सती प्रथा के पुरजोर विरोधी थे राजा राममोहन राय
पश्चिम बंगाल में हुगली जिले के राधानगर गांव में 22 मई, 1772 को जन्मे राजा राममोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई। उनके पिता रामकांत राय वैष्णव थे। उन्हें उच्च शिक्षा के लिए पटना भेजा गया। तीक्ष्ण बुद्धि के धनी राममोहन राय ने 15 साल की उम्र तक बंगला, पारसी, अरबी और संस्कृत सीख ली थी।
राजा राममोहन राय मूर्तिपूजा और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध थे। वे सभी प्रकार की सामाजिक धर्मांधता और अंधविश्वास के खिलाफ थे, लेकिन उनके पिता रूढ़िवादी हिन्दू ब्राह्मण थे। इससे पिता और पुत्र में मतभेद पैदा हो गया और राजा राममोहन राय घर छोड़कर चले गए। उन्होंने घर लौटने से पहले काफी यात्राएं कीं। वापसी के बाद उनके परिवार ने इस आशा के साथ उनकी शादी कर दी कि वे बदल जाएंगे, लेकिन इसका उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
वे वाराणसी चले गए और वहां उन्होंने वेदों, उपनिषदों एवं हिन्दू दर्शन का गहन अध्ययन किया। उनके पिता 1803 में गुजर गए और वे मुर्शिदाबाद लौट आए। राजा राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में नौकरी शुरू कर दी। वे जॉन डिग्बी के सहायक के रूप में काम करते थे। वहां वे पश्चिमी संस्कृति एवं साहित्य के संपर्क में आए। उन्होंने जैन विद्वानों से जैन धर्म का अध्ययन किया और मुस्लिम विद्वानों की मदद से सूफीवाद की शिक्षा ली।
उन्होंने समाज की कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह के खिलाफ खुलकर संघर्ष किया। सती प्रथा का वेदों में कोई स्थान नहीं था अत: उन्होंने गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक की मदद से सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवाया। उन्होंने घूम-घूमकर लोगों को उसके खिलाफ जागरूक किया। उन्होंने लोगों की सोच में बदलाव लाने का अथक प्रयास किया।
उन्होंने 1814 में आत्मीय सभा का गठन कर समाज में सामाजिक और धार्मिक सुधार शुरू करने का प्रयास किया। उन्होंने महिलाओं के फिर से शादी करने, संपत्ति में हक समेत महिला अधिकारों के लिए अभियान चलाया। उन्होंने सती प्रथा और बहुविवाह का जोरदार विरोध किया।
उन दिनों काफी पिछड़ापन था और संस्कृति के नाम पर लोग अपनी जड़ों की ओर देखते थे, जबकि राजा राममोहन राय यूरोप के प्रगतिशील एवं आधुनिक विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने इस नब्ज को समझा और जड़ को ध्यान में रखकर वेदांत को नया अर्थ देने की चेष्टा की।
राजा राममोहन राय ने शिक्षा खासकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया। उन्होंने अंग्रेजी, विज्ञान, पश्चिमी चिकित्सा एवं प्रौद्योगिकी के अध्ययन पर बल दिया। वे मानते थे कि अंग्रेजी शिक्षा पारंपरिक शिक्षा प्रणाली से बेहतर है। उन्होंने 1822 में अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित स्कूल की स्थापना की।
राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के रचयिता के नाम से जाने जाते हैं। राजा राममोहन राय एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे। मुगल शासकों ने उन्हें ‘राजा’ की उपमा दी थी। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक थे, जो भारत का समाजवादी आंदोलन भी था।
आधुनिक भारत के निर्माता कहे जाने वाले महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने केवल सती प्रथा जैसी कुरीति खत्म ही नहीं की बल्कि लोगों के सोचने-समझने का ढंग बदल दिया। नवंबर, 1830 में राजा राममोहन राय ने ब्रिटेन की यात्रा की। उनका ब्रिस्टल के समीप स्टाप्लेटन में 27 सितंबर 1833 को निधन हो गया।