जॉन लॉक के मानव स्वभाव पर विचार
जॉन लॉक के मानव स्वभाव पर विचार हॉब्स से सर्वथा विपरीत हैं। जॉन लॉक के मानव स्वभाव पर विचार उसकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘मानव-विवेक से सम्बन्धित निबन्ध’ में पाए जाते हैं। जॉन लॉक का यह विश्वास है कि मनुष्य एक बुद्धियुक्त सामाजिक प्राणी है। अत: वह एक नैतिक व्यवस्था को मानकर उसके अनुसार चलता है। वह स्वाथ्र्ाी, स्पर्धात्मक तथा लड़ाकू नहीं है। वह अन्य प्राणियों के प्रति सद्भावना युक्त तथा प्रेमयुक्त होता है तथा वह परोपकार और न्याय की भावना को ग्रहण कर लेता है। वह अन्यों के प्रति शांति तथा सौहार्द बनाए रखना चाहता है और स्वयं को एक सामाजिक बन्धन में बाँध कर रखता है। उदारवादी विचारक होने के नाते जॉन लॉक के विचार मानव-प्रकृति के बारे में व्यक्ति की गरिमा एवं गौरव के अनुरूप हैं।
जॉन लॉक के अनुसार मनुष्य विवेकशील प्राणी है, क्योंकि वह अपने हित को समझता है और यदि उसे स्वतन्त्र रहने दिया जाए तो वह अपना हित-साधन करने में समर्थ है। अपने अनुभव के आधार पर मानव-बुद्धि विवेकपूर्ण निष्कर्ष निकालने में पूर्ण समर्थ है। मानव-प्रकृति के बारे में जॉन लॉक का दृष्टिकोण नैतिकतावादी है। जॉन लॉक का मानना है कि अपनी नैतिक प्रवृत्ति के कारण ही मानव पशुओं से अलग है। मानव विश्व व्यवस्था का एक अंग है और यह सारा संसार एक नैतिक व्यवस्था है। मानवीय विवेक इस विश्व नैतिक व्यवस्था और मानव में सम्बन्ध स्थापित करता है। जॉन लॉक का कहना है कि मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के नाते इस विश्व व्यवस्था में आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे की सहायता करने को तैयार हो जाता है, लेकिन कभी-कभी उसमें शत्रुता, द्वेष, हिंसा तथा परस्पर भत्र्सना भी हावी हो जाती है। किन्तु अपनी नैतिक प्रवृत्ति, विवेक एवं भौतिक आवश्यकताओं के कारण वह समाज से बाहर जाना नहीं चाहता। वह समाज में रहकर अपने को सामाजिक मानदण्डों के अनुरूप् ढालने का प्रयत्न करता है।
जॉन लॉक का मानना है कि विवेकशील प्राणी होने के नाते अपने अस्थायी स्वार्थपन को त्यागकर समाज का अभिन्न अंग बना रहता है। जॉन लॉक का कहना है कि सभी मानव जन्म से एक-दूसरे के समान हैं – शारीरिक दृष्टिकोण से नहीं अपितु नैतिक दृष्टिकोण से। प्रत्येक व्यक्ति एक ही गिनाजाता है। अत: वह नैतिक दृष्टि से एक-दूसरे के बराबर है। कोई भी किसी दूसरे की इच्छा पर आश्रित नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी इच्छाएँ हैं। ये समस्त इच्छाएँ मानवीय क्रियाओं का स्रोत हैं। इच्छा पूर्ण होने पर व्यक्ति सुख तथा पूरान होने पर दु:ख का अनुभव करता है। इसलिए मनुष्य हमेशा सुख प्राप्ति के प्रयास ही करता है। मानव सदैव उन्हीं कार्यों को करता है जिनसे उेस आनन्द मिले और दु:ख दूर हो।
जॉन लॉक का कहना है कि मनुष्य को वही कार्य करना चाहिए जिससे सामूहिक प्रसन्नता प्राप्त हो क्योंकि सामूहिक प्रसन्नता ही कार्यों की अच्छाई-बुराई का मापदण्ड है। जॉन लॉक के अनुसार सभी मनुष्य सदा बौद्धिक रूप से विचार कर सुख की प्राप्ति नहीं करते। मनुष्य वर्तमान के सुख को भविष्य के सुख से एवं समीप के सुख को दूर के सुख से अधिक महत्त्च देते हैं। इससे व्यक्तिगत हित सार्वजनिक से मिल जाते हैं। अतएव जॉन लॉक ने कहा है कि जहाँ तक सम्भव हो मनुष्यों को दूरस्थ हितों से प्रेरित होकर कार्य करना चाहिए जिससे व्यक्तिगत हित एवं सार्वजनिक हित में समन्वय स्थापित हो सके। मनुष्य को दूरदश्री, सतर्क और चतुर होना चाहिए।
जॉन लॉक को मनुष्य की स्वशासन की योग्यता पर पूरा भरोसा है। उसका मानना है कि अपनी बुद्धि और विवेकशीलता द्वारा मनुष्य अपने कर्त्तव्यों और प्राकृतिक कानूनों का पालन कर सकता है। वह अपनी इच्छानुसार कार्यों को करने से ही अपना जीवन शान्तिमय बना सकता है।
