बजट
बजट का अर्थ
बजट की परिभाषा
- टेलर के अनुसार- “बजट सरकार की मास्टर वित्तीय योजना है।”
- किंग के अनुसार- “बजट एक प्रशुल्क योजना है, जिसके द्वारा व्यय को आय से सन्तुलित किया जाता है।”
- रेन स्टोर्न के अनुसार- “बजट एक एसे ा प्रपत्र है जिसमें सार्वजनिक आय एवं व्यय की प्रारम्भिक स्वीकृति व्यवस्था रहती है।”
- डब्लू.एफ. बिलोबी- “बजट एक ही साथ एक प्रतिवदेन, एक अनुमान एवं एक प्रस्ताव है कि यह वह साधन है जिसमें वित्तीय प्रशासन की समस्त प्रक्रिया को सम्बन्धित, तुलना एवं समन्वित किया जाता है।”
- बजट के उपयुर्क्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सरकारी बजट के तीन पहलू हैं:-
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- यह प्रत्याशित व्ययों और उन्हें पूरा करने के वित्तीय स्रोतों का विवरण होता है।
- इसका सम्बन्ध एक वित्तीय वर्ष से होता है।
- व्यय और वित्तीय स्रोतों का चुनाव सरकार की घोषित नीतिगत उद्देष्यों के अनुसार होता है।
सरकारी बजट के घटक
सरकारी बजट के घटक |
(1) प्राप्तियां | (2) व्यय |
1. राजस्व प्राप्तियां। | 1. पूजीगत व्यय और राजस्व व्यय। |
2. पूजींगत प्राप्तिया। | 2. योजना व्यय और गैर-योजना व्यय। |
1. प्राप्तियां –
1. राजस्व प्राप्तियां –
- निगम कर : यह कम्पनियों के लाभ पर लगाया गया कर है।
- आय कर : यह व्यक्तियों की आय पर लगाया गया कर है।
- ब्याज कर : यह ब्याज आय पर लगाया जाता है।
- व्यय कर : यह व्यय करने पर लगाया जाता है।
- सम्पत्ति कर : यह व्यक्तिगत सम्पत्ति पर लगाया जाता है।
- उपहार कर : यह किसी को उपहार देने पर लगाया जाता है।
अप्रत्यक्ष कर –
- सीमा शुल्क : ये कर आयात और नियार्त पर लगाए जाते है।
- संघ उत्पादन शुल्क : ये कर केन्द्र सरकार द्वारा वस्तुओं के उत्पादन पर लगाए जाते है।
- सेवा कर : यह सेवाओं के उत्पादन पर लगाए जाते है।
- बिक्री कर : यह वस्तुओं के बिक्री पर लगाए जाते है।
(ब) राजस्व- कर को छाडे क़ र राजस्व के सभी अन्य स्त्रोत करतरे राजस्व कहलाते है।भारत में केद्रीय सरकार के करतेर राजस्व के तीन स्त्रोत है :-
- ब्याज प्राप्तियां : केन्द्रीय सरकार के विभाग लोगों उद्योगों और स्थानीय निकायें आदि को ऋण देते हैं और बदले में ब्याज लेते है।
- लाभांश व लाभ : केन्द्रीय सरकार के अपने उद्यम होते हैं। ये सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं और निजी उद्यमों की तरह ये वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं। भारतीय रेलवे, एयर इंडिया, महानगर टेलीफोन निगम, राश्टी्रयकृत बैकं आदि इसके कुछ उदाहरण है। केन्द्रीय सरकार या तो इनमें अश्ंधारी है या इनका पूर्ण रूप से स्वामी है। इसमें सरकार को लाभांश और लाभ मिलता है।
- विदेशी अनुदान : सरकारी विभागों की विदेषी सरकारों से दान, उपहार, आदि के रूप में अनुदान मिलता है।
2. पूंजीगत प्राप्तियां-
- घरेलू ऋण : ये ऋण देश के अंदर से प्राप्त किए जाते हैं। सरकार, सरकारी प्रतिभूतिया और राजकोषीय हुडियां जारी करके वित्तीय बाजार से ऋण लेती है। सरकार आम जनता से विभिन्न जमा याजे नाओं के माध्यम से ऋण लेती है। लोक भविष्य निधि, लघु बचत योजनाएं, इन्दिरा विकास पत्र, किसान विकास पत्र, राष्टी्रय बचत योजना, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र, आदि इसके कछु उदाहरण है। इन योजनाओं में जमा कराया गया पैसा सरकार को ऋण के रूप में दिया जाता है।
