प्रथम विश्व युद्ध: कारण और परिणाम

 

प्रथम विश्व युद्ध का कारण – Cause of World War I in hindi.

1870 ई.-1914 ई. के बीच यूरोप सहित पूरे विश्व में घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था। एक तरफ तो इटली एवं जर्मनी के एकीकरण के बाद यूरोप में राष्ट्र राज्यों की व्यवस्था एक पूर्णता तक पहुंचती दिखाई पड़ रही थी पर यूरोप के विभिन्न देशों में साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा तेजी से पनप रही थी। इस स्थिति को कभी-कभी अमेरिका व जापान की साम्राज्यवादी कार्यवाहियां और भयानक बना रही थी।

यूरोप के विभिन्न देश दो विरोधी खेमे में बंटे हुए थे और उनके बीच का पारस्परिक अविश्वास किसी बड़े संघर्ष का कारण बन सकता था। ऑटोमन साम्राज्य की कमजोरी बॉल्कन क्षेत्र में बढ़ते राष्ट्रवाद एवं उस क्षेत्र में यूरोप की प्रमुख शक्तियों की दखलअंदाजी को रोकने में सक्षम नहीं थी| हालांकि भयानक दमन के द्वारा ऑटोमन तुर्की वहां अपना प्रभुत्व बनाए रखने की कोशिश कर रहा था। विशेषकर बॉल्कन क्षेत्र की घटनाए स्थिति को तात्कालिक रूप से ज्यादा भयावह बनाने के लिए उत्तरदायी रही।

बॉल्कन के प्रथम युद्ध के द्वारा सर्बिया, बुल्गारिया व ग्रीस ने तुर्की के खिलाफ युद्ध छेड़कर तुर्की के यूरोपीय साम्राज्य का खात्मा कर दिया था पर तुर्की से जीते गए क्षेत्रों के बंटवारे के मुद्दे पर वे आपस में ही लड़ पड़े । अंततः, आस्ट्रिया के हस्तक्षेप व दबाव के कारण अल्बानिया को एक स्वतन्त्र देश के रूप में मान्यता मिल गई हालांकि उस पर सर्बिया का दावा था। आस्ट्रिया के सामने अपनी शक्ति को कमतर जानते हुए सर्बिया की यह स्थिति स्वीकारनी पड़ी जबकि यह उसके सर्वस्लाव आन्दोलन के लिए एक कुठाराघात था।

आस्ट्रिया के इस कृत्य के कारण सर्बिया का सभी दक्षिणी स्लाव जाति को एक सम्प्रभु राष्ट्र के रूप में जोड़ने का सपना अधूरा रह गया। पर इससे सर्बिया की आस्ट्रिया के प्रति शत्रुता व कटुता और बढ़ गई।

प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण: सराजेवो हत्याकांड – The immediate cause of World War I in hindi.

प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण एक साधारण प्रतीत होने वाली घटना बनी। आस्ट्रिया ने बोस्निया-हर्जेगोबिना पर 1908ई0 से ही कब्जा जमाया हुआ था परन्तु 28 जून, 1914 ई. को बोस्निया की राजधानी सरोजेवो में आस्ट्रिया के युवराज आर्क ड्यूक फर्डीनांड की हत्या कर दी गई। आस्ट्रिया ने इसे सर्बिया का षडयंत्र करार दिया एवं उस पर कुछ कठोर शर्तो को मानने का दबाव डाला।

इन शर्तों में सर्बिया में आस्ट्रिया विरोधी प्रचार बंद करवाने, दोषी अधिकारियों को सर्बिया द्वारा गिरफ्तार कर उन पर मुक़दमा चलाने, आतंकवादी संगठनो को समाप्त करने एवं जांच पड़ताल के लिए आस्ट्रियाई अधिकारियों को सर्बिया जाने की इजाजत देना शामिल था।

आस्ट्रिया को जर्मनी का भी समर्थन प्राप्त था। सर्बिया ने यद्यपि अधिकांश शतों को मानने का मन बना लिया था पर रूस ने सर्बिया को पूर्ण सहायता का आश्वासन दिया। रूस की शह पाकर सर्बिया ने अब इन शतों को मानने से इंकार कर दिया। क्रुद्ध होकर आस्ट्रिया ने 28 जुलाई, 1914 को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

