अध्याय-7: बुनकर , लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक
- उन्नीसवीं सदी में सूती कपडे के मशीनी उत्पादन में ब्रिटेन को दुनिया का सबसे प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र बना दिया था।
- 1850 में लोहा और इस्पात उद्योग ब्रिटेन में पनपने की वजह से इसे “दुनिया का कारखाना ” कहा जाने लगा।
भारतीय कपडे और विश्व बाजार
- बंगाल पर अंग्रेजो की विजय से पहले 1750 के आस-पास भारत पूरी दुनिया में कपड़ा उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे था।
- दक्षिण-पूर्वी एशिया ( जावा, सुमात्रा और पेनांग ) तथा पश्चिमी एवं मध्य एशिया में इन कपड़ो का भारी व्यापार था।
- यूरोप के व्यापारियों ने भारत से आया बारीक़ सूती कपड़ा सबसे पहले ईराक के मोसूल शहर में अरब के व्यापारियों के पास देखा था।
- बारीक़ बुनाई वाले सभी कपड़ों को ” मस्लिन ” ( मलमल ) कहने लगे।
- मसालों की तलाश में पुर्तगाली केरल के तट कालीकट पर पहुंचे तो वे वहाँ से मसालो के साथ सूती कपडे भी ले गए। जिसे “कैलिको ” ( कालीकट से निकला शब्द ) कहने लगे।
- बही – इसमें सूती और रेशमी कपडो की 98 किस्मे है जिन्हे यूरोपीय व्यापारी पीस गुड्स कहते थे जो आम तौर पर 20 गज लम्बा और 1 गज चौड़ा थान होता था।
- थोक में जिन कपड़ो ( छापेदार सूती कपडे भी ) का ऑर्डर दिया गया। उन्हें ये व्यापारी शिट्ज , कोसा ( या खस्सा ) और बंडाना कहते थे।
- शिट्ज-यह हिंदी की ‘छींट ‘ शब्द से निकला है।
- बंडाना-यह हिंदी के ‘बांधना ‘शब्द से निकला है।
- नोट- जामदानी बुनाई -( बीसवीं सदी की शुरुआत में ) सूती और सोने के धागो के इस्तेमाल से बंगाल में स्थित ढाका और संयुक्त प्रान्त ( वर्त्तमान उत्तर प्रदेश ) के लखनऊ जामदानी बुनाई के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र थे।
- नोट- बारीक़ कपडे पर छपाई ( छींट ) उन्नीसवीं सदी के मध्य मसूलीपट्टनम ( आंध्र प्रदेश )
- नोट- बंडाना शैली ( राजस्थान और गुजरात ) बीसवीं सदी के प्रारम्भ में।
यूरोपीय बाजारों में भारतीय कपड़ा-
- अठारहवीं सदी में इंग्लैण्ड के ऊँन व रेशम निर्माताओं ने भारतीय कपड़ों के आयात का विरोध करने लगे थे।
- 1720 में ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड में छापेदार सूती कपडे-छींट -के इस्तेमाल पर पाबन्दी लगा दिया इस कानून को भी कैलिको अधिनियम ही कहा गया।
- 1764 में ‘जॉन के ‘ ने स्पिनिंग जैनी का अबिष्कार किया जिससे परंपरागत तकलियों की उत्पादकता काफी बढ़ गई।
- 1786 में रिचर्ड अर्कराइड ( हाइड्रोपॉवर इंजन का अबिष्कार किया था ) ने वाष्प इंजन का अबिष्कार किया जिसने सूती कपडे की बुनाई को क्रन्तिकारी रूप से बदल दिया।
- डच, फ्रेंच, ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय कम्पनियाँ भारत से चाँदी के बदले सूती रेशमी कपडे खरीदती थी।
बुनकर-
- ये आमतौर पर बुनाई का काम करने वाले समुदायों के ही कारीगर होते थे, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हुनर को आगे बढ़ाते थे।
- बंगाल के तांती , उत्तर भारत के जुलाहे या मोमिन दक्षिण भारत के साले व कैकोल्लर तथा देवांग समुदाय बुनकरी के लिए प्रसिद्ध थे।
- सूत कातने का महिलाऍं तथा कपडे बनाने का काम पुरुष करते थे।
- छपाईडर कपड़ा बनाने के लिए बुनकरों को चिप्पिगर नामक माहिर कारीगरों की जरुरत पड़ती थी जो ठप्पे से छपाई करते थे।
भारतीय कपड़ों का पतन
- भारतीय कपडे को ब्रिटिश उद्योगों से बने कपडे से प्रतिस्पर्धा।
- भारतीय कपडे पर इंग्लैण्ड में भारी सीमा शुल्क थोप दिया गया।
- 1880 के दशक तक भारत के लोग जितना सूती कपड़ा पहनते थे उसमे से दो तिहाई ब्रिटेन का बना होता था।
- 1830 के दशक तक भारतीय बाजार ब्रिटेन में बने सूती कपडे से पट गए।
- ब्रिटिश उद्योगों में बने कपडे की कीमत का कम होना।
- उन्नीसवीं सदी के आखिर में पश्चिमी भारत में सोलापुर और दक्षिण भारत में मदुरै बुनकरी के नए केंद्र के रूप में उभरे।
- राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने आयातित कपडे का बहिष्कार व हाथ से कते सूत तथा हाथ से बुने कपडे पहनने का आह्वान किया।
- इस प्रकार कड़ी राष्ट्रवाद का प्रतिक बनती चली गई।
- चरखा भारत की पहचान बन गया और 1931 में उसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तिरंगे झंडे की बीच वाली पट्टी में जगह दी गयी।
सूती कपड़ा मिलों का उदय
- भारत में पहली सूती कपड़ा मिल 1854 में बम्बई में स्थापित हुई। यह कताई मिल थी।
- सन 1900 तक आते आते बम्बई में 84 कपड़ा मिले चालू हो चुकी थी।
- अहमदाबाद में पहला कारखाना 1861 में खुला।
- 1862 में संयुक्त प्रान्त स्थित कानपुर में भी एक कारखाना खुल गया।
- भारतीय कपड़ा कारखानों की समस्याएँ
- ब्रिटेन से आए सस्ते कपड़ो का सामना करना पड़ता था।
- अधिकतर देशों में सरकारें आयातित वस्तुएं ( भारतीय कपड़ो पर ) पर सीमा शुल्क लगाकर अपने देश में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देती थी।
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय कारखानों से बनी कपड़ों की मांग बढ़ी।
टीपू सुल्तान की तलवार और बुट्ज स्टील
- टीपू की तलवार वुट्ज स्टील से बनी थी जो दुश्मन के लौह कवच को भी चीर सकती थी।
- टीपू की तलवार की मूठ पर कुरान की आयतें लिखी हुई है।
- आज यह तलवार इंग्लैण्ड की संग्रहालय की बहुमूल्य संपत्ति है। ( अब इसे विजय माल्या ने खरीद ली है )
- वुट्ज स्टील-वुट्ज स्टील में लौह में कार्बन की अधिक मात्रा मिलाकर बनाया जाता है यह दक्षिण भारत में बनाया जाता था।
- वुट्ज स्टील की तलवारे बहुत पैनी और लहरदार होती थी इनकी यह बनावट लोहे में गढ़े कार्बन के बेहद सूक्ष्म कणों से पैदा होती थी।
- विश्वविख्यात वैज्ञानिक और विजली व विद्युत् चुम्बकत्व का अविष्कार करने वाले माइकल फैराडे ने भारतीय वुट्ज स्टील की विशेषताओं का चार साल ( 1818-22 ) तक अध्ययन किया।
- नोट- उन्नीसवीं सदी तक लोहे के प्रगलन का कार्य बंद होने का कारण औपनिवेशिक सरकार का वन कानून था।
भारत में लोहा व इस्पात कारखानों का उदय –
- 1904 में अमेरिकी भू वैज्ञानिक चार्ल्स वेल्ड और जमशेदजी टाटा के सबसे बड़े बेटे दोराबजी टाटा ने अगरिया समुदाय (लोहे का काम करने वाले ) की मदद से राझारा पहाड़ियों को ढूंढा।
- अगरिया समुदाय के लोगो ने ही लौह अयस्क का एक और स्रोत ढूंढने में मदद दी जहाँ से बाद में भिलाई स्टील संयंत्र को अयस्क की आपूर्ति की गई।
- सुबर्णरेखा नदी तट पर औद्योगिक शहर बसाया गया जिसे जमशेदपुर नाम दिया गया।
- यहाँ तात आयरन एण्ड स्टील कंपनी ( टिस्को ) की स्थापना हुई जिसमें 1912 से स्टील का उत्पादन होने लगा।
- 1919 तक टिस्को में बनने वाले 90 प्रतिशत इस्पात को औपनिवेशिक सरकार ही खरीद लेती थी।