अध्याय-3: दिल्ली के सुल्तान

  • बारहवीं सताब्दी में दिल्ली एक महत्वपूर्ण शहर बना।
  • बारहवीं सताब्दी के मध्य में तोमरों को अजमेर के चौहानों ने परास्त किया। और इसीकाल में दिल्ली एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र बानी।
  • जैन व्यापारियों ने दिल्ली में अनेक मंदिर बनवाएं।
  • यहाँ देहलीवाल कहे जाने वाले सिक्के भी ढाले जाते थे जो काफी प्रचलन में थे।
  • तेरहवीं सदी के आरम्भ में दिल्ली सल्तनत की स्थापन हुई, जहाँ देहली-ए-कुहना , सीरी और जहाँपनाह आदि कई नगर बसे।

दिल्ली के शासक

राजपूत वंश

  1. तोमर -आरम्भिक बारहवीं सताब्दी -1165
  2. अनंगपाल –      1130 -1145
  3. चौहान- 1165-1192
  4. पृथ्वीराज चौहान- 1175-1192

 प्रारंभिक तुर्की शासक

  1. कुतुबुद्दीन ऐबक –           1206-1210
  2. शमसुद्दीन इल्तुतमिश – 1210-1236
  3. रजिया –                           1236-1240
  4. गयासुद्दीन-                     1266-1287

खलजी वंश-( 1290-1320 )

  1. जलालुद्दीन खलजी – 1290-1296
  2. अलाउद्दीन खलजी-   1296-1316
  3. तुगलक वंश- 1320-1414
  4. गयासुद्दीन तुगलक – 1320-1324
  5. मुहम्मद तुगलक –       1324-1351
  6. फिरोज शाह तुगलक –   1351-1388

सैयद वंश -(1414-1451 )

  1. खिज्र खान –              1414-1421

लोदी वंश -(1451-1526)

  1. बहलोल लोदी –          1451-1489

दिल्ली के सुल्तानों के बारे में जानकारी –

  • अभिलेख सिक्को और स्थापत्य के माध्यम से।
  • इतिहास में तारीख ( एकवचन ) तवारीख ( बहुवचन ) है जो सुल्तानों के शासनकाल में प्रशासन की भाषा फारसी में लिखे गए थे।
  • तवारीख के लेखक सचिव, प्रशासक, कवि और दरबारी जैसे सुशिक्षित व्यक्ति होए थे। जो घटनाओं का वर्णन भी करते थे व शासन सम्बन्धी सलाह भी देते थे।
  • तवारीख के लेखक नगरों में रहते, इनाम पाने की आशा रखते व , जन्मसिद्ध अधिकार लिंगभेद पर आधारित ‘आदर्श ‘ समाज व्यवस्था बनाए रखने की सलाह देते थे
  • नोट – सन 1236 में इल्तुतमिश की बेटी रजिया सुल्तान सिंहासन पर बैठी। उसे युग के इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज ने स्वीकार किया परन्तु दरबारीजन प्रसन्न नहीं थे अंततः 1240 में उसे सिंहासन से हटा दिया गया।
  • नोट- आंध्रप्रदेश के वारंगल क्षेत्र में काकतीय वंश की रानी रुद्रम्मा देवी ( 1262-1289 ) ने अपने अभिलेखों में अपना नाम पुरुषों जैसा लिखवाकर अपने पुरुष होने का भ्रम पैदा किया था।
  • नोट- कश्मीर की रानी दिद्दा ( 980-1003 ) को प्रजा स्नेह भरी सम्बोधन दीदी के नाम से किए जिसकी वजह से उन्हें रानी दिद्दा कहा गया।

