कार्यपालिका
कार्यपालिका का अर्थ व्यक्तियों के उस समूह से है जो कायदे-कानूनों को संगठन में रोजाना लागू करते हैं। सरकार के मामले में भी, एक संस्था नीतिगत निर्णय लेती है और नियमों और कायदों के बारे में तय करती है दूसरी उसे लागू करने की जिम्मेदारी निभाती है। सरकार का वह अंग जो इन नियमों-कायदों को लागू करता है और प्रशासन का काम करता है, कार्यपालिका कहलाता है।
कार्यपालिका सरकार का वह अंग है जो विधायिका द्वारा स्वीकृत नीतियों और कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार है। कार्यपालिका प्राय: नीति-निर्माण में भी भाग लेती है। कार्यपालिका का औपचारिक नाम अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न होता है। कुछ देशों में राष्ट्रपति होता है, तो कहीं चांसलर। कार्यपालिका में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मंत्री ही नहीं होते बल्कि इसके अंदर पूरा प्रशासनिक ढांचा (सिविल सेवा के सदस्य) भी आते हैं सरकार के प्रधान और उनके मंत्रियों को राजनीतिक कार्यपालिका कहते हैं और वे सरकार की सभी नीतियों के लिए उत्तरदायी होते हैं लेकिन जो लोग रोष-रोष के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं, उन्हें स्थायी कार्यपालिका कहते हैं।
कार्यपालिका कितने प्रकार की होती है?
सभी देशों में एक ही तरह की कार्यपालिका नहीं होती। आपने अमेरिका के राष्ट्रपति और इंग्लैंड की महारानी के बारे में सुना होगा। लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति की शक्तियाँ और कार्य भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों से बहुत अलग है। इसी प्रकार, इंग्लैंड की महारानी की शक्तियाँ भूटान के राजा से भिन्न है। भारत और फ्रांस दोनों ही देशों में प्रधानमंत्री है, पर उनकी भूमिका अलग-अलग हैं। ऐसा क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हम इनमें से कुछ देशों की कार्यपालिकाओं की प्रकृति पर प्रकाश डालेंगे।
अमेरिका में अध्यक्षात्मक व्यवस्था है और कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति के पास हैं। कनाडा में संसदीय लोकतंत्र और संवैधानिक राजतंत्र है जिसमें महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राज्य की प्रधान और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है। फ्रांस में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अर्ध-अध्यक्षात्मक व्यवस्था के हिस्से हैं। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है पर उन्हें पद से हटा नहीं सकता क्योंकि वे संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
जापान में संसदीय व्यवस्था है जिसमें राजा देश का और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है। इटली में एक संसदीय व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति देश का और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है। रूस में एक अर्(-अध्यक्षात्मक व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति देश का प्रधान और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है। जर्मनी में एक संसदीय व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति देश का नाममात्र का प्रधान और चांसलर सरकार का प्रधान है।
कार्यपालिका की शक्तियों का विकास
व्यवस्थापिका की शक्तियों के हास ने जिस नए आयाम को जन्म दिया है, वह कार्यपालिका की शक्तियों में वृद्धि से सम्बन्ध रखता है। आज राजनीति विज्ञान में राजनीतिक कार्यपालिका की शक्ति से विकास की सर्वत्र चर्चा की जाती है। सभी देशों की शासन-व्यवस्थाओं में कार्यपालिका की शक्ति में होने वाली वृद्धि ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है। आज कार्यपालिका नीति-निर्माण का प्रमुख यन्त्र बन गई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों तथा राज्यों के कल्याणकारी स्वरूप ने कार्यपालिका की ओर सरकार की शक्तियों को झुका दिया है। आज सर्वत्र कार्यपालिका की शक्तियों में होने वाली वृद्धि के प्रमुख कारण माने जाते हैं :-
- अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के कुशल संचालन में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका की अपेक्षा अधिक सफल रही है। इसी कारण आज सभी देशों में कार्यपालिका को विदेश नीति के सफल संचालन की स्वतन्त्रता प्राप्त है। आज अन्तर्राष्ट्रीय समझौते व सन्धियां कार्यपालिका ही करने लगी है। भारत-पाक युद्ध पर शिमला समझौते भारत के कार्यपालक ने ही किया था।
- व्यवस्थापिका का अपनी शक्ति का कुछ भाग प्रदत-व्यवस्थापन के रूप में कार्यपालिका को दिया है। इस शक्ति का प्रयोग करके आज कार्यपालिका प्रभावी कानून बनाने लगी है। इससे विधायिका की शक्ति तो कम हुई है लेकिन कार्यपालिका की शक्ति बढ़ी है।
- आज संचार के साधनों के विकास ने जनता को सीधे कार्यपालिका से जोड़ दिया है। इससे कार्यपालिका का जनता के प्रति उत्तरदायित्व बढ़ा है। अब कार्यपालिका जनता से आमने-सामने पेश हो रही है। कार्यपालिका की जनता के प्रति निकटता ने भी कार्यपालिका का सम्मान बढ़ाया है। आज कार्यपालिका ही राजनीतिक चेतना को बढ़ाने में जनता के साथ सहयोग करके भी व्यवस्थापिका से आगे निकल गई है।
- आज संसद तो निरर्थक वाद-विवाद का केन्द्र मानी जाने लगी है। संसद की बैठकों के दौरान जो व्यवहार जनता के सामने आता है, वह सर्वविदित है। आज हमारे विधायक या सांसद असभ्य व्यवहार के पर्यायवाची बन चुके हैं। आज जनता एक व्यक्ति विशेष में ही अपनी रुचि दिखाने लगी है। जनता देश में एकता देखना चाहती है। ऐसा स्वप्न कार्यपालिका का अध्यक्ष ही पूरा कर सकता है। आज जनता को प्रधानमन्त्री तथा राष्ट्रपति के बारे में लोकप्रिय छवि उभरी है। भारत में वर्तमान कार्यपालिका में जनता का विश्वास बढ़ने का कारण प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का योग्य नेतृत्व ही है। व्यवस्थापिकाओं में ऐसे नेतृत्व की कमी होती जा रही है।
- व्यवस्थापिका के अधिवेशनों की तुलना में कार्यपालिका के अधिवेशन अधिक होते हैं। वह निरन्तर अिधेवेशन में रहने वाली संस्था बनकर उभरी है। वह समाज की पहरेदार, राष्ट्र की रक्षक व प्रशासन की अधिष्ठात्री है। वह समाज हित में सरकार के दूसरे अंगों के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने लगी है। उसकी इस सक्रियता से उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी है।
- आज सरकार की जटिल समस्याओं से निपटने में कार्यपालिका ही अपना उत्तरदायित्व निभाने में सक्षम है। आज शासन की नीतियों का सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन से सम्बन्ध होने के कारण कार्यपालिका का जागरूक होना आवश्यक हो गया है। अपने उत्तरदायित्वों को निभाने तथा पेचिदा राजनीतिक परिस्थितियों से निपटने में सफल रहने के कारण कार्यपालिका के सम्मान में वृद्धि हुई है।
- संविधान संशोधनों ने भी कार्यपालिका के शक्ति क्षेत्र में वृद्धि की है।
- राजनीतिक व्यवस्था में बार बार आने वाले राजनीतिक व आर्थिक संकटों से निपटने के लिए कार्यपालिका के पास आपातकालीन शक्तियां रहती हैं। अपनी इन शक्तियों का कुशलतापूर्वक प्रयोग करके भी कार्यपालिका ने अपनी शक्तियां बढ़ा ली हैं। ;9द्ध कार्यपालिका विधायिका के कानून तथा न्यायालयों के निर्णय भी निष्पक्षता व ईमानदारी से लागू करती है। शासनतन्त्र की धुरी के रूप में वह सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था को गति देने लगी है। इससे उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो रही है।
