भूमंडलीकरण

भूमंडलीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है। वस्तुओं, सेवाओं, व्यक्तियों और सूचनाओं का राष्ट्रीय सीमाओं के आरपार स्वतंत्र रूप से संचरण ही वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण कहलाता है। भूमंडलीकरण की शुरुआत भारत में सन 1991 में अपनाई गई नई आर्थिक नीति से भूमंडलीकरण की शुरुआत हुई।

भूमंडलीकरण का आशय

भूमंडलीकरण का आशय विभिन्न देशों के बाजारों एवं उनमें बेची जाने वाली वस्तुओं में एकीकरण से है। जिसमें विदेशी व्यापार की बढ़ती हुई प्रवृत्ति, उन्नत प्रौद्योगिकी की निकटता आदि के कारण विश्व व्यापार को बढ़ावा मिलता है। भूमंडलीकरण से सम्पूर्ण विश्व में परस्पर सहयोग एवं समन्वय से एक बाजार के रूप में कार्य करने की शक्ति को प्रोत्साहन मिलता है। भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं को एक देश से दूसरे देश में आने एवं जाने के अवरोधों को समाप्त कर दिया जाता है। इसी प्रकार से सम्पूर्ण विश्व में बाजार शक्तियां स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगती हैं। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप विश्व के सभी देशों में वस्तुओं की कीमत लगभग समान होती है। सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था में सभी व्यापारिक क्रियाओं का अन्तर्राष्ट्रीकरण ही भूमंडलीकरण के स्वरूप का निर्धारण करता है।

भूमंडलीकरण के उद्देश्य

भूमंडलीकरण के माध्यम से विश्व की अर्थव्यवस्था को एकीकृत करके स्वतंत्र एवं मुक्त व्यापार नीति को अपनाना है। सम्पूर्ण देशों को एक आर्थिक अर्थतंत्र के माध्यम से जोड़ना भूमंडलीकरण का प्रमुख उद्देश्य है।

भूमंडलीकरण के द्वारा विश्व-व्यापार का काफी तीव्र गति से विस्तार करना है। इसके विस्तार के उद्देश्य हैं।

  1. भूमंडलीकरण के कारण स्थानीकरण के मौद्रिक घाटा को कम करना। 
  2. बाह्य उदारीकरण के तहत विदेशी वस्तुओं, सेवाओं, प्रौद्योगिकी और पूँजी के आयात से प्रतिबंध हटाना। 
  3. घरेलू उदारीकरण के तहत उत्पादन, निवेश और बाजार व्यवस्था का महत्व बढ़ाना।

भूमंडलीकरण के माध्यम से विभिन्न देशों के बीच की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन, उपभोक्ता की अभिरूचि, जीवन शैली, और मांग में बदलाव लाना भूमंडलीकरण का प्रमुख उद्देश्य रहा है। भूमंडलीकरण की प्रक्रिया से बाजार में आंतरिक एवं बाह्य प्रतिस्पर्धा को तेजी से बढ़ाने के लिए एक से अधिक देशों की अर्थव्यवस्था को एक स्वतंत्र व्यापार की संबंधता से जोड़ना रहा है। भूमंडलीकरण का सबसे प्रमुख उद्देश्य यह रहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था पद्धति में एक ऐसी प्रक्रिया को अपनाया जाय जिससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को सुनियोजित तरीके से स्वतंत्र व्यापार संतुलन बनाया जा सके। विश्व के सभी देश एक मुक्त व्यापार संगठन की प्रक्रिया में भाग ले सकें। भूमंडलीकरण के कारण विकसित एवं विकासशील देशों के साथ एक सामंजस्य की स्थिति को लेकर सम्पूर्ण विश्व की आर्थिक प्रक्रिया में एक विवाद की समस्या बनी हुई है।

भूमंडलीकरण की अर्थव्यवस्था को भारतीय अर्थव्यवस्था के द्वारा समझा जा सकता है। जैसे कि – भारतीय अर्थव्यवस्था में उत्तरोत्तर उदारीकरण के माध्यम से भूमंडलीकरण करने के लिये किये गये प्रयासों एवं विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों को लागू करने के परिणामस्वरूप देश की अर्थव्यवस्था पर जो प्रभाव पड़े हैं, उनकी समीक्षा तथा आकलन करके भूमंडलीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को समझा जा सकता है। 