इस अवसर पर जर्मनी ने किसी संघर्ष को टालने के उद्देश्य से आस्ट्रिया से नरमी से काम लेने का परामर्श दिया। पर इसी बीच रूस ने अपनी सेनाओं को युद्ध के लिए तैयार करना शरू कर दिया। जर्मनी ने रूस को अपनी सैन्य तैयारी समाप्त करने लिए 12 घंटे का अल्टीमेटम दिया।

रूस द्वारा इस अल्टीमेटम को नजरअंदाज करने के कारण 1 अगस्त, 1914 ई. को जर्मनी ने रूस एवं सर्बिया के विरुद्ध 3 अगस्त 1914 ई. को फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। उसने बल्जियम को दिय गए तटस्थता के वचन का उल्लंघन कर उसके क्षेत्र से अपनी सेनाएं गुजारी व फ्रांस पर हमला कर दिया। इससे क्षुब्ध होकर ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया।

शीघ्र ही आस्ट्रिया-हंगरी व जर्मनी की तरफ से तुर्की व बुल्गारिया भी युद्ध में शामिल हो गए। इटली कुछ समय तक तटस्थ रहा पर फिर ब्रिटेन, फ्रांस व रूस की तरफ से युद्ध में शामिल हो गया। जापान ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

यह युद्ध अब तक एक सम्पूर्ण यूरोपीय युद्ध में परिणत हो चुका था। अमेरिका एक लंबे समय तक इस युद्ध में शामिल नहीं हुआ था। युद्ध के प्रारंभिक वर्षों में जर्मनी का पलड़ा भारी रहा था। रूस की बोल्शेविक क्रान्ति के पश्चात् रूस की साम्यवादी सरकार ने युद्ध से स्वयं को बाहर कर लिया था एवं ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि के तहत जर्मनी को कई क्षेत्र सौंप दिए थे। जर्मनी के द्वारा पनडुब्बी युद्ध के कारण भी मित्र राष्ट्रों की मुश्किलें बढ़ती जा रही थी। परन्तु इसी बीच एक जर्मन पनडुब्बी द्वारा लुसिटानिया नामक अमेरिकी नागरिक जहाज को डुबा देने के कारण अमेरिका भी मित्र राष्ट्रों की तरफ से युद्ध में शामिल हो गया।

अमेरिका के युद्ध भूमि में उतरते ही युद्ध सही मायनों में विश्व युद्ध में परिणत हो गया। साथ ही, अमेरिका व अन्य मित्र देशों की संयुक्त शक्ति के आगे जर्मनी एवं उसके सहयोगी राष्ट्रों के लिए युद्ध में टिके रहना संभव नहीं हो पाया। 1918 ई. के उत्तराद्ध तक मित्र देश तुर्की, बुल्गारिया एवं आस्ट्रिया को पराजित कर चुके थे एवं नवम्बर, 1918 ई. तक जर्मनी को भी आत्म समर्पण के लिए मजबूर कर दिया गया।

इसी बीच एक नौसैनिक विद्रोह के बाद जर्मनी में कैसर का तख्तापलट भी हो गया था और वह भागकर हालैंड चला गया। इसके बाद जर्मनी में एक गणराज्य की स्थापना हुई जिसने 11 नवम्बर, 1918 ई. को युद्ध विराम संधि पर हस्ताक्षर कर दिए।

इस समस्त घटनाक्रम के पहले जनवरी, 1918 ई. में ही अमेरिका के राष्ट्रपति ने 14 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। इस 14 सूत्री कार्यक्रम के सूत्र निम्नांकित थे:

