राजभाषा
सामान्यतया ‘राजाभाषा’ भाषा के उस रूप को कहते हैं जो राजकाज में प्रयुक्त होता है। भारत की आजादी के बाद एक राजभाषा आयोग की स्थापना की गई थी। उसी आयोग ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी को भारत की राजभाषा बनायी जाए। तदनुसार संविधान में इसे राजभाषा घोषित किया गया था। प्रादेशिक प्रशासन में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड राजभाषा हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं। साथ ही दिल्ली में भी इसका प्रयोग हो रहा है और केन्द्रीय सरकार भी अपने अनेकानेक कायोर्ं में इनके प्रयोग को बढ़वा दे रही है।
राजभाषा हिन्दी की विशेषताएँ
साहित्यिक हिन्दी में जहाँ अभिधा, लक्षणा और व्यंजना के माध्यम से अभिव्यक्ति की जाती है। राजभाषा हिन्दी में केवल अभिधा का ही प्रयोग होता है।
साहित्यिक हिन्दी में एकाधिकार्थता-चाहे शब्द के स्तर पर हो चाहे वाक्य के स्तर पर, काव्य-सौन्दर्य के अनुकूल मानी जाती है। इसके विपरीत राजभाषा हिन्दी में सदैव एकार्थता ही काम्य होती है।
राजभाषा अपने पारिभाषिक शब्दों में भी हिन्दी की अन्य प्रयुक्तियों से पूर्णत: भिन्न है। इसके अधिकांश शब्द प्राय: कार्यालयी प्रयोगों के लिए ही उसके अपने अर्थ में प्रयुक्त होते है। जैसे :
- आयुक्त = Commissioner
- निविदा = Tender
- विवाचक = Arbitrator
- आयोग = Commission
- प्रशासकी = Administrative
- मन्त्रालय= Ministry
- उन्मूलन =Abolition
- आबंटन = Alloment आदि।
हिन्दी में सामान्यत: समस्रोतीय घटकों से ही शब्दों की रचना होती है। जैसे संस्कृत शब्द निर्धन + संस्कृत भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय ‘ता’ = निर्धनता। किन्तु अरबी-फारसी शब्द गरीब + ता = गरीबता। किन्तु अरबी-फारसी शब्द गरीब + अरबी-फारसी भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय ‘ई’= गरीबी। हिन्दी में न तो निर्धन+ई=निर्धनी बनेगा और न ही गरीब+ता=गरीबता। लेकिन राजभाषा में काफी सारे शब्द विषम स्रोतीय घटकों से बने है। जैसे :
- उपकिरायेदार = Sub-letting
- जिलाधीश = Collector
- उपजिला = Sub-district
- अरद्द = uncancelled
- अस्टांपित = unstamped
- अपंजीकृत = unregistered
- मुद्राबन्द = sealed
- राशन-अधिकारी = ration-officer … आदि। अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चीनी, रूसी आदि समृद्ध भाषाओं में एक ही शैली मिलती है, पर राजभाषा हिन्दी में एक ही शब्द के लिए कई शब्द हैं। जैसे
- कार्यालय -दफ़्तर – ऑफिस
- न्यायालय-अदालत-कोर्ट-कचहरी
- शपथ-पत्र-हलफनामा-एफिडेविट
- विवाह-शादी-निकाह आदि।
राजभाषा हिन्दी का प्रयोग राजतन्त्र का कोई व्यक्ति करता है जो प्रयोग के समय व्यक्ति न हो कर तंत्र का एक अंग होता है। इसलिए वह वैयक्तिक रूप से कुछ न कहकर निर्वैयक्तिक रूप से कहता है। यही कारण है कि हिन्दी की अन्य प्रयुक्तियों में जबकी कतर्ृवाच्य की प्रधानता होती है, राजभाषा हिन्दी के कार्यालयी रूप में कर्मवाच्य की प्रधानता होती है। उसमें कथन व्यक्ति-सापेक्ष न होकर व्यक्ति-निरपेक्ष होता है। जैसे : ‘सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है’, ‘कार्यवाही की जाए’, ‘स्वीकृति दी जा सकती है’ आदि।
राजभाषा का स्वरूप एवं क्षेत्र
स्वतंत्रता पूर्व ब्रिटिश शासन काल में समस्त राजकाज अंग्रेजी में होता था। सन् 1947 में स्वतंत्रता की प्राप्ति के पश्चात् महसूस किया गया कि स्वतंत्र भारत देश की अपनी राजभाषा होनी चाहिए; एक ऐसी राजभाषा जिससे प्रशासनिक तौर पर पूरा देश जुड़ा रह सके। भारतवर्ष के विचारों की अभिव्यक्ति करनेवाली सम्पर्क भाषा ‘हिन्दी’ को ‘राजभाषा’ के रूप में स्वतंत्र भारत के संविधान में 14 सितम्बर, 1949 में राजभाषा समिति ने मान्यता दी। संविधान सभा में भारतीय संविधान के अन्तर्गत हिन्दी को राजभाषा घोषित करने का प्रस्ताव दक्षिण भारतीय नेता गोपालस्वामी अय्यड़्गार ने रखा था। इससे हिन्दी को देश की संस्कृति, सभ्यता, एकता तथा जनता की समसामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली भाषा के रूप में भारतीय संविधान ने देखा है। 26 जनवरी, 1950 से संविधान लागू हुआ और हिन्दी को राजभाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता मिली।
हमारे संविधान में हिन्दी को राजभाषा स्वीकार किए जाने के साथ हिन्दी का परम्परागत अर्थ, स्वरूप तथा व्यवहार क्षेत्र व्यापकतर हो गया। हिन्दी के जिस रूप को राजभाषा स्वीकार किया गया है, वह वस्तुत: खड़ीबोली हिन्दी का परिनिष्ठित रूप है। जहाँ तक राजभाषा के स्वरूप का प्रश्न है इसके सम्बन्ध में संविधान में कहा गया है कि इसकी शब्दावली मूलत: संस्कृत से ली जाएगी और गौणत: सभी भारतीय भाषाओं सहित विदेश की भाषाओं के भी प्रचलित शब्दों को अंगीकार किया जा सकता है। राजभाषा शब्दावली (जैसे : अधिसूचना, निदेश, अधिनियम, आकस्मिक अवकाश, अनुदान आदि) को देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी एक अलग प्रयुक्ति (register) है। शब्द निर्माण के सम्बन्ध में राजभाषा के नियम बहुत ही लचीले हैं। यहाँ किसी भी दो या दो से अधिक भाषाओं के शब्दों की संधि आराम से की जा सकती है। जैसे ‘उप जिला मजिस्टे्रट’, ‘रेलगाड़ी’ आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि राजभाषा के अन्तर्गत शब्द निर्माण के नियम बहुत ही लचीले हैं।
राजभाषा का सम्बन्ध प्रशासनिक कार्य प्रणाली के संचालन से होने के कारण उसका सम्पर्क बुद्धिजीवियों, प्रशासकों, सरकारी कर्मचारियों तथा प्राय: शिक्षित समाज से होता है। स्पष्ट है कि राजभाषा जनमानस की भावनाओं-सपनों-चिन्तनों से सीधे-सीधे न जुड़कर एक अनौपचारिक माध्यम के रूप में प्रशासन तथा प्रशासित के बीच सेतु का काम करती है। बावजूद इसके सरकार की नीतियों को जनता तक पहुँचाने का यह एक मात्र माध्यम है। साधारण जनता में प्रशासन के प्रति आस्था उत्पन्न करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रशासन का सारा कामकाज जनता की भाषा में हो जिससे प्रशासन और जनता के बीच की खाई को पाटा जा सके।
यह राजभाषा हिन्दी सरकारी कार्यालयों में प्रयुक्त होकर ‘कार्यालयी हिन्दी’, ‘सरकारी हिन्दी’, ‘प्रशासनिक हिन्दी’ के नाम से हिन्दी के एक नए स्वरूप को रेखांकित करती है। राजभाषा का प्रयोग सरकारी पत्र व्यवहार, प्रशासन, न्याय-व्यवस्था तथा सार्वजनिक कार्यों के लिए किया जाता है जिसमें पारिभाषिक शब्दावली का बहुतायत प्रयोग किया जाता है। अधिकतर मामले में अनुवाद का सहारा लिये जाने के कारण यह ‘कार्यालयी हिन्दी’ अपनी प्रकृति में निहायत ही शुष्क, अनौपचारिक तथा सूचना प्रधान होती है। जहाँ तक ‘राजभाषा हिन्दी’ के क्षेत्र का प्रश्न है इसके प्रयोग के तीन क्षेत्र हैं : 1. विधायिका, 2. कार्यपालिका और 3. न्यायपालिका। ये राष्ट्र के तीन प्रमुख अंग हैं।
राजभाषा का प्रयोग इन्हीं तीन प्रशासन के अंगों में होता है। विधायिका क्षेत्र के अन्तर्गत आनेवाले संसद के दोनों सदन और राज्य विधान मंडल के दो सदन आते हैं। कोई भी सांसद/विधायक हिन्दी या अंग्रेजी या प्रादेशिक भाषा में विचार व्यक्त कर सकता है, परन्तु संसद में कार्य हिन्दी या अंग्रेजी में ही किया जाना प्रस्तावित है। कार्यपालिका क्षेत्र के अंतर्गत मंत्रालय, विभाग, समस्त सरकारी कार्यालय, स्वायत्त संस्थाएँ, उपक्रम, कम्पनी आदि आते हैं। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग प्रस्तावित हैं जबकि राज्य स्तर पर वहाँ की राजभाषाएँ इस्तेमाल होती हैं। न्यायपालिका में राजभाषा का प्रयोग मुख्यत: दो क्षेत्रों में किया जाता है-कानून और उसके अनुरूप की जाने वाली कार्यवाही अर्थात् कानून, नियम, अध्यादेश, आदेश, विनियम, उपविधियाँ आदि और उनके आधार पर किसी मामले में की गई कार्रवाई और निर्णय आदि।