 

भूमंडलीकरण आपसी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है। जिसके माध्यम से विश्व के सम्पूर्ण देश उदारीकरण की प्रक्रिया में समान रूप से भाग ले सके एवं सामंजस्य बनाये रखे। भूमंडलीकरण के माध्यम से बुनियादी आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। उदारीकरण एवं भूमंडलीकरण के प्रभावों की समीक्षा करने के लिए विश्व व्यापार संगठन के मुख्य प्रावधानों का देश के कृषि, उद्योग, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विनियोग एवं सेवा आदि क्षेत्रों का आकलन करना आवश्यक है।

भूमंडलीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारक

  1. तकनीकी ज्ञान का विस्तार
  2. उदारीकरण की प्रक्रिया
  3. बहुरुराष्ट्रीय कंपनियों का विस्तार
  4. विदेशी व्यापार में विस्तार
  5. व्यापार एवं प्रशुल्क सम्बन्धी सामान्य समझौता गैट
  6. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना
  1. तकनीकी ज्ञान का विस्तार –

भूमंडलीकरण के कारण विगत 50 वर्षों के दौरान तकनीकी ज्ञान का काफी तीव्र गति से विकास हुआ है। इस तकनीकी ज्ञान के द्वारा परिवहन, प्रौद्योगिकी से अब दूर देशों तक वस्तुओं को कम लागत में पहुंचाना संभव हो गया है। सूचना संचार प्रौद्योगिकी ने विश्व की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को एक सुनिश्चित योजना से स्पष्ट एवं सरल बना दिया है। संचार सूचनाओं में जैसे – कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल, फोन, फैक्स आदि के द्वारा एक-दूसरे की सम्बद्धता को काफी सरल बना दिया है। भूमंडलीकरण के द्वारा सूचना, संचार एवं प्रौद्योगिकी विकास ने विश्व व्यवस्था को विशेष रूप से प्रभावित किया है।

  1. उदारीकरण की प्रक्रिया –

आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को आज विश्व के प्राय: सभी देशों के द्वारा अपनाया जा रहा है। आर्थिक उदारीकरण की नीति को अपनाये बिना कोई भी देश वैश्वीकरण से नहीं जुड़ सकता। उदारीकरण का अर्थ है विदेशी पूँजी को पूर्ण उदारता के साथ अपने देश में निवेश की अनुमति प्रदान करना। भारत ने 1991-92 ई. में आर्थिक उदारीकरण की नीति को अपनाया। 1990 ई. के दशक में ही भारत सहित कई विकासशील राष्ट्रों ने उदारीकरण की नीति को अपनाकर भूमंडलीकरण को बढ़ावा दिया है। उदारीकरण से विकसित एवं विकासशील देशों के बीच एक स्वतंत्र एवं बाधारहित मुक्त विश्व व्यापार बाजार व्यवस्था में सुधार सम्भव हुआ है।

  1. बहुरुराष्ट्रीय कंपनियों का विस्तार –

विश्व के सभी देशों को एक दूसरे से जोड़ने में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विशेष योगदान है क्योंकि ये कंपनियां सुविधा के अनुसार किसी भी देश में स्थापित कर दी जाती हैं। विश्व के देशों में जहां पर सस्ता श्रम एवं स्थापित करने के अन्य सस्ते साधन उपलब्ध होते हैं। वहां ये स्थापित कर दी जाती हैं। जिससे लागत में कमी आती है। इसके साथ ही प्रतियोगिता का कम सामना करना पड़ता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां वस्तुओं, सेवाओं एवं सूचनाओं को विश्व स्तर पर उपलब्ध कराती हैं। उदाहरण के लिए एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी अमेरिका के अनुसंधान केन्द्र में अपने उत्पादों का डिजाइन एवं आकार तैयार करती है। लेकिन श्रम सस्ता होने के कारण चीन में पुर्जों को तैयार किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अलग-अलग वस्तु का उत्पादन एवं निर्माण करती हैं। जिससे कि वस्तु की उत्पादन लागत में कमी आती है। इन कम्पनियों के द्वारा विभिन्न वस्तु के उत्पादन से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विस्तार ने भी भूमंडलीकरण को बढ़ावा दिया है।

  1. विदेशी व्यापार में विस्तार –

विदेशी व्यापार के विस्तार से भूमंडलीकरण की प्रक्रिया नियंत्रित हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लगभग सभी देशों के विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई है। विश्व व्यापार संगठन के द्वारा घरेलू बाजार को भी विश्व बाजार में वस्तुओं एवं सेवाओं को भेजने का अवसर मिला है। विश्व बैंक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने इस हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विश्व व्यापार के माध्यम से उत्पादन की मात्रा में वृद्धि हुई है। इसके साथ ही प्रत्येक देश के उत्पादकों को प्रतियोगिता में समान अवसर मिला है।

  1. व्यापार एवं प्रशुल्क सम्बन्धी सामान्य समझौता गैट –

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात विश्व की प्रमुख शक्तियों ने विभिन्न देशों के बीच व्यापार अवरोधों को कम करने और आपसी विवादों को निपटाने के लिए अनेक नियम बनाने पर वार्ताएं आरंभ की। इन वार्ताओं का सार्थक परिणाम 1948 ई. में व्यापार और प्रशुल्क सम्बन्धी सामान्य समझौता (General Agriment on Trade and Tarrif, GATT) की स्थापना के रूप में सामने आया। गैट के प्रशासन का निरीक्षण करने के लिए स्विटजरलैण्ड के जेनेवा नगर में इसका मुख्यालय स्थापित किया गया। गैट के अन्तर्गत व्यापार एवं प्रशुल्क समझौतों हेतु समय-समय पर बहुपक्षीय वार्ताओं के दौर आयोजित किये गये। गैट का छठा दौर 1964-67 ई. तक चला जो केनेडी राउण्ड कहलाया। सातवा दौर (1973-79 ई.) तक चला जो टोकियो राउण्ड कहलाया। आठवा दौर (1986-93 ई.) तक चला जो उरूग्वे राउण्ड कहलाया। यह आठवा दौर गैट के इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ। इसमें गैट के महानिदेशक आर्थर डंकेल महोदय ने व्यापार में उदारीकरण हेतु एक प्रस्ताव तैयार किया जो डंकेल प्रस्ताव कहलाता है इसमें 117 देशों ने हस्ताक्षर किये थे।

  1. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना –

विश्व व्यापार संगठन विभिन्न देशों के मध्य संतुलन एवं समझौते के परिणाम के रूप में एक व्यवस्था की स्थापना थी। विभिन्न देशों के मध्य असंतुलन की समस्या को दूर करने हेतु उदारीकरण की प्रक्रिया एवं मुक्त व्यापार को लागू करने का विश्व व्यापार संगठन माध्यम बना। 15 अप्रेल 1994 ई. को जारी मराकश (मोरक्को) घोषणा पत्र में विभिन्न मुद्दों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा विश्व व्यापार संगठन का था। इसके अनुसार 1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की घोषणा की गई। इसने गैट (GATT) का स्थान लिया। घोषणा के अनुरूप 1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हो गई। भारत के अतिरिक्त 85 देशों ने विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की सहमति पर हस्ताक्षर किये थे। विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के माध्यम से विभिन्न देशों के मध्य व्यापार में अधिक विस्तार संभव हुआ। इसने भूमंडलीकरण को बढ़ावा दिया है।

भूमंडलीकरण का विकास

भूमंडलीकरण की शुरूआत 16वीं शताब्दी के उपनिवेश काल से ही मानी जाती है। इस अव्यवस्थित प्रक्रिया के विभिन्न प्रकार के गति एवं अवरोधों के बीच यह व्यवस्था चलती रही। इस प्रक्रिया के चलते विश्व व्यापार में घटक देशों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। आर्थिक एकीकरण को प्रभावशाली बनाने के लिए सन 1970 ई. के दशक से सकारात्मक प्रयास किये गये।