- राष्ट्रीय संकट के समय कार्यपालिका को सब बन्धनों से मुक्ति मिल जाती है और उसकी शक्तियां असीम हो जाती हैं। कारगिल युद्ध में भारत की कार्यपालिका को सारे देश की जनता व राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त था। भारत में कार्यपालिका को आपातकाल का सामना करने के लिए कुछ संविधानिक सुविधाएं भी दी हैं।
- राजनीतिक दल के माध्यम से भी व्यवस्थापिका की सारी शक्तियां कार्यपालिका में निहित हो जाती हैं। विधायिका में दल के बहुमत के कारण वह संसद में आनी बात मनवाने में सफल रहती है।
- आधुनिक समय में कार्यपालिका के अधिकारियों और संस्थाओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होने के कारण भी कार्यपालिका की कार्य-निष्पादन की व्यवस्था में सुधार आने के कारण ही कार्यपालिका का सम्मान बढ़ा है।
- कार्यपालिका की कार्यकुशलता व योग्यता के कारण भी उसका सम्मान बढ़ा है। कार्यपालिका में योग्य व अनुभवी व्यक्ति ही होते हैं, जबकि विधायिका में अपनढ़, असभ्य तथा अनुभवहीन व्यक्ति होते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में होने वाले हर कार्य उनकी योग्यता व अनुभव का ही परिणाम होता हे। कानून निर्माण व नीति निर्माण में भी उनकी भूमिका होने के कारण व्यवस्थापिका की शक्ति सरक कर उसके पास आ गई है।
- लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा ने भी कार्यपालिका की भूमिका में वृद्धि की है।
- कार्यपालिका द्वारा विधानपालिका के अधिवेशन न होने की स्थिति में अध्यादेश जारी किया जाता है। अपने दलीय बहुमत के कारण वह बाद में उसे संसद से स्वीकृत भी करा लेती है। इससे भी कार्यपालिका की शक्ति बढ़ी है।
- आर्थिक नियोजनतन्त्र पर भी कार्यपालिका का एकाधिकार होने के कारण उसकी शासन में प्रभावशीलता बढ़ी है।
- कार्यपालकों के करिश्माई व्यक्तित्व ने भी कार्यपालिका का सम्मान बढ़ाया है। भारत में प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी, अमेरिका में राष्ट्रपति रुजवेल्ट, फ्रांस के राष्ट्रपति जनरल डिगाल, अफ्रीका में नेल्सन मंडेला, मिश्र के कर्नल नासीर अपने करिश्माई व्यक्तित्व के कारण ही लोकप्रिय कार्यपालक हुए हैं। उनके कारण ही कार्यपालिका की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है।
- संसदीय देशों में कार्यपालिका को निम्न सदन को भंग करने की शक्ति भी प्राप्त है। भारत में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह पर निम्न सदन को भंग कर सकता है। इस अधिकार के कारण भी इन देशों में कार्यपालिका को महत्वपूर्ण शक्ति का स्वामी माना जाता है।
- स्वयं विधायिका की अक्षमता तथा असमर्थता भी इसकी शक्तियों में वृद्धि करने के लिए उत्तरदायी है। विकासशील देशों में कार्यपालिका की असीमित शक्तियां व्यवस्थापिकाओं की कार्य-निष्पादन में असमर्थता का ही परिणाम है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बदलती परिस्थितियों तथा राष्ट्रीय विकास की आवश्यकता ने कार्यपालिका को शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता महसूस करा दी। लोक कल्याण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कार्यपालिका का शक्तिशाली होना आवश्यक माना जाने के कारण कार्यपालिका के व्यावहारिक ढाँचे में अनेक परिवर्तन हुए हैं। अब कार्यपालिकाएं कानून लागू करने वाली औपचारिक संस्थाएं मात्र न रहकर राजनीतिक जीवन के हर क्षेत्र में अपना प्रभाव जमा चुकी हैं। आज कार्यपालिका का व्यवहारिक रूप बदल चुका है। स्वयं व्यवस्थापिका का कार्य-व्यवहार भी दोषपूर्ण होने के कारण कार्यपालिका की शक्तियों में वृद्धि के लिए उत्तरदायी है। प्रशासनिक कार्यों की जटिलता तथा उनसे निबटने में सक्षम कार्यपालिका ही आज सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर चुकी है और भविष्य में भी उसकी शक्तियों व प्रतिष्ठा में वृद्धि होने की पूरी सम्भावना है।