  1. गुप्त कूटनीति की जगह शांति संधियों को सार्वजनिक रूप से तैयार किया गया।
  2. प्रादेशिक सागर के परे समुद्री यातायात की पूर्ण स्वतन्त्रता की गारण्टी हो जिस पर अन्तर्राष्ट्रीय निर्णयों के अनुरूप ही प्रतिबन्ध की व्यवस्था हो।
  3. केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक स्तर पर ही सैन्यीकरण किया जाए।
  4. यथासंभव आर्थिक प्रतिबन्धों को समाप्त कर व्यापार के लिए समान परिस्थितियां स्थापित की जाए।
  5. स्थानीय जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न साम्राज्यिक दावों का निष्पक्ष समाधान किया जाए।
  6. रूस के सभी अधिकृत प्रदेशों को खाली करवाकर उन्हें स्वतन्त्र विकास के अवसर उपलब्ध कराए जाए।
  7. बेल्जियम की पूर्ण स्वतन्त्रता सुनिश्चित की जाए।
  8. फ्रांस पर जर्मनी के कब्जे को समाप्त करवाया जाए एवं उसे अल्सास लारेन का क्षेत्र वापस दिलाया जाए।
  9. आस्ट्रिया हंगरी की जनता को स्वतन्त्र विकास के अवसर दिए जाए।
  10. इटली की सीमाओं का राष्ट्रीयता के आधार पर पुनर्सीमांकन किया जाए।
  11. रूमानिया, सर्बिया व मोंटेनेग्रो की सम्प्रभुता सुनिश्चित की जाए व सर्बिया को सागर तट की सुविधा प्रदान की जाए।
  12. ऑटोमन साम्राज्य के गैर-तुर्की प्रदेशों को स्वतन्त्रता दी जाए।
  13. एक स्वतन्त्र पोलैंड की पुनर्स्थापना की जाए एवं उसे सागर तट तक पहुंच दी जाए।
  14. विभिन्न राष्ट्रों के एक संघ की स्थापना की जाए जो सभी राष्ट्रों को राजनीतिक स्वतन्त्रता एवं प्रादेशिक अखंडता की रक्षा कर सके।

प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम – Result and Effect of World War I in hindi.

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद यद्यपि विल्सन के इन 14 सूत्रों को सिद्धांत के तौर पर स्वीकार गया परन्तु व्यवहार में विजेता एवं पराजित राष्ट्रों के बीच जो संधिया की गई, वे असमानतापरक थी।

युद्ध समाप्ति के बाद शांति स्थापना की शर्तो के लिए पेरिस में 1919 ई. में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में व्यक्तित्वों की टकराहट एवं प्रतिशोध की भावना काम कर रही थी। फ्रांस के प्रधानमंत्री क्लीमेन्यू एवं ब्रिटेन के डेविड लौय्ड जार्ज जर्मनी पर कड़ी शर्ते लादने के पक्षधर थे क्योंकि उनके देशों में भी जनता की मानसिकता ऐसी ही बन रही थी।

डेविड लौय्ड जार्ज ने आगामी चुनावों के मद्देनजर जर्मनी से युद्ध हर्जाना वसूलने का आश्वासन भी ब्रिटिश जनता को दिया था। इस कारण बुडरो विल्सन को भी व्यवहार्यत: अपने 14 सूत्री फार्मूले से समझौता करना पड़ा। अब, पराजित पक्षों के साथ पेरिस एवं अन्य स्थलों पर अलग-अलग संधियां की गई। इनका विवरण इस प्रकार है:

1. वर्साय की संधि

28 जून, 1919 ई. को मित्र राष्ट्रों व जर्मनी के वाइमर गणतंत्र के बीच वर्साय की संधि के द्वारा शांति शर्त तय की गई। इसके प्रमुख प्रावधान अग्रंकित थे:

  1. जर्मनी को अल्सॉस-लारेन का क्षेत्र फ्रांस को सौंपना पडा। साथ ही, उत्तर में फ्रांस के कोयला क्षेत्र को हुए नुकसान के मुआवजे के रूप में फ्रांस को 15 वर्ष तक सार घाटी के अपने कोयला क्षेत्र का प्रयोग करने की छूट देनी पड़ी।
  2. एक जनमत संग्रह के द्वारा यूपेन व मालमेडी का क्षेत्र जर्मनी से छीनकर बेल्जियम को दे दिया गया।
  3. जनमत संग्रह के द्वारा ही श्लेषविग पुनः डेनमार्क को सौप दिया गया।
  4. मेमेल शहर लिथुआनिया को दे दिया गया।
  5. पोलैंड के नए राष्ट्र का निर्माण किया गया एवं उसे समुद्री मार्ग तक पहुँच देने के लिए जर्मनी को पश्चिमी प्रशा का एक भाग भी गलियारे के रूप में देना पड़ा।
  6. इसके साथ ही डेजिग के बंदरगाह को अन्तर्राष्ट्रीय बंदरगाह बना कर उसे राष्ट्र संघ के अधीन कर दिया गया।
  7. जर्मनी से उसके सारे अफ्रीकी उपनिवेश छीन लिए गए एवं चीन में भी उसे अपने सभी क्षेत्र गंवाने पड़े।
  8. जर्मनी की सैन्य संख्या 1 लाख तक सीमित कर दी गई एवं वहां अनिवार्य सैन्य भर्ती बंद कराने का उपबन्ध किया गया। जर्मनी की सैन्य क्षमता घटाने के लिए उसे शस्त्रास्त्रों के निर्माण व आयात-निर्यात के नियंत्रण करने एवं पनडुब्बी रहित न्यूनतम नौसेना रखने एवं शेष जहाजी बेड़ों को ब्रिटेन को सौंपने का प्रावधान भी किया गया। जर्मनी को वायुसेना की स्थापना भी नहीं करनी थी।
  9. राइन नदी के पूर्वी क्षेत्र में 30 मील चौड़ी एक भूपट्टी को असैन्यीकृत कर दिया गया एवं कीव नहर को सभी देशों के उपयोग के लिए खोल दिया गया।
  10. जर्मनी को अपने दक्षिण क्षेत्र में एक भूक्षेत्र चेकोस्लोवाकिया को हस्तांतरित करना पड़ा।
  11. जर्मनी को युद्ध अपराध का दोषी ठहराया गया एवं उससे नागरिक क्षति के एवज में क्षतिपूर्ति वसूलने का निर्णय किया गया। जर्मनी को पहले 1 अरब पाउंड की अंतरिम धनराशि मित्र राष्ट्रों को देनी थी जबकि शेष राशि का निर्धारण एक क्षतिपूर्ति आयोग द्वारा करना था। बाद में 1927 ई. में अपनी रिपोर्ट में आयोग ने क्षतिपूर्ति की राशि 6 अरब 60 करोड़ पाउंड निर्धारित की।
  12. वर्साय की संधि का एक अन्यतम प्रावधान उसके प्रथम भाग में राष्ट्रसंघ नामक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना करना था। इसे विश्व शांति बनाए रखने, अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, वैश्विक शांति को भंग करने वाले दोषी देशों पर समुचित कार्यवाही करने व विश्व भर के श्रमिकों व सभी मनुष्यों के सामाजिक-आर्थिक जीवन के उन्नयन का प्रयास करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

2. सेण्ट जर्मन की संधि

  1. यह संधि मित्र राष्ट्रों एवं आस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के बीच 10 सितंबर 1919 ई. को हुई थी। इसके प्रथम भाग के रूप में भी राष्ट्रसंघ से संबंधित प्रसंविदा (कान्ट्रैक्ट) शामिल किया गया था।
  2. इस संधि के द्वारा राष्ट्रीयता के आधार पर आस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य का विभाजन कर दिया गया। बोहेमिया साइलेशिया एवं मोराविया को मिलाकर चेकोस्लाविया नामक देश का सृजन किया गया। बोस्निया-हर्जेगोविना एवं सर्बिया को मिलाकर यूगोस्लाविया नामक नए देश का निर्माण किया गया।
  3. आस्ट्रियन-गैलीशिया पोलैंड को दे दिया गया । जबकि बुकोविना रूमानिया को एवं दक्षिणी टॉयराल का क्षेत्र इटली को दे दिया गया।
  4. हंगरी को आस्ट्रिया से पृथक कर दिया गया। इस प्रकार आस्ट्रिया-हंगरी का साम्राज्य छिन्न भिन्न कर दिया गया।
  5. आस्ट्रिया की सैन्य क्षमता सीमित करके मात्र 30 हजार कर दी गई। उसकी नौसेना लगभग समाप्त कर दी गई। वायु सेना की स्थापना का अधिकार छीन लिया गया।

3. न्यूली की संधि (1919 ई.)