- ऋणों की वसूली केन्द्रीय सरकार देश में राज्य व स्थानीय सरकारों को ऋण देती है। इन ऋणों की वापस वसूली केन्द्रीय सरकार की पूंजीगत प्राप्तियां मानी जाती है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शेयरों की पुन: बिक्री यह पूजीगत प्राप्तियों का एक नया स्त्रोत है। अब तक सावर्ज निक उद्यमों में केन्द्र सरकार की 100 प्रतिशत भागीदारी होती थी। यानि पूरा निवेष केन्द्रीय सरकार ही करती थी। वर्ष 1991 में केन्द्रीय सरकार ने निजीकरण की नीति अपनायी। इस नीति के अधीन सरकार ने इन उद्यमों के शेयरों को आम जनता और वित्तीय सस्थाओं को बेचना शरूु कर दिया। इसे ‘शेयर अनिवेश’ कहा जाता है।
2. व्यय –
1. पूंजीगत व्यय बनाम राजस्व व्यय – परिसम्पत्तियों पर होने वाला व्यय पूंजीगत व्यय कहलाता है। यह व्यय भवन, सडक़ , पुल, नहरें आदि निमार्ण कार्यों पर व पूंजीगत समान आदि पर होता है। परिसम्पत्तियों के अतिरिक्त अन्य मदों पर किया जाने वाला व्यय राजस्व व्यय कहलाता है। यह वेतन का भुगतान, सम्पत्ति की देखभाल, लोगों को नि:षुल्क सेवाएं आदि देने पर किया गया व्यय है।
सरकार देश का प्रशासन चलाने के लिए दिन-प्रतिदिन के व्यय का भी प्रावधान करती है। नियाजे न हो या न हा,े ये व्यय तो प्रत्येक देश में होते ही है। प्रत्यके सरकार को अपने देश के लोगों की जान-माल की रक्षा करनी होती है। इस कार्य के लिए पुलिस और न्यायालय व्यवस्था पर व्यय करना होता है। देश को विदेषी आक्रमणों से बचाने के लिए सेवा पर व्यय करना होता है। इसके अलावा दिन-प्रतिदिन के व्यय भी होते है। जैसे सरकारी विभागों विधायिकाओं जल-आपूित, सफा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसी जन सेवाओं को प्रदान करने पर व्यय। ये सभी व्यय गैर-याजेना व्यय कहलाते है।
बजट में प्रयुक्त घाटों की अवधारणाएं
सरकारी बजट में जब अनुमानित प्राप्तियां अनुमानित व्यय से कम होती है तो घाटे की स्थिति निमिर्त होती है। घाटे की क अवधारणाए है। यहा हम बजटीय और राजकोषीय घाटा की अवधारणा का अध्ययन करेंगे ।
1. बजटीय घाटा –
सूत्र –
BD = TBE – TBR
BD = बजटीय घाटा
TBE = कुल बजट व्यय
TBR = कुल बजट प्राप्तियां
यह माप राजस्व और पूजींगत प्राप्तियों व योजना और गैर-योजना व्यय दोनों पर आधारित है। भारत सरकार के 2008-09 के बजट में कलु प्राप्तियां 6,02,935 करोड़ रूपये तथा कलु व्यय 7,50,884 करोड़ रूपये थी। इसका अर्थ यह हुआ कि बजटीय घाटा 1,47,949 करोड़ रूपये का था।
2. राजकोषीय घाटा –
सूत्र –
RD = TBE – (TRB + LR + OR)
RD = राजकोषीय घाटा
TBE = कुल बजट व्यय
TBR = कुल बजट प्राप्तियां
LR = ऋण प्राप्तियां
OR = अन्य प्राप्तियां
भारत सरकार के 2008-09 के वार्षिक बजट में राजकोषीय घाटा 1,33,287 करोड़ रूपये का था। राजकोषीय घाटा यह बताता है कि सरकार को अपने व्ययों को पूरा करने के लिए कुल कितने ऋण की आवष्यकता है।
- यह व्यय को पूरा करने के लिए धन जुटाने की समस्या का सही-सही माप है।
- राजकोषीय घाटा इस बात का भी सकं ते देता है कि भविष्य में ब्याज के भुगतान और ऋणों की वापसी पर कितना और व्यय होगा।
बजट घाटा पूरा करने के वित्तीय स्रोत – किसी भी सरका के सामने घाटा पूरा करने के तीन वित्तीय स्रोत होते हैं-