दिल्ली सल्तनत का विस्तार – गैरिसन शहर से साम्राज्य तक –

  • तेरहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में सुल्तानों ने अपना शासन गैरिसन ( रक्षक सैनिकों की टुकड़ी ) से किया।
  • गैरिसानों का विस्तार गयासुद्दीन बलबन, अलाउद्दीन खलजी और मुहम्मद तुगलक के राज्य काल में हुआ।
  • गैरिसन पर इनका नियंत्रण था। परन्तु भीतरी शहरों पर उनका नियंत्रण न के बराबर था और इसलिए उन्हें आवश्यक सामग्री,रसद आदि के लिए व्यापर कर या लूटमार पर ही निर्भर रहना पड़ता था।
  • गैरिसन शहर – किलेबंद बसाव जहाँ सैनिक रहते है।
  • भीतरी प्रदेश -किसी शहर या बंदरगाह के आस-पास के इलाके जो उस शहर के लिए वस्तुओ और सेवाओं की पूर्ति करें।
  • दिल्ली सुदूर बंगाल और सिंध के गैरिसन शहरों का नियंत्रण बहुत ही कठिन था।
  • सल्तनत के भीतरी सीमाओं के अभियानों का लक्ष्य गैरिसन शहरों और भीतरी क्षेत्रों की स्थिति को मजबूत करना था।
  • सल्तनत की बाहरी सीमा का विस्तार अलाउद्दीन खलजी के शासनकाल में दक्षिण भारत को लक्ष्य करके सैनिक अभियान करके शुरू हुए और मुहम्मद तुगलक के समय में ये अपनी चरम सीमा पर पहुँच गए।

मस्जिद

  • यह अरबी का शब्द है जिसका अर्थ है ऐसा स्थान जहाँ मुसलमान अल्लाह की आराधना में सजदा करते है।
  • जामा मस्जिद ( मसजिद-ए-जामी ) यह वह मस्जिद होती है जहाँ अनेक मुसलमान एकत्र होकर साथ-साथ नमाज पढ़ते है।
  • इमाम-नमाजियों सबसे अधिक सम्माननीय और विद्वान् पुरुष।
  • इमाम शुक्रवार की नमाज के दौरान धर्मोपदेश (खुतबा )भी देते है।
  • किबला-नमाज के दौरान मुसलमान मक्का की तरफ मुंह करके खड़े होते है। इस दिशा को किबला कहा जाता है।
  • भारत में मक्का पश्चिम की ओर पड़ता है।
  • नोट- कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद बारहवीं सदी के आखिरी दशक में बनी।
  • यह मस्जिद दिल्ली के सुल्तानों द्वारा बनाया गया। सबसे पहले शहर में स्थित है इतिहास में इसे देलही-ए-कहना ( पुराना शहर )
  • इस मस्जिद का विस्तार इल्तुतमिश और अलाउद्दीन खलजी ने किया।
  • मीनारे तीन सुल्तानों-कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और फिरोज शाह तुगलक द्वारा बनवाई गयी।
  • बेगमपुरी मशीद -यह मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में उसकी नई राजधानी जहाँपनाह ( विश्व की शरण स्थलीय ) में बनाई गई।
  • जमाली कमाली मस्जिद -सिकंदर लोदी के मंत्री द्वारा बनवाई गई।

प्रशासन ( खलजी और तुगलक वंश )

  • दिल्ली के आरम्भिक सुल्तान विशेष कर इल्तुतमिश ने सामंतो और जमींदारों के स्थान पर अपने गुलामों ( फारसी में बंदगाँ ) को राजनीतिक पदों पर रखा।
  • खिलजी और तुगलक शासक बंदगाँ का इस्तेमाल करते रहे।
  • गुलामों को सूबेदार और सेनापति बनाया जाता था। परन्तु वे अपने मालिकों के प्रति वफादार होते थे लेकिन उनके उत्तराधिकारो के प्रति नहीं इससे राजनीतिक अस्थिरिता पैदा जो जाती थी।
  • सुल्तानों द्वारा निचले तपके को संरक्षण किया जाता था जिसकी आलोचना फारसी तवारीख के लेखों में की गई।
  • जैसे सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने अजीज खुम्मार नामक कलाल ( शराब बनाने वाला या बेचने वाला ) , फिरोज हज्जाम नामक नाई , मनका तब्बाख नामक बावर्ची, लड्ढ़ा तथा पीर नामक मालियों को ऊँचे प्रशासनिक पदों पर बैठाया था ( चौदहवीं सताब्दी के इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने इसकी आलोचना की है)।
  • इक्ता -विभिन्न इलाके जहाँ से राजस्व वसूला जाता था।
  • मुक्ति – राजस्व वसूलने वाले इक्तेदार या सूबेदार। मुक्ति लोगो द्वारा एकत्रित किये गए राजस्व की रकम का हिसाब लेने के लिए राज्य द्वारा लेखा अधिकारी नियुक्त किये गए थे।
  • अल्लुद्दीन खलजी के शासनकाल में भी-राजस्व के निर्धारण और वसूली के कार्य को राज्य ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • उस समय तीन तरह के कर थे -a) कृषि पर खराज -उपज का 50 प्रतिशत , b) मवेशियों पर कर तथा c) घरों पर कर।
  • नोट -अफ्रीकी देश मोरक्को का यात्री इब्नबतूता चौदहवीं सदी में भारत आया था।