भूमंडलीकरण के द्वारा इस काल में अंतर्राष्ट्रिय पूंजी बाजार में आशातीत वृद्धि हुई। सन् 1980 ई. के दशक में अनेक विकासशील देशों में आर्थिक संकट आया और इन देशों ने अंतर्राष्ट्रिय मुद्रा कोष से ऋण पाने के लिए उसके द्वारा सुझाये गये स्थानीकरण एवं ढांचागत समायोजन कार्यक्रमों को लागू किया।

भूमंडलीकरण के विकास की प्रक्रिया में शताब्दी के अंतिम दशक में अधिक तीव्रता आई। 1990 ई. के दशक से भूमंडलीकरण को व्यवस्थित रूप प्रदान किया गया। विश्व व्यापार संगठन की स्थापना से इसके विकास में काफी प्रगति आई। दक्षिण एशिया के देश भी उदारीकरण की प्रक्रिया में शामिल हुए। वर्तमान में सूचना एवं संचार की प्रगति ने भूमंडलीकरण को बहुत ही सरल बना दिया है। विश्व की समस्त संस्कृतियों को संगठित कर विश्व बाजार संस्कृति की स्थापना करना भूमंडलीकरण का आधार रहा है।

भूमंडलीकरण के प्रभाव

  1. भूमंडलीकरण के आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभाव 
  2. भूमंडलीकरण का औद्योगीकरण पर प्रभाव
  3. भूमंडलीकरण का रोजगार के अवसरों पर प्रभाव
  4. भूमंडलीकरण का गरीबी उन्मूलूलन कार्यक्रमोंं पर प्रभाव
  5. भूमंडलीकरण का कृषि पर प्रभाव
  6. भूमंडलीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव
  1. भूमंडलीकरण केआर्थिक एवं राजनीतिक प्रभाव – 

भूमंडलीकरण के वर्तमान दौर में कोई भी राजनीतिक घटनाक्रम का प्रभाव सारे संसार को प्रभावित करता है। विश्वयुद्ध एवं उसके परिणामों ने संपूर्ण विश्व को प्रभावित किया है। वर्तमान विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का कारण विकसित देश की राजनीतिक हलचल का परिणाम है। प्रांतीय एवं राष्ट्रिय सीमाओं पर कोई अंकुश नहीं रह गया है। वर्तमान समय में विश्व की अर्थव्यवस्था वास्तव में भूमण्डलीकृत आर्थिक गतिविधियों से जुड़ी हुई है। अत: यह स्पष्ट है कि आर्थिक सम्बन्ध जो राजनीतिक वातावरण के कारण विस्तृत हुए हैं उन पर इन सम्बन्धों का विशेष प्रभाव पड़ा है। पूरे विश्व में विकसित देश महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आये हैं और इनके राजनीतिक और आर्थिक सम्बन्ध पूरे विश्व को प्रभावित करते हैं। ऐसा भूमंडलीकरण के कारण ही सम्भव हुआ है।

  1. भूमंडलीकरण काऔद्योगीकरण पर प्रभाव – 

वर्तमान औद्योगीकरण की प्रक्रिया अठारहवीं शताब्दी में सम्पन्न प्रथम औद्योगिक क्रांति की देन है। अर्नाल्ड टायनवी के अनुसार – औद्योगिक क्रांति कोई आकस्मिक घटना नहीं थी अपितु विकास की निरन्तर प्रक्रिया थी। औद्योगिक क्रांति इंग्लैण्ड में प्रारम्भ हुई। भूमंडलीकरण ने औद्योगीकरण को भी प्रभावित किया। भारत में वर्ष 1991 ई. को घोषित औद्योगिक नीति और बाद में किये के विभिन्न सुधारों के परिणामस्वरूप औद्योगीकरण का काफी विकास हुआ है। यहां सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत आरक्षित उद्योगों की संख्या अब नाममात्र की ही रह गई है। उद्योगों में निजी क्षेत्रों को पर्याप्त अवसर प्राप्त हुए। औद्योगिक नीति के अनुसार विभिन्न देशों ने उदारीकरण एवं निजीकरण की नीति को अपनाया है। अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया। इन नीतियों से भी भूमंडलीकरण को बढ़ावा मिला है।

