महाराष्ट्र में सियासी ड्रामा जारी है। 24 अक्तूबर को राज्य के नतीजे आने के बावजूद कोई भी पार्टी सरकार का गठन नहीं कर पाई है। ऐसे में राज्यपाल ने हस्तक्षेप करते हुए सबसे बड़ा दल होने की वजह से भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया लेकिन वह नियत समय के अंदर सरकार बनाने में असफल रही।

राष्ट्रपति शासन का मतलब है किसी राज्य का नियंत्रण भारत के राष्ट्रपति के पास चले जाना। लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से केंद्र सरकार इसके लिए राज्य के राज्यपाल को कार्यकारी अधिकार प्रदान करती है। संविधान के अनुच्छेद 352, 356 और 365 में राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान दिए गए हैं।

अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के मुताबिक काम नहीं कर रही है। अनुच्छेद 365 अनुसार राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा दिए गए संवैधानिक निर्देशों का पालन नहीं करती तो उस हालात में भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अनुच्छेद 352 के तहत आर्थिक आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।

किन परिस्थितियों में लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन 

  • अगर  चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत न मिलाहो 
  • जिस पार्टी को बहुमत मिला हो वह सरकार बनाने से इनकार कर दे और राज्यपाल को दूसरा कोई ऐसा दल नहीं मिले जो सरकार बनाने की स्थिति में हो
  • राज्य सरकार विधानसभा में हार के बाद इस्तीफा दे दे और दूसरे दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हो
  • राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों का पालन ना किया हो
  • कोई राज्य सरकार जान-बूझकर आंतरिक अशांति को बढ़ावा या जन्म दे रही हो
  • राज्य सरकार अपने संवैधानिक दायित्यों का निर्वाह नहीं कर रही हो

ये भी जानें…

राष्ट्रपति शासन के लागू होने के दो महीनों के भीतर संसद के दोनों सदनों के द्वारा अनुमोदन हो जाना चाहिए। दोनों सदनों में इसका अनुमोदन होने के बाद राष्ट्रपति शासन छह महीने तक चल सकता है। भारत में अब तक करीब 125 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। भारत में राष्ट्रपति शासन सबसे पहले पंजाब में साल 1951 में लगाया गया था।

राष्ट्रपति शासन लगने के बाद क्या बदलाव होते हैं

  • राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद को भंग कर देतेहैं
  • राज्य सरकार के कार्य राष्ट्रपति के पास चले जाते हैंऔर उसपर राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं
  • राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल राज्य सचिव या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से शासन चलातेहैं
  • राष्ट्रपति अगर चाहे तो ये घोषणा कर सकते हैंकि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी
  • संसद, राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारितकर सकती है
  • संसद को यह अधिकार मिल जाता है कि वह राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति अथवा उनके द्वारा किसी नामित अधिकारी को दे सकती है
  • जब संसद नहींचल रही हो तो राष्ट्रपति राज्य के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है

राष्ट्रपति शासन में क्या होता है?

भारत में राष्ट्रपति को तीन धाराओं के तहत आपातकाल की घोषणा की शक्ति प्राप्त है। धारा 352 के तहत युद्ध या विदेशी आक्रमण की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है। तो धारा 360 के तहत आर्थिक आपातकाल लगाया जा सकता है।

राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने या एक साल की होती है। अगर राष्ट्रपति शासन को एक साल पूरा होने के बाद भी आगे बढ़ाना होता है तो इसके लिए चुनाव आयोग की अनुमति लेनी होती है।

अगर चुनाव आयोग सहमति दे भी देता है तो राष्ट्रपति शासन तीन साल की अवधि से ज्यादा नहीं लगाया जा सकता। राष्ट्रपति शासन के दौरान भी राज्यपाल राजनीतिक पार्टियों को बहुमत साबित करने के लिए न्योता दे सकते हैं।

किन परिस्तिथियों में विधानसभा को भंग किया जा सकता है:

  • जब राज्य में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और अन्य दलों के नेता मिलकर सरकार नहीं बना पाते हैं तो राज्यपाल विधानसभा को भंग कर देता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, यदि एक राज्य सरकार, केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुपालन में अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने में विफल रहती है या सरकार संविधान के अनुसार बताये गए नियमों का पालन नहीं करती है, तो उस राज्य का राज्यपाल इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजता है जो कि केंद्रीय कैबिनेट की परामर्श के अनुसार राज्य में विधान सभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।
  • यदि राज्य में चल रही गठबंधन सरकार अल्पमत में आ जाती है अन्य दलों के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं है तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल नए चुनाव कराने के उद्देश्य से राज्य की विधानसभा को भंग कर सकता है।
  • यदि विधानसभा चुनाव अपरिहार्य कारणों (जैसे राज्य का विभाजन, बाहरी आक्रमण इत्यादि) से स्थगित कर दिए गए हैं तो भी राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकता है।

