अध्याय – 5 : उपभोक्ता अधिकार
उपभोक्ता :-
- बाजार से अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएं खरीदने वाले लोग ।
उत्पादक :-
- दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं का निर्माण या उत्पादन करने वाले लोग ।
उपभोक्ताओं के अधिकार :-
उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए कानून द्वारा दिए गए अधिकार जैसे :-
- सुरक्षा का अधिकार
- सूचना का अधिकार
- चुनने का अधिकार
- क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
उपभोक्ताओं के शोषण के कारण :-
- सीमित सूचना
- सीमित आपूर्ति
- सीमित प्रतिस्पर्धा
- साक्षरता कम होना
उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य :-
- कोई भी माल खरीदते समय उपभोक्ताओं को सामान की गुणवत्ता अवश्य देखनी चाहिए । जहां भी संभव हो गारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए ।
- खरीदे गए सामान व सेवा की रसीद अवश्यक लेनी चाहिए ।
- अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्यक करनी चाहिए ।
- आई.एस.आई. तथा एगमार्क निशानों वाला सामान ही खरीदे ।
- अपने अधिकारों की जानकारी अवश्यक होनी चाहिए और
- आवश्यकता पड़ने पर उन अधिकारों का प्रयोग भी करना चाहिए ।
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ :-
- उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल , खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है ।
- कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पडता है । यह मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते है ।
- अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं ? ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है ।
- बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती है ।
- श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद खास तौर से असंगठित क्षेत्रा में ये कमजोर है ।
- इस प्रकार बाज़ारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता ।
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 ( कोपरा ) :-
- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून ।
- कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्रा स्थापित किया गया है ।
- जिला स्तर पर 20 लाख राज्य स्तर पर 20 लाख से एक करोड तक तथा राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड से उपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती है ।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन :-
- भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा काफी पुरानी है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे। लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है।
- लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गये थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की सुधि ली। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया।
कंज्यूमर फोरम :-
- भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिये स्थानीय स्तर पर कई संस्थाओं का गठन हुआ है। इन संस्थाओं को कंज्यूमर फोरम या कंज्यूमर प्रोटेक्शन काउंसिल कहते हैं। इन संस्थाओं का काम है किसी भी उपभोक्ता को कंज्यूमर कोर्ट में मुकदमा दायर करने में मार्गदर्शन करना। कई बार ऐसी संस्थाएँ कंज्यूमर कोर्ट में उपभोक्ता की तरफ से वकालत भी करती हैं। ऐसे संस्थानों को सरकार की तरफ से अनुदान भी दिया जाता है ताकि उपरोक्ता जागरूकता की दिशा में ठोस काम हो सके।
- आजकल कई रिहायशी इलाकों में रेजिडेंट वेलफेअर एसोसियेशन होते हैं। यदि ऐसे किसी एसोसियेशन के किसी भी सदस्य को किसी विक्रेता या सर्विस प्रोवाइडर द्वारा ठगा गया हो तो ये उस सदस्य के लिये मुकदमा भी लड़ते हैं।
कंज्यूमर कोर्ट :-
- यह एक अर्ध-न्यायिक व्यवस्था है जिसमें तीन लेयर होते हैं। इन स्तरों के नाम हैं जिला स्तर के कोर्ट, राज्य स्तर के कोर्ट और राष्ट्रीय स्तर के कोर्ट। 20 लाख रुपये तक के क्लेम वाले केस जिला स्तर के कोर्ट में सुनवाई के लिये जाते हैं। 20 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के केस राज्य स्तर के कोर्ट में जाते हैं। 1 करोड़ से अधिक के क्लेम वाले केस राष्ट्रीय स्तर के कंज्यूमर कोर्ट में जाते हैं। यदि कोई केस जिला स्तर के कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो उपभोक्ता को राज्य स्तर पर; और उसके बाद; राष्ट्रीय स्तर पर अपील करने का अधिकार होता है।
राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस :-
- 24 दिसंबर को राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था। भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिये अलग से कोर्ट हैं। हाल के समय में उपभोक्ता आंदोलन ने भारत में अच्छी पैठ बनाई है। ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत में 700 से अधिक कंज्यूमर ग्रुप हैं। उनमे से 20 – 25 अच्छी तरह से संगठित हैं और अपने काम के लिये जाने जाते हैं।
- लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महंगी और लंबी होती जा रही है। वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
- उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 को लोकसभा ने जुलाई, 2019 को और राज्यसभा ने अगस्त, 2019 को पारित किया है.
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 : उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए एक कानून है. देश भर में उपभोक्ता अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित उपभोक्ता शिकायतों को हल करने के लिए यह अधिनियम बहुत जरूरी है. इसके पास उपभोक्ता शिकायतों को तेजी से हल करने के तरीके और साधन हैं.