  1. यह संधि बुल्गारिया के साथ की गई। इसके तहत बुल्गरिया ने पश्चिमी थ्रेस ग्रीस को, पश्चिमी बुल्गारिया व मैसीडोनिया का एक भाग, यूगोस्लाविया को एवं डोब्रिया रूमानिया को दे दिया। अब बुल्गारिया को समुद्र तक पहुंचने के लिए विदेशी क्षेत्रों से गुजरना था।
  2. बुल्गारिया को क्षतिपूर्ति जमा करने एवं अपनी सैन्य क्षमता को पर्याप्त रूप कम करने के लिए भी कहा गया।

4. ट्रायनॉन की संधि (1920)

  1. यह संधि हंगरी के साथ अलग से की गई। इसके द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया कि वहां हैप्सबर्ग वंश का शासन पुनर्स्थापित नहीं होगा।
  2. हंगरी ने ट्रांसिल्वेनिया का क्षेत्र रूमानिया को जबकि स्लोवाकिया चेकोस्लोकिया को सौंप दिया। उसके कुछ क्षेत्र आस्ट्रिया और इटली को भी दिए गए एवं क्रोएशिया यूगोस्लाविया को मिल गया।
  3. हंगरी की सैन्य क्षमता भी अत्यंत कम कर दी गई एवं हर्जाना वसूला गया।

5. सेव्रे एवं लुसाने की संधि

  1. यह संधियां तुर्की के साथ की गई थी।
  2. सेव्रे की संधि (1920) के द्वारा मिस्र, सूडान, लीबिया, मोरक्को, सीरिया, मेसोपाटामिया, ट्यूनीशिया, फिलीस्तीन, आर्मेनिया एवं अन्य अरब प्रदेशों को तुर्की/ ऑटोमन साम्राज्य से अलग कर दिया गया। उस पर भारी हर्जना लगाया गया एवं सैन्य क्षमता में भारी कटौती की गई।
  3. पर सेने की संधि को लागू नहीं किया जा सका क्योंकि मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की में एक राष्ट्रवादी आन्दोलन उठ खड़ा हुआ जिसने इस संधि को मानने से इंकार कर दिया। इस आन्दोलन ने न सिर्फ तुर्की सुल्तान के विरुद्ध सफल आन्दोलन किया वरन् मित्र देशों की प्रेरणा से तुर्की पर आक्रमण करने वाली ग्रीस की सेनाओं को भी हराया।
  4. अब तुर्की में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में गणतंत्र की स्थापना हो गई। बदली परिस्थितियों में मित्र देशों ने भी नए गणतंत्र से मित्रता करनी चाही। स्विट्जरलैंड के लुसाने में जुलाई, 1923 ई. के शांति सम्मेलन में दोनों पक्षों के बीच संधि हुई। इसके द्वारा उन अरब प्रदेशों का पृथक्करण अनुमोदित कर दिया गया जो ब्रिटेन या फ्रांस के मैन्डेट में शामिल हो गए थे परन्तु तुर्की को स्मिर्ना, कुस्तुनतुनिया एवं पूर्वी थ्रेस के क्षेत्र वापस मिल गए। क्षतिपूर्ति एवं निरस्त्रीकरण के प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया।

वर्साय सहित उपर्युक्त तमाम संधियों में केवल लुसाने की संधि ही अध्यारोपित व असंगत नहीं थी। शेष सभी संधियों में पराजित पक्षों पर ही युद्ध की जिम्मेदारी थोप कर उन पर अपमानजनक एवं अत्यंत कठोर संधियां लाद दी गई थी। इन संधियों की शर्ते एकपक्षीय थी एवं प्रतिशोध की भावना से प्रेरित थी।

जर्मनी की जनता, जो सदियों से राजतंत्र की अभ्यस्त थी पर जबरन लोकतंत्र थोप दिया गया था। विशेषकर वर्साय की संधि की एक बड़ी कमजोरी यह थी कि इसके द्वारा यूरोप में जो नयी राजनीतिक प्रणाली का उदय हुआ, उसमें जर्मनी के परितः अनेक छोटे-छोटे एवं निर्बल राज्य बना दिए गए।

