सिंधु घाटी सभ्यता आज से 4700 वर्ष पहले फली फूली थी। उस जमाने के नगर मुख्य रूप से सिंधु नदी के मैदानों में फले फूले थे। इसलिए इस सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता कहा जाता है। इस सभ्यता का सबसे पहले खोजे जाने वाले शहर का नाम है हड़प्पा। इसलिए इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं।
उसी समय के आस पास दुनिया के अन्य भागों में भी नदी घाटी सभ्यताओं का विकास हुआ था। टिग्रीस और यूफ्रेटीस नदी के आस पास मेसोपोटामिया की सभ्यता का विकास हुआ था। नील नदी के आस पास मिस्र की सभ्यता का विकास हुआ था। चीन में हुआंग हो नदी के किनारे ऐसी ही सभ्यता का विकास हुआ था।
हड़प्पा
हड़प्पा आज के पाकिस्तान में पड़ता है। इस पुरास्थल की खोज संयोग से हुई थी। 1856 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के लोग यहाँ पर रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे, तो उन्हें खंडहर मिले थे।
मजदूरों और कारीगरों को शुरु में लगा कि वह किसी साधारण से शहर का खंडहर होगा। इसलिए वहाँ से ईंटें निकालकर रेल निर्माण में इस्तेमाल की जाने लगीं।
आज से लगभग 80 वर्ष पहले एक ब्रिटिश पुरातत्वविद को अहसास हुआ कि यह कोई मामूली शहर नहीं बल्कि बहुत ही प्राचीन शहर था।
सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य महत्वपूर्ण पुरास्थल के नाम हैं: मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल और धोलावीरा। अब तो इस सभ्यता के लगभग 150 पुरास्थलों का पता चल चुका है। इनमें से अधिकतर पुरास्थल आज के पाकिस्तान में स्थित हैं।
भारत में पड़ने वाले कुछ पुरास्थलों के नाम हैं: कालीबंगा (उत्तरी राजस्थान), बनावली (हरयाणा), धोलावीरा (गुजरात), और लोथल (गुजरात)। विभिन्न पुरास्थलों पर खुदाई के बाद यह बात साफ हो गई है कि यह सभ्यता पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों तक फैली हुई थी।
इनशहरोंकीविशेषताएँ:
सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों की कुछ विशेषताएँ नीचे दी गई हैं:
योजनाबद्धशहर:
ऐसा लगता है कि इन शहरों का निर्माण बहुत ही सटीक योजना के आधार पर हुआ था।
हड़प्पा का नगर दो भागों में बँटा हुआ था, पश्चिमी और पूर्वी भाग।
नगर का पश्चिमी भाग छोटा था लेकिन ऊँचाई पर था। ऊँचे भाग को नगर-दुर्ग कहते थे। इस दुर्ग में कुछ खास इमारतें बनी थीं।
नगर का पूर्वी भाग नीचे था लेकिन बड़ा था। इस भाग को निचला शहर कहते थे।
नगर-दुर्ग में एक बड़ा तालाब मिला है। पुरातत्वविदों ने इसे महान स्नानागार का नाम दिया है। इसका निर्माण पकी ईंटों से हुआ था। महान स्नानागार की दीवारों और फर्श पर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी ताकि रिसाव न हो सके। इसमें उतरने के लिए दो तरफ से सीढ़ियाँ बनी थीं और चारों तरफ कमरे बने थे। इतिहासकारों का अनुमान है कि यहाँ पर विशेष अवसरों पर विशिष्ट नागरिक स्नान किया करते थे।
धनी लोग शहर के ऊपरी हिस्से में रहते थे, जबकि मजदूर लोग शहर के निचले हिस्से में रहते थे।
पकीईंटोंकाप्रयोग:
घर और अन्य इमारतें पकी ईंटों से बनी थीं। ईंट एक ही आकार के थे। इससे यह पता चलता है कि हड़प्पा के कारीगर कुशल होते थे। ईंटों को ‘ईंटर लॉक’ पैटर्न में जोड़ा जाता था। इससे इमारत को अधिक मजबूती मिलती थी।
सड़केंऔरनालियाँ:
सड़क पर ईंटें बिछाई जाती थी। सड़कें आपस में समकोण पर काटती थीं। नालियों का जाल भी योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया था। हर घर से निकलने वाली नाली सड़क की नाली से मिलती थी। नालियों को पत्थर की सिल्लियों से ढ़का जाता था। थोड़े-थोड़े अंतराल पर इनमें मेनहोल जैसे बने होते थे ताकि साफ सफाई हो सके।
योजनाबद्धमकान:
घरों की दीवारें मोटी और मजबूत होती थीं। कुछ मकान तो दोमंजिले भी होते थे। इससे उस जमाने की परिष्कृत वास्तुकला का पता चलता है। एक घर में अक्सर एक रसोई, एक स्नानघर और एक बड़ा सा आंगन होता था। पानी की सुचारु व्यवस्था के लिए अधिकतर घरों में कुँआ भी होता था।
भंडारगृह:
सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों में बड़े भंडार गृह भी पाये गये हैं। ऐसे भंडार गृह से झुलसे हुए अनाज भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि उस जमाने में अनाज का उत्पादन आवश्यकता से अधिक होता था। इतिहासकारों का यह भी अनुमान है टैक्स को अनाज के रूप में वसूला जाता था। बड़े भंडार गृह में टैक्स में वसूले गये अनाज रखे जाते थे।