घराने का अर्थ कुछ विशेषताओं का पीढ़ी दर पीढ़ी चले आना अर्थात गुरु शिष्य परंपरा को घराना कहा जाता है। गायकी से घराने का निर्माण माना है जैसे एक गायक ने कुछ शिष्य बनाए और उन्होंने कुछ और शिष्य तैयार किए, इस तरह शिष्यों की पीढ़ी चलती गई, जिसे घराना कहा गया।

तानसेन के वंशजों से घराने का निर्माण माना जाता है। तानसेन के पुत्रों के वंशज सेनिए कहलाए, जो ध्रुपद गाते थे व बीन बजाते थे। तानसेन की पुत्री के वंशज बानिए कहलाए, जो ध्रुपद गाते थे व रबाब बजाते थे। प्रत्येक घराने का आवाज लगाने का ढंग, उतार-चढ़ाव का अपना अलग ही ढंग होता है, आवाज का फैलाव भी विशेष ढंग का ही होता है। 

घराने का इतिहास

ख़्याल गायन के कुछ प्रमुख घरानों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है –

ग्वालियर घराने का इतिहास –

ग्वालियर घराने का आरंभ नत्थन पीरबख्श (ई.18) से माना जाता है। यह घराना, जो ख़्याल का सर्व प्रसिद्ध घराना है, वास्तव में लखनऊ घराने से निकला हुआ है।  

 

ग्वालियर घराने की विशेषताएँ – ध्रुपद अंग के ख़्याल, गमक का प्रयोग, जोरदार तथा खुली आवाज, सीधी तथा सपाट तानों का प्रयोग, लयकारी, ठुमरी के स्थान पर तराना गायन, तैयारी पर विशेष बल।

आगरा घराने का इतिहास –

यह घराना भारत के प्रसिद्ध और प्रमुख ख़्याल शैली के घरानों में से माना जाता है। यह घराना मूलत: धु्रपद तथा धमार गायकों का रहा। इसलिए इसके ख़्याल गायन पर भी ध्रुपद धमार की तरह नोमतोम व लयकारी का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। आगरा घराने की उत्पत्ति अलख दास तथा मलूक दास द्वारा मानी जाती है।

आगरा घराने की विशेषताएँ – खुली जवारीदार आवाज, ध्रुपद के समान ख़्याल में भी नोम-तोम का आलाप, जबड़े का अधिक प्रयोग, बंदिशदार चीजें, ख़्याल के अतिरिक्त ध्रुपद-धमार में प्रवीणता, बोलतानों की विशेषता, लय-ताल पर विशेष अधिकार।

दिल्ली घराने का इतिहास –

ख़्याल गायकी का दिल्ली घराना एक प्राचीन घराना है। दिल्ली के बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले (1719 ई.) के दरबार में ख़्याल गायकी का प्रचार हुआ। इनके दरबार में नियामत खां (सदारंगद) तथा फिरोज खां (अदारंगद) ख़्याल गीतों व गायकी के निर्माता रहे हैं। मोहम्मद शाह रंगीले के नाम से जितने भी ख़्याल गीत पाए जाते हैं वे इन्हीं दोनों गायकों की कृतियां हैं।’

दिल्ली घराने की विशेषताएँ -इस घराने के कलाकारों का संबंध सारंगी से है यहाँ की गायकी में विलंबित लय की बंदिशों में सूत, मीड़, गमक और लहक का काम विशेष रूप से दिखाई पड़ता है, इसके अतिरिक्त मध्य लय में इस घराने की मुख्य विशेषता यह है कि स्वरों का आपसी लड़-गुंधाव तथा जोड़-तोड़ होता है।

किराना घराने का इतिहास –

इस घराने का उद्गम प्रसिद्ध बीनकार उस्ताद बंदे अली खां से माना जाता है जो अच्छे ध्रुपद गायक व ग्वालियर के प्रसिद्ध ख़्याल गायक उस्ताद हद्दू खां के दामाद थे। इस घराने का विस्तार कर उसका प्रचार-प्रसार उस्ताद बेहेरे वहीद खां तथा मुख्यत: उस्ताद अब्दुल करीम खां ने किया। उस्ताद अब्दुल करीम खां ने अपनी विलक्षण प्रतिभा से स्वतंत्र गायकी का निर्माण किया, इनकी गायकी पर बीन का प्रभाव था इनकी आवाज पतली, सुरीली तथा नोकदार थी, इनकी गायकी स्वर प्रधान थी इसलिए किराना घराने की गायकी में स्वर की सूक्ष्मता व सच्चाई साफ दिखाई देती है। 

