मौलिक कर्तव्य का अर्थ
करने योग्य कार्य ‘कर्तव्य’ कहलाते है किसी भी समाज का मूल्यांकन करते हुए ध्यान केवल अधिकारों पर ही नहीं दिया जाता है वरन् यह भी देखा जाता है कि नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करते है या नहीं।
26 जनवरी 1950 में लागू किये गये भारतीय संविधान में नागरिकों के केवल अधिकारों का ही उल्लेख किया था मूल कर्तव्यों का नहीं। संविधान के 42वें संशोधन के द्वारा भाग 4 में धारा 51 । के अंतर्गत 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। सन् 2002 में धारा 51 । अनुभाग द्वारा एक और कर्तव्य इसमें जोड़ दिया गया है। कर्तव्य है-
- संविधान का पालन करें राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें।
- ऐसे आदर्शों का अनुसरण करें, जिनसे स्वतंत्रता आंदोलन का प्रोत्साहन मिलता था।
- भारत की एकता और अखण्डता की रक्षा करें।
- जब भी आवश्यकता पड़े तो देश की रक्षा करें।
- सभी वगोर्ं के लोगों में भ्रातृत्व और समरसता की भावना बढ़ाएं और स्त्रियों की प्रतिष्ठा का आदर करें।
- अपनी गौरवशाली परंपरा और समरस संस्कृति को बनाए रखें।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें वन, नदियां, झील और जगत के जीव-जंतु शामिल हैं, का संरक्षण एवं सुधार करना।
- मानवतावाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास।
- सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा का प्रयोग न करना।
- व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यकलाप के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रयास करना।
- 6 से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावक द्वारा शिक्षा का अवसर प्रदान करना (86 संविधान संशोधन, 2002, धारा 51 A अनुभाग(K))
मौलिक कर्तव्यों का महत्व
अधिकारों और कर्तव्यों का घनिष्ठ संबंध सदैव से रहा है। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के ही पहलू हैं। एक के बिना दूसरा अस्तित्वहीन हो जाता है। कर्तव्यों के बिना अधिकारों की मांग करना नीतिसंगत और न्यायोचित नहीं है। वाइल्ड के अनुसार – ‘‘केवल कर्तव्यों के संसार में ही अधिकारों की प्रतिष्ठा है।’’ संविधान के 42वें संशोधन द्वारा नागरिकों के लिए कर्तव्यों का समावेश करके हमारे संविधान की एक बहुत बड़ी कमी को पूरा किया गया है। मौलिक कर्तव्यों को आंका जा सकता है-
- समंप्रभुत्ता तथा अखण्डता की रक्षा – मौलिक कर्तव्यों द्वारा नागरिकों को यह निर्देश दिया गया है कि वे देश की सम्प्रभुता तथा अखण्डता की रक्षा करें। यदि सभी नागरिक निष्ठा एवं ईमानदारी से अपने इस कर्तव्य का पालन करने लग जायें तो भारत की सम्प्रभुता और अखण्डता चिरस्थायी बनी रहेगी।
- देश की प्रगति में सहायक – मौलिक कर्तव्यों द्वारा नागरिकों को आहन किया गया है कि वे संकट के समय देश की सुरक्षा हेतु तन-मन धन से अपने योगदान दें।
- देश की प्रगति में सहायक – नागरिकों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाये जाने से देश प्रगति की दिशा में आगे बढ़ेगा और विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ जायेगा।
- प्राकृतिक तथा सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा – भारत में प्राकृतिक तथा सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने में लोग कोई संकोच नहीं करते। मौलिक कर्तव्यों में दिये गये निर्देश के पालन से प्राकृतिक तथा सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा होगी। प्रदूषण दूर होगा, जिससे स्वास्थ्य-रक्षा होगी, साथ ही देश की प्रगति होगी।
- लोकतन्त्र को सफल बनाने में सहायक – भारत द्वारा अपनायी गयी लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक नागरिक लोकतांत्रिक संस्थाओं का आदर न करें। मौलिक कर्तव्यों को संविधान में स्थान दिये जाने से लोग इन संस्थाओं का आदर करेंगे, जिससे लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था सुदृढ़ होगी।
- संस्कृति की रक्षा और संरक्षण – भारत में समन्वित संस्कृति होने के कारण कश्मीर से कन्याकुमारी तक विभिन्न प्रकार की गौरवशाली परम्पराएं है। मौलिक कर्तव्यों के पालन से ही विभिन्न प्रकार की इन परम्पराओं में समन्वय स्थापित कर सकेंगे और उनका संरक्षण कर सकेंगे। इससे भारत की सांस्कृतिक एकता सुदृढ़ होगी।
- विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास – मौलिक कर्तव्यों में भारतीय नागरिकों को सद्भावना तथा भाईचारे की भावना बनाये रखने का निर्देश दिया गया है, साथ ही हिंसा से दूर रहने का परामर्श दिया गया है। ये निर्देश और परामर्श मानवीय दृष्टिकोण अपनाने और विश्व-बंधुत्व की भावना को विकसित करने में सहायक सिद्ध होंगे।
- स्त्रियों का सम्मान – मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करने से समाज में स्त्रियों को सम्मान प्राप्त होगा, जिससे उनकी गरिमा में वृद्धि होगी और लिंग संबंधी भेदभाव समाप्त होकर समानता स्थापित होगी।