स्तूप’ का शाब्दिक अर्थ ‘ढेर’ अथवा थूहा! मिट्टी व अन्य पदार्थो का ढेर या एकत्र किये गये समूह को ‘स्तूप’ कहते हैं। स्तूप शब्द संस्कृत- स्तूप: अथवा प्राकृत थूप, ‘स्तूप’ धातु से निष्पन्न है, जिसका अर्थ है एकत्रित करना, ढेर लगाना, तोपना या गाड़ना होता है।

 

विद्वानों का विचार है कि ‘स्तूप’ शब्द की मूल ‘स्तु’ धातु है जिसका अर्थ है ‘स्तुति’ करना या प्रशंसा करना है। हो सकता है कि स्तूप शब्द में प्रयुक्त धातु संस्कृत की ‘स्तूप’ धातु ही रही हो जिसका हिन्दी तथा देश्य भाषाओं का तापे ना शब्द निकला है। तापे ना अर्थात् ढकना। मिट्टी से ढकने की इस क्रिया के कारण ही स्तूप को यह नाम दिया। पालि साहित्य में भी इसको थूह, थूप या थुव इत्यादि कहा गया है।

स्तूप के लिए चैत्य शब्द का भी प्रयोग साहित्य में मिलता है। चैत्य शब्द ‘चि’ चयने् धातु से निकला है, क्योंकि इसमें प्रस्तर या ईट चिन कर या चुन कर भवन निर्माण किया जाता है ‘चीयते पाषार्णदिना इति चैत्यम्’। अर्थात् चैत्य से उस प्रदेश का संकेत होता है जहाँ चयन-क्रिया सम्पन्न की जाती है। ‘चैत्य’ शब्द का चित तथा चिता शब्द से भी सम्बन्ध है। चिता की राख (अवशेष) को एक पात्र में रखकर स्मारक बनाया जाता है, जिसे स्तूप कहते हैं।

 

स्तूपों का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से है तथापि इसकी प्राचीनता के साक्ष्य हमें संस्ति प्रागैतिहासिक काल के वृहत्तपाषाणिक संस्कृति काल से मिलते हैं। इस सभ्यता के रीति-रिवाजों में श्मशान भूमि पर स्तूपों के निमार्ण का प्राय: प्रचलन था, जिसका वर्णन हमें शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। इसके अनुसार शतपथ ब्राह्मण (13/8/1/5) पूर्वी क्षेत्र के रहने वाले लोगों में इस प्रकार का प्रचलन था जहाँ अनिश्चित आकार के पत्थरों से समाधि स्मारक बनाये जाते थे।

 

भारत के प्रमुख स्तूप

  1. भरहुत – महान सम्राट अशोक द्वारा प्रतिष्ठापित इष्टिकामय स्तूप शुंग नरेश धनभूति के शासन काल में अपने पूर्ण विकास को प्राप्त किया। भरहुत प्रयाग से दक्षिण-पश्चिम की दिशा में 120 मील व मध्यप्रदेश के सतना स्टेशन से 9 मील दक्षिण तथा ऊँचहरा स्टेशन से 6 मील उत्तर-पूर्व दिशा में भरहुत गाँव में स्थित है। भरहुत का महान् स्तूप 67 फुट 8.5 इंच के व्यास में विस्तृत था।
  2. सांँची –  मध्यप्रदेश में विदिशा से उत्तर-पूर्व दिशा में 5 मील की दूरी पर स्थित साँची बौद्ध धम्म तथा कला के रूप में विख्यात है।
  3. अमरावती – अमरावती का महास्तूप आन्धप्रदेश के गुन्टूर जिले में कृष्णा नदी के दायें तट पर स्थित था। इसका प्राचीन नाम धान्यकंटक था।
  4. सारनाथ – यह प्राचीन काशी महाजनपद के अधीन तथा वर्तमान में वाराणसी जनपद में स्थित है। सारनाथ की प्राचीनता और धार्मिक महत्व को ध्यान में रखकर महान सम्राट अशोक ने यहाँ स्तूप-निर्माण किया था। ई0पू0 तीसरी शदी से बारहवीं शदी तक सारनाथ देश के महत्वपूर्ण स्थानों में से एक था। इसी महत्ता के कारण प्राचीन भारत के देश के शासकों ने समय-समय पर यहाँ कुछ न कुछ स्मारकों का निर्माण कर इसे ऐतिहासिकता प्रदान की।

 

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