- उद्देश्य : उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का मूल उद्देश्य, उपभोक्ताओं की समस्याओं को समय पर हल करने के लिए प्रभावी प्रशासन और जरूरी प्राधिकरण की स्थापना करना और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है.
उपभोक्ता की परिभाषा
- इस अधिनियम के अनुसार; उस व्यक्ति को उपभोक्ता कहा जाता है जो वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और उपभोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए करता है. यहाँ पर यह जानना जरूरी है कि जो व्यक्ति वस्तुओं और सेवाओं को बेचने के लिए या वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए खरीदता है उसे उपभोक्ता नहीं माना गया है.
- यह परिभाषा सभी प्रकार के लेन-देन को कवर करती है चाहे वे ऑनलाइन हों या ऑफलाइन.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की प्रमुख विशेषताएं
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की स्थापना:
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में CCPA की स्थापना का प्रावधान है जो उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने के साथ साथ, उनको बढ़ावा देगा और लागू करेगा. यह प्राधिकरण; अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को भी देखेगा.CCPA के पास उल्लंघनकर्ताओं पर जुर्माना लगाने और बिके हुए माल को वापस लेने या सेवाओं को वापस लेने के आदेश पारित करना, अनुचित व्यापार प्रथाओं को बंद करने और उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की गई कीमत को वापिस दिलाने का अधिकार भी होगा. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के पास उपभोक्ता नियमों के उल्लंघन की जांच के लिए एक जांच विंग होगा. CCPA का नेतृत्व महानिदेशक करेंगे.
- उपभोक्ताओं के अधिकार (Rights of consumers):
यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अधिकार प्रदान करता है;
- वस्तुओं या सेवाओं की मात्रा, गुणवत्ता, शुद्धता, क्षमता, कीमत और मानक के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार
- खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षित रहने का अधिकार
- अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं से संरक्षित रहने का अधिकार
- प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं या सेवाओं की उपलब्धता
- भ्रामक विज्ञापनों पर प्रतिबंध और जुर्माना:
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के पास यह अधिकार होगा कि वह भ्रामक या झूठे विज्ञापन (जैसे लक्ष्मी धन वर्षा यंत्र) बनाने वालों और उनका प्रचार करने वालों पर जुर्माना लगाये और 2 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाये. यदि कोई व्यक्ति या कंपनी इस अपराध को बार-बार दोहराता/दोहराती है तो उसे 50 लाख रुपये का जुर्माना और 5 साल तक की कैद हो सकती है.
- उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (Consumer Disputes Redressal Commission)
- इस अधिनियम में राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों (CDRCs) की स्थापना का प्रावधान है.
- CDRC निम्न प्रकार की शिकायतों का निपटारा करेगा;
- अधिक मूल्य वसूलना या अस्पष्ट कीमत वसूलना
- अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार
- जीवन के लिए खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री
- दोषपूर्ण वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction under the Consumer Protection Act)
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (CDRCs) ने राष्ट्रीय, राज्य और जिला विवाद निवारण आयोग के अधिकार क्षेत्र को तय कर दिया है.
- राष्ट्रीय विवाद निवारण आयोग, 10 करोड़ रुपये से अधिक की शिकायतों को सुनेगा जबकि राज्य विवाद निवारण आयोग, उन शिकायतों की सुनवाई करेगा जो कि 1 करोड़ रुपये से अधिक है लेकिन 10 करोड़ रुपये से कम है. अंत में जिला विवाद निवारण आयोग, उन शिकायतों को सुनेगा जिन मामलों में शिकायत 1 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की है.
अधिनियम से उपभोक्ताओं को लाभ
- वर्तमान में शिकायतों के निवारण के लिये उपभोक्ताओं के पास एक ही विकल्प है, जिसमें अधिक समय लगता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के माध्यम से विधेयक में त्वरित न्याय की व्यवस्था की गई है।
- भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ताओं में भ्रम की स्थिति बनी रहती है तथा उत्पादों में मिलावट के कारण उनके स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भ्रामक विज्ञापन और मिलावट के लिये कठोर सजा का प्रावधान है ताकि इस तरह के मामलों में कमी आए।
- दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं की जिम्मेदारी का प्रावधान होने से उपभोक्ताओं को छानबीन करने में अधिक समय बर्बाद करने की ज़रुरत नहीं होगी।
- उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी और प्रक्रिया का सरलीकरण।
- वर्तमान उपभोक्ता बाजार के मुद्दों- ई कॉमर्स और सीधी बिक्री के लिये नियमों का प्रावधान है।
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ
- उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है।
- कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमे अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने में काफी समय लेते है।
- अधिकांश खरीदारी के समय रसीद नहीं मिलने से प्रमाण जुटाना कठिन हो जाता है।
- बाजार में अधिकांश खरीदारी छोटे फुटकर दुकानों से होती है।
- बाजारों के कार्य करने के लिये नियमों और विनियमों का प्राय: पालन नहीं होता है।
Source- https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1640024