मानव स्वभाव की अवधारणा के निहितार्थ
जॉन लॉक की मानव प्रकृति अवधारणा की प्रमुख बातें हैं :-
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मनुष्य एक सामाजिक तथा विवेकशील प्राणी है
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मनुष्य शांति एवं भाई-चारे की भावनवा से रहना चाहता है
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3ण् मनुष्य के स्वाथ्र्ाी होते हुए भी उसमें दूसरों के प्रति सहानुभूति तथा परोपकार की भावना है।
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4ण् सभी व्यक्ति नैतिक रूप से समान होते हैं।
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जॉन लॉक तथा हॉब्स की मानव स्वभाव की तुलना
हॉब्स तथा जॉन लॉक के मानव स्वभाव की अवधारणा के अध्ययन के बाद अन्तर देखने को मिलते हैं :-
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हॉब्स ने मनुष्य को स्वाथ्र्ाी तथा आत्मकेन्द्रित बताया है, लेकिन जॉन लॉक ने उसे परोपकारी तथा सदाचारी बताया है।
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हॉब्स मनुष्य को असामाजिक तथा बुद्धिहीन प्राणी कहता है, लेकिन जॉन लॉक उसे सामाजिक तथा विवेकशील प्राणी बताता है।
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हॉब्स मनुष्य को पशु के समान मानता है, लेकिन जॉन लॉक उसे नैतिक गुण सम्पन्न मानता है।
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हॉब्स मनष्यों की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों के आधार पर सभी मनुष्यों को समान मानता है, लेकिन जॉन लॉक इसका विरोध करते हुए केवल नैतिक रूप से सभी को समान मानता है।
जॉन लॉक के मानव स्वभाव की अवधारणा की आलोचना
जॉन लॉक के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों की आलोचनाएँ की गई है :-
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जॉन लॉक का नैतिकता का सिद्धान्त सन्देहेहेहपूर्ण एवं अस्पष्ट है : जॉन लॉक नैतिक रूप से सभी मनुष्यों को समान मानता है लेकिन वह यह स्पष्ट नहीं करता कि अच्छाई की कसौटी क्या है। इसलिए यह सिद्धान्त सन्देहपूर्ण एवं अस्पष्ट है। इसमें वैचारिक स्पष्टता का पूर्णत: अभाव है।
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जॉन लॉक के मानव-प्रकृ्रति सम्बन्धी विचारों में विरोधाभास व असंगति है : जॉन लॉक मनुष्य को एक तरफ तो परोपकारी, शान्त एवं सद्भावी प्रकृति का मानता है और दूसरी ओर उसका मानना है कि व्यक्ति स्वाथ्र्ाी है। इससे वैचारिक असंगति एवं विरोधाभास का जन्म होता है।
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जॉन लॉक की मानव प्रकृ्रति की अवधारणा एक पक्षीय है : जॉन लॉक ने भी हॉब्स की तरह ही मानव स्वभाव के एक पक्ष पर ही विचार किया है। जॉन लॉक मानव स्वभाव को अच्छा बताता है। परन्तु मानव में सहयोगी, स्नेही, विवेकपूर्ण एवं सामाजिक प्राणी होने के अलावा दैत्य प्रवृत्तियाँ भी हैं। जॉन लॉक ने इस तथ्य की अनदेखी की है कि मानव दैत्य और देव प्रकृतियाँ दोनों का मिश्रण है। उसकी नज़र में मानव केवल अच्छाइयों का प्रतीक है। इस कथन का कोई ऐतिहासिक प्रमाण जॉन लॉक के पास नहीं है।
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जॉन लॉक उपयोगितावाद को बढ़ा़ावा देता है : जॉन लॉक की दृष्टि में मनुष्य सदैव सुख प्राप्ति के ही कार्य करता है। वह मानव जीवन का उद्देश्य सुख प्राप्ति ही मानता है। इससे उपयोगितावाद को ही बढ़ावा मिलता है।
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जॉन लॉक का अपने इस मत के लिए कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है, कोई तार्किक या वैज्ञानिक आधार नहीं है।