अर्थशास्त्र को अध्ययन के दृष्टिकोण से कई भागों में विभक्त किया गया। आधुनिक अर्थशास्त्र का अध्ययन एवं विश्लेषण दो शाखाओं के रूप में किया जाता है- प्रथम, व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा द्वितीय समष्टि अर्थशास्त्र ।
व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत वैयक्तिक इकाइयों जैसे- व्यक्तियों, परिवारों फर्माें उद्योगों एवं अनेक वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों इत्यादि का अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है, जबकि समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत अर्थव्यवस्था का संपूर्ण रूप में जैसे – कुल राष्ट्रीय आय, कुल उपभोग , कुल माँग, कुल पूर्ति, कुल बचत, कुल विनियोग और रोजगार इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। आर्थिक विश्लेषण की उक्त शाखाएँ वर्तमान में अत्यधिक प्रचलित हैं।
सर्वप्रथम ‘व्यष्टि एवं समष्टि’ अर्थशास्त्र का प्रयोग ओसलो विश्वविद्यालय के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री- प्रो. रेग्नर फ्रिश (Ragner Frish) ने किया था। अत: इसमें हम व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय, महत्व, सीमाएँ समष्टि एवं व्यष्टि अर्थशास्त्र में अंतर का अध्ययन करेंगे ।

व्यष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ

हिन्दी भाषा का शब्द ‘व्यष्टि अर्थशास्त्र‘ अगेंज्री भाषा के शब्द माइक्रो (Micro), ग्रीक भाषा के शब्द ‘माइक्रोस’ (Micros) का हिन्दी रूपान्तरण है। व्यष्टि से अभिप्राय है- अत्यतं छोटी इकाई अथार्त् व्यष्टि अर्थशास्त्र का सबंध अध्ययन की सबसे छोटी इकाई से है। इस प्रकार, व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत वयैक्तिक इकाइयों जैसे- व्यक्ति, परिवार, उत्पादक फर्मे उद्योग आदि का अध्ययन किया जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र की इस रीति का प्रयोग किसी विशिष्ट वस्तु की कीमत निर्धारण, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों के व्यवहार एवं आर्थिक नियोजन, व्यक्तिगत फर्म तथा उद्योग के संगठन आदि तथ्यों के अध्ययन हेतु किया जाता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र की परिभाषा

प्रो. बोल्डिंग के अनुसार- “व्यष्टि अर्थशास्त्र विशिष्ट फर्मे विशिष्ट परिवारों वैयक्तिक कीमतों मजदूरियों आयो विशिष्ट उद्योगों और विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है।“
प्रो. चेम्बरलिन के शब्दों में- “व्यष्टि अर्थशास्त्र पूर्णरूप से व्यक्तिगत व्याख्या पर आधारित है और इसका संबधं अन्तर वैयक्तिक सबंधों से भी होता है।”

व्यष्टि अर्थशास्त्र के प्रकार

  1. व्यष्टि स्थैतिकी- व्यष्टि स्थैतिकी विश्लेषण में किसी दी हुई समयावधि में संतुलन की विभिन्न सूक्ष्म मात्राओं के पारस्परिक संबंधों की व्याख्या की जाती है। इस विश्लेषण में यह मान लिया जाता है कि संतुलन की स्थिति एक निश्चित समय बिन्दु से संबंधित होती है आरै उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है।
  2. तुलनात्मक सूक्षम स्थैतिकी- तुलनात्मक सूक्ष्म स्थैतिकी विश्लेषण विभिन्न समय बिन्दुओं पर विभिन्न संतुलनों का तुलनात्मक अध्ययन करता है, परंतु यह नये व पुराने संतुलन के बीच के संक्रमण काल पर प्रकाश नहीं डालता है। यह तुलना तो करता है लेकिन यह नहीं बताता है कि नया संतूलन किस क्रिया से उत्पन्न हुआ है।
  3. सूक्ष्म प्रौद्योगिकी- यह विश्लेषण पुराने एवं नये संतुलन को बताती है। यह सभी घटनाओं का अध्ययन करती है पुराना संतुलन क्यों टूटा, नया संतुलन बनने कारणों की व्याख्या करती है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र की विशेषताएं

  1. वैयैक्तिक इकाइयों का अध्ययन- व्यष्टि अर्थशास्त्र की पहली विशेषता यह है कि यह वयैक्तिक इकाइयों का अध्ययन करती है। व्यष्टि अर्थशास्त्र वैयक्तिक आय, वैयक्तिक उत्पादन एवं वैयक्तिक उपभागे आदि की व्याख्या करने में सहायता करता है। यह प्रणाली अपना संबंध समूहों से न रखकर व्यक्तिगत इकाइयों से रखती है। इस प्रकार व्यष्टि अर्थशास्त्र वैयक्तिक समस्याओं का अध्ययन करते हुए समस्त अर्थव्यवस्था के विश्लेषण में सहायता प्रदान करता है।
  2. सूक्ष्म चरों का अध्ययन- सूक्ष्म अर्थशास्त्र की दूसरी विशेषता के रूप में यह छोटे – छोटे चरों का अध्ययन करती है। इन चरों का प्रभाव इतना कम होता है कि इनके परिवर्तनों का प्रभाव सपूंर्ण अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ता है, जैसे- एक उपभोक्ता अपने उपभोग और एक उत्पादक अपने उत्पादक अपने उत्पादन से संपूर्ण अर्थव्यवस्था की माँग एवं पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकता है।
  3. व्यक्तिगत मूल्य का निर्धारण- व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत सिद्धान्त अथवा मूल्य सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत वस्तु की माँग एवं पूर्ति की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-ही-साथ माँग एवं पूर्ति के द्वारा विभिन्न वस्तुओं के व्यक्तिगत मूल्य निधार्रण भी किये जाते है।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का विषय क्षेत्र

जैसा की आप जानते है कि उत्पादन, उपभोग और निवेश अर्थव्यवस्था की प्रमुख प्रक्रियाएं है। और ये परस्पर संबंधित हैं। सभी आर्थिक क्रियाएं इन प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई है। वे सभी जो इन क्रियाओं के करने में लगे हुए है। उन्है। आर्थिक एजेंट या आर्थिक इकाइयां कहते है। ये आर्थिक एजेंट या इकाइयां उपभोक्ता और उत्पादन के साधनों के स्वामी है। आर्थिक एजेंटों के एक समूह की आर्थिक क्रियाएं अन्य समूहों को प्रभावित करती हैं और इनकी पारस्परिक क्रियाएं बहुत से आर्थिक चरों जैसे कि वस्तु की कीमत, उत्पादन के साधनों की कीमत, उपभोक्ताओं और उत्पादकों की संख्या आदि को प्रभावित करती है।

इन इकाइयों के आर्थिक व्यवहार का अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की विषय वस्तु है। व्यक्ति या परिवार अपनी आय को वैकल्पिक उपयोगों में कैसे आबंटित करते है। ? उत्पादक या फर्म अपने ससाधनों को विभिन्न वस्तुओं आरै सेवाओं के उत्पादन में कैसे आबंटित करते हैं ? वस्तु की कीमत कैसे निधार्िरत हातेी है ?

व्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ, कमियाँ, दोष अथवा कठिनाइयाँ

  1. केवल व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन- व्यष्टि अर्थशास्त्र में केवल व्यक्तिगत इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार, इस विश्लेषण में राष्ट्रीय अथवा विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था का सही-सही ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता। अत: व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन एकपक्षीय होता है।
  2. अवास्तविक मान्यताएँ- व्यष्टि अर्थशास्त्र अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है इसलिए इसे काल्पनिक भी कहा जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र केवल पूर्ण रोजगार वाली अर्थव्यवस्था में ही कार्य कर सकता है, जबकि पूर्ण रोजगार की धारणा काल्पनिक है। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन में पूर्ण प्रतियोगिता के स्थान पर अपूर्ण प्रतियाेिगता पायी जाती है। व्यष्टि अर्थशास्त्र की दीर्घकाल की मान्यता भी व्यावहारिक नहीं लगती है।
  3. अर्थव्यवस्था के लिए अनुपयुक्त- व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन के आधार पर निर्णय लेता है। अनेक व्यक्तिगत निर्णयों को समष्टि क्षेत्र के लिए सही मान लेता है, लेकिन व्यवहार में कुछ धारणाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें समूहों पर लागू करने से निष्कर्ष गलत निकलता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति के लिए बहुत बचत करना ठीक है, लेकिन यदि सभी व्यक्ति अधिक बचत करने लग जायें तो इसका अथर्व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगेगा।
  4. संकुचित अध्ययन- कुछ आर्थिक समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनका अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए, मौद्रिक नीति, राष्ट्रीय आय, रोजगार, राजकोषीय नीति, आय एवं धन का वितरण, विदेशी विनिमय, औद्योगिक नीति इत्यादि। यही कारण है कि आजकल समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व बढ़ता जा रहा है।
  5. अव्यावहारिक- व्यष्टि अर्थशास्त्र के अधिकांश नियम एवं सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की मान्यता पर हैं, लेकिन जब पूर्ण रोजगार की मान्यता ही अवास्तविक है तो इस पर बने समस्त नियम एवं सिद्धान्त भी अव्यावहारिक की कहे जायेगें।

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