- जनता और विदेषी सरकारों से ऋण।
- भारतीय रिज़र्व बैकं में रखी हु नकद शेष को निकालना।
- भारतीय रिजवऱ् बैकं से ऋण लेना।
अपने व्ययों को पूरा करने के लिए सरकार जनता से ऋण लेना अधिक पसदं करती है क्योंकि अन्य स्रोतों से व्ययों को पूरा करने पर मुद्रा पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है। जनता से ऋण लेने पर देश में कुल मुद्रा पूर्ति पर को सीधा प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात् इसका शून्य प्रभाव होता है। जनता के पास मुद्रा पूर्ति कम हो जाती है और सरकार के पास यह बढ़ जाती है। दूसरी ओर भारतीय रिजर्व बैंक में रखी ‘नकद शेष’ को निकालने या उससे ऋण लेने पर देश में मुद्रा पूर्ति बढ़ जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक से बाहर आने वाली मुद्रा, मुद्रा -पूर्ति को बढ़ाती है। इससे देश में कीमतें बढ सकती हैं और अर्थव्यवस्था में क अन्य समस्याएं जन्म ले सकती हैं। अत: को और विकल्प न होने पर ही सरकार ये सा्रेत प्रयागे में लाती है।
बजटीय नीति के उद्देश्य
- देश को प्रभावी प्रशासन देना – इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार पुलिस, सेना, विधायिका न्यायालय सरकारी विभागों आदि पर व्यय करती है।
- मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना – इसके लिए सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, जल व बिजली आपूर्ति, परिवहन, डाक व दूर संचार सेवाएं सड़क , पुल , पार्क आदि पर व्यय करती है।
- रोजगार के अवसर प्रदान करना – इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार क कदम उठाती है। वह सावर्ज निक उद्योग खालेती है। उत्पादन और रोजगार को प्रोत्साहन देने के लिए निजी उद्योगों को अनुदान देती है। करों में छूट, अनुदान, ऋण आदि के द्वारा लघु, कुटीर व ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन देती है। रोजगार के अवसर बढा़ ने के उद्देश्य से सार्वजनिक निर्माण कार्यों जैसे सड़क , पुल , सरकारी भवन आदि का निर्माण कार्य करती है।
- कीमतों में स्थिरता लाना – आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में स्थिरता बनाए रखना सरकार की जिम्मदे ारी होती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार उचित दर की दुकानें खोलती है, अनाज का भण्डार रखती है, आदि। सरकार आवश्यक वस्तुएं जैसे रसो गैस, बिजली, पैट्रोल आदि की अधिकतम कीमतें निश्चित करती है।
- आय की असमानताए कम करना – सरकार अमीर वर्ग पर कर लगाकर और गरीब वर्ग पर व्यय करके आय की असमानताएं कम कर सकती है।
- आर्थिक संवृद्धि का बढ़ाव देना- लोहा, रसायन, रासायनिक खाद, मशीन निमार्ण जैसे आधारभूत उद्योग खोलकर सरकार आथिर्क सवंृिद्ध को बढा़वा दे सकती है। प्राय: निजी उद्योग इन व्यवसायों को खोलने में आगे नहीं आते क्यांेिक इनमें बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होती है। लेकिन देश में औद्याेिगक वातावरण बनाने में इन उद्योगों की बहतु बडी़ भूमिका होती है।
उपरोक्त बिन्दुओं के अलावा बजटीय नीति का उद्देश्य भुगतान सन्तुलन में घाटे को ठीक करना भी है। सरकार आयात पर भारी मात्रा में शुल्क लगाकर तथा निर्यातकों को अनुदान देकर निर्यातों को प्रोत्साहन देती है ताकि घाटा कम हो सके