रबीन्द्रनाथ टैगोर का शैक्षिक दर्शन उनके स्वयं के जीवन से प्रभावित है। रबीन्द्रनाथ टैगोर शिक्षा के पाश्चात्य विचारकों के विचारों से पूर्णत: जागरूक थे, उन्होंने अपने विचारों को प्राचीनभारतीय विचारों पर आधारित किया। रबीन्द्रनाथ टैगोर परंपरागत शिक्षा व्यवस्था के प्रति निष्क्रिय थे जो बच्चे को कक्षाकक्ष या घर की चारदीवारियों में सीमित करता है। उनके अनुसार,प्रकृति बालक की उत्तम पाठ्यचर्या तथा शिक्षक है। रबीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक सिद्धान्तों काविश्लेषण कर यह कहा जा सकता है कि वह प्रकृतिवाद के साथ-साथ प्रयोजनवाद केभी अनुयायी थे। परंतु उनका शैक्षिक दर्शन अधिकांश: प्रकृतिवादी शिक्षा व्यवस्था परआधारित है। रबीन्द्रनाथ टैगोर स्व-शिक्षा में विश्वास करते थे जो आत्मबोध पर आधारित होती है। रबीन्द्रनाथ टैगोर बच्चे के संपूर्ण स्वतंत्रता में विश्वास करते थे। यह स्वतंत्रता बुद्धि, निर्णय, हृदय,ज्ञान, क्रिया तथा आराधना से संबंधित है। रबीन्द्रनाथ टैगोर निपुणता पूर्वक कार्य करने में विश्वास रखते थे। “वैश्विकता” की अवधारणा रबीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा की अवधारणा में स्पष्ट रूप में विद्यमान है। वे मानते हैं कि वास्तविक शिक्षा वह है जिसे व्यक्ति अपनी आत्मा से परे गए बिना सोचते एवं कार्य करते हैं तथा बिना आस्था एवं कार्य के सार्वभौमिक आत्मा का बोध करते हैं।
रबीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक विचार
रबीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक दर्शन के सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
- सभी के लिए शिक्षा का लक्ष्य आत्मबोध होना चाहिए।
- उन्होंने प्राचीन वैदान्तिक शिक्षा के साथ आधुनिक पाश्चात्य वैज्ञानिक अभिवृत्तियों को
- संश्लेषित कर शिक्षा का लक्ष्य निर्मित किया।
- सृजनशील विद्यार्थियों को विकसित करने हेतु, बच्चे को आत्म अभिव्यक्ति के लिए
- अवसर प्रदान करना चाहिए।
- वह शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक तथा धार्मिक विकास के साथ मानव शक्ति के समेि कत
- विकास का समर्थन करते थे।
- वह व्यक्ति द्वारा रह रहे वातावरण के साथ समायोजन तथा अन्य व्यक्तियों के रहने
- वाले वातावरण में समायोजन के समर्थक थे।
- बच्चों को पुस्तकों के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति के लिए दबाव नहीं देना चाहिए।
- शिक्षा का लक्ष्य बच्चे को आत्मसंतुष्ट बनाना तथा जीविकोपार्जन करना है।
- शिक्षा को बच्चों को राष्ट्रीय संस्कृति के विचारों एवं मूल्यों के अभ्यास हेतु योग्य
- बनाना चाहिए।
- शिक्षा को बच्चों को संपूर्ण मानव बनने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।
पाठ्यचर्या तथा शिक्षण विधियाँ
रबीन्द्रनाथ टैगोर का दृष्टिकोण है कि पाठ्यचर्या गतिविधियों तथा वास्तविक जीवन के व्यापकअनुभवों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने बच्चे के सृजनात्मक विकास हेतु अधिसंख्यपाठ्यसहगामी गतिविधियों को पाठ्यचर्या के आवश्यक भाग के रूप में सम्मिलित करनेका सुझाव दिया। उन्होंने इतिहास, भूगोल, प्रकृति अध्ययन, कृषि तथा प्रायोगिक विषयोंजैसे अध्ययन के विषयों को उद्यानिकी, क्षेत्र अध्ययन, प्रयोगशाला कार्य, कला, मूर्तिकला,व्यावसायिक एवं तकनीकी विषयों के साथ विद्यालय पाठ्यचर्या के भाग के रूप मेंसुझाया। सृजनात्मक तथा सास्ं कृतिक गतिविधियाँ जसै े नृत्य, गायन, चित्रकला, डिजाइनिगं ,सिलाई, कताई, बुनाई तथा पाककला पाठ्यचर्या का भाग होना चाहिए। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने टहलतेहुए शिक्षण, चर्चा एवं प्रश्नोत्तर विधि, गातिविधि, भ्रमण, क्षेत्र भ्रमण आदि को शिक्षण विधियोंके रूप में सुझाया।
विद्यालय, शिक्षक तथा अनुशासन की अवधारणारबीन्द्रनाथ टैगोर ने सुझाया कि विद्यालय शांतिपूर्ण स्थान पर स्थित होना चाहिए, जहां बच्चाएकाग्रचित्त हो सके तथा प्रकृति के साथ सम्बन्ध स्थापित कर सके। शैक्षिक संस्थानों कोसांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित तथा हस्तांरित करना चाहिए। शिक्षक को चिंतनशीलअभ्यासकर्ता होना चाहिए तथा बच्चे के साथ प्रेम, स्नेह, सहानुभूति तथा स्वीकारोक्ति पूर्वकव्यवहार करना चाहिए। शिक्षक को बच्चों को उपयोगी एवं रचनात्मक गतिविधियों मेंलगाना चाहिए तथा उनको अपने अनुभवों द्वारा सीखने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।शिक्षक को विद्यार्थियों के लिए सहयोगात्मक वातावरण का निर्माण करना चाहिए। रबीन्द्रनाथ टैगोरने स्व-निर्देशित अनुशासन के अभ्यास के लिए सुझाव दिए तथा विद्यार्थियों पर अनुशासनथोपने की बात का विरोध किया क्योंकि केवल स्व-अनुशासन विद्यार्थियों को आत्म विकासमें सहायता कर सकता है।