राजभाषा के कार्य क्षेत्रों को अधिक स्पष्ट करते हुए आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी : समस्याएँ एवं समाधान’ में लिखा है : ‘राजभाषा का प्रयोग मुख्यत: चार क्षेत्रों में अभिप्रेत है-शासन, विधान, न्यायपालिका और कार्यपालिका। इन चारों में जिस भाषा का प्रयोग हो उसे राजभाषा कहेंगे। राजभाषा का यही अभिप्राय और उपयोग है।’
राजभाषा के संवैधानिक प्रावधान
भारत के संविधान के 5वें, 6वें तथा 17वें, इन तीन भागों में राजभाषा सम्बन्धी प्रावधान है। इनमें भाग-5 के अनुच्छेद 120 में ‘संसद में प्रयुक्त होने वाली भाषा’ तथा भाग-6 के अनुच्छेद 210 में ‘राज्य के विधान मण्डलों में प्रयुक्त होनेवाली भाषा’ के सम्बन्ध में निर्देश है। 17वें भाग के चार अध्यायों में राजभाषा सम्बन्धी उपबंध प्रस्तुत किए गए हैं।
इनमें प्रथम अध्याय में संघ की राजभाषा के रूप में 343 और 344 अनुच्छेद हैं।
द्वितीय अध्याय में 345, 346, 347 अनुच्छेदों में राजभाषा के रूप में प्रान्तीय भाषाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में निर्देश दिए गए हैं।
तृतीय अध्याय के अनुच्छेद 348, 349 में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की भाषा के सम्बन्ध में निर्देश किया गया है।
चौथे अध्याय के अनुच्छेद 350 में अन्याय निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयुक्त भाषा का निर्देश है जबकि 351 में हिन्दी भाषा के विकास के सम्बन्ध में विशेष निर्देश दिए गए हैं।
संघ की भाषा
अनुच्छेद 343. संघ की राजभाषा
- संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।
- खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था : परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
- इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्, विधि द्वारा-
-
- (अंग्रेजी भाषा का, या
- अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ।
इस प्रकार अनुच्छेद 343 के प्रावधानों के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखि हिन्दी संघ की राजभाषा स्वीकृत हुई तथा भारतीय अंकों के स्थान पर उनके अंतर्राष्ट्रीय रूप का प्रयोग होगा अर्थात् 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के स्थान पर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 लिखा जाएगा ।
अनुच्छेद 344. राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति
- राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारम्भ से पाँच वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात् ऐसे प्रारम्भ से दस वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा एक आयोग गठित करेगा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति नियुक्त करे और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिश्चित की जाएगी।
- आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को-
- (क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग;
- (ख) संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बन्धनों;
- (ग) अनुच्छेद 348 में उल्लिखित सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा;
- (घ) संघ के किसी एक या अधिक विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंकों के रूप;
- (ड़) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा और उनके प्रयोग के सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्देशित किए गए किसी अन्य विषय, के बारे में सिफारिश करे।
- खंड (2) के अधीन अपनी सिफारिशें करने में, आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक् ध्यान रखेगा।
- एक समिति गठित की जाएगी जो तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे और दस राज्य सभा के सदस्य होंगे जो क्रमश: लोक सभा के सदस्यों और राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
- समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह खंड (1)के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करे और राष्ट्रपति को उन पर अपनी राय के बारे में प्रतिवेदन दे।
- अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति खंड (5) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस सम्पूर्ण प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश दे सकेगा।
इस प्रकार अनुच्छेद 344 के प्रावधानों के अनुसार संविधान के प्रारम्भ होने के पाँच वर्ष बाद और उसके दस वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनायेंगे। यह आयोग अन्य बातों के साथ-साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में संघ के राजकीय प्रयोजनों में सब या किसी एक के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खण्ड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई है।
प्रादेशिक भाषाएँ
अनुच्छेद 345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ
अनुच्छेद 346 और अनुच्छेद 347 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगा : परन्तु जब तक राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।
इस प्रकार अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्य का विधान मण्डल विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए राजभाषा या राजभाषाएँ स्वीकार कर सकता है। उदाहरण के लिए इस व्यवस्था के द्वारा ही ओड़िशा और आन्ध्र प्रदेश की सीमा से लगते हुए जिलों में ओड़िआ या तेलुगु को कुछ शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार किया जा सकता है। इसी तरह महाराष्ट्र के कुछ जिलों में, जो कर्नाटक की सीमा से लगते हैं, कन्नड़ को किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार किया जा सकता है।
अनुच्छेद 346. एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा –संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी : परन्तु यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।
इस प्रकार अनुच्छेद 346 के अनुसार दो राज्यों के बीच पत्र-व्यवहार अथवा किसी राज्य और संघ के बीच पत्र-व्यवहार उसी भाषा में होगा जो संघ सरकार के शासकीय प्रयोजनों के लिए राजभाषा के रूप में प्राधिकृत हो।
अनुच्छेद 347. किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में विशेष उपबंध – यदि इस निमित्त माँग किए जाने पर राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए। इस प्रकार अनुच्छेद 347 के अनुसार किसी राज्य के किसी विशेष जन समुदाय की भाषा को शासकीय मान्यता दी जा सकती है।
उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा
अनुच्छेद 348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा –
- इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक-
-
- उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी,