  1. भूमंडलीकरण कारोजगार के अवसरों पर प्रभाव – 

भूमण्डलीयकरण के कारण मनुष्य की जीवन पद्धति, गुणवत्ता, रहन-सहन एवं जीवन स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। विश्व व्यापार संगठन के द्वारा प्रतियोगिता बाजार को बढ़ावा मिला है। इसके साथ ही रोजगार के अवसरों में कमी आई है। औद्योगीकरण के द्वारा आधुनिक मशीनों का स्वचलित उपयोग एवं सूचना प्रौद्योगिकी विस्तार के तीवग्रामी होने कारण मानवीय शक्ति श्रम की गुणवत्ता में कमी आई है। भूमंडलीकरण ने रोजगार को सर्वाधिक प्रभावित किया है। क्योंकि, श्रमिकों को जहां पर अच्छा रोजगार मिलता है, वहीं पर काम करने चले जाते हैं।

 औद्योगिकीकरण का रोजगार की प्रक्रिया से प्रत्यक्ष संबंध होता है। उदाहरण के लिए उद्योग (कारखाने) का मालिक अपने उत्पादन की लागत को कम करने के लिए श्रमिकों को अस्थाई रोजगार प्रदान करता है। ताकि, उसे वर्ष भर वेतन नहीं देना पड़े। भूमंडलीकरण के कारण रोजगार एवं कार्यों मध्य एक आपसी अंत:संबंधता की समस्या बनी हुई है। इसी कारण से श्रमिकों को उनके स्तर के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता है। जिससे रोजगार के अवसरों पर प्रभाव पड़ता है।

  1. भूमंडलीकरण कागरीबी उन्मूलूलन कार्यक्रमोंं पर प्रभाव – 

गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती है। गरीबी का उन्मूलन करना जैसी समस्या को लेकर पंचवष्र्ाीय योजनाओं के द्वारा गरीबी उन्मूलन के प्रयासों से विभिन्न कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया गया है। विश्व के अनेक देशों में आज भी गरीबी की समस्या व्याप्त है। गरीबी उन्मूलन सुनिश्चित करने एवं सन्तुलन बनाये रखने के लिए उदारीकरण के तत्वों को ध्यान में रखना होगा। गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के द्वारा रोजगार के अवसरों को बढ़ाना, औद्योगिकीकरण को बढ़ाना, प्रति व्यक्ति आय एवं व्यक्ति के जीवन में गुणात्मक सुधार करना आदि कार्यक्रमों को लागू किया गया है। विकसित एवं विकासशील देशों के कार्यक्रम अलग अलग हैं। विकासशील देशों में गरीबी की समस्या एक निरपेक्ष न होकर सापेक्ष गरीबी में बदल गयी है। भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमंडलीकरण से उत्पन्न एक सबसे बड़ी समस्या आर्थिक असमानता की है जिसको गरीबी उन्मूलन आदि के द्वारा कम किया जा सकता है।

  1. भूमंडलीकरण काकृषि पर प्रभाव –

भूमंडलीकरण का कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। भारत में 90 प्रतिशत कृषक छोटे एवं सीमान्त कृषि के अंतर्गत आते हैं। कृषकों के पास सीमित पूँजी एवं आय कम आदि होने के कारण यह कृषक कृषि आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं को कम मात्रा में उपयोग कर पाते हैं। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप जिन कृषकों के पास पूंजी थी, उन कृषकों को सबसे अधिक लाभ मिला। लेकिन सीमान्त कृषकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। भूमंडलीकरण के कारण कृषि उत्पादकता पर भी काफी विपरीत प्रभाव पड़ा है। जैविक खादों का मंहगा होना, कीटनाशक दवाईयों का मंहगा होना, कृषि शोध में बाधा, जैविक विविधता में बाधा आदि के कारण कृषि की उत्पादकता एवं कृषि पद्धति काफी प्रभावित हुई है।

  1. भूमंडलीकरण कापर्यावरण पर प्रभाव – 

भूमण्डलीयकरण के फलस्वरूप पर्यावरण का अवनयन एवं उसकी गुणवत्ता में परिवर्तन हुआ है। तीव्रगामी औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरणीय प्रदूषण, मिट्टी का अम्लीय या क्षारीय हो जाना, अल्पवृष्टि, अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़ आदि पर्यावरणीय समस्याओं का जन्म हुआ है। मानवीय क्रियाकलापों एवं पर्यावरणीय प्रभावों से प्रकृति काफी प्रभावित हुई है। औद्योगिकीकरण में नई वैज्ञानिक तकनीकी के उपयोग की प्रक्रिया से प्रत्येक उद्योग अधिक से अधिक उत्पादन करना चाहता है। जिससे इस उत्पादन में कम लागत, कम श्रम, कम मूल्य वहन करना पड़े जिससे उद्योग को लाभ हो। उद्योगों के स्थानीकरण से उनके अवशिष्ट पदार्थ, धुंए से प्रदूषण, शोर प्रदूषण, आदि से पर्यावरणीय समस्याओं को बढ़ावा मिलता है। जो भूमण्डलीयकरण की देन है।

भूमंडलीकरण से उत्पन्न समस्याएँ

  1. लघु उद्योगों की समस्या
  2. रोजगार की अनिश्चतता
  3. विकसित देशों को बढ़ा़वा
  4. क्षेत्रीय विषमताएँ
  5. भूमंडलीकरण एवं प्रदूषण की समस्या
  6. भूमंडलीकरण से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या
  1. लघु उद्योगों की समस्या –

भूमंडलीकरण के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्या उत्पन्न हुई है। आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के कारण मानवीय श्रमशक्ति को काफी राहत मिली है। जिससे लघु उद्योगों का ह्रास हुआ है। प्राथमिक व्यवसाय द्वितीयक व्यवसाय एवं परम्परागत व्यवसाय को काफी नुकसान हुआ है। भूमंडलीकरण के कारण अब लघु एवं कुटीर उद्योगों के स्थान को स्वचलित मशीनों ने ले लिया है। हमारे बहुत से लघु उद्योग एवं कुटिर उद्योगों के बंद होने से लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। हमारा बहुत सा पैसा विदेशी कंपनियों के भारी मुनाफे के रूप में बाहर चला जाता है।

  1. रोजगार की अनिश्चतता –

रोजगार की अनिश्चितता भूमंडलीकरण की सबसे बड़ी समस्या है। रोजगार का प्रत्येक मानवीय श्रमिकों के जीवन स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। विश्व व्यापार संगठन एवं तीव्र प्रौद्योगिकीकरण के द्वारा प्रतियोगिता बाजार को बढ़ावा मिला इसके साथ ही रोजगार हेतु लचीलापन पसंद किया जाने लगा। औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप रोजगार तो मिलता है परन्तु जब उद्योगों को घाटे का सामना करना पड़ता है तो वह ऐसी स्थिति में अपने कारखाने से श्रमिकों को निकालने लगता है। क्योंकि इससे उद्योग को उत्पादन लागत कम प्राप्त होती है। भूमंडलीकरण एक स्वतंत्र व्यापार अर्थतंत्र व्यवस्था है जिसमें श्रमिक अधिक लाभ प्राप्ति के लिए स्थानान्तरण करता है। जिससे रोजगार के अवसरों में अनिश्चितता को बढ़ावा मिला है।

  1. विकसित देशों को बढ़ा़वा –

भूमंडलीकरण से सर्वाधिक लाभ विकसित देशों को मिला है। विकसित देशों के पास पर्याप्त मात्रा में पूंजी का होना एवं सूचना प्रौद्योगिकी में आगे होने के कारण इन देशों की उदारीकरण की प्रक्रिया को सर्वाधिक प्रोत्साहन मिला है। विश्व व्यापार संगठन के द्वारा एक मुक्त व्यापार की अर्थव्यवस्था को लाभ तो मिला है। लेकिन कुछ देश इस व्यापार नीति से संतुष्ट नहीं थे। व्यापार तंत्र के आठवें सेवा व्यापार समझौते के आधार पर सभी विकसित, विकासशील एवं संविदा देशों का सेवा व्यापार समझौता हुआ जिसे गैट (GATT) कहा जाता है। सेवा व्यापार समझौता के द्वारा मालूम हुआ कि विश्व व्यापार संगठन से विकसित देशों को सर्वाधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। और उनको सर्वाधिक बढ़ावा मिल रहा है।