मंगोल आक्रमण

  • चंगेज खान के नेतृत्व में मंगोलों ने 1219 में उत्तर-पूर्वी ईरान में ट्रांसऑक्सीसीयाना ( आधुनिक उजबेकिस्तान ) पर हमला किया और इसके शीघ्र बाद ही दिल्ली सल्तनत पर धावा बोल दिया।
  • अलाउद्दीन खलजी और मोहम्मद तुगलक के शासनकाल में दिल्ली पर मंगोलों के धावे बढ़ गए।
अल्लुद्दीन खालाजी मोहम्मद तुगलक
1.दिल्ली में दो बार हमला -1299/1300  था  मंगोल 1302-1303-इसमे अलाउद्दीन ने एकविशाल सेना खाड़ी की  1.इसके शासन के प्रारंभिक वर्षों में हमलासेना परास्त हो गयी
2.सैनिको के लिए सीरी नामक गैरिसननामक शहर बनाया गया 2.देहली-ए-कुहना को खाली करवा कर उसे एक सैनिक छावनी बना दिया
3.किसानो से उपज का 50 प्रतिशत करवसूल  3.अतिरिक्त कर लगाया
4.सैनिको को नगद वेतन देना शुरू

a.बाजार से समान की कीमतों पर नियंत्रण  लागू

4.सस्ती धातुओ का टोकन (सांकेतिक मुद्रा ) चलाई
5.अलाउद्दीन के प्रशासनिक कदम काफी सफल रहे और उसने मंगोल आक्रमण काकाफी सफलतापूर्वक सामना किया   5.असफल प्रशासनिक कदम ,असफल कश्मीर आक्रमण , विशाल सेना भंग ,टोकन मुद्रा वापस लेना पड़ा

 

नोट – मुहम्मद तुगलक दिल्ली का एक मात्र शासक जिसने मंगोलो का इलाका तुरान पर आक्रमण करने की योजना बनाई।

पंद्रहवीं तथा सोलहवीं सताब्दी में सल्तनत –

  • तुगलकवंश के बाद 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर सैय्यद तथा लोदी वंश का राज्य रहा।
  • शेरशाह सूरी ( 1540-1545 ) ने बिहार में अपने चाचा के एक छोटे से इलाके से प्रबंधन के रूप में आगे चलकर उसने मुग़ल सम्राट ( 1530-1540 , 1555-1556 ) तक को चुनौती दी और परास्त किया।
  • सूरी वंश ने केवल 15 वर्ष ( 1540-1555 ) तक शासन किया।
  • अकबर ने ( 1556-1605 ) अपने प्रतिमान के रूप में शेरशाह की प्रशासन को ही अपनाया था।

अन्यत्र ( तीन श्रेणियाँ -ईश्वरीय शांति नाइट और धर्मयुद्ध –

  • तीन श्रेणियों का विचार सबसे पहले ग्यारहवीं सताब्दी में फ़्रांस में सूत्र बद्ध किया गया।
  • इसके अनुसार समाज की तीन वर्गों में विभाजित किया गया -प्रार्थना करने वाला वर्ग, युद्ध करने वाला गर्ग और खेती करने वाला वर्ग।
  • नाइट- योद्धाओं का समूह ( धर्म और ईश्वर की सेवा में समर्पित )
  • ईस्वरीय शांति -ईसाई धर्म का प्रसार करने वालों का समूह।
  • धर्मयुद्ध -मुसलमानो के कब्जे से यरुसलम शहर को छुड़ाने के लिए सैनिक अभियानों की एक श्रृंखला चली ,जिसे क्रूसेड ( धर्मयुद्ध ) कहा गया।

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