यद्यपि राज्य विधानसभा के विघटन की शक्ति राज्यपाल के पास भी है। हालांकि राज्यपाल के इस निर्णय को संसद के दोनों सदनों द्वारा दो महीने के अंदर अनुमति मिलना जरूरी होता है।

यदि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के पास विधानसभा भंग करने के खिलाफ अपील की जाती है और कोर्ट अपनी जांच में ये पता लगाते हैं कि राज्य विधानसभा को झूठे या अप्रासंगिक मुद्दे के आधार पर भंग किया गया है तो कोर्ट विधानसभा का भंग किया जाना रोक सकते हैं। इस प्रकार विधानसभा भंग करने का राष्ट्रपति का फैसला अंतिम निर्णय नहीं है और इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

सन 1994 से पहले, राज्य असेंबली को भंग करने के तरीकों के बारे में व्यापक रूप से निंदा हुई थी। कई लोगों का मानना था कि केंद्र सरकार अपने हितों को पूरा करने के लिए अपने से अलग पार्टी की सरकारों को गैर वाजिब कारणों के हटा रही थी। इसलिए इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में उन कारणों की व्याख्या की जिनके आधार पर किसी राज्य की विधानसभा को भंग किया जा सकता है।

राष्ट्रपति शासन के बाद विधानसभा की स्थिति

राष्ट्रपति शासन लागू करने के आदेश में विधानसभा को भंग करने या निलंबित रखने (सस्पेंडेड एनीमेशन) का उल्लेख होता है। भंग किए जाने की स्थिति में विधानसभा के पास कोई शक्ति नहीं होती और छह महीने के अंदर दोबारा चुनाव कराने जरूरी होते हैं। अगर राज्यपाल को लगता है कि राज्य में स्थिति बदल सकती है या सरकार बनाई जा सकती है, तो वे विधानसभा को निलंबित करने की सिफारिश करते हैं।

राष्ट्रपति शासन कैसे हटाया जाता है

विधानसभा निलंबित किए जाने पर, राष्ट्रपति शासन कभी भी हटाया जा सकता है और विधानसभा अपनी मूल स्थिति में लौट सकती है। यानी एक महीने या दो महीने बाद, जब भी कभी सरकार बनने की स्थिति बने, तो राष्ट्रपति शासन हटाया जा सकता है।

विधानसभा भंग होती तो…

अगर राष्ट्रपति शासन के आदेश में विधानसभा भंग की जाती, तो फिर छह महीने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहता और इन छह महीनों के अंदर-अंदर राज्य में विधानसभा चुनाव कराने पड़ते।

राष्ट्रपति शासन कितने दिनों के लिए लगाया जा सकता है?

निलंबन की स्थिति में राज्यपाल कभी भी राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश कर सकते हैं। लेकिन ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इस अवधि के अंदर सरकार बनानी होती है। अगर राष्ट्रपति शासन को छह महीने के लिए और बढ़ाना हो तो संसद के दोनों सदनों से अनुमोदन लेना होता है।

अनुच्छेद-356

  • अनुच्छेद 356, केंद्र सरकार को किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति उस अवस्था में देता है, जब राज्य का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया हो।
  • यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति (जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो) की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है (ताकि वो नागरिक अशांति के कारणों का निवारण कर सके)। राष्ट्रपति शासन के आलोचकों का तर्क है कि अधिकतर समय, इसे राज्य में राजनैतिक विरोधियों की सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे कुछ लोगों के द्वारा इसे संघीय राज्य व्यवस्था के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है। 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केन्द्र सरकार द्वारा इसका प्रयोग 100 से भी अधिक बार किया गया है।
  • अनुच्छेद को पहली बार 31 जुलाई 1959 को विमोचन समारम के दौरान लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी केरल की कम्युनिस्ट सरकार बर्खास्त करने के लिए किया गया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश की भाजपा की राज्य सरकार को भी बर्खास्त किया गया था।

अनुच्छेद-355

  • अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार अधिकृत करता है ताकि वो किसी बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति की दशा में राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके और प्रत्येक राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार चलता रहे।
  • इस अनुच्छेद का इस्तेमाल तब किया गया जब भाजपा शासित राज्यों में गिरिजाघरों पर हमले हो रहे थे। तब के संसदीय कार्य मंत्री वायलार रवि ने अनुच्छेद 355 में संशोधन कर, राज्य के कुछ भागों या राज्य के कुछ खास क्षेत्रों को केंद्र द्वारा नियंत्रित करने का सुझाव दिया था।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *