रॉलेट एक्ट के खिलाफ विरोध (Protests Against The Rowlatt Act in Hindi)

क्या आप सभी ये जानते है कि भारत में ब्रिटिश सरकार ने जब राज किया था तब उन्होंने भारत में कुछ ऐसे कानून बनाये थे जिसका विरोध करने पर हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी. आज हम इस लेख में ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गये ऐसे ही एक कानून के बारे बताने जा रहे हैं जिसका नाम है रॉलेट एक्ट. जिसकी वजह से जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ और उस दौरान हजार से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई थी. इस कानून के बारे में पूरी जानकारी को आप विस्तार से नीचे देख सकते हैं.

रॉलेट एक्ट क्या था ? (What was the Rowlatt Act ?)

रॉलेट एक्ट, सन 1919 में मार्च महीने की 10 तारीख को ब्रिटिश भारत की लेजिस्लेचर एवं इम्पिरियल लेजिस्लेटिव कांउसिल द्वारा पारित किया गया एक कानून था. इस कानून के तहत भारतीय ब्रिटिश सरकार को लोगों पर अधिकार करने की अधिक शक्ति मिल गई थी. इस एक्ट को रॉलेट कमीशन भी कहा जाता है क्योंकि इस एक्ट को लाने के लिए एक कमेटी बनाई गई थी और इसके अध्यक्ष ब्रिटिश न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट थे. जिनके नाम पर इस एक्ट का नाम रखा गया था. इसके अलावा इसे ब्लैक एक्ट भी कहा जाता है.

रॉलेट एक्ट लाने का कारण (Rowlatt Act Causes)

सन 1910 के दशक में यूरोप के अधिकतर देशों में प्रथम विश्व युद्ध हुआ था, इस युद्ध में ब्रिटेन की जीत हुई थी. और इस युद्ध में ब्रिटेन के जीत हासिल कर लेने के बाद उन्होंने भारत पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया. उन्होंने सन 1918 में युद्ध समाप्त होने के बाद देश में उनके खिलाफ क्रांतिकारियों द्वारा की जा रही गतिविधियों एवं आंदोलनों को दबाने के लिए रॉलेट एक्ट कानून लाने का फैसला किया था, ताकि कोई भी भारतीय ब्रिटिशों के खिलाफ आवाज न उठा सके. हालाँकि ब्रिटिश सरकार का इस एक्ट को लागू करने का उद्देश्य देश में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों को समाप्त कर देश में शांति लाना भी था.

रॉलेट एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार के अधिकार (Rights of the BritishGovernment Under the Rowlatt Act)

इस एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार को निम्न अधिकार मिल गए थे –

  • सबसे पहले तो उन्हें यह अधिकार मिल गया था कि वे किसी भी ऐसे व्यक्ति को, जोकि आतंकवाद, देशद्रोह और विद्रोह में शामिल होता हुआ दिखेगा, उसे तुरंत गिरफ्तार कर सकते हैं. और वो भी बिना किसी वारंट के केवल शक के आधार पर.
  • इसके अलावा गिरफ्तार किये गये लोगों को बिना किसी भी कार्यवाही के एवं बिना किसी को जमानत दिए 2 साल तक जेल में रखने का अधिकार भी ब्रिटिश सरकार को प्राप्त था. यहाँ तक कि गिरफ्तार किये गए लोगों को यह भी नहीं बताया जाता था कि उन्हें किस धारा के तहत जेल में डाल दिया गया है. और उन्हें अनिश्चितकाल तक नजरबंद भी रखा जाता था. इसके साथ ही भारतीयों को यह अधिकार भी नहीं दिया गया कि वे अपने पक्ष कुछ बोल सकें.
  • ब्रिटिश सरकार को यह भी अधिकार प्राप्त था कि उन्होंने पुलिस को प्रेस को अधिक सख्ती से नियंत्रित करने की शक्ति दे दी थी.
  • जेल में डाले गये दोषियों को अपने अच्छे व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए सिक्योरिटीज को जमा करने के बाद ही रिहा किया जाता था.
  • भारतियों को राजनीतिक, धार्मिक या शैक्षिक गतिविधियों में हिस्सा लेने पर भी प्रतिबंध लगा दिए गये थे.

