मिश्रित आर्थिक प्रणाली का अर्थ

मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवाद एवं समाजवाद के बीच की व्यवस्था है। इसमें निजी तथा सार्वजनिक दोनों साथ-साथ चलते हैं। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में देश आर्थिक विकास के लिए निजी क्षेत्र पर विशेष महत्व देते हुए आवश्यक सामाजिक नियन्त्रण भी रखा जाता है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में कुछ उद्योग पूर्णतया सरकारी क्षेत्र में होते है तो कुछ पूर्णतया निजी क्षेत्र में होते है तथा कुछ उद्योगों में निजी तथा सार्वजनिक दोनो ही भाग ले सकते हैं। दोनों के कार्य करने का क्षेत्र निर्धारित कर दिया जाता है, परन्तु इसमें निजी क्षेत्र की प्राथमिकता रहती है। दोनों अपने-अपने क्षेत्र में इस प्रकार मिलकर कार्य करते हैं कि बिना शोषण के सभी वर्गों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि तथा तीव्र आर्थिक विकास प्राप्त हो सके।

 

मिश्रित आर्थिक प्रणाली अपनाने के कारण

वैश्विक अर्थव्यवस्था के जिन देशों में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है, वहाँ इसके अपनाने के पक्ष में तर्क दिये जाते हैं-

  1. पूँजीवाद के दोष दूर करना (To remove the demerit of capitalism)- मिश्रित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत पूँजीवादी शक्तियों पर सरकारी नियमन एवं नियन्त्रण होता है, जिस कारण निजी उद्योगपति जनहित के विरूद्ध कार्य नहीं कर पाते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में ब्याज की दर, निवेश एवं रोजगार में नियोजन प्रक्रिया द्वारा व्यापार चक्रों पर अंकुश लगाया जाता है। नियोजित अर्थव्यवस्था होने के कारण इसके कार्यों में दोहरेपन की अपव्ययता से भी बचा जा सकता है।
  2. पूँजीवाद के समस्त लाभ प्राप्त होना (To achieve all benefits of capitalism)- मिश्रित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत पूँजीवादी प्रणाली के समस्त दोषों को दूर करके लाभ प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था मे निजी क्षेत्र की सीमा को आवश्यकतानुसार घटा-बढ़ाकर अधिकतम कुशलता या लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
  3. समाजवाद के लाभ प्राप्त होना (To achieve benefits of socialism)- मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवादी प्रणाली के गुणों का समावेश होने तथा सरकारी नियमन, नियोजन तथा नियन्त्रण के द्वारा विकास प्रक्रिया अपनाये जाने के कारण आय एवं सम्पत्ति का समान वितरण समभव होता है। उत्पादन के साधनों का अनुकूलतम एवं विवेकपूर्ण विदोहन से जन सामान्य को लाभ प्राप्त होता है।
  4. आधारभूत एवं जनहित उद्योग का विकास (Development of basic & public utility industries)- मिश्रित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत सार्वजनिक कल्याण एवं जनहित को ध्यान में रखकर सरकार ऐसी औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित करती है, जहाँ भारी मात्रा में निवेश होता है तथा लाभार्जन क्षमता कम होती है। ऐसी उद्योग देश की संरचना, सुरक्षा, विकास एवं जन कल्याण के लिए आवश्यक एवं उपयोगी होते है। इन उद्योगों में मुख्यतया रेलवे, बिजली, गैस, पानी, संचार, यातायात तथा सुरक्षा सम्बन्धी सार्वजनिक उपक्रम आते हैं। दूसरी तरफ ऐसे उद्योगों में बहुत अधिक निवेश की आवश्कयता पड़ती है तथा लाभ नहीं के बराबर होता है, जिस कारण निजी क्षेत्र आकर्षित नहीं होता है। अत: इसके लिए सरकार निजी क्षेत्र के साथ मिलकर इन उद्योगों का संचालन करती है, जो मिश्रित अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण कार्य होता है।

मिश्रित आर्थिक प्रणाली की विशेषताएँ

मिश्रित अर्थव्यवस्था की संकल्पना का आधारिक तत्व सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के मध्य कार्यों का स्पष्ट विभाजन होता है तथा विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र का सापेक्षिक महत्व पृथक हो सकता है। इस प्रकार मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. विभिन्न क्षेत्रों का समावेश (Presence of various sector)- मिश्रित अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों जैसे-सार्वजनिक, निजी, मिश्रित तथा सहकारी क्षेत्रों की विद्यमानता रहती है, जिनकी अपनी-अपनी विशेषताएँ होती हैं तथा पृथक-पृथक लाभ व गुण होते हैं। इसी कारण इस अर्थव्यवस्था को विभिन्न क्षेत्रों के लाभ प्राप्त हो जाते हैं, जिससे सामाजिक कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। 
  2. निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र का सह-अस्तित्व (Co-existence of private & public sector)- मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र दोनों साथ-साथ कार्य करते हैं। सरकार द्वारा निजी उद्योग तथा सार्वजनिक उद्योगों का अलग-अलग क्षेत्र निश्चित कर दिया जाता है। सरकारी क्षेत्र के अन्तर्गत लोहा इस्पात, रासायनिक उद्योग, परिवहन, विद्युत, खनिज व संचार, आयुध आदि शामिल होते हैं, जोकि निजी क्षेत्र के अन्तर्गत कृषि आधारित लघु एवं मध्यम स्तरीय तथा उपभोक्ता आधारित उद्योग आदि शामिल होते हैं। दोनों ही क्षेत्र एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। 
  3. सार्वजनिक हित सर्वोपरि (Maximization of public interest)- मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक हित का स्थान सर्वोपरि होता है। इसके लिए सरकार निजी क्षेत्र के साथ मिलकर कार्य करती है तथा आवश्यकतानुसार निजी क्षेत्र को निर्देशित एवं नियन्त्रित भी करती रहती है। जरूरत पड़ने पर निजी क्षेत्र को सरकार आर्थिक मदद या सुविधाएं भी प्रदान करती है। 
  4. आय की समानता के लिए प्रयास (Efforts for equality of income)- समाज में आय व सम्पत्ति की असमानता को कम करने के लिए सरकार नियम, नीतियों आदि के माध्यम से आवश्यक प्रयास करती रहती है जिसके लिए विभिन्न प्रकार के कर जैसे-आयकर, सम्पत्ति कर, उपहार कर, सेवा कर आदि माध्यमों द्वारा अधिक आय प्राप्त करने वालों से कर वसूल कर देश के विकास में लगाया जाता है जो कम आय प्राप्त करने वालों को अप्रत्यक्ष रूप से आय बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही साथ एकाधिकारी प्रवृत्ति पर सरकारी नियन्त्रण होता है। 
  5. आर्थिक नियोजन (Economic planning)- आधुनिक युग में आर्थिक नियाजे न से अभिप्राय केवल आर्थिक प्रगति से नहीं लगाया जाता है, बल्कि सामाजिक न्याय को भी शामिल किया जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकारी एवं नियंत्रित निजी क्षेत्रों के द्वारा नियोजन का संचालन किया जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत आर्थिक नियोजन के द्वारा देश की आर्थिक एवं सामाजिक संरचना में परिवर्तन करके अर्थव्यवस्था में आर्थिक प्रगति को गतिमान किया जाता है। 
  6. सरकारी नियन्त्रण ;Government control) मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की सहभागिता होती है तथा देश की दशा एवं दिशा तय करने में इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अत: सरकार निजी क्षेत्र के साथ काम करते हुए अनेक कानूनों, नियमों, नीतियों आदि का निर्माण करती है जिससे निजी क्षेत्र भी राष्ट्रीय उद्देश्य की पूर्ति में देश एवं सरकार का सहभागी बने। निजी क्षेत्र द्वारा व्यक्तिगत लाभ के लिए अधिक प्रयास किया जाता है अत: इसके लिए भी सरकारी नियन्त्रण आवश्यक हो जाता है। 
  7. आर्थिक स्वतन्त्रता (Economic freedom)- मिश्रित अर्थव्यवस्था में व्यक्ति की आवश्यक स्वतंत्रताओं को कम किये बिना ही केन्द्रीय नियन्त्रण एवं नियमन सम्भव होता है। आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति का उपभोग या व्यवसाय को चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है। किसी भी देश के लोगों को प्राप्त आर्थिक स्वतन्त्रता की विद्यमानता का मापदण्ड निजी, सहकारी एवं मिश्रित क्षेत्र कहे जा सकते हैं। 
  8. साधनों का कुशल उपयोग (Fair use of resources)- मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन की पद्धति अपनाये जाने के कारण साधनों को निजी, सार्वजनिक, संयुक्त एवं सहकारी क्षेत्रों में एक पूर्वनिर्धारित व सुनिश्चित योजनानुसार बांटा जाता हैं, जिस कारण समस्त साधनों का कुशलतम प्रयोग सुनिश्चित होता है। 
  9. नियोजन के लाभ (Benefit of planning)- मिश्रित अर्थव्यवस्था को एक पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार चलाया जाता है। अत: ऐसी अर्थव्यवस्था को आर्थिक नियोजन के समस्त लाभ प्राप्त हो सकते हैं, जैसे साधनों का विवेकपूर्ण बंटवारा, व्यापार चक्रों से मुक्ति, तीव्र आर्थिक विकास, कुशलता का ऊँचा स्तर आदि। 
  10. व्यक्तिगत उपक्रम को महत्व (Importance of personal enterprise)- मिश्रित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत व्यक्तिगत उपक्रम को अधिक महत्व दिया जाता है। सरकार द्वारा उद्योगों को वित्तीय सहायता, अनुदान, अनुज्ञापत्र, कर में छूट, बाजार व्यवस्था, उद्योगों का स्थानीयकरण आदि के लिए विशेष सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। इस अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत सरकार निजी उद्यमी को मान्यता देती है तथा ऐसे अवसर प्रदान करती रहती है, जिनसे व्यक्तिगत उपक्रम राष्ट्रीय प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। 
  11. सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का संयुक्त विकास (Joint development of public & private sector)- सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र मिश्रित आर्थव्यवस्था के लिए समान महत्व रखते हैं। अत: सरकार का यह प्रयास रहता है कि दोनों क्षेत्र संयुक्त रूप से फले-फूलें, इसके लिए सरकार निजी क्षेत्र को साथ लेकर चलने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन व सहायता प्रदान करती है व संरक्षण देती है। 

इस प्रकार मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपरोक्त विशेषताओं का अध्ययन करने के उपरान्त स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मिश्रित अर्थव्यवस्था दो अन्य अर्थव्यवस्थाओं पूंजीवादी एवं समाजवादी की तुलना में अधिक लोक कल्याणकारी, विकासोन्मुखी व संतुलित आर्थिक प्रणाली होती है।

भारत में मिश्रित आर्थिक प्रणाली

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व भारत में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था थी, क्योंकि देश में ब्रिटिश सरकार की व्यापारिक नीतियाँ पूर्णरूपेण लागू थीं। ब्रिटिश सरकार की व्यापारिक नीतियाँ पूर्णरूपेण पूँजीवादी थीं व इसमें व्यापारिक गतिविधियों (पूंजी का) का वर्चस्व था। साथ ही ब्रिटेन ने जब-जब अपनी आर्थिक एवं व्यापारिक नीतियों में परिवर्तन किया तब-तब भारत को भी अपनी आर्थिक एवं व्यापारिक नीतियों में उसी के अनुरूप परिवर्तन करने के लिए विवश होना पड़ा, परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देश की अर्थव्यवस्था को तीव्र गति से विकसित करने की अत्यधिक आवश्यकता थी। अत: देश में सर्वप्रथम 6 अप्रैल 1948 को प्रथम औद्योगिक नीति के लागू होने से ही मिश्रित अर्थव्यवस्था की शुरूआत हुई। 

 

मिश्रित अर्थव्यवस्था के माध्यम से जहाँ एक ओर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को स्थान मिलता है, वहीं दूसरी ओर सरकारी नियन्त्रण भी बना रहता है। भारत, मिश्रित अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को अपनाकर समस्त नियोजन प्रक्रिया सम्पन्न कर रहा है। हमारे देश की पंचवष्र्ाीय योजनाएं देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था का उल्लेखनीय उदाहरण हैं। इन योजनाओं में सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों को पर्याप्त स्थान दिया गया है। देश में जहाँ एक ओर सरकार सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार कर रही है, वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्र में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता व विकास को पर्याप्त स्थान दिया जा रहा है।

भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्व भी मिश्रित अर्थव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं। नीति निदेर्शक सिद्धान्तों में स्पष्ट उल्लेख है कि भारतीय भौतिक साधनों को इस प्रकार वितरित करना है कि धन एवं उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण (एकत्रीकरण) न हो पाये। संविधान में भौतिक साधनों को राजकीय अथवा निजी किसी भी एक क्षेत्र के अधिकार में रखने की चर्चा नहीं की गयी है। इसका निर्णय राज्य या सरकार के अधिकार में है कि अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र का संचालन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाय।

भारतीय संविधान द्वारा नयी सामाजिक व्यवस्था में स्वतन्त्रता, निजी प्रारम्भिकता एवं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लाभों के लिए प्रावधान है तथा दूसरी ओर इन क्षेत्रों पर सामाजिक नियन्त्रण का लाभ उठाने के लिए भी व्यवस्था है, जिन पर सामाजिक नियन्त्रण द्वारा जनहित सम्भव होता है। संविधान द्वारा निर्धारित व्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों को स्थान दिया गया है तथा इन दोनों को एक दूसरे के पूरक एवं सहायक के रूप में कार्य करने का आयोजन किया गया है।

देश की प्रथम औद्योगिक नीति, 1948 में लागू हुई, जो भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था की जन्मदाता है। इस औद्योगिक नीति में मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में उद्योगों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया था।

  1. ऐसे उद्योग जिनका संचालन केवल केन्द्र सरकार ही कर सकती थी, 
  2. ऐसे उद्योग जिनके विकास का उत्तरदायित्व राज्य सरकार पर था तथा 
  3. ऐसे उद्योग जो पूर्णत: निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिये गये थे। 

देश में विभिन्न औद्योगिक नीतियों एवं पंचवष्र्ाीय योजनाओं के माध्यम से मिश्रित अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने पर बल दिया है तथा अर्थव्यवस्था के सम्पूर्ण क्षेत्र पर समान व न्यायपूर्ण ध्यान देकर उच्च संतुलित आर्थिक विकास के लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास किया गया है।

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