  1. क्षेत्रीय विषमताएँ –

भूमंडलीकरण से क्षेत्रीय विषमता सर्वाधिक उत्पन्न हुई है। विश्व अर्थव्यवस्था की इस विषमता का कारण भौगोलिक विषमता, आर्थिक विषमता, राजनीतिक विषमता आदि है। ऐसी स्थिति में क्षेत्रीय विषमता घटने की बजाय बढ़ने लगती है। अर्थव्यवस्था की असमानता के कारण कुछ छोटे देश विकास की दर से ज्यादा आगे बढ़ रहे हैं। अधिक आबादी वाले देश विकास की दर से नीचे हो रहे हैं। भूमंडलीकरण एवं क्षेत्रीय विषमता का अप्रत्यक्ष संबंध होता है। बाजारोन्मुख विकास प्रणाली के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय विषमता घटने की बजाय बढ़ने लगती है। क्षेत्रीय विषमता को दूर करने के लिए विशेष आर्थिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विशेष संदर्भ में ध्यान रखना आवश्यक है। भूमंडलीकरण से उत्पन्न क्षेत्रीय विषमताओं को कम करने के लिए भौतिक, आर्थिक, एवं नीतिगत पक्षों के संदर्भ को समझना आवश्यक है। भूमंडलीकरण में इन क्षेत्रीय विषमताओं की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

  1. भूमंडलीकरण एवं प्रदूषण की समस्या –

भूमंडलीकरण सम्पूर्ण विश्व से संबंधित एक समाधान एवं समस्या है। समाधान के तहत यह एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति करता है। समस्या के द्वारा यह मानवहित के लिए पर्यावरणीय वस्तुओं की गुणवत्ता में परिवर्तन करता है। वर्तमान में भूमंडलीकरण से प्रभावित देश एवं मानव ने उद्योग, व्यापार, बाजार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी विस्तार किया है। लेकिन उद्योगों एवं परिवहन के द्वारा वन्य जीव-जन्तु को खतरे में दाल दिया है। उद्योगों के कारण होने वाला प्रदूषण जैसे धुएं का होना, शोर का होना, जल प्रदूषण होना, आदि से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि के कारण मानवीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

  1. भूमंडलीकरण से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या –

भूमंडलीकरण से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या सामने आई है। ग्लोबल वार्मिंग का संबंध एक देश से नहीं है। बल्कि सम्पूर्ण विश्व से है। तीव्र औद्योगिकीकरण एवं परिवहन के द्वारा उत्पन्न हानिकारक विकिरणों के प्रभाव से अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छिद्र का हो गया है। विकसित देशों द्वारा विलासिता की सुविधाओं का अत्यधिक उपयोग किया गया। भारी मात्रा में वातानुकूलित गैसों का उपयोग एवं मोटर वाहनों द्वारा वायू प्रदूषण आदि के द्वारा अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छिद्र के होने से एक नई समस्या का जन्म हुआ है। जिससे वहाँ की बर्फ पिघलकर समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, तापमान में वृद्धि आदि समस्याओं ने विश्व के भविष्य को खतरे में डाल दिया है। पर्यावरणीय प्रदूषण के साथ वायुमण्डल में कार्बन डाइ आक्साइड, ओजोन, सल्फर डाइ आक्साइड, आदि गैसों के बढ़ते प्रभाव से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या सम्पूर्ण विश्व के देशों में समान रूप से बनी हुई है। यह विश्व के लिए एक ज्वलंत समस्या बन जायेगी जिससे विश्व को बड़ा भारी खतरा हो सकता है। भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का जन्म हुआ है।

 

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