- (i) संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन में पुर:स्थापित किए जाने वाले सभी विधेयकों या प्रस्तावित किए जाने वाले उनके संशोधनों के, (ii) संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के, और (iii) इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के, प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।
- खंड(1) के उपखंड (क) में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा : परन्तु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश को लागू नहीं होगी।
- खंड(1) के उपखंड(ख) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी राज्य के विधान-मंडल ने, उस विधान-मंडल में पुर:स्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में अथवा उस उपखंड के पैरा (iii) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है, वहाँ उस राज्य के राजपत्र में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
इस प्रकार अनुच्छेद 348 के अनुसार उच्चतम न्यायालय तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय की सारी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी तथा संसद के किसी भी सदन या राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन में प्रस्तुत विधेयकों या उनके प्रस्तावित संशोधनों की भाषा अंग्रेजी होगी। साथ ही संसद या राज्य विधान- मंडल द्वारा पारित सभी कानूनों और राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा जारी किए गए सभी अध्यादेशों और सभी आधिकारिक आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी में होंगे। किन्तु यह व्यवस्था स्थायी न होकर संक्रमणशील व्यवस्था है, क्योंकि यह तब तक लागू रहेगी जब तक संसद कानून बना कर अन्य कोई व्यवस्था न करे। राष्ट्रपति की सहमति से राज्यपाल हिन्दी या राज्य की राज्यपाल का इस्तेमाल उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों के लिए प्राधिकृत कर सकते हैं किन्तु उच्च न्यायालय के निर्णय, डिक्री या आदेश अंग्रेजी में ही होंगे।
अनुच्छेद 349. भाषा से सम्बन्धित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया – इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि के दौरान, अनुच्छेद 348 के खंड (1) में उल्लिखित किसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए उपबंध करने वाला कोई विधेयक या संशोधन संसद के किसी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पुर:स्थापित या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा और राष्ट्रपति किसी ऐसे विधेयक को पुर:स्थापित या किसी ऐसे संशोधन को प्रस्तावित किए जाने की मंजूरी अनुच्छेद 344 के खंड(1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों पर और उस अनुच्छेद के खंड(4) के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् ही देगा, अन्यथा नहीं।
इस प्रकार अनुच्छेद 349 के अनुसार संविधान के लागू होने के पन्द्रह वर्ष की कालावधि के भीतर सिर्फ अंग्रेजी भाषा का पाठ ही प्राधिकृत पाठ माना जाएगा। अन्य किसी भाषा के प्राधिकृत पाठ के लिए राष्ट्रपति भाषा आयोग की संस्तुतियों एवं संसदीय समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के बाद स्वीकृति दे सकते हैं।
विशेष निदेश
अनुच्छेद 350. व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा – प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।
(क) प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ- प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निदेश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।
(ख) भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के लिए विशेष अधिकारी- (1) भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के लिए एक विशेष अधिकारी होगा, जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेगा। (2) विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह इस संविधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के लिए उपबंधित रक्षोपायों से सम्बन्धित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन विषयों के सम्बन्ध में ऐसे अन्तरालों पर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और सम्बन्धित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा। इस प्रकार अनुच्छेद 350 के प्रावधानों के अनुसार कोई भी व्यक्ति संघ अथवा राज्य की किसी भी भाषा में अपना अभ्यावेदन दे सकता है।
अनुच्छेद 351. हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश – संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यत: संस्कृत से और गौणत: अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।
इस प्रकार अनुच्छेद 351 के अनुसार हिन्दी के विकास का महत्त्वपूर्ण दायित्व केन्द्र सरकार को दिया गया है। केन्द्र हिन्दी भाषा को इस रूप में विकसित करे कि उसमें मुख्यत: संस्कृत के तथा गौण रूप में अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द आएँ, वह भारत की मिश्रित संस्कृति की झाँकी प्रस्तुत करे तथा उसका प्रयोग पूरे राष्ट्र में किया जा सके।
राजभाषा हिंदी सम्बन्धी विभिन्न समितियां
- हिन्दी सलाहकार समितियाँ
- संसदीय राजभाषा समिति
- केन्द्रीय राजभाषा
- नगर राजभाषा
- राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ
हिन्दी सलाहकार समितियाँ
भारत सरकार की राजभाषा नीति के सूचारू रूप से कार्यान्वयन के बारे में सलाह देने के उद्देश्य से विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में हिन्दी सलाहकार समितियों की व्यवस्था की गई। इस समितियों के अध्यक्ष सम्बन्धित मंत्री होते हैं और उनका गठन ‘केन्द्रीय हिन्दी समिति’ (जिसके अध्यक्ष माननीय प्रधानमंत्री जी हैं) सिफारिश के आधार पर बनाए गए मार्गदश्र्ाी सिद्धान्तों के अनुसार किया जाना उपक्षित है। ये समितियाँ अपने-अपने मंत्रालयों/विभागों/उपक्रमों में हिन्दी की प्रगति की समीक्षा करती हैं, विभाग में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने के तरीके सोचती हैं और राजभाषा नीति के अनुपालन के लिए ठोस कदम उठाती है। नियमानुसार इनकी बैठकें 3 महीने में एक बार अवश्य होनी चाहिए।
संसदीय राजभाषा समिति
राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा के तहत यह समिति गठित की गई है। इसमें 20 लोक सभा के व 10 राज्य सभा के सदस्य होते हैं जिनका चुनाव एकल संक्रमणीय तरीके से किया जाता है। इस समिति में 10-10 सदस्यों वाली 3 उपसमितियाँ बनार्इं गई हैं, प्रत्येक उपसमिति का एक समन्वयक होता है। यह समिति केन्द्र सरकार के अधीन आने वाली/सरकार द्वारा वित्त पोषित सभी संस्थानों का समय-समय पर निरीक्षण करती है और राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन में रखवाते हैं और राज्य सरकारों को भिजवाते हैं। राजभाषा के क्षेत्र में यह सर्वोच्च अधिकार प्राप्त समिति है।
केन्द्रीय राजभाषा
कार्यान्वयन समिति राजभाषा विभाग के सचिव तथा भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार की अध्यक्षता में सभी मंत्रालयों/विभागों की कार्यान्वयन समितियों में समन्वय का कार्य यह समिति करती है। विभिन्न समितियों के अध्यक्ष (संयुक्त सचिव पद के समान) तथा मंत्रालयों में राजभाषा का कार्य सम्पादन करने वाले निदेशक तथा उपसचिव इसके सदस्य होते हैं। यह समिति यथासंशोधित राजभाषा अधिनियमों के उपबंधों तथा सरकारी प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग और केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों के गृह मंत्रालय द्वारा समय-समय पर जारी किये गये अनुदेशों के कार्यान्वयन में हुई प्रगति का पुनरीक्षण करती है और उनके अनुपालन में आयी कठिनाइयों के निराकरण के उपायों पर विचार करती है।
नगर राजभाषा
कार्यान्वयन समितियाँ बड़े-बड़े नगरों में जहाँ केन्द्रीय सरकार के दस या उससे अधिक कार्यालय हैं, वहाँ नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया गया। सन् 1976 के आदेश के अनुसार इनका गठन किया गया। इन सम्मिलित बैठकों में हिन्दी प्रशिक्षण, हिन्दी टाइपराइटिंग तथा हिन्दी आशुलिपि के प्रशिक्षण, देवनागरी लिपि के टाइपराइटरों की उपलब्धि आदि के सम्बन्ध में अनुभव होने वाली सामान्य कठिनाइयों के बारे में चर्चा की जाती है और नगर के विभिन्न कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए जो उपाय किये गये हैं उनसे परस्पर लाभ उठाया जाता है।
जिन नगरों में ‘नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों’ का गठन होगा उनकी बैठकों में अपने कार्यान्वयन के प्रतिनिधि के रूप में राजभाषा अधिकारी भाग लेते हैं। केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद् की शाखाओं के अधिकारी भी इसमें निमंत्रित किये जाते हैं। सन् 1979 के आदेश द्वारा इसके कार्यों में विस्तार कर निम्नलिखित कर्त्तव्य निश्चित किये गये :
- राजभाषा अधिनियम/नियम और सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के सम्बन्ध में भारत सरकार द्वारा जारी किए गये आदेशों और हिन्दी के प्रयोग से सम्बन्धित वार्षिक कार्यक्रम के कार्यान्वयन की स्थिति की समीक्षा।
- नगर के केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के सम्बन्ध में किये जाने वाले उपायों पर विचार।
- हिन्दी के सन्दर्भ सहित्य, टाइपराइटरों, टाइपिस्टों, आशुलिपिकों आदि की उपलब्धि की समीक्षा।
- हिन्दी, हिन्दी टाइपिंग तथा हिन्दी आशुलिपि के प्रशिक्षण से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार। इस प्रकार की बैठकें वर्ष में दो बार होती हैं। इनकी अध्यक्षता नगर के वरिष्ठतम अधिकारी करते हैं। इन समितियों में नगर में स्थित सभी केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों तथा उपक्रमों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं, अपने-अपने कार्यालयों की तिमाही प्रगति रिपोर्ट की समीक्षा करते हैं और हिन्दी के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए सुझाव देते हैं। प्रारम्भ में ऐसे नगरों की संख्या सीमित थी, अब बढ़ती जा रही है। हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने में इन बैठकों से विशेष लाभ हुआ है। इस हेतु हर वर्ष विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन इस समिति की अध्यक्षता में आयोजित किया जा रहा है।
राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ
प्रत्येक मंत्रालय/विभाग में राजभाषा-आदेशों का कार्यान्वयन ठीक-ठीक चलाने के लिए राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन कार्यालय ज्ञापन सं. 6/63/64-रा.भा. दिनांक 10-12-1964 के आधार पर सन् 1965 में किया गया। इस समिति के सुपुर्द मोटे तौर पर निम्नलिखित कार्य सौंपे गये :
- हिन्दी के प्रयोग के सम्बन्ध में गृह मंत्रालय के अनुदेशों के कार्यान्वयन का पुनरीक्षण करना और उस बारे में आरम्भिक तथा अन्य कार्रवाई करना।
- तिमाही प्रगति रिपोर्टों का पुनरीक्षण करना।
- हिन्दी-भाषी क्षेत्रों से प्राप्त तिमाही रिपोर्ट का पुनरीक्षण।
- कार्यान्वयन सम्बन्धी कठिनाइयों को देखना और उनका हल निकालना।
- हिन्दी के प्रशिक्षण के बारे में अनुदेशों का परिपालन तथा हिन्दी टंकण तथा आशुलिपि में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों को उपयुक्त संख्या में भेजना।
केन्द्रीय हिन्दी समिति को दूसरी बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार समिति के काम की देखरेख मंत्रालय/विभाग के संयुक्त सचिव के अधिकारी को, विशेषत: प्रशासन से सम्बन्धित अधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी है। हिन्दी अधिकारी/हिन्दी का काम देखने वाला अधिकारी इस समिति का सदस्य सचिव रखा जाता है। यह भी ध्यान रखा गया है कि समिति के सदस्यों की संख्या 15 से अधिक न हो। इस समिति की बैठक तीन माह में एक बार अवश्य होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में गृह मंत्रालय ने सन् 1975 में कड़े आदेश जारी किये।
उक्त आदेश के अनुसार समितियाँ लगभग सभी मंत्रालयों/विभागों में गठित की गयीं। बाद में सन् 1668, 1969 तथा 1975 में इसके ठीक-ठीक अनुपालन की ओर ध्यान दिलाया गया। आगे चलकर सन् 1976 में हिन्दी प्रशिक्षण योजना के अधिकारियों को सदस्यता देने का प्रावधान किया गया। गैर सरकारी व्यक्तियों को सदस्य न बनाने का सुझाव दिया गया। यह भी सुझाव दिया गया कि कार्यालय विशेष के गठन को देखते हुए, उचित अनुपात में अहिन्दी-भाषी अधिकारियों को रखा जाये। कोशिश यह हो कि किसी भी समिति में जहाँ तक हो सके, आधे सदस्य अहिन्दी-भाषी हों।
राजभाषा अधिनियम 1963
राजभाषा अधिनियम 1963 (राजभाषा संशोधन अधिनियम सं. 1967 द्वारा 1967 में संशोधित) उन भाषाओं का, जो संघ के राजकीय प्रयोजनों, संसद में कार्य के संव्यवहार, केन्द्रीय और राज्य अधिनियमों और उच्च न्यायालयों में कतिपय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जा सकेंगी, उपबन्ध करने के लिए अधिनियम भारत गणराज्य के चौदहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ-
- यह अधिनियम राजभाषा अधिनियम, 1963 कहा जा सकेगा।
- धारा 3, जनवरी, 1965 के 26वें दिन को प्रवृत्त होगी और इस अधिनियम के शेष उपबंध उस तारीख को प्रवृत्त होंगे जिसे केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और इस अधिनियम के विभिन्न उपबंधों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी।
परिभाषाएँ-
इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
1. ‘नियत दिन’ से, धारा 3 के सम्बन्ध में जनवरी, 1965 का 26वाँ दिन अभिप्रेत है और इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के सम्बन्ध में वह दिन अभिप्रेत है जिस दिन को वह उपबंध प्रवृत्त होता है;
2. ‘हिन्दी’ से वह हिन्दी अभिप्रेत है, जिसकी लिपि देवनागरी है।
- संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए और संसद में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा का रहना-
- संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की कालावधि की समाप्ति हो जाने पर भी, हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा, नियत दिन से ही-
-
- संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए जिनके लिए वह उस दिन से ठीक पहले प्रयोग में लाई जाती थी; तथा
- संसद में कार्य के संव्यवहार के लिए; प्रयोग में लाई जाती रह सकेगी : परन्तु संघ और किसी ऐसे राज्य के बीच, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा प्रयोग में लाई जाएगी, परन्तु यह और कि जहाँ किसी ऐसे राज्य के, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है और किसी अन्य राज्य के जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, बीच पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी को प्रयोग में लाया जाता है, वहाँ हिन्दी में ऐसे पत्रादि के साथ-साथ उसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में भेजा जाएगा : परन्तु यह और भी कि इस उपधारा की किसी भी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी ऐसे राज्य को, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, संघ के साथ या किसी ऐसे राज्य के साथ, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है, या किसी अन्य राज्य के साथ, उसकी सहमति से, पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी को प्रयोग में लाने से निवारित करती है, और ऐसे किसी मामले में उस राज्य के साथ पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग बाध्यकर न होगा।
- उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहाँ पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी या अंग्रेजी भाषा-
-
- केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और दूसरे मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के बीच,
- केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के बीच;
- केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के और किसी अन्य ऐसे निगम या कम्पनी या कार्यालय के बीच; प्रयोग में लाई जाती है, वहाँ उस तारीख तक, जब तक पूर्वोक्त सम्बन्धित मंत्रालय, विभाग, कार्यालय या निगम या कम्पनी का कर्मचारीवृद हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता, ऐसे पत्रादि का अनुवाद, यथास्थिति, अंग्रेजी भाषा या हिन्दी में भी दिया जाएगा।
- उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा दोनों ही-
-
- संकल्पों, साधारण आदेशों, नियमों, अधिसूचनाओं, प्रशासनिक या अन्य प्रतिवेदनों या प्रेस विज्ञप्तियों के लिए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निकाले जाते हैं या किए जाते हैं,
- संसद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखे गए प्रशासनिक तथा अन्य प्रतिवेदनों और राजकीय कागज-पत्रों के लिए,
- केन्द्रीय सरकार या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या उसकी ओर से या केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निष्पादित संविदाओं और करारों के लिए तथा निकाली गई अनुज्ञप्तियों, अनुज्ञापत्रों, सूचनाओं और निविदा-प्ररूपों के लिए, प्रयोग में लाई जाएगी।
- उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि केन्द्रीय सरकार धारा 8 के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा उस भाषा या उन भाषाओं का उपबंध कर सकेगी जिसे या जिन्हें संघ के राजकीय प्रयोजन के लिए, जिसके अन्तर्गत किसी मंत्रालय, विभाग, अनुभाग या कार्यालय का कार्यकरण है, प्रयोग में लाया जाना है और ऐसे नियम बनाने में राजकीय कार्य के शीघ्रता और दक्षता के साथ निपटारे का तथा जन साधारण के हितों का सम्यक् ध्यान रखा जाएगा और इस प्रकार बनाए गए नियम विशिष्टतया यह सुनिश्चित करेंगे कि जो व्यक्ति संघ के कार्यकलाप के सम्बन्ध में सेवा कर रहे हैं और जो या तो हिन्दी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण हैं वे प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें और यह भी कि केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं हैं, उनका कोई अहित नहीं होता है
- उपधारा (1) के खंड (क) के उपबन्ध और उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), के उपबन्ध तब तक प्रवृत्त बने रहेंगे जब तक उनमें वर्णित प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए ऐसे सभी राज्यों के विधान-मण्डलों द्वारा, जिन्होंने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है; संकल्प पारित नहीं कर दिए जाते और जब तक पूर्वोक्त संकल्पों पर विचार कर लेने के पश्चात् ऐसी समाप्ति के लिए संसद के हर एक सदन द्वारा संकल्प पारित नहीं कर दिया जाता।
राजभाषा के सम्बन्ध में समिति-
- जिस तारीख को धारा 3 प्रवृत्त होती है उससे दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात्, राजभाषा के सम्बन्ध में एक समिति, इस विषय का संकल्प संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी से प्रस्तावित और दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने पर, गठित की जाएगी।
- इस समिति में तीस सदस्य होंगे जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे तथा दस राज्य सभा के सदस्य होंगे, जो क्रमश: लोक सभा के सदस्यों तथा राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
- इस समिति का कर्तव्य होगा कि वह संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करें और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करें और राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद के हर एक सदन के समक्ष रखवाएगा और सभी राज्य सरकारों को भिजवाएगा।
- राष्ट्रपति उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर और उस पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत अभिव्यक्त किए हों तो उन पर विचार करने के पश्चात् उस समस्त प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश निकाल सकेगा : (परन्तु इस प्रकार निकाले गए निदेश धारा 3 के उपबन्धों से असंगत नहीं होंगे।)
केन्द्रीय अधिनियमों आदि का प्राधिकृत हिन्दी अनुवाद-
- नियत दिन को और उसके पश्चात् शासकीय राजपत्र में राष्ट्रपति के प्राधिकार से प्रकाशित-
-
- किसी केन्द्रीय अधिनियम का या राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किसी अध्यादेश का, अथवा
- संविधान के अधीन या किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन निकाले गए किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि का हिन्दी में अनुवाद उसका हिन्दी में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
- नियत दिन से ही उन सब विधेयकों के, जो संसद के किसी भी सदन में पुर:स्थापित किए जाने हों और उन सब संशोधनों के, जो उनके सम्बन्ध में संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जाने हों, अंग्रेजी भाषा के प्राधिकृत पाठ के साथ-साथ उनका हिन्दी में अनुवाद भी होगा जो ऐसी रीति से प्राधिकृत किया जाएगा, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाए।
कतिपय दशाओं में राज्य अधिनियमों का प्राधिकृत हिन्दी अनुवाद-
जहाँ किसी राज्य के विधान-मंडल ने उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में प्रयोग के लिए हिन्दी से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहाँ, संविधान के अनुच्छेद 348 के खण्ड (3) द्वारा अपेक्षित अंग्रेजी भाषा में उसके अनुवाद के अतिरिक्त, उसका हिन्दी में अनुवाद उस राज्य के शासकीय राजपत्र में, उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से, नियत दिन को या उसके पश्चात् प्रकाशित किया जा सकेगा और ऐसी दशा में ऐसे किसी अधिनियम या अध्यादेश का हिन्दी में अनुवाद हिन्दी भाषा में उसका प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
उच्च न्यायालयों के निर्णयों, आदि में हिन्दी या अन्य राजभाषा का वैकल्पिक प्रयोग-
नियत दिन से ही या तत्पश्चात् किसी भी दिन से किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और जहाँ कोई निर्णय, डिक्री या आदेश (अंग्रेजी भाषा से भिन्न) ऐसी किसी भाषा में पारित किया या दिया जाता है, वहाँ उसके साथ-साथ उच्च न्यायालय के प्राधिकार से निकाला गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा।
नियम बनाने की शक्ति-
- केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।
- इस धारा के अधीन बनाया गया हर नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथासमय शीघ्र, संसद के हर एक सदन के समक्ष, उस समय जब वह सत्र में हो, कुल मिलाकर तीस दिन की कालावधि के लिए, जो एक सत्र में या दो क्रमवर्ती सत्रों में समाविष्ट हो सकेगी, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के, जिसमें वह ऐसे रखा गया हो, या ठीक पश्चात्वर्ती सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई उपान्तर करने के लिए सहमत हो जाएँ या दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् यथास्थिति, वह नियम ऐसे उपान्तरित रूप में ही प्रभावशाली होगा या उसका कोई भी प्रभाव न होगा, किन्तु इस प्रकार कि ऐसा कोई उपान्तर या बातिलकरण उस नियम के अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा।
कतिपय उपबन्धों का जम्मू-कश्मीर को लागू न होना-
धारा 6 और धारा 7 के उपबन्ध जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू न होंगे।
राजभाषा अधिनियम 1963 के अन्तर्गत की गई व्यवस्था
संशोधित राजभाषा अधिनियम 1963 के अन्तर्गत की गई व्यवस्था इस प्रकार है :
- अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार (क) संघ के उन सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए जिनके लिए 26 जनवरी, 1965 के तत्काल-पूर्व अंग्रेजी का प्रयोग किया जा रहा था और (ख) संसद में कार्य निष्पादन के लिए 26 जनवरी, 1965 के बाद भी हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जा सकेगा।
- केन्द्र सरकार और हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले किसी राज्य के बीच पत्राचार अंग्रेजी में होगा, बशर्ते उस राज्य ने उसके लिए हिन्दी का प्रयोग करना स्वीकार न किया हो। इसी प्रकार हिन्दी भाषी राज्यों की सरकारें भी ऐसे राज्यों की सरकारों के साथ अंग्रेजी में पत्राचार करेंगी और यदि वे ऐसे राज्यों को कोई पत्र हिन्दी में भेजती हैं तो साथ में उनका अंग्रेजी अनुवाद भी भेजेंगी। पारस्परिक समझौते से यदि कोई दो राज्य आपसी पत्राचार में हिन्दी का प्रयोग करें तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी।
- केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों आदि के बीच पत्र व्यवहार के लिए निर्धारित अनुपात में हिन्दी का प्रयोग किया जाएगा लेकिन ‘ग’ क्षेत्र में जब तक सम्बन्धित कार्यालयों आदि के कर्मचारी हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त न कर लें, तब तक पत्रादि का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाता रहेगा।
- अधिनियम की धारा 3(3) के अनुसार निम्नलिखित कागज-पत्रों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग अनिवार्य है : संकल्प 2. सामान्य आदेश 3. नियम 4. अधिसूचनाएँ 5. प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट 6. प्रेस विज्ञप्तियाँ 7. संसद के किसी सदन या दोनों सदनों के समक्ष रखी जाने वाली प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट, सरकारी कागज-पत्र 8. संविदाएँ 9. करार 10. अनुज्ञप्तियाँ 11. अनुज्ञापत्र 12. टेंडर नोटिस और 13. टेंडर फार्म
- धारा 3(4) के अनुसार, अधिनियम के अधीन नियम बनाते समय यह सुनिश्चित कर लेना होगा कि केन्द्रीय सरकार का कोई कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेजी में से किसी एक ही भाषा में प्रवीण होने पर भी अपना सरकारी कामकाज प्रभावी ढंग से कर सके और केवल इस आधार पर कि वह दोनों भाषाओं में प्रवीण नहीं, उसका कोई अहित न हो।
- अधिनियम की धारा 3(5) के रूप में यह उपबंध किया गया है कि उपर्युक्त विभिन्न कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने सम्बन्धी व्यवस्था तब तक जारी रहेगी जब तक हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले सभी राज्यों के विधान-मण्डल अंग्रेजी का प्रयोग समाप्त करने के लिए आवश्यक संकल्प पारित न करें और इन संकल्पों पर विचार करने के बाद संसद का प्रत्येक सदन भी इसी आशय का संकल्प पारित कर दे।
- अधिनियम की धारा 4 में 26 जनवरी, 1975 के बाद एक संसदीय राजभाषा समिति के गठन का उपबंध है। इस समिति में 20 लोक सभा सदस्य और 10 राज्य सभा सदस्य होंगे। यह समिति संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति की जाँच करेगी। अपनी सिफारिशों सहित अपना प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करेगी। समिति का वर्ष 1976 में गठन कर दिया गया था और यह इस समय भी कार्य कर रही है। समिति ने दिनांक 12.3.1992 को अपने प्रतिवेदन का पाँचवाँ खण्ड राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत किया। इसे राज्य सभा तथा लोक सभा के पटल पर क्रमश: दिनांक 9.3.1994 और 17.3.1994 को प्रस्तुत किया गया।
- अधिनियम की धारा 7 के अनुसार किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा किए गए अथवा पारित किए गए किसी निर्णय, डिक्री अथवा आदेश के लिए अंग्रेजी भाषा के अलावा, हिन्दी अथवा राज्य की राजभाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकता है। तथापि, यदि कोई निर्णय, डिक्री या आदेश अंग्रेजी से भिन्न किसी भाषा में दिया गया या पारित किया जाता है तो उसके साथ-साथ सम्बन्धित उच्च न्यायालय के प्राधिकार से अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी दिया जाएगा। (अब तक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के राज्यपालों ने अपने-अपने उच्च न्यायालयों में उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए हिन्दी के प्रयोग की अनुमति दे ही है।)
इस प्रकार राजभाषा अधिनियम 1963 में यह व्यवस्था की गई कि सन् 1965 के बाद हिन्दी ही संघ की राजभाषा होगी। किन्तु अंग्रेजी का प्रयोग करने की छूट तब तक बनी रहेगी जब तक कि हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले सभी राज्यों के विधान-मंडल अंग्रेजी का प्रयोग समाप्त करने के लिए संकल्प न पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करने के बाद संसद के दोनों सदन इस सम्बन्ध में संकल्प पारित न कर दें। इस व्यवस्था के अनुसार आज हर कर्मचारी को अपना कामकाज हिन्दी अथवा अंग्रेजी दोनों में करने की छूट है। किन्तु कुछ कामों के लिए हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों का प्रयोग अनिवार्य है, इसमें एक तरफ पत्रादि हैं जिनमें पत्राचार तथा फाइलों का काम शामिल है और दूसरी तरफ सरकार की ओर से निकलने वाले आदेश और नियम आदि आम जनता के उपयोग के लिए हैं। आम जनता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए यह व्यवस्था की गई है कि आम आदमी के उपयोग के सारे कागज-पत्र द्विभाषी रूप में हों। इस बात का उल्लेख राजभाषा अधिनियम की उपधारा 3(3) में किया गया है।
राजभाषा नियम 1976
राजभाषा नियम, 1976 सा. का. नि. 1052 केन्द्रीय सरकार -राजभाषा अधिनियम, 1963(1963 का 19) की धारा 3 की उपधारा (4) के साथ पठित धारा 8 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित नियम बनाती है, अर्थात् :-
राजभाषा नियम 1976 का संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
- इन नियमों का संक्षिप्त नाम राजभाषा (संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग) नियम, 1976 है।
- इनका विस्तार, तमिलनाडु राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।
- ये राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को प्रवृत्त होंगे।
राजभाषा नियम की 1976 परिभाषाएँ
इन नियमों में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो :-
- ‘अधिनियम’ से राजभाषा अधिनियम, 1963 (1963 का 19), अभिप्रेत है;
- ‘केन्द्रीय सरकार के कार्यालय’ के अन्तर्गत निम्नलिखित भी है, अर्थात् :-
- केन्द्रीय सरकार का कोई मंत्रालय, विभाग या कार्यालय;
- केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किसी आयोग, समिति या अधिकरण का कोई कार्यालय; और
- केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियंत्रण के अधीन किसी निगम या कम्पनी का कोई कार्यालय;
- ‘कर्मचारी’ से केन्द्रीय सरकार के कार्यालय में नियोजित कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;
- ‘अधिसूचित कार्यालय’ से नियम 10 के उपनियम (4) के अधीन अधिसूचित कार्यालय, अभिप्रेत है;
- ‘हिन्दी में प्रवीणता’ से नियम 9 में वर्णित प्रवीणता अभिप्रेत है;
- ‘क्षेत्र क’ से बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है;
- ‘क्षेत्र ख’ से गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब राज्य तथा चंडीगढ़, दमन और दीव तथा दादरा और नगर हवेली संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत हैं;
- ‘क्षेत्र ग’ से खंड (च) और (छ) में निर्दिष्ट राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से भिन्न राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है;
- ‘हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान’ से नियम 10 में वर्णित कार्यसाधक ज्ञान अभिप्रेत है।
राजभाषा नियम 1976 की कुछ महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएँ
सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग की दिशा में राजभाषा नियम, 1976 का जारी किया जाना एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस नियम की कुछ महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएँ इस प्रकार हैं :
- केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से ‘क’ क्षेत्र में स्थित किसी राज्य को या ऐसे राज्यों में स्थित किसी अन्य कार्यालय या कोई व्यक्ति जो वहाँ रह रहा हो, को भेजे जाने वाले पत्र आदि हिन्दी में भेजे जाएँगे। यदि किसी विशेष मामले में ऐसा कोई पत्र अंग्रेजी में भेजा जाता है तब उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा।
- केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से ‘ख’ क्षेत्र में स्थित किसी राज्य को भेजे जाने वाले पत्र आदि सामान्यत: हिन्दी में भेजे जाएँगे। यदि ऐसा कोई पत्र अंग्रेजी में भेजा जाता है तो उसका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा। इन राज्यों में रहने वाले किसी व्यक्ति को हिन्दी या अंग्रेजी किसी भाषा 37 में पत्र भेजे जा सकते हैं। वार्षिक कार्यक्रम में किए गए प्रावधानों के अनुसार ‘ख’ क्षेत्र के लोगों को भी पत्रादि हिन्दी में भेजे जाने अपेक्षित हैं।
- केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से ‘ग’ क्षेत्र में स्थित किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के किसी भी कार्यालय को या व्यक्ति को पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाएँग। यदि ऐसा कोई पत्र हिन्दी में भेजा जाता है तो उसका अंग्रेजी अनुवाद भी साथ भेजा जाएगा।
- केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों या विभाग और दूसरे मंत्रालय या विभाग के बीच पत्र-व्यवहार हिन्दी या अंग्रेजी में किया जा सकता है। किन्तु केन्द्र सरकार के किसी मंत्रालय/विभाग और ‘क’ क्षेत्र में स्थित सम्बद्ध और अधीनस्थ कार्यालयों के बीच होने वाला पत्र-व्यवहार सरकार द्वारा निर्धारित अनुपात में हिन्दी में होगा।
- हिन्दी में प्राप्त पत्रों आदि के उत्तर अनिवार्य रूप से हिन्दी में ही दिए जाएँगे। हिन्दी में लिखे या हिन्दी में हस्ताक्षरित किए गए आवेदनों, अपीलों या अभ्यावेदनों के उत्तर भी हिन्दी में दिए जाएँगे।
- राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) में निर्दिष्ट दस्तावेजों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग किया जाएगा और इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी की होगी।
- केन्द्रीय सरकार का कोई भी कर्मचारी फाइलों में हिन्दी या अंग्रेजी की टिप्पणी या कार्यवृत्त लिख सकता है और उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह उसका अनुवाद दूसरी भाषा में भी प्रस्तुत करे।
- केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से सम्बन्धित सभी मैनुअल, संहिताएँ और अन्य प्रक्रिया साहित्य हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में द्विभाषिक रूप में तैयार और प्रकाशित किए जाएँगे। सभी फार्मों और रजिस्टरों के शीर्ष, नाम-पट्ट, मुहरें, स्टेशनरी आदि की अन्य मदें भी हिन्दी और अंग्रेजी में द्विभाषिक रूप में होंगी।
- प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह दायित्व है कि वह राजभाषा अधिनियम और उसके अधीन बने नियमों का समुचित रूप से अनुपालन सुनिश्चित करे और अपने कार्यालय में उपयुक्त और प्रभावकारी जाँच-बिन्दु बनवाए। संघ की राजभाषा नीति उपर्युक्त सांविधित और विधिक प्रावधानों पर आधारित है और इसी परिप्रेक्ष्य में समय-समय पर आदेश/अनुदेश जारी करके राजभाषा नीति का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाता है।
‘क’, ‘ख’ और ‘ग’ क्षेत्र में हिन्दी
राजभाषा नियम, 1976 में हमने देखा कि हिन्दी बोले जाने और लिखे जाने की प्रधानता के आधार पर सम्पर्ण भारतवर्ष को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है : ‘क’ क्षेत्र, ‘ख’ क्षेत्र एवं ‘ग’ क्षेत्र। ‘क’ क्षेत्र के अन्तर्गत वे राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र आतें हैं जहाँ की बोली ही हिन्दी है। ‘ख’ क्षेत्र वे राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र हैं जहाँ की भाषा हिन्दी न होने के बावजूद अधिकतर स्थानों में हिन्दी बोली और समझी जाती है और ‘ग’ क्षेत्र के अन्तर्गत वे राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र आतें हैं जहाँ की बोली हिन्दी न होकर उनकी प्रान्तीय भाषा है। ‘क’ क्षेत्र, ‘ख’ क्षेत्र एवं ‘ग’ क्षेत्र का विभाजन निम्नलिखित सारणी से समझा जा सकता है :
‘क’ क्षेत्र | ‘ख’ क्षेत्र | ‘ग’ क्षेत्र |
बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र |
गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब राज्य तथा चंडीगढ़, दमन और दीव तथा दादरा और नगर हवेली संघ राज्य क्षेत्र |
ओड़िशा, बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालेण्ड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोराम, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्णाटक, आन्ध्र प्रदेश, केरल |
उपर्युक्त राजभाषा नियम (1976) में केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से ‘क’, ‘ख’ एवं ‘ग’ क्षेत्र के लिए पत्राचार का प्रावधान भी अलग-अलग है :
‘क’ क्षेत्र | ‘ख’ क्षेत्र | ‘ग’ क्षेत्र |
केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से : | ||
‘क’ क्षेत्र में स्थित किसी राज्य को या ऐसे राज्यों में स्थित किसी अन्य कार्यालय या काई व्यक्ति जो वहाँ रह रहा हो, को भेजे जाने वाले पत्र आदि हिन्दी में भेजे जाएँगे।यदि किसी विशेष मामले में ऐसा कोई पत्र अंग्रेजी में भेजा जाता है तब उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा। | ‘ख’ क्षेत्र में स्थित किसी राज्य को भेजे जाने वाले पत्र आदि सामान्यत: हिन्दी में भेजे जाएँगे। यदि ऐसा कोई पत्र अंग्रेजी में भेजा जाता है तो उसका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा। इन राज्यों में रहने वाले किसी व्यक्ति को हिन्दी या अंग्रेजी किसी भाषा में पत्र भेजे जा सकते हैं। | ‘ग’ क्षेत्र में स्थित किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के किसी भी कार्यालय को या व्यक्ति को पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाएँगे। यदि ऐसा कोई पत्र हिन्दी में भेजा जाता है तो उसका अंग्रेजी अनुवाद भी साथ भेजा जाएगा। |
इस तारतम्य में राजकीय कार्य हिन्दी में करने के लिए हर वर्ष राजभाषा विभाग ‘क’, ‘ख’ एवं ‘ग’ क्षेत्र हेतु विशेष ‘राजभाषा वार्षिक कार्यक्रम’ जारी करता है। वर्ष 2016-17 हेतु जारी वार्षिक कार्यक्रम में ‘क’, ‘ख’ एवं ‘ग’ क्षेत्र हेतु निम्नलिखित लक्ष्य रखा गया है :
संघ का राजकीय कार्य हिन्दी में करने के लिए वार्षिक कार्यक्रम 2016-17
क्र. | कार्य विवरण | ‘क’ क्षेत्र | ‘ख’ क्षेत्र | ‘ग’ क्षेत्र |
1. | हिन्दी में मूल पत्राचार (तार, बेतार, टेलेक्स, फैक्स,आरेख, ई-मेल आदि साहित) |
1. क क्षेत्र से ख क्षेत्र को 100 % 2. क क्षेत्र से क क्षेत्र को 100 % 3. क क्षेत्र से ग क्षेत्र को 65 % 4. क क्षेत्र से क व ख क्षेत्र के राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के कार्यालय/व्यक्ति को 100 % |
1. ख क्षेत्र से क क्षेत्र को 90 % 2. ख क्षेत्र से ख क्षेत्र को 90 % 3. ख क्षेत्र से ग क्षेत्र को 55 % 4. ख क्षेत्र से क व ख क्षेत्र के राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के कार्यालय/व्यक्ति को 100 % |
1. ग क्षेत्र से क क्षेत्र को 55% 2. ग क्षेत्र से ख क्षेत्र को 55 % 3. ग क्षेत्र से ग क्षेत्र को 55% 4. ग क्षेत्र से क व ख क्षेत्र के राज्य/संघ राज्य क्षेत्रके कार्यालय/व्यक्ति को 85% |
2. | हिन्दी में प्राप्त पत्रों का उत्तर हिन्दी में दिया जाना |
100% | 100% | 100% |
3. | हिन्दी में टिप्पण | 70% | 50% | 30% |
4. | हिन्दी टंकक एवं आशुलिपि की भर्ती |
80% | 70% | 40% |
5. | हिन्दी में डिक्टेशन/की बोर्ड पर सीधे टंकण |
65% | 55% | 30% |
6. | हिन्दी प्रशिक्षण (भाषा, टंकण, आशुलिपि) |
100% | 100% | 100% |
7. | द्विभाषी प्रशिक्षण सामग्री तैयार करना |
100% | 100% | 100% |
8. | जर्नल और मानक सन्दर्भ पुस्तकों को छोड़कर पुस्तकालय के कुल अनुदान में से डिजिटल वस्तुओं अर्थात् हिन्दी ई-पुस्तक, सीडी/ डीवीडी, पेन ड्राइव तथा अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद पर व्यय की गई राशि सहित हिन्दी पुस्तकों की खरीद पर किया गया व्यय |
50% | 50% | 50% |
9. | कंप्यूटर सहित सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की द्विभाषी रूप मे खरीद |
100% | 100% | 100% |
10. | वेबसाइट | 100 % (द्विभाषी) | 100 % (द्विभाषी) | 100 % (द्विभाषी) |
11. | नागरिक चार्टर तथा जन सूचना बोर्डों आदि का प्रदर्शन |
100 % (द्विभाषी) | 100 % (द्विभाषी) | 100 % (द्विभाषी) |
12. | पद्धमंत्रालयों/विभागों और कार्यालयों तथा राजभाषा विभाग के अधिकारियों द्वारा अपने मुख्यालय से बाहर स्थित कार्यालयों का निरीक्षण (कार्यालयों का प्रतिशत) |
25 % (न्यूनतम) | 25 % (न्यूनतम) | 25 % (न्यूनतम) |
(ii)मुख्यालय में स्थित अनुभागों का निरीक्षण | 25 % (न्यूनतम) | 25 % (न्यूनतम) | 25 % (न्यूनतम) | |
(iii)विदेश में स्थित केन्द्र सरकार के स्वामित्व एवं नियंत्रण के अधीन कार्यालय/उपक्रमों का सम्बन्धित अधिकारीयों तथा राजभाषा विभाग के अधिकारियों द्वारा संयुक्त निरीक्षण |
वर्ष में कम से कम एक निरीक्षण | |||
13 | राजभाषा सम्बन्धी बैठकें 1- हिन्दीसलाहकार समिति 2-नराकास 3-राजभाषा कार्यान्वयन समिति |
वर्ष में 2 बैठकें (कम से कम)
वर्ष में 2 बैठकें (प्रति छमाही एक बैठक) वर्ष में 4 बैठकें (प्रति तिमाही एक बैठक) |
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14. | कोड, मैनुअल, फार्म, प्रक्रिया साहित्य का हिन्दी अनुवाद |
100% | ||
15. | मंत्रालय/विभागों/कार्यालयों/ बैंकों/उपक्रमों के 1. ऐसे अनुभाग जहाँ सम्पूर्ण कार्य हिन्दी में हो 2. जहाँ अनुभाग की अवधारणा न हो वहाँ के लिए |
40%
25% |
40%
20% |
30%
15% |
हिन्दी प्रसार कार्यक्रम
भारत अनेक भाषाओं, जातियों और धर्मों का देश है। यहाँ की संस्कृति कई संस्कृतियों के मेल से बनी है। इसीलिए भारतीय संस्कृति सामासिक संस्कृति है। जब हिन्दी को भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाने का प्रयास किया जाएगा तो स्वाभाविक ही है कि इससे हिन्दी के अखिल भारतीय स्वरूप का विकास होगा और वह राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा का दायित्व वहन करने में अधिकाधिक सक्षम होगा।
अनुच्छेद 351 के प्रावधानों के अनुसार हिन्दी के विकास और प्रसार की जिम्मेदारी संघ सरकार को सौंपी गई है। इसी के तहत हिन्दी के अधिकाधिक प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए केन्द्रीय सरकार ने अनेकानेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए ताकि हिन्दी का प्रचार-प्रसार हो सके। जैसे :
- राजभाषा हिन्दी के उत्तरोत्तर प्रयोग के लिए द्विभाषी कंप्यूटरों की खरीद एवं कंप्यूटरों के द्विलिपीय प्रयोग के लिए प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करना।
- केन्द्रीय सरकार की राजभाषा नीति के अनुपालन/कार्यान्वयन के लिए न्यूनतम हिन्दी पदों का सृजन करना।
- अनुवाद से सम्बन्धित कर्मचारियों/अनुवादकों के लिए अनिवार्य अनुवाद प्रशिक्षण की व्यवस्था।
- सेवाकालीन विभागीय तथा पदोन्नति परीक्षाओं में हिन्दी का प्रयोग।
- सरकारी पत्र-पत्रिकाओं का हिन्दी में प्रकाशन।
- राजभाषा कार्यान्वयन समितियों, नगर राजाभाषा कार्यान्वयन समितियों, हिन्दी सलाहकार समितियों आदि का गठन।
- राजभाषा के प्रगामी प्रयोग को बढ़ाने की दिशा में सर्वोत्कृष्ट कार्य करने वाली नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों को पुरस्कृत करना।
- विशिष्ट क्षेत्रों में सरकारी काम हिन्दी में करने के लिए पुरस्कार एवं प्रोत्साहन प्रदान करना।
- वैज्ञानिक तथा तकनीकी विषयों की मौलिक पुस्तकें हिन्दी में लिखने पर पुरस्कार प्रदान करना।
- वैज्ञानिक तथा तकनीकी संगोष्ठियों, सम्मेलनों आदि में हिन्दी में शोध-पत्र आदि प्रस्तुत करने को बढ़ावा देना तथा वैज्ञानिक पत्रिकाओं में उनका प्रकाशन करवाना।
- सरकारी कार्यालयों के पुस्तकालयों में हिन्दी पुस्तकों की खरीद सुनिश्चित करना।
- राजभाषा अधिनियम और नियमों के अधीन जारी किए गए निदेशों की अवहेलना करने पर कार्रवाई।
- केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान आदि महत्त्वपूर्ण विभागों/संस्थानो की स्थापना।
इसके अलावा और भी बहुत सारे महत्त्वपूर्ण निर्णय/पदक्षेप भारत सरकार द्वारा लिये गये हैं और इन्हीं महत्त्वपूर्ण निर्णयों/प्रयासों के कारण आज राजभाषा हिन्दी अपने नाम की सार्थकता को प्रतिपादित करने में सफल रही है।