जर्मन लोगों का राष्ट्रवाद वर्साय की अपमानजनक संधि से बुरी तरह आहत हुआ था क्योंकि उसमें विल्सन के 14 सूत्री आदर्शवाद की खुली अवहेलना हुई थी। कमजोर किए जाने के बावजूद आहत राष्ट्रवाद से प्रेरित जर्मनी के लिए भविष्य में शक्तिशाली बनने पर इन कमजोर देशों पर आधिपत्य जमाने की संभावना खुली छोड़ दी गई थी और शीघ्र ही ऐसा हुआ भी। इसी कारणवश वर्साय की संधि को द्वितीय विश्व युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण भी माना जाता है।

प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव – Effect of World War I in hindi.

प्रथम विश्व युद्ध विस्तार एवं युद्ध के तौर-तरीकों के हिसाब से प्रथम विश्व युद्ध एक अभूतपर्व युद्ध था जो लगभग पूरे विश्व में लड़ा गया। यह एक प्रकार का सम्पूर्ण युद्ध था जिसमें पनडुब्बियों, जेपलिन, परम्परागत शस्त्रास्त्रों के साथ-साथ मस्टर्ड गैस जैसे घातक हथियारों का भी प्रयोग किया गया था एवं विपक्षी सेना के साथ-साथ शत्रु देश के नागरिकों को भी निशाना बनाया गया था पर प्रवृत्ति में यह भी यूरोप के पूर्व युद्धों की तरह शक्ति-संतुलन के लिए लड़ी गई थी।

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण व दुरगामी थे। इसके कुछ प्रमुख परिणामों को निम्नांकित बिंदुओ के अंतर्गत समझा जा सकता है:

  1. इस युद्ध के फलस्वरूप जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन व रूस के विशाल साम्राज्यों का पतन हो गया एवं उनके विघटन से अनेक छोटे-छोटे एवं कमजोर राष्ट्रों का उदय हुआ।
  2. प्रथम विश्व युद्ध का एक परोक्ष प्रभाव रूस की क्रान्ति पर पड़ा। युद्ध में रूस की लगातार हारों एवं जार के कुशासन के विरुद्ध वहां साम्यवादी क्रान्ति शुरू हो गई जिसने जारशाही का अंत कर किया।
  3. प्रथम विश्व युद्ध का एक अन्य प्रभाव संयुक्त राज्य अमेरिका का महाशक्ति के रूप में उदय था। युद्ध में शामिल होने के पहले तक अमेरिका ने युद्धरत देशों को शस्त्रास्त्रों की आपूर्ति करके प्रभूत लाभ कमाया था। इससे उसकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो गई थी। युद्ध की समाप्ति के पास शांति सम्मेलनों में भी उसकी प्रभावी भूमिका थी। वास्तव में, युद्ध को मित्र राष्ट्रों के पक्ष में मोड़ने में भी उसकी विपुल सम्पदा व सैन्य शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका थी। युद्ध के पश्चात् उसने यूरोपीय राष्ट्रों को ऋण देकर लाभ कमाया। इस प्रकार यूरोप के मामलों में भी उसका प्रभावी दखल होने लगा व बढ़ी हुई सैन्य व आर्थिक शक्ति ने उसे प्रमुख रूप से एक महाशक्ति के रूप में स्थापित कर दिया।
  4. प्रथम विश्व युद्ध जैसी घटना की पुनरावृत्ति रोकने एवं विश्व शंति व व्यवस्था बहाल रखने के उद्देश्य से राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। इस संघ की स्थापना विभिन्न देशों के आपसी विवादों का शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता के मद्देनजर की गई थी परन्तु यह इस कार्य में प्रायः सफल नहीं हो पाया।
  5. प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप पूंजीवाद के स्वरूप में भी परिवर्तन आया। अनिवार्य सैन्य भर्तियों के कारण उद्योगों में श्रमिकों की संख्या घटी जबकि युद्ध के दौरान विभिन्न शस्त्रास्त्रों व अन्य जरूरी चीजों का उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता महसूस होने लगी। चूंकि यूरोपीय देश इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में सक्षम नहीं हो पा रहे थे, अतः उन्होंने उपनिवेशी में इन चीजों का उत्पादन बढ़ाने पर बल दिया। अब, पूंजीवादी मुक्त व्यापार के स्वरूप में थोड़ा परिवर्तन किया गया। भारत एवं अन्य उपनिवेशों में उद्योगों को सरकारी समर्थन व संरक्षण दिया जाने लगा जिससे वहां सीमित स्तर पर ही सही पर, औद्योगिकरण बढ़ा। हालांकि इस बढ़े हुए उत्पादन का अधिकांश भाग औपनिवेशिक हितों की पूर्ति के लिए किया गया। साथ ही, युद्ध के बाद ये संरक्षण व समर्थन भी समाप्त कर दिए गए।
  6. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान श्रमिकों की संख्या कम हो गई थी। दूसरी ओर, रूसी क्रान्ति के कारण वहां सर्वहारा वर्ग का शासन स्थापित हो गया था। इससे श्रमिक वर्ग में साम्यवादी चेतना का व्यापक प्रसार हुआ। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना की गई एवं श्रमिक अपनी मांगों के प्रति ज्यादा मुखर हुए।
  7. चूंकि प्रथम विश्व युद्ध भी शक्ति संतुलन व वर्चस्व की लड़ाई थी एवं युद्ध की समाप्ति के पश्चात् पराजित पक्षों पर अपमानजनक संधियां थोप दी गई थी। इसलिए इस बात की प्रबल संभावना थी कि जर्मनी जैसी आहत राष्ट्रवादी शक्तियां भविष्य में इसका प्रतिरोध करेंगी। फ्रांस विशेष रूप से ऐसी आंशका से ग्रस्त था। अंततः इटली व जर्मनी में फासीवादी शक्तियों के उदय के साथ ही प्रथम विश्व युद्ध की अपमानजनक संधियों के विरोध में एवं अपनी शक्ति बढ़ाने के उद्देश्य से इन देशों ने शस्त्रीकरण शुरू कर दिया। इनका सामना करने के लिए अन्य शक्तियां भी सैन्य तैयारियों में जुट गई। इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद भी यूरोप में जो राजनीतिक सामरिक शून्य बना रह गया, उसने शस्त्रीकरण की दौड़ को जन्म दिया। प्रथम विश्व युद्धोपरान्त की गई व्यवस्था की कमियां भी यूरोप में फासीवादी शक्तियों के उदय का एक कारण बनीं।
  8. प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप विभिन्न देशों पर भारी ऋण-भार चढ़ गया था। इससे निपटने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों ने कागजी मुद्रा के प्रचलन पर जोर देना शुरू कर दिया। इससे मुद्रा की क्रयशक्ति कम हुई व वस्तुओ की कीमत में वृद्धि हुई। साथ ही, ऋण को चुकाने के लिए जनता पर करों का बोझ भी बढ़ा दिया गया।
  9. युद्ध के दौरान श्रम-बल की कमी की पूर्ति के लिए महिलाओं ने भी कारखानों में काम करना शरू कर दिया था व राजनीतिक गतिविधियों में भी भागीदारी की। इससे उनका सामाजिक महत्व भी बढ़ा व उनमें जागृति का प्रसार हुआ। इसके कारण उन्होंने भी पुरूषों के बराबर हक मांगना प्रारंभ किया व उनके जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आने लगे।
  10. युद्ध के परिणामस्वरूप शिक्षा व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा क्योंकि सैनिक भर्ती कार्यक्रमों में अनेक विद्यार्थियों द्वारा भागीदारी की गई। युद्धोपरान्त शिक्षा व्यवस्था के पुनरूद्धार की आवश्यकता महसूस की गई।
  11. प्रथम विश्व युद्ध की व्यापकता ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास को द्रुत किया। विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों द्वारा नए-नए प्रकार के शस्त्रास्त्र विकसित किए गए जिनका युद्ध के दौरान व्यापक प्रयोग किया गया। नए आविष्कारों की आवश्यकता विभिन्न देशों द्वारा महसूस की गई जिसके कारण युद्ध के बाद भी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास पर बल दिया जाता रहा।
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