2100 तक समुद्री स्तर 1.1 मीटर तक बढ़ने का अनुमान: आईपीसीसी

इंटरगवर्नमेंटल पैनल क्लाईमेट चेंज (आईपीसीसी) की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र का स्तर 3.6 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है 

 

वैश्विक स्तर पर समुद्र का जल स्तर 2100 तक 1.1 मीटर बढ़ने का अनुमान है। यह तब होगा यदि दुनिया भर के देशों ने उत्सर्जन को अच्छी तरह से सीमित नहीं किया। यह बात इंटरगवर्नमेंटल पैनल क्लाईमेट चेंज (आईपीसीसी) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है। यही नहीं भले ही देश उत्सर्जन को प्रतिबंधित करने में सक्षम हों, फिर भी यह सन 2100 तक 30 से 60 सेंटीमीटर बढ़ने का अनुमान लगाया गया है।

ध्यान रहे  20 वीं शताब्दी के दौरान वैश्विक समुद्र का स्तर लगभग 15 सेमी बढ़ गया था। यह वर्तमान में 3.6 मिलीमीटर प्रति वर्ष की गति से बढ़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक निचले इलाकों में रहने वाले 680 मिलियन लोगों के जीवन पर इसका सीधा असर पड़ने की संभावना जताई गई है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने वर्तमान वैश्विक उत्सर्जन को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1डिग्री सेल्सियस ऊपर धकेल दिया है।

अतिरिक्त तापमान के कारण हर साल और चालू शात्बदी के मध्य के कई क्षेत्रों के समुद्री के स्तर में बढ़ोतरी संभव है। रिपोर्ट में उत्सर्जन के कारण कई द्वीपीय राष्ट्र निर्जन होने की संभावना भी जताई गई है। बढ़ते समुद्री तापमान ने भी 1982 के बाद से समुद्री हीटवेव की आवृत्ति को दोगुना कर दिया है।

रिपोर्ट में इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि 2 डिग्री सेल्सियस गर्म होने पर इसकी आवृत्ति 20 गुना अधिक होगी और अगर उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहता है तो यह 50 गुना अधिक बार होगा। जलवायु प्रणाली में अब तक महासागरों ने 90 प्रतिशत से अधिक गर्मी को अवशोषित कर लिया है। यदि ग्लोबल वार्मिंग 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रहता है तो 1970 और वर्तमान के बीच की तुलना में 2 से 4 गुना अधिक गर्मी को अवशोषित करेंगे।

हालांकि, समुद्र के पानी के बढ़ते तापमान से पानी की परतों के बीच मिश्रण कम हो जाएगा और इसके परिणामस्वरूप समुद्री जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति हो जाएगी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि समुद्र और क्रायोस्फीयर में अभूतपूर्व और स्थायी परिवर्तनों के लिए कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है। 

36 देशों के 100 से अधिक लेखकों की टीम द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी पता चला है कि यूरोप, पूर्वी अफ्रीका, उष्णकटिबंधीय इंडीज और इंडोनेशिया के छोटे ग्लेशियर संभवतः सन 2100 तक अपने वर्तमान बर्फ द्रव्यमान का 80 प्रतिशत से अधिक खो देंगे।

 

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