सूरदास कृष्णभक्ति काव्यधारा के महान भक्त कवि हैं। सूरदास का जन्म 1535 ई को हुआ था। जन्म तिथि व जन्म स्थान के समान ही सूरदास के नाम को लेकर भी विद्वानों के मध्य काफी विवाद है। सूरसारावली और साहित्य लहरी के एक एक पद के आधार पर विद्वानों ने सूर की जन्मतिथि निश्चित करने का प्रयत्न किया है। ‘‘सूरसारावली’ का पद है – गुरू परसाद होत यह दरसन सरसठ बरस प्रवीन। शिवविधान तप कियो बहुत दिन तऊ पार नहिं लीन।।’’ इस पद के आधार पर समस्त विद्वान सूर सारावली की रचना के समय सूरदास की आयु 67 वर्ष निश्चित करते हैं। साहित्य लहरी के पद- मुनि मुनि रसन के रस लेख। श्री मुंशीराम शर्मा इस पद के आधार पर साहित्य लहरी का रचनाकाल संवत् 1627 मानते है। सूर सारावली के समय उनकी आयु 67 वर्ष मानी जाये तो सूर का जन्म विक्रम संवत् 1540 के आस पास माना जाना चाहिए।
‘सूरसागर’ में सूरदास, सूर, सूरज, सूरजदास और सूरश्याम- उनके पाँच नामों का उल्लेख मिलता है। डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा ने सूरज और सूरजदास आदि नामों को किसी दूसरे व्यक्ति का नाम बताया है। उन्होंने उनका सूरदास नाम ही वास्तविक माना है। अधिकांश विद्वान इसी मत के समर्थक हैं।
विद्वानों के मध्य मतभेद का एक अन्य विषय है- सूरदास का अंधत्व। उन्हें जन्मांध मानने वालों में सूर निर्णयकार तथा आचार्य नंददुलारे वाजपेयी आदि विद्वान हैं। सूर निर्णयकार ने हरिराय के ‘भावप्रकाश’ को आधार बनाकर सूरदास को जन्मांध कहा है। कुछ विद्वान सूरदास को अंधा अवश्य मानते हैं, किंतु जन्मांध नहीं। सूरदास जनमान्ध थे अथवा बाद में अन्धे हुए , इस विषय में भी विद्वानों में मतभेद है।
सूरदास जी के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है। सूरदास कब पैदा हुए? इसका स्पष्ट उल्लेख किसी भी ग्रंथ में नहीं है।
सूरदास की मृत्यु संवत् 1620 उनके स्वर्गवास की तिथि हो सकती है। कुछ विद्वान उनकी मृत्यु संवत् 1640 में गोवर्धन के निकट पारसोली ग्राम में मानते है।
सूरदास की प्रमुख रचनाएँ
सूरदास की प्रमुख रचनाएँ सूरदास द्वारा लिखित कृतियाँ मानी जाती हैं –
- सूर सारावली
- साहित्य लहरी
- सूर सागर
- भागवत भाषा
- दशम् स्कन्ध भाषा
- सूरसागर सार
- सूर रामायण
- मान लीला
- नाग लीला
- दान लीला
- भंवर लीला
- सूर दशक
- सूर साठी
- सूर पच्चीसी
- सेवाफल
- ब्याहलो
- प्राणप्यारी
- दृष्टि कूट के पद
- सूर के विनय आदि के पद
- नल दमयंती
- हरिवंश टीका
- राम जन्म
- एकादशी महात्म्य।
- सूर सारावली –
सूर सारावली में विषय की दृष्टि से कृष्ण के कुरूक्षेत्र से लौटने के बाद के समय से जुडे संयोग लीला, वसंत हिंडोला और होली आदि प्रसंग अभिव्यक्त हुए है।
- साहित्य लहरी –
साहित्य लहरी सूरदास की दूसरी प्रमुख रचना है। इसमें कुल 118 पद हैं। इसके पदों में रस, अलंकार, निरूपण एवं नायिका भेद तो है ही, साथ ही कुछ पदों में कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन भी है। साहित्य लहरी में अनेक पद दृष्टिकूट पद है, जिनमें गुह्य बातों का दृष्टिकूटों के रूप में वर्णन किया गया है। कृष्ण की बाल लीलाओं के साथ ही नायिकाओं के अनेक भेद के साथ राधा का वर्णन भी है तो अनेक प्रकार के अलंकारों जैसे -दृष्टांत , परिकर, निदर्शना, विनोक्ति, समासोक्ति , व्यतिरेक का भी उल्लेख है।
- सूरसागर–
ऐसा माना जाता है कि इसमें सवा लाख पद थे, किन्तु वर्तमान में प्राप्त और प्रकाशित सूरसागर में लगभग चार से पाँच हजार पद संकलित है। सूरसागर की रचना का मूल आधार श्रीमद्भागवत है। इसमें सूरदास ने श्रीमद्भागवत् का उतना ही आधार ग्रहण किया है, जितना कि कृष्ण की ब्रज लीलाओं की रूपरेखाओं के निर्माण के लिए आवश्यक था। सूरसागर प्रबंध काव्य नहीं है। यह तो प्रसंगानुसार कृष्ण लीला से संबंधित उनके प्रेममय स्वरूप को साकार करने वाले पदों का संग्रह मात्र है। सूरसागर की कथा वस्तु बारह स्कन्धों में विभक्त है। इनमें दशम् स्कन्ध में ही कृष्ण की लीलाओं का अत्यंत विस्तार से वर्णन है। सूरसागर में आये पदों को विषय के अनुसार इन वर्गों में रखा जा सकता है-
- कृष्ण की बाल लीलाओं से संबंधित पद
- कृष्ण कीद प्रेम और मान लीलाओं से संबंधित पद
- दान लीला के पद
- मान लीला के पद और भ्रमर गीत
- विनय, वैराग्य, सत्संग एवं गुरू महिमा से संबंधित पद
- श्रीमद्भागवत के अनुसार रखे गये पद
सूरदास की काव्यभाषा
सूरदास के काव्य में ब्रज भाषा अपने विविध गुणों के साथ उत्कृष्ट रूप में विद्यमान है। सूरदास की काव्यभाषा लोक व्यवहार की भाषा है। सूरदास के काव्य में प्रयुक्त ब्रजभाषा की सबसे बड़ी विशेषता उसकी कोमलता है। भाषा और भावों का ऐसा कोमल संबंध सूरदास के शब्द चयन और सटीक प्रयोग के कारण हो सका है। ‘सूरसागर’ के पदों में यह भाषागत कोमलता सर्वत्र देखी जा सकती है।