यह निर्विवाद है कि देश की एकता और अखण्डता अत्यन्त महत्वपूर्ण चीज होती है और इनकी रक्षा के लिये को भी बलिदान दिया जा सकता है। आखिर हमारे देश के वीर सपूत इन्हीं की रक्षा के लिये तो अपना जीवन तक न्योछावर कर सर्वोच्च बलिदान दे देते हैं। ऐसे में यदि को सूचना ऐसी हो जिसका गुप्त रखा जाना देश की एकता व अखण्डता की रक्षा के लिये आवश्यक हो तो इसमें किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिये और यदि को ऐसी संवेदनशील जानकारी को सार्वजनिक कर दे तो उसे निश्चित ही कठोर दण्ड दिये जाने का प्रावधान होना चाहिये। शासकीय गुप्त बात अधिनियम इसी आधार पर बनाया गया था। इसका मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि देश की अखण्डता व एकता को अक्षुण्ण रखने के लिये जिन बातों का गुप्त रहना आवश्यक है उन्हें गुप्त ही रखा जाना चाहिए।

इस अधिनियम की विभिन्न धाराओं में महत्वपूर्ण परिभाषाओं तथा अन्य प्रावधानों का उल्लेख है। इसकी परिभाषाओं के अनुसार ‘संसूचित’ करने से अभिप्राय है किसी बात को रेखाचित्र, रेखांक, प्रतिमान, चीज, टिप्पणी (नोट), दस्तावेज आदि के माध्यम से सूचना प्रसारित करना। इसी प्रकार ‘प्रतिषिद्ध स्थान’ से अर्थ है किसी रक्षा संस्थान, आयुधशाला, नौसैनिक, सेना अथवा वायु सेना का संस्थापन, सुरंग क्षेत्र, सिविल पोत का वायुयान आदि। गुप्त दस्तावेजों को रखे जाने का स्थान, रेल, सड़क, जलमार्ग, पुल आदि भी प्रतिषिद्ध स्थान के दायरे में आते हैं।
अधिनियम की धारा 3 जासूसी या गुप्तचरी से सम्बन्धित निषेधात्मक कायोर्ं का वर्णन करती है। इसके तहत देश की सुरक्षा तथा राष्ट्रहित के विरूद्ध कार्य के उद्देश्य से निम्न कार्य किया जाना दण्डनीय माना गया है-

  1. किसी प्रतिषिद्ध स्थान में प्रवेश करना, उसके निकट जाना, उसका निरीक्षण करना, उसका ऐसा रेखाचित्र, प्लान, माडल या नोट बनाना जो शत्रु के लिये उपयोगी हो।
  2. ऐसी को सूचना प्रकाशित करना या किसी व्यक्ति को संकेत, कूटभाषा, माडल, प्लान, नोट, लेख अथवा दस्तावेज के माध्यम से को ऐसी सूचना देना जो किसी रूप में शत्रु के लिये उपयोगी हों अथवा जिनके प्रकटीकरण से देश की सार्वभौमिकता व एकता, सुरक्षा अथवा अन्य राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों पर विपरीत प्रभाव पड़े।

ऐसा को अपराध करने के दोषी व्यक्ति को इस अधिनियम के तहत 14 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।

इस अधिनियम की धारा 5 में उन जानकारियों का उल्लेख है जिन्हें सरकार गुप्त मानती हो। यहां उल्लेखनीय है कि यद्यपि यह धारा सीधे तौर पर प्रेस के विरूद्ध नहीं है लेकिन प्रेस इससे बहुत ज्यादा प्रभावित अवश्य होती है। इसका दायरा बहुत व्यापक होने के कारण सरकार को विभिन्न मामलों में इसका उपयोग करने का अधिकार है।
इसके अतिरिक्त यदि को व्यक्ति अपने अधिकार क्षेत्र की जानकारी किसी विदेशी के लाभ के लिये उपयोग करे, देश की सुरक्षा के खिलाफ प्रयोग करे, ऐसे रेखाचित्र, लेख, दस्तावेज, माडल आदि अपने अधिपत्य में रखे जिन्हें रखने का वह अधिकारी न हो अथवा अपने अधिकार क्षेत्र के ऐसे दस्तावेजों की सावधानीपूर्वक रक्षा न करे जिससे उनके शत्रु के हाथ पड़ जाने का खतरा हो तो वह इस धारा के तहत तीन वर्ष की कैद या जुर्माने अथवा दोनों का भागी होगा।

इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के पास से कोड, संकेत, स्केच, माडल, लेख आदि के रूप में को ऐसी जानकारी प्राप्त हो जो किसी प्रतिबंधित क्षेत्र से सम्बन्धित हो, जिसका सम्बन्ध ऐसी वस्तु या स्थान से हो जिसके प्रकटीकरण से किसी रूप में शत्रु को मदद मिले या देश की एकता व अखण्डता आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े, जो इस अधिनियम का उल्लंघन करके हासिल की ग हो या किसी वर्तमान अथवा पूर्व सरकारी अधिकारी या अपने मातहत किसी वर्तमान अथवा पूर्व कर्मचारी से हासिल की ग हो तो वह व्यक्ति जिसके पास से ऐसी निषिद्ध जानकारी प्राप्त होती है तीन वर्ष के कारावास, जुर्माने अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
इस अधिनियम की धारा 6 भी बहुत महत्वपूर्ण है तथा इसके तहत निम्न कायोर्ं को निषिद्ध माना गया है:

  1. किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी (सेना, नौसेना, वायु सेना, पुलिस आदि) की यूनिफार्म अथवा उससे मिलती-जुलती यूनिफार्म इस उद्देश्य से पहनना कि लोग उससे धोखा खा जाएं।
  2. किसी दस्तावेज, घोषणापत्र, आवेदन पत्र इत्यादि में को झूठी जानकारी देना अथवा किसी महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाना।
  3. छद्म रूप से स्वयं को सरकारी पद पर दर्शाना।
  4. सरकारी प्रयोग की मुहर आदि का गलत उपयोग, अनाधिकृत निर्माण या विक्रय अथवा व्यापार करना अथवा अनाधिकृत व्यक्ति को सौंपना।
  5. पासपोर्ट, सरकारी दस्तावेज या प्रमाणपत्र, लासेंस आदि की नकल करना अथवा उनमें को हेराफेरी अथवा परिवर्तन करना।
  6. विदेशी एजेंटों से सम्पर्क करना जिससे देश के हितों पर विपरीत प्रभाव पड़े। 
  7. इस प्रकार के अपराध करने वालों को आश्रय या संश्रय देना।

इन अपराधों के लिये भी इस अधिनियम के तहत तीन वर्ष के कारावास, जुर्माने अथवा दोनों से दण्डित किये जाने का प्राविधान है।

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