कीलाकार) लिपि है। इस लिपि में 250 से भी अधिक शब्द थे । प्रारम्भ में इनकी लिपि चित्रों पर आधारित थी,जो बाद में ध्वनि पर आधारित हो गयी। लिखने के लिए नरम मिट्टी की बनी तख्तियों पर सरकण्डे की कलम का प्रयोग किया जाता था। जिन्हें आग में पकाकर सुरक्षित रख दिया जाता था। इसके साक्ष्य निनवेह की खुदाई के दौरान मिले है। जिन पर कहानियां, महाकाव्य , गीतिकाव्य तथा धार्मिक उपदेश संकलित है।

गणित के क्षेत्र में उन्होंने सब से पहले 1, 10,और 100 के चिन्हों की खोज की थी। इन्होंने बुध, शुक्र, मंगल, गुरु तथा शनि ग्रहो का पता लगा लिया था। उन्होंने आकाश के नक्षत्रों को 12 राशियों में बाँट कर उनके नामकरण भी कर दिए थे। उन्होंने एक पंचांग भी बनाया था और सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण के कारणों का भी पता कर लिया था। और समय देखने के लिए धूप घड़ी और सूर्य घड़ी का भी आविष्कार कर लिया था। मेहराबों , स्तंभों और गुम्बदों के निर्माण में भी मेसोपोटामिया के लोगों ने संसार को नई दिशा प्रदान की।

मेसोपोटामिया की सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता थी या नहीँ , यह एक विवादग्रस्त प्रश्न है। अधिकांश विद्वानों का मत है कि मेसोपोटामिया की सभ्यता ही सबसे प्राचीन सभ्यता थी , जबकि पेरी का कहना है कि पृथ्वी पर मिस्र में ही सर्वप्रथम सभ्यता का विकास हुआ और वहाँ से संसार के अन्य लोगों ने सभ्यता सीखी।
नील नदी की घाटी ( मिस्र की सभ्यता ) और दजला-फरात की घाटी(मेसोपोटामिया की सभ्यता) में बहुत सी मुहरें , मिट्टी के बर्तन तथा पशुओँ की मूर्तियां बनाने का काम पहले प्रारम्भ हो चुका था, लेकिन चित्रकला और मूर्तिकला के क्षेत्र में मेसोपोटामिया की सभ्यता मिस्र की सभ्यता से पीछे थी। पर कौन सी सभ्यता सबसे प्राचीन थी ये कहना कठिन है।

चौथी शताब्दी ई. पू. के अंत तक मेसोपोटामिया में राज्यों की स्थापना हो चुकी थी और ‘दजला और फ़रात’ नदियाँ जहाँ क़रीब आ जाती हैं, वहाँ बेबीलोन नगर बस चुका था। बेबीलोन में 1792 ई. पू. में ‘हम्मूराबी’ नामका एक शासक हुआ था, जिसने 1750 ई. पू. तक शासन किया।  अपने आप को वह देवता समझता था और इस बात का उसे बहत गर्व था। उसने अपनी प्रजा के लिये एक क़ानून संहिता बनाई थी, जो इतिहास में ‘हम्मूराबी संहिता’ के नाम से बहुत प्रसिद्ध है।

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