रॉलेट एक्ट का भारतियों द्वारा किया गया विरोध (Protests Against theRowlatt Act By Indians)

इस एक्ट का भारतीयों द्वारा विरोध किया गया था, क्योंकि उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके ऊपर यह कानून लागू करना अन्याय है. इस कानून के साथ भारतीय जनता काफी गुस्से में थी. उनकी ब्रिटिश सरकार से नाराजगी पहले की तुलना में और अधिक बढ़ गई थी. इस एक्ट का विरोध करने वालों में प्रमुख मजहर उल हक, मदन मोहन मालवीय और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे स्वतंत्रता कार्यकर्ता एवं नेता शामिल थे. इन सभी ने अपने बाकी भारतीय सहयोगियों के साथ मिलकर इस एक्ट के खिलाफ सर्वसम्मति से मतदान करने के बाद काउंसिल से इस्तीफा देने का फैसला किया.

गांधी जी द्वारा विरोध (Protests By Gandhiji)

इस कानून के प्रस्तावित होने के बाद विशेष रूप से गांधी जी ने इस कानून की आलोचना की थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि केवल एक या कुछ लोगों द्वारा किये गये अपराध के लिए लोगों के एक समूह को दोषी ठहरा कर उन्हें सजा देना नैतिक रूप से गलत है. गांधी जी ने इसके खिलाफ आवाज उठाते हुए इसे समाप्त करने के प्रयास में अन्य नेताओं के साथ मिलकर 6 अप्रैल को ‘हड़ताल’ का आयोजन किया. हड़ताल वह विरोध है, जहाँ भारतीयों ने सभी व्यवसाय स्थगित कर दिए. और ब्रिटिश कानून के प्रति अपनी नफरत दिखाने के लिए उपवास किया. गांधी जी द्वारा शुरू किये गए इस ‘हड़ताल’ आंदोलन को रॉलेट सत्याग्रह भी कहा जाता था. इस आंदोलन ने अहिंसा के रूप में शुरूआत की थी, किन्तु इसके बाद में इसने हिंसा एवं दंगे का रूप ले लिया. जिसके कारण गांधी जी ने इसे ख़त्म करने का फैसला किया. दरअसल एक तरफ लोग दिल्ली में हड़ताल को सफल बनाने में लगे हुए थे, तो दूसरी तरफ पंजाब एवं अन्य राज्यों में तनाव का स्तर बढ़ने के कारण दंगे भड़क उठे. और कोई भी उस समय अहिंसा का मार्ग नहीं अपना रहा था. जिसके चलते गांधी और कांग्रेस पार्टी के अन्य सदस्य द्वारा इसे बंद करना पड़ा. 

पंजाब में विरोध प्रदर्शन (Protest in Punjab)

यह आंदोलन पंजाब के अमृतसर में जोर पकड़ रहा था. लोग बहुत गुस्से में थे, जब 10 अप्रैल को कांग्रेस के दो प्रसिद्ध नेताओं डॉ सत्यापाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू को इस विरोध को भड़काने के आरोप के कारण पुलिस द्वारा अज्ञात स्थान से गिरफ्तार कर लिया गया था. तब अमृतसर के लोगों द्वारा सरकार से उनकी रिहाई की मांग के लिए प्रदर्शन किया गया. किन्तु उनकी मांग को नकार दिया गया, जिसके कारण गुस्साये लोगों ने रेलवे स्टेशन, टाउन हॉल सहित कई बैंकों और अन्य सरकारी इमारतों पर हमले किये और आग लगा दी. इससे ब्रिटिश अधिकारियों का संचार माध्यम बंद हो गया और रेलवे लाइन्स भी क्षतिग्रस्त हो गई थी. यहाँ तक कि 5 ब्रिटिश अधिकारीयों की मृत्यु हो गई. हालाँकि इसके साथ ही कुछ भारतीयों को भी अपनी जान गवानी पड़ी थी. इसके बाद अमृतसर में ‘हड़ताल’ में शामिल होने वाले कुछ नेताओं ने 12 अप्रैल 1919 को रॉलेट एक्ट के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने और गिरफ्तार किये गये दोनों नेताओं को जेल से रिहा करवाने के लिए मुलाकात की. इसमें उन्होंने यह निर्णय लिया कि अगले दिन जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक विरोध सभा आयोजित की जाएगी.

जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Hatyakand)

13 अप्रैल सन 1919 का दिन बैसाखी का पारंपरिक त्यौहार का दिन था. अमृतसर में इस दिन सुबह के समय सभी लोग गुरूद्वारे में बैसाखी का त्यौहार मनाने के लिए इकठ्ठा हुए थे. इस गुरूद्वारे के पास में ही एक बगीचा था जिसका नाम था जलियांवाला बाग़. यहाँ आस पास के गाँव के लोग अपने परिवार वालों के साथ तो कुछ अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए गए थे. दूसरी तरफ पंजाब में बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए सैन्य कमांडर कर्नल रेजिनाल्ड डायर ने बागडोर संभाली थी. उन्होंने भड़की हिंसा को दबाने के लिए अमृतसर में कर्फ्यू लगा दिया था. फिर उन्हें यह खबर मिली कि जलियांवाला बाग़ में कुछ लोग विरोध प्रदर्शन करने के लिए इकठ्ठा हो रहे हैं. तब कर्नल डायर ने करीब शाम 5:30 बजे अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग में प्रस्थान किया. वहां से बाहर जाने वाले रास्ते को उन्होंने बंद कर दिया था, और वहाँ उपस्थित लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश दे दिया. उन्हें किसी प्रकार की चेतावनी भी नहीं दी गई. डायर के सैनिकों ने लगभग 10 मिनिट तक भीड़ पर गोलियां दागी, जिससे वहां भगदड़ मच गई. वहां न सिर्फ युवा एवं बुजुर्ग उपस्थित थे बल्कि वहां बच्चे एवं महिलाएं भी त्यौहार मनाने के लिए गये हुये थे. 

इस बाग़ में एक कुआं भी मौजूद था. कुछ लोगों ने कुएं में कूद कर अपने प्राण बचाने का सोचा. किन्तु कुएं में कूदने के बाद भी उनकी मृत्यु हो गई. इसके चलते लगभग 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और इतने ही लोग घायल भी हुए. किन्तु ब्रिटिश सरकार ने अधिकारिक रूप से मरने वालों का आंकड़ा 379 का बताया था. ब्रिटिश प्रशासन ने इस हत्याकांड की खबरों को दबाने की पूरी कोशिश की. किन्तु यह खबर पूरे देश में फ़ैल गई. और इससे पूरे देश में व्यापक रूप से आक्रोश फ़ैल गया. हालाँकि इस घटना के बारे में जानकारी दिसंबर 1919 में ब्रिटेन तक पहुँच गई. कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने यह माना कि जलियांवाला बाग में जो हुआ, वह बिलकुल सही हुआ. किन्तु कुछ लोगों द्वारा इसकी निंदा की. डायर पर केस चला और वे दोषी ठहराये गये, उन्हें उनके पद से सस्पेंड कर दिया गया. साथ ही उन्हें भारत में सभी कर्तव्यों से छुटकारा दे दिया गया.

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद लोगों का विरोध एवं प्रतिक्रिया (PeopleProtest and Reaction After Jalianwala Bagh Hatyakand)

इस हत्याकांड से देश के अधिकतर लोग भयभीत हो गए थे, किन्तु किसी ने भी हार नहीं मानी, इससे वे ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई के लिए और अधिक मजबूत हो गये.रबिन्द्र नाथ टैगोर जिन्हें पहला एशियाई नॉबेल पुरस्कार प्रदान किया था को जब इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने ब्रिटिशों द्वारा दी गई नाइटहुड की उपाधि वापस लौटा दी और कहा कि – ऐसे हत्यारों को कोई भी पुरस्कार देने का हक नहीं है. वहीं दूसरी ओर गांधी जी का अंग्रेजों पर से विश्वास उठ गया. किन्तु इससे उनका एवं देशवासियों का ब्रिटिशर्स के खिलाफ लड़ने का संकल्प नहीं टूटा. हमेशा अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले गांधी जी ने देशवासियों से स्वराज को अपनाने के लिए कहा औरअसहयोग आंदोलन शुरू किया. इसमें उन्होंने विदेशी वस्तुओं का उपयोग न करने और उनके द्वारा दी जा रही सुविधा का उपयोग न करने का निश्चय किया था. हालाँकि इस आंदोलन में कुछ भारतीय राजनेताओं ने शामिल न होना ठीक समझा, किन्तु युवा पीढ़ी द्वारा इसका पूरा समर्थन किया गया था. इससे इस आंदोलन को सफलता मिलने लगी और इस सफलता को देख ब्रिटिश चौंक गये. फिर बाद में इस आंदोलन को भी बंद करना पड़ा जब इसने भी हिंसा रूप ले लिया.

इस तरह से जब भी इस कानून का जिक्र होता है, जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की झलकियाँ सामने आ जाती है. हर साल बैसाखी के दिन इस स्थान पर लोग जरुर जाते हैं और हत्याकांड में मारे गए लोगों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं. इस साल की बैसाखी के दिन इस घटना के 100 साल पूरे हो जायेंगे.

 

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