किराना घराना की विशेषताएँ – इस घराने की गायकी मुख्यत: तंत अंग की अर्थात बीन अंग की है। इस घराने में स्वर स्थान का विशेष महत्व है। गायकी चैनदार मानी जाती है। किराना घराने की गायकी में तानक्रिया अत्यंत कृत्रिम होती है। इस घराने में ठुमरी गायकी का विशेष स्थान है। आधुनिक गायक जो किराना घराना से प्रभावित हैं अपनी महफिल में ठुमरी को भी महत्वपूर्ण स्थान देते हैं।’

जयपुर घराने का इतिहास –

जयपुर घराने की ख़्याल शैली लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी मानी जाती है। जयपुर दरबार में भारतवर्ष के मशहूर गायक एवं वादक नियुक्त थे। संगीत की गायन एवं वादन दोनों विधाओं को इस घराने से प्रेरणा मिली। ध्रुपद शैली, कव्वाली शैली, एवं वीणा वादन की वाद्य शैलियों एवं सितार वादन की शैली इन सबका मिश्रित रूप जयपुर घराने की छटा को निखारता है, जितनी मधुर यहाँ की वादन शैली है उतना ही सुरीला यहाँ का कंठ संगीत है। जयपुर नरेश माधोसिंह के दरबार में सावल खां नामक प्रसिद्ध बीनकार थे। 

पटियाला घराने का इतिहास –

पटियाला घराने के प्रवर्तक के रूप में अलीबख्श और फतह अली को माना जाता है। पटियाला घराना वास्तव में दिल्ली घराना ही रहा है, पंजाब की स्थानीय शैलियों से प्रभावित होने के कारण यह पंजाब का घराना बन गया और पटियाला रियासत में पनपने के कारण यही पटियाला घराना कहलाया। यह घराना अपनी तैयारी और विविधतापूर्ण गायकी के लिए प्रसिद्ध है। पटियाला घराने की ठुमरियाँ अपनी कोमलता, रसीलेपन, टप्पे वाली तानों के कारण श्रोताओं के मन पर एक अनिवर्चनीय प्रभाव डालती हैं। इस घराने की गायकी अनेक घरानों से पोषित होकर एक नई रंगीनी से गर्भित है।

पटियाला घराने की विशेषताएँ -इस घराने की गायकी में लय तथा स्वर को समान महत्व दिया जाता है। पटियाला घराने की गायकी मुलायम होते हुए भी गायकी में आवाज खुली एवं वजनदार होती है। ग्वालियर तथा आगरा घराने की लयकारी प्रसिद्ध है किन्तु इस घराने की गायकी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह मानवीय भावों को भावनात्मक रूप से अभिव्यक्त करने में यह सक्षम है।

बनारस घराने का इतिहास –

पंडित गोपाल मिश्र को बनारस घराने के प्रवर्तक के रूप में माना जाता है। आपने जीवन पर्यन्त संगीत की साधना करते हुए गायकी में विशिष्ट विशेषताओं का समावेश करके बनारस घराने को जन्म दिया, आपने गायन के क्षेत्र में नवीन प्रयोगों द्वारा छोटी-छोटी हरकतों के अलावा खटके, मुर्कियों, स्वर के संकोच तथा विस्तार की प्रचलित शैलियों में प्रयत्न करके बनारस घराने के रूप में संगीत के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई। बनारस घराना एक ऐसा घराना है, जिसमें ख़्याल, टप्पा, ठुमरी, ध्रुपद, धमार, तराने आदि संगीत के सभी अंगों के रूपों का समावेश पाया जाता है।

 
बनारस घराने की विशेषताएँ – इस घराने की गायकी में भाव व भावपूर्ण गायकी का समावेश पाया जाता है। ख़्याल की बंदिशों में शब्दों के उच्चारण पर विशेष बल दिया जाता है। स्वर के साथ लय पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। बनारस घराने की गायकी में खटका, मुर्की, व हरकतों का विशेषकर प्रयोग किया जाता है।

 

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *