प्रत्येक व्यक्ति या देश अपनी शक्ति को औचित्यपूर्ण बनाने के लिए अनेक प्रयास करता है। जब उसकी शक्ति को जनता का औचित्यपूर्ण समर्थन प्राप्त हो जाता है तो वह सत्ता में परिवर्तित हो जाती है।
सत्ता का अर्थ
साधारण रूप में सत्ता वह आचरण है जिसके आधार पर कोई भी अपनी शक्ति का प्रयोग करता है। सत्ता एक विशेष प्रकार का औचित्यपूर्ण प्रभाव भी है। सत्ता शक्ति का संस्थात्मक एवं विधिक रूप है। यह उस समय उत्पन्न होती है जब शासक और शासित में सम्बन्ध स्थापित होता है। हेराल्ड लॉसवेल ने इसे प्रभाव सदृश माना है। साधारण अर्थ में सत्ता निर्णय लेने की वह शक्ति है जो दूसरों के कार्यों को प्रभावित करती है।
सत्ता की प्रकृति
सत्ता निर्णय लेने की वह शक्ति है हो दूसरे के कार्यों का पथ-प्रदर्शन करती है। सत्ता औपचारिक, निश्चित व विशिष्ट होती है। इसका स्वरूप वैधानिक एवं संगठनात्मक है। इसकी प्रकृति के बारे में दो सिद्धान्त –
- औपचारिक सत्ता सिद्धान्त – सत्ता का प्रभाव ऊपर से नीचे की तरफ चलता हैं सत्ता को आदेश देने व नौकरशाही का गठन करने का अधिकार है। इस सिद्धान्त के अनुसार शक्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए औचित्यपूर्णता को साथ लेकर चलती है।
- स्वीकृति सिद्धान्त – सत्ता वैधानिक रूप से केवल औपचारिक होती है और इसे वास्तविक आधार तभी प्राप्त होता है, जब अधीनस्थों द्वारा इसकी स्वीकृति हो जाए। किन्तु अधीनस्थों में सत्ता की स्थिति को समझने की योग्यता अवश्य होनी चाहिए।
सत्ता के प्रमुख घटक
सत्ता के प्रमुख घटक दो हैं :-
- शक्ति (Power) – जब शक्ति को जनता का औचित्यपूर्ण समर्थन मिल जाता है तो इसे वैधता प्राप्त हो जाती है। शक्ति का अर्थ, अपनी इच्छानुसार दूसरों से अपने आदेश का पालन कराना होता है।
- वैधता (Legitimacy) – समाज में व्यवस्था कायम रखने के लिए शक्ति और वैधता देानों एक दूसरी की मदद करते हैं। सत्ता को प्रभावी रखने के लिए शक्ति और औचित्यपूर्ण दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
सत्ता के प्रकार
इसको क्षेत्रीय, प्रशासनिक एवं राजनीतिक दृष्टि से कई भागों में बांटा जा सकता है। विभिन्न स्रोतों के अनुसार सत्ता के विविध रूप हो जाते हैं। सत्ता को औचित्यपूर्णता के अनुसार मैक्स वेबर ने आधुनिक राज्य में तीन तरह की बताया है :-
- परम्परागत सत्ता (Traditional Authority)
- कानूनी विवेकपूर्ण या तर्कसंगत सत्ता (Legal7Rational Authority)
- करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority)
- परम्परागत सत्ता –
यह सत्ता परम्परागत शक्ति ढांचे से जन्म लेती है। जब प्रजा या अधीनस्थ कर्मचारी अपने शासक या वरिष्ठ अधिकारियों की आज्ञा या आदेशों का पालन करते हैं तो वह परम्परागत सत्ता होती है। ऐसा करना एक परम्परा बन जाती है। इस सत्ता का आधार यह है कि जो व्यक्ति या वंश आदेश देने का अधिकार रखता है, वह प्रचलित परम्परा पर ही आधारित होता है। इस प्रकार की सत्ता में प्रत्यायोजन अस्थाई और स्वेच्छाचारी होता है।
राजतन्त्र में इसी प्रकार की सत्ता प्रचलित होती है। प्रशासनिक दृष्टि से अधीनस्थ वर्ग आने वरिष्ठों की बात इसलिए मानता है कि ऐसा युगों से होता आया है। इस प्रकार की सत्ता में शासक या वरिष्ठ कर्मचारियों का जनता या अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा स्वेच्छापूर्वक आँख बन्द करके पालन किया जाता है। इस प्रकार की सत्ता नेपाल व ब्रिटेन में युगों से प्रचलित है।
- कानूनी-विवेकपूर्ण सत्ता –
इस सत्ता का आधार शासक या प्रशासनिक अधिकारी का राजनीतिक पद होता है। आधुनिक नौकरशाही इसी प्रकार की सत्ता को प्रकट करती है। इसमें प्रत्यायोजन स्थाई व बौद्धिक होता है। इसमें कुर्सी या पद का सम्मान किया जाता है, व्यक्ति का नहीं। इसमें औपचारिक सम्बन्धों का महत्व समझा जाता है। इसमें समस्त कार्य-व्यवहार कानून की परिधि में ही किया जाता है।
इसमें संवैधानिक नियमों के अनुसार प्रशासनिक व राजनीतिक पद का प्रयोग किया जाता है। कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा नहीं होता। इस प्रकार की सत्ता का आधार कानून का शासन होता है। अमेरिका का राष्ट्रपति व भारत का प्रधानमन्त्री इसी प्रकार की सत्ता का प्रयोग करते हैं। इसमें सब कुछ कानूनी सीमा के अन्तर्गत ही होता है।
- करिश्माई सत्ता –
इस प्रकार सत्ता में अनुयायी अपने नेता के कहने पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। उनके लिए नेता के शब्द वेद-वाक्य हैं। इस प्रकार की सत्ता धार्मिक और युद्ध के क्षेत्र में अधिक प्रभावी रहती है। यह सत्ता विशेष परिस्थितियों की उपज होती है। चीन में माओ, जर्मनी में हिटलर, इटली में मुसोलिनी, स्पेन में जनरल फ्रांकों, भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरु, इन्दिरा गांधी, महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, मिश्र में कर्नल नासिर, युगोस्लाविया में मार्शल टीटो, अफ्रीका में नेल्सन मंडेला, रूस में स्टालिन और लेनिन, ईराक में सद्दाम हुसैन इस प्रकार की सत्ता के प्रमुख उदाहरण हैं।
सत्ता के कार्य
इसके प्रमुख कार्य हैं :-
- सत्ता शासन के विभिन्न अंगों में तनाव व टकराहट दूर करके समन्वय उत्पन्न करती है।
- सत्ता शासन के विभिन्न अंगों मेंं अनुशासन कायम रखती है।
- सत्ता कार्य-निष्पादन के लिए अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों के अनुरुप निर्णय लेती है।
- सत्ता अपनी शक्ति के सदुपयोग के लिए अपने अधीनस्थों पर नियन्त्रण रखती है।
- सत्ता शासन व प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रत्यायोजन भी करती है।
- सत्ता राष्ट्रीय विकास के लक्ष्य को पूरा करने व प्राप्त करने का प्रयास करती है।
इस प्रकार सत्ता अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न विभागों व अपने अधीनस्थों में समन्वय, समायोजन, नियन्त्रण व अनुशासन करती है। इसके लिए वह विभिन्न संचार साधनों व क्रियाविधियों का प्रयोग करती है।
सत्ता की सीमाएं
सत्ता अपनी शक्ति को कभी भी निरंकुश, मनमाने व निरुद्देश्य तरीके से प्रयुक्त नहीं कर सकती है, क्योंकि उस पर कुछ प्रतिबन्ध या सीमाएं लगाई जाती हैं। आज विश्व में मानवीय अधिकारों के प्रति आम व्यक्ति में जागरूकता बढ़ी है और राजनीतिक चेतना का भी विकास हुआ है। इसलिए सत्ता को अपनी मर्यादाओं में रहकर ही कार्य करना पड़ता है। सत्ता को निरंकुश बनने से रोकने के लिए इस पर आन्तरिक या बाह्य, प्राकृतिक, उद्देश्यगत या प्रक्रिया सम्बन्धी प्रतिबन्ध लगाए गए हैं। औचित्वपूर्णता के बिना सत्ता का कोई महत्व नहीं रह जाता है। इसलिए सत्ता को स्वयं को वैध या औचित्यपूर्ण ही बनाए रखना पड़ता है। अपने को औचित्यपूर्ण बनाए रखने के लिए उसे संविधानिक कानूनों एवं राजनीतिक परिस्थितियों में रहकर ही कार्य करना पड़ता है। प्रत्येक व्यवसाय संस्कृति, मूल्यों, परम्पराओं, रुढ़ियों से बंधी होने के कारण सत्ता पर प्रतिबन्ध लगाने को बाध्य होती है।
आज अन्तर्राष्ट्रीयता के युग में अन्तर्राष्ट्रीय विधियों, संगठनों, सन्धियों, समझौतों आदि का राष्ट्रीय सत्ताओं पर प्रतिबन्ध है। कोई भी देश विश्व जनमत की अवहेलना नहीं कर सकता। मानव अधिकार आयोग के अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के कारण सत्ता कोई भी निरंकुश कार्य नहीं कर सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर भी विभिन्न प्रकार के संगठनों, दबाव समूहों, छात्र-संघों, प्रतिपक्ष, प्रैस, न्यायपालिका, जनमत आदि का सत्ता पर प्रभाव रहता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सत्ता का कार्यक्षेत्र असीमित व निरंकुश न होकर प्रतिबन्